1989 के बाद से उत्तर प्रदेश में कोई ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं बना
भारत में सर्वाधिक ब्राह्मणो की जनसँख्या उत्तर प्रदेश में है, अनुमानतः लगभग २ करोड़ बताई जाती है जो कुल आबादी का १० प्रतिशत हुआ | उत्तराखंड प्रतिशत अनुसार नंबर १ पर है जहा २० प्रतिशत ब्राह्मण जनसंख्या है | इतनी बड़ी आबादी के उपरान्त भी ब्राह्मणो को पिछले ३० वर्षो में उत्तर प्रदेश में भाजपा द्वारा सत्ता से दूर रखा गया |
नारायण दत्त तिवारी जो की कांग्रेस से थे उनके बाद से कोई भी ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया गया है | और ख़ास बात है समय, ये समय था आर्थिक उदारीकरण का १९९१ का जब भाजपा की सरकार आयी कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया |
१९९१ में केसरी नाथ त्रिपाठी एक बड़े वरिष्ठ नेता थे उन्हें स्पीकर बना दिया गया उत्तर प्रदेश विधान सभा का |
बीच में राष्ट्रपति शासन रहा पर मुलायम सिंह और मायावती का दौर आरम्भ हो चूका था | १९९७ में पुनः भाजपा को अवसर मिला |
३ जून १९९५ को मायावती मुख्यमंत्री बनी | मुख्य मंत्री बनने के कुछ घंटे पहले ही मीरा गेस्ट हाउस के कमरा नंबर १ | बाहर समाजवादी गुंडे थे | उत्तर प्रदेश के उभरते हुए नेता ब्रह्म दत्त द्विवेदी को उन्होंने मदद को फोन मिलाया और वे समय पर आ भी गए | उनकी जान बचाई इस बात से मायावती इंकार नहीं करती |
अब यहाँ १३ वी विधानसभा के खेल को जानना आवश्यक है | पहले ये भंग हुई फिर मायावती को सरकार बनाने का अवसर मिला | मायावती के साथ बारी बारी सरकार चलाने में ये निश्चित था की उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री ब्रह्म दत्त द्विवेदी ही होंगे | ये बड़ा काटा थे गैर ब्राह्मण राजनितिक लॉबी के लिए | कल्याण सिंह का नाम जिसमे ऊपर आता है | १० फरवरी १९९७ को ब्रह्म दत्त द्विवेदी जी हत्या कर दी गई | वे एक तिलक समारोह से लौट रहे थे उनके साथ उनका सुरक्षा अधिकारी बी की तिवारी भी मारा गया | यु पी में राष्ट्रपति शासन था कह सकते है अराजकता का दौर था |
उसी वर्ष एक ब्राह्मण दरोगा की भी हत्या हुई थी मामला बना दिया गया था शिवपाल सिंह यादव की जान बचाने में जान गयी | ये विषय फिर कभी अराजकता का दौर समझने के लिए इतना पर्याप्त है |
ब्रह्मदत्त जी की हत्या में विधायक विजय सिंह और गैंगस्टर संजीव माहेश्वरी को २००३ में सी बी आई कोर्ट में आजीवन कारावास की सजा सुनाई जिसे २०१७ में हाई कोर्ट उत्तर प्रदेश ने यथावत रखा | हाला के विजय सिंह चुनाव जीतते आये है | लल्लनटॉप की रिपोर्ट के अनुसार हत्या के दो दिन पहले तक विधायक साक्षी महाराज और सपा नेता उर्मिला राजपूत के यहाँ खाना खाते रहे | कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह का नाम भी आता रहा |
फिर मायावती के ६ महीने के शासन के पश्चात कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने | कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने | कल्याण सिंह के पश्चात एम एल सी राम प्रकाश गुप्ता मुख्यमंत्री बने जो लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहे | फिर उन्हें हटा के कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया जो वर्ष २००२ तक सत्ता में रहे | फिर सपा बसपा का दौर उत्तर प्रदेश में चला | मायावती, मुलायम सिंह फिर अखिलेश और अब योगी आदित्यनाथ |
अब देखने योग्य बात है की ब्रह्म दत्त की हत्या के बाद कई बड़े नाम थे भाजपा में मुख्यमंत्री पद के लिए | राम प्रकाश त्रिपाठी भी काफी लम्बे समय से चुनाव जीतते आरहे थे उन्हें सहकारिता मंत्री बना दिया गया था | अन्य कई बड़े नाम जिन्हे हम भाजपा में जानते है जैसे की रमापति राम त्रिपाठी, कलराज मिश्र, ह्रदय नारायण दीक्षित जो की वर्तमान में उत्तर प्रदेश विधान सभा के स्पीकर है इसके अतिरिक्त भी ब्राह्मण समाज किस हद तक भाजपा और संघ से जुड़ा हुआ है ये हम सब जानते है | पर ब्राह्मण समाज को ही पीछे धकेलने में भाजपा कोई ताकत नहीं छोड़ती |
ऐसा क्यों है ? १९८९ में बाद सम्भव है कांग्रेस में ब्राह्मणो का वर्चस्व के कारण भाजपा स्वयं को अलग दिखाना चाहती हो | या ये भी संभव है की मंडल कमीशन और राम मंदिर के दौर में जो देश में आर्थिक लूट आरम्भ करवाई गयी उदारीकरण के नाम पर उस पर ब्राह्मण ही सर्वाधिक विरोध कर रहे थे जिसका एक उदाहरण स्वर्गीय श्री राजीव दीक्षित है | अंतराष्ट्रीय ताकते भी ब्राह्मणो को अपना शत्रु मानती है |
मैं यहाँ जातिवादी कारणों से इस लेख को नहीं लिख रहा | मैं वर्णाश्रम व्यवस्था को मानता हूँ ऋषि दयानन्द के सिद्धांतो को मानता हूँ ये लेख इसलिए लिखा की ब्राह्मण समाज को अपनी स्तिथि समझनी चाहिए | विधायक बन जाने से आपकी हैसियत बस अपने क्षेत्र के थाने भर की है | कितनी चलती है वर्तमान सरकार में ये तो वही बता सकते है जो चुन के आये है | ५१ SC सांसदों ने पत्र लिख कर भेज दिया और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश पलट दिया, यह इमराना मामले से कैसे अलग हुआ ? यदि वह मुस्लिम तुष्टीकरण था श्री राजीव गांधी द्वारा तो ये दलित तुष्टीकरण है | आज ब्राह्मण समाज के लोग झाड़ू लगाने की नौकरी के लिए आवेदन कर रहे है | खैर काम कोई बुरा नहीं बस वर्ण व्यवस्था को स्वीकारिये, ब्राह्मण में सभी वर्ण समाहित है पर ज्ञानी और त्यागी होना उसका स्वाभाविक गुण है | ये लेख ब्राह्मण विरोध को प्रदर्शित करने को नहीं था अपितु ब्राह्मण समाज के पिछड़ने और उसके कारणों पर चिंतन करने के लिए लिखा था | मुँह में पान मसाला गुटखा भर के आप स्वयं को ब्राह्मण नहीं कह सकते | एक दलित नेता की जान बचा के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता खोला एक ब्राह्मण ने और उत्तर प्रदेश की राजनीत बदल गयी उसके उपरान्त भी ब्राह्मणो को ही दलितों के शोषण के लिए आरोप लगाया जाता है | सत्ता केवल सत्य की, जो भी समाज के लिए सोचेगा और करेगा समाज उसे स्वीकार करेगा | आत्म सुधार की ओर चलिए.....
Labels: राजनितिक सुधार
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