प्रातःकालीन प्रार्थना मन्त्र
दैनिक जीवन में वेद मंत्रो की प्रार्थना हमें वैदिक जीवन पद्धति
के उतने ही निकट पहुचाती हैं | हम महर्षि दयानंद के आभारी है के उनके
द्वारा हमें सरलता से वेद मन्त्र पुनः उपलब्ध हुए | अपने घर के बालक
बालिकाओ को ये प्रार्थना कंठस्थ करावे व स्वयं भी करे | ऋग वेद के ७ वे
मंडल के ४१वे सूक्त के प्रथम पाच मन्त्र से नित्य प्रार्थना करने पर जीवन में
अद्भुत परिवर्तन देखे
| अर्थो को भी अपने अवचेतन मस्तिष्क में
बैठाते जाए | भाष्य श्रीपाद दामोदर सातवलेकर जी के प्रस्तुत किये जा रहे है |
काव्यात्मक रूप में विषय हमें शीघ्र गृहण होता है | अतः आचार्य
स्वदेश जी का ये उत्तम काव्यार्थ भी हम प्रस्तुत कर रहे है | ये इतनी उत्तमता
से बात कही गई हैं के विद्यालयों में इस तरह की प्रार्थना भी रखाई जा सकती है
संस्कृत मंत्रो के उच्चारण के पश्चात |
प्रभात प्रार्थना – आचार्य स्वदेश जी द्वारा रचित
हे प्रकश के पुंज सृष्टिकर्ता ऐश्वर्य प्रदाता |
मित्र, वरुण, तु रूद्र देव है सूर्यचन्द्र, निर्माता ||
भक्त, वेद ब्रह्माण्ड पालके व्यापक ब्रह्म कहाता
| प्रातः की पावन बेला में मै तेरे गुण गाता ||१||
हे विजयशील ऐश्वर्य प्रदाता तेजस्वी तपधारी | अंतरिक्ष
के पुत्र सूर्य सम लोको के आधारी ||
हे सर्वज्ञ सुपालक, रक्षक दुर्जन-२ जन भयकारी |
प्रातः की पावन बेला में स्तुति करू तुम्हारी ||२||
हे भजनीय सत्यपथ प्रेरक सद्-ऐश्वर्य बढाओ |
सदाचार प्रज्ञा प्रदान कर ईश मुझे अपनाओ ||
घोड़े, गाय आदि पशुओ से राजश्री प्रकटाओ | आर्यजनो
से हों सनाथ प्रभु कृपा कोर दिखलाओ ||३||
भगवन आज कृपा तेरी हों और परिश्रम मेरा | उत्तम
बल वैभव विद्या का मुझमे होये बसेरा ||
दिन के मध्य धनो के स्वामी बने निवेदन मेरा |
प्रातःकाल देवो की मति से हों सम्बन्ध घनेरा ||४||
जिससे हे जगदीश्वर तेरे सब सज्जन गुण गावें | भव
के भीतर भव्य भावना भर दो भक्त बुलावें ||
भगवन् तुमसा कौन जगत् में पूज्य जिसे अपनावे |
कृपा सिंधु कुछ बिंदु दो जग के प्यास बुझावे ||५||
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home