अमर होने का सूत्र
आप अमर होना चाहते है ? आप कहेंगे कौन अमृत्व को नही प्राप्त करना चाहता यदि अमरता स्वर्ग की प्राप्ति का स्थायित्व जैसी हो | समस्याओं के साथ तो कोई भी अमर नहीं होना चाहेगा | यदि मैं कहू कि अमर होना बड़ा सरल है तो आप यही कहेंगे कि ये संभव ही नहीं सरलता तो दूर कि बात है | अमरत्व क्या है इसे समझिये, इसी शरीर में रहते जब तक मानवजाति रहे कम से कम तब तक पृथ्वी पर बने रहने कि चाह कुछ लोगो कि उसके बाद भी इसका मूल अर्थ तो यही हुआ कि आपका D.N.A पृथ्वी पर बना रहे नष्ट न हो | D.N.A के अंदर समायोजित जींस आपके ज्ञान के संवाहक होते है तो अन्य भी तरीके है आपके ज्ञान को सुरक्षित रखने के |
१. पुस्तक लिखिए : पुस्तके मनुष्य को अमर कर देती है | व्यक्ति रहे न रहे उसके ज्ञान को पुस्तके पीढ़ी दर पीढ़ी लोग पढ़ कर आगे बढाते हैं | सारे ऋषि मुनि इसी प्रकार तो अमर है | महर्षि दयानंद इसी प्रकार अमर हुए |आपका साहित्य नित्य ज्ञान पर होना चाहिए विद्या पर तभी आप पुस्तको के माध्यम से अमर हो पायेंगे | अविद्या तो बदलती रहती है इसीलिए तो अविद्या है |
२. अविष्कार करिए : आपका अविश्कारिक ज्ञान आपको कुछ पीढियों के लिए तो अमरत्व दे ही देगा | लोग तब तक आपको याद करेंगे जब तक आपकी बनाई चीज़ का प्रयोग करेंगे | पर है ये अविद्या का मार्ग अतः बहुत लम्बा नहीं है फिर भी यदि आपके कार्य से कुछ परोपकार होना है मानवजाति का तो इस से उत्तम क्या है |
३. शिक्षक बनिए : कोई ऐसी शिक्षा दीजिये दुनिया को जिसके कारण आपकी बात पीढ़ी दर पीढ़ी लोग आगे कहते रहे | वैसे कहावते बनाने वाले घाघ भी इस प्रकार अमर ही माने जायेंगे और वेदों को श्रुति रूप में आगे बढाने वाले ऋषि भी |
४. उत्तम संतान उत्पन्न करिए : ऐसा करने पर आप पितृ ऋण से तो उबरेंगे ही साथ ही साथ आप अपने जींस को भी संरक्षित कर पायेंगे | इसीलिए स्त्री और पुरुष एक दुसरे के लिए अमरत्व का कारक है | परस्पर सम्मान और आदर के बिना कोई भी रह नहीं सकता मानव जाती हमारे सद्भाव पर ही टिकी है | ऐसे में नारीवाद के नाम पर पुरुष विरोध और पुरुष प्रधानता के नाम पर स्त्री पर हो रहे अत्याचार दोनों ही वसुतातः मानवजाति पर संकट है |
५. वास्तविक अमर हो जाइए : ये अथा पुरुषार्थ का मार्ग है | करोडो या अरबो में कोई एक मनुष्य ही इस सामर्थ्य को पाने का साहस कर पाता है | हनुमान जी देख लीजिये | इस शारीर को आप ४०० वर्ष तो आसानी से ठीक रख सकते है पर सहस्त्रो वर्ष रखने के लिए औषधिया ही पर्याप्त नहीं | शारीर को हाइबरनेशन कि स्तिथि में भी रखना पड़ेगा समय समय पर | सिद्धियों का भी प्रयोग करना पड़ेगा |
