आदित्य L1 की पूरी जानकारी, सूर्य पर जीवन को भी ढूंढ निकालेगा भारत की पहली सौर्य अंतरिक्षीय वेधशाला
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दिनांक 2 सितंबर 2023 को भारत ने अपनी पहली अंतरिक्षीय सौर्य वेधशाला पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर स्थापित करने हेतु आदित्य एल-1 नाम का उपग्रह भेज दिया है |
आदित्य L1 को ISRO के विश्वसनीय रॉकेट PSLV से 11 बज कर
50 मिनट पर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोट से प्रक्षेपण किया गया, जो की
125 दिन बाद लैंगरेंज पॉइंट 1 पर स्थापित होगा |
सूर्य के अध्ययन को लेकर भारत की ये
पहली वेध शाला है जो अंतरिक्ष मे स्थापित होगी |
भारत मे खगोल विज्ञान के अध्ययन की एक
बहुत पुरानी परंपरा है | भगवान श्री राम भी सूर्य के धब्बे को बता रहे है और आधुनिक समय मे भी वेध शालाये बनाने मे भी हम कभी पीछे नहीं रहे | आधुनिक
समय अर्थात पिछले 800-1000 वर्ष, जिसमे की नवीन नाम से कुतुब मीनार कहा जाने वाला
भवन हो या जंतर मनतर | महाराज जय सिंह द्वितीय ने जयपुर, नई दिल्ली, उज्जैन,
मथुरा, वाराणसी मे 1734 से 1735 के बीच मे जो वेध शालाये स्थापित करी उन्हे हम
जंतर मन्तर के नाम से जानते है जिनमे जयपुर और नई दिल्ली की वेध शालाये अभी भी
अध्ययन करने योग्य है | इसके अतिरिक्त
भारत मे अनेकों वेध शालाये है जिनमे कुछ सूर्य के अध्ययन को लेकर लक्षित है |
सयुक्त राज्य अमेरिका की नासा, यूरोप
की यूरोपीयन स्पेस एजेंसी ई.एस.ए, जापान की जापान एरोस्पेस एक्सपलोरेशन जाकसा और
चीन की नैशनल स्पेस साइंस सेंटेर के पश्चात भारत की इसरो अंतरिक्ष मे सौर्य
वेधशाला भेजने वाला भारत पाचवा देश बन गया है |
कुछ प्रमुख वेध शालाओ
के बारे मे जानते है |
L1 पॉइंट पर स्थापित होने वाली वेधशालाओ मे Solar and Heliospheric Observatory SOHO European Space Agency द्वारा निर्मित जिसे 2 दिसंबर 1995 मे लॉन्च किया गया था और मई 1996 मे ये कक्षा मे स्थापित हुआ था | इसे 2 वर्ष के लिए बनाया गया था पर इसे लगभग 27 वर्ष 9 मास हो गए है और ये अभी भी कार्य कर रहा है | इसने 4000 तक कॉमेटस की खोज कर ली है और येESA एवं NASA द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किया जाता है |
Deep Space Climate Observatory जिसे 11 फरवरी 2015 को स्पेस एक्स के रॉकेट से
स्थापित किया गया था और 8 जून 2015 से यह कार्य कर रहा है | ये भी नासा द्वारा ही
नियंत्रित है |
वर्ष 2018 मे नासा का सोलर पार्कर प्रॉब लॉन्च हुआ जो की 22 जून 2023 को अपनी 16 वी कक्षा मे प्रवेश करने पर 27 जून 2023 को सूर्य के अबतक सबसे निकटतम जाने वाला यान है | इसके साथ ही इसकी अधिकतम गति 191 किलोमीटर प्रतिघंटे की रही जिस से ये अब तक का मानव निर्मित सबसे तीव्रगति प्राप्त करने वाला यान बना |
L 2 पॉइट पर स्थापित करने के लिए
जेम्स वेब स्पेस टेलएस्कोप 25 दिसंबर 2021 को लॉन्च किया गया जो की 12 जुलाई 2022
से सेवाये दे रहा है |
अब लँगरेंज पॉइंट्स को समझते है |
पाँच लैंगरेंज प्वाइंट होते है जिसमे L1, L2, L3 अस्थिर है और L4, L5 स्थिर है | L4, L5 पृथ्वी की कक्षा के मार्ग पर है |
ये अंतरिक्ष मे
वे बिन्दु है जहा वस्तुओ को भेजने पर ये उसी अवस्था मे रहते है | लैंगरेंज पाइंट
पर सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण खिचाव किसी छोटे पिंड को उसी कक्षा मे रखने
के लिए आवश्यक अभिकेंद्रीय बल यानि सेंटरिपीटल फोर्स के बराबर होता है |
इस प्रकार इन स्थानों पर उपग्रही वेधशाला को स्थापित करने से ईधन की खपत को न्यून कर दिया जाता है |
लैंगरेंज प्वाइंट इटालियन-फ्रेंच मूल के गणितज्ञ जोएसफी लोइस
लँगरंजे के सम्मान मे दिया गया नाम है |
आदित्य L1 लँगरंज 1 पर
स्थापित होने पर सूर्य की बाहरी तीन
परतों का अध्ययन करने मे सहायता करेगा | सूर्य की आन्तरिक्त परतों मे कोर,
रेडियोएक्टिव जॉन, कंविक्सन जोन होती है और बाहरी परत मे फोटोसफीयर क्रोमोसफीयर और
कोरोना है | क्रोमोसफीयर और कोरोना के बीच एक
संक्रमनीय परत भी होती है जिसे अंग्रेजी मे ट्रांजिशन लेयर भी कहते है |