अमरत्व होने का अवसर विधाता ने केवल इसलिए दिया है ताकि इस शरीर का लक्ष्य प्राप्त किआ जा सके मुक्ति मोक्ष कि प्राप्ति कि जा सके | हम सबके प्रयास जाने अनजाने अमृत्व कि ओर ही होते है इस शरीर में अमरत्व कि अभिलाषा केवल इस ध्येय के कारण है कि हम स्वछन्द हो कर ब्रह्माण्ड में भ्रमण कर सके उस परमानंद के संपर्क में रहते हुए | अतः कैवल्य कि स्तिथि कि प्राप्ति कि चेष्टा ही सर्वोत्तम है |
१. पुस्तक लिखिए : पुस्तके मनुष्य को अमर कर देती है | व्यक्ति रहे न रहे उसके ज्ञान को पुस्तके पीढ़ी दर पीढ़ी लोग पढ़ कर आगे बढाते हैं | सारे ऋषि मुनि इसी प्रकार तो अमर है | महर्षि दयानंद इसी प्रकार अमर हुए |आपका साहित्य नित्य ज्ञान पर होना चाहिए विद्या पर तभी आप पुस्तको के माध्यम से अमर हो पायेंगे | अविद्या तो बदलती रहती है इसीलिए तो अविद्या है |
२. अविष्कार करिए : आपका अविश्कारिक ज्ञान आपको कुछ पीढियों के लिए तो अमरत्व दे ही देगा | लोग तब तक आपको याद करेंगे जब तक आपकी बनाई चीज़ का प्रयोग करेंगे | पर है ये अविद्या का मार्ग अतः बहुत लम्बा नहीं है फिर भी यदि आपके कार्य से कुछ परोपकार होना है मानवजाति का तो इस से उत्तम क्या है |
३. शिक्षक बनिए : कोई ऐसी शिक्षा दीजिये दुनिया को जिसके कारण आपकी बात पीढ़ी दर पीढ़ी लोग आगे कहते रहे | वैसे कहावते बनाने वाले घाघ भी इस प्रकार अमर ही माने जायेंगे और वेदों को श्रुति रूप में आगे बढाने वाले ऋषि भी |
४. उत्तम संतान उत्पन्न करिए : ऐसा करने पर आप पितृ ऋण से तो उबरेंगे ही साथ ही साथ आप अपने जींस को भी संरक्षित कर पायेंगे | इसीलिए स्त्री और पुरुष एक दुसरे के लिए अमरत्व का कारक है | परस्पर सम्मान और आदर के बिना कोई भी रह नहीं सकता मानव जाती हमारे सद्भाव पर ही टिकी है | ऐसे में नारीवाद के नाम पर पुरुष विरोध और पुरुष प्रधानता के नाम पर स्त्री पर हो रहे अत्याचार दोनों ही वसुतातः मानवजाति पर संकट है |
५. वास्तविक अमर हो जाइए : ये अथा पुरुषार्थ का मार्ग है | करोडो या अरबो में कोई एक मनुष्य ही इस सामर्थ्य को पाने का साहस कर पाता है | हनुमान जी देख लीजिये | इस शारीर को आप ४०० वर्ष तो आसानी से ठीक रख सकते है पर सहस्त्रो वर्ष रखने के लिए औषधिया ही पर्याप्त नहीं | शारीर को हाइबरनेशन कि स्तिथि में भी रखना पड़ेगा समय समय पर | सिद्धियों का भी प्रयोग करना पड़ेगा |
अमरत्व होने का अवसर विधाता ने केवल इसलिए दिया है ताकि इस शरीर का लक्ष्य प्राप्त किआ जा सके मुक्ति मोक्ष कि प्राप्ति कि जा सके | हम सबके प्रयास जाने अनजाने अमृत्व कि ओर ही होते है इस शरीर में अमरत्व कि अभिलाषा केवल इस ध्येय के कारण है कि हम स्वछन्द हो कर ब्रह्माण्ड में भ्रमण कर सके उस परमानंद के संपर्क में रहते हुए | अतः कैवल्य कि स्तिथि कि प्राप्ति कि चेष्टा ही सर्वोत्तम है |
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