सूर्य का 73% द्रव्यमान हाइड्रोजन है और 25% हीलियम है अन्य 2% मे कार्बन, ऑक्सीजन एवं नाइट्रोजन है | सूर्य के कोर मे हाइड्रोजन हीलियम मे परिवर्तित होता है जिसे न्यूलीयर फ्यूशन कहते है |
1480 kg वजनी आदित्य L1 मे कुल 7 पेलोड लगे है जिसमे 4 रिमोट सेन्सिंग और 3 In-situ उपकरण है |
पहला उपकरण है VELC visible emission line chronograph ये एक ultraviolet reflective telescope है | ये प्रतिदिन
सूर्य से 1440 चित्र पृथ्वी
पर भेजेगा |
इसे आप अभियांत्रिकी चमत्कार कह सकते
है | इसकी आंतरिक संरचना बेहद जटिल है और अत्यंत गणतीय परिश्रम का परिणाम हैं |
VELC, को Indian Institute of Astrophysics (IIA),
Bengaluru, Laboratory of electro optical system, Bengaluru, U R Rao
Satellite center, Bengaluru, ISRO inertial system unit and space application center, त्रिवन्तपुरम ने संयुक्त रूप से विकसित किया है |
दूसरा Solar low energy spectrometer SOLexs जो की सोलर साफ्ट एक्स रे फ्लक्स को
अध्ययन करता है यानि सॉफ्ट एक्स रे स्पेक्टरोमीटर है | इसे U R Rao
satellite center द्वारा विकसित किया
गया है |
तीसरा हाई एनर्जी एल 1
ऑरबिटिङ एक्सरे स्पेक्टरोंमीटर Hel1os
ये हार्ड एक्स रे स्पेक्टरोमीटर है इसे भी U R Rao satellite center द्वारा विकसित किया गया है |
चौथा Solar ultra violet Imaging
telescope है जो की UV telescope ये फोटोसफीयर और क्रोमोसफीयर का अध्ययन
करेगा इसे Inter University for astronomy and
astrophysics, Pune ISRO ने संयुक्त रूप से विकसित किया है |
पाचवा
Aditya solar wind
particle experimental Aspex
In-situ
observations के
लिए
बनाया गया है यह Low energy particles and high energy ions के अध्ययन के लिए लगाया गया है इसे Physical Research Laboratory, Karnavarti जिसे की Ahmedabad कहा जाता है ने विकसित किया है |
छठवा
Plasma Analyser Package
for Aditya जिसे
संक्षेप
PAPA नाम दिया गया है solar winds का mass analysis करेगा | इसे Space
Physics Laboratory, Vikram Sarabhai Space Center, त्रिवन्तपुरम ने विकसित किया है |
सातवा
Magnetometer हैं जो की Interplanatery magnetic fields
magnetic sensors से मेसर करेगा इसे Electro Optics Systems बैंगलुरु ने विकसित किया है |
कहने वाले यह तो कह सकते है की भारत ने थोड़ा
विलंभ से अंतरिक्ष मे सूर्य के अध्ययन को लेकर वेधशाला स्थापित करी पर यदि हम इसरो
का इतिहास देखे तो पाएंगे की दूसरों से सीख कर हमारे वैज्ञानिकों ने कार्य कही
दक्षता से किया है |
इन पेलोड्स से यह एकदम स्पष्ट हो गया है |
वर्ष 2008 मे
एड्वाइसरी कमेटी फॉर स्पेस एजेंसी, ने सौर्य मिशन का सुझाव दिया था | 2016-17 मे इसके लिए 3 करोड़ भारतीय
रुपये प्रस्तावित हुए | अंतरिक्ष मे प्रक्षेपण होते होते इसमे 400 करोड़ रुपये के लगभग
लग गए |
सभी उपकरणों को संयोजित कर के आदित्य L1 बना है जिसे PSLV
rocket के ऊपरी भाग मे लगाया गया | इन सबको सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, की Vehicle
Assembly Building मे जोड़ा गया जो की लॉन्च
पैड से 900 मीटर दूर है पी एस एल वी के ऊपरी भाग मे
आदित्य एल 1 को रख कर साइट पर पहुचाया गया जहा से इसे अंतरिक्ष मे प्रक्षेपित किया गया |
इसके अतिरिक्त भी सूर्य के विषय मे अनेकों रहस्य है | सूर्य पर जीवन की संभावना भी वैज्ञानिक भी जता चुके है | कुछ वर्षों पूर्व लीजलेना नाम का बाइटेरिया मिला जो गर्म पानी मे जीवित राहत है इस प्रकार के थर्मोपाइल्स जो की 45 से 80 डीगरी सेलसिउस मे रहने पर वैज्ञानिकों की सोच मे बदलाव ले आए | यहा तक की लावा मे भी सूक्ष्म जीव पाए गए है |
इस कारण वातावरण अनुसार जीवन की
संभावना पर भी वैज्ञानिक विचार करने लगे |
तो क्या सूर्य पर किसी प्रकार का जीवन
हो सकता है ? क्या प्लासमा से निर्मित कोई जीवन भी
संभव है ? इस से संबंधित भी जानकारिया मिल हमे
आदित्य एल 1 से हमे मिल सकती है | यदि आप लोग चाहेंगे तो इस विषय पर हम विस्तार से भविष्य मे अलग वीडियो बना
सकते है | इस विषय पर आपकी क्या राय है हमे कमेन्ट मे बताए |
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चंद्रयान मिशन की पूरी जानकारी के लिए
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