मगध साम्राज्य का खज़ाना जिस से कई विश्व बैंक ख़रीदे जा सकते हैं
हर्यका वंश के शासक
बिम्बसार ने मगध साम्राज्य का बड़ा विस्तार किआ | बिम्बसार के तीन रानिया थी आपकी
पहली पत्नी कोसला देवी थी आपके जुड़ने से काशी दहेज़ में मिल गया मगध साम्राज्य को |
आपकी दूसरी पत्नी छलना थी जो लिच्छवी साम्राज्य के राजा चेतक की पुत्री थी | आपकी
तीसरी पत्नी क्षेमा थी जो माद्र वंश की थी जो पंजाब से थी | जर्मन इंडोलोजिस्ट
हरमन जैकोबी का मानना था की महावीर वर्धमान की माता त्रिशाला चेतक की पुत्री थी |
इस प्रकार से महावीर वर्धमान और आजातशत्रु आपस में मौसेरे भाई हुए |
देवदत्त जो भगवान् बुद्ध का चचेरा भाई था आजातशत्रु का मामा था वो भड़काता रहता
था आजातशत्रु को | इसमें सांप्रदायिक मान्यताओ का भी बड़ा योगदान रहा है
आजातशत्रु वैष्णव था और बिम्बसार जैन और बौद्ध मत की ओर प्रभावित थे देवदत्त का
पक्ष यही था की बिम्बसार सारी सम्पत्ति बौद्ध मत में लुटा देगा | देखा जाए तो हुआ
भी यही पर बिम्बसार ये कार्य न कर सका तो सम्राट अशोक ने किआ | वो बौद्ध प्रभाव
कुछ सौ वर्ष बाद पड़ा और देश की वैज्ञानिक उन्नति में हानि हुई, सेना की हानि हुई
और धन की हानि हुई |
आजातशत्रु ने राज्य
के लालच में बिम्बसार को बंदी बना लिया | इस कृत्य से उसकी माँ ने और बिम्बसार ने
जैन मुनि भैर्द्व को ये विशाल खजाना दान में दे दिया जो एक गुफा में छुपा दिया गया
भला तपस्वियों को धन की क्या पड़ी | ये गुफा पहाडो को काट कर बनाई हुई है | आज ये
नालंदा जनपद के राजगीर स्थान में पड़ती है | इसको जरासंध का खजाना भी कहा जाता है संभव
है ये राजकोष जरासंध के समय से ही आगे बढ़ा चला आरहा हो | वैसे भी यदि श्री पुरुषोत्तम
नागेश जी के इतिहास संशोधन और बुद्ध के काल में ८०० वर्ष का दोष माने तो ये लगभग
१४०० ईसा पूर्व का काल हुआ जो की महाभारत काल से मात्र १६-१७०० वर्ष ही दूर का काल
था यानी इतने समय तक एक खजाने को कोई राज्य बचाए रख सकता है |
सोन भण्डार गुफा में
पहला कक्ष ही सैनिको का कक्ष है | १०.४ मीटर लम्बा ५.२ मीटर चौड़ा और १.५ मीटर उचा
ये कक्ष है |
ऊपर बायीं ओर नीचे दाई ओर का दृश्य
इसके आगे खजाने का दरवाजा है पर वो आज तक कोई खोल नही पाया है | लोगो का ये भी कहना है कि खजाने तक पहुचने के लिए वैभवगिरी पर्वत सागर से होकर सप्तपर्णी गुफाओ तक जाता है, जो कि सोन भंडार गुफा के दुसरी तरफ़ तक पहुँचती है । कोई आश्चर्य नहीं गुफाये बहुत विस्तृत होती है दूसरा छोर तो होता ही है |
गुफा
की दीवार पर शंख लिपि में लिखा हुआ है लोग इसे दरवाजा खोलने का कूट यानी कोड मानते
है | शंख लिपि अब लुप्त हो चुकी है, बख्तियार खिलजी ने ११९३ ई. में नालंदा
विश्विद्यालय एवं उसका पुस्तकालय नष्ट कर दिया जिसके कारण शंख लिपि के अध्यन से
जुड़े सारे ग्रन्थ जल के राख हो गए | अब कोई विद्वान् बचा नहीं इस लिपि को पढने
वाला | पर यदि ये कूट अब नहीं पढ़ सकते तो आजातशत्रु क्यों न पढ़ सका ? या तो ये कूट
बहुत बाद में लिखा गया होगा |
आजातशत्रु विभिन्न
यातनाये देता था अपने बाप को पर जब स्वयं पिता बना तो उसके विचार बदले और उस दिन
वो उन्हें मुक्त करने जा रहा था | पर उसके आने की खबर सुन कर बिम्बसार ने हीरा चाट
लिया | बिम्बसार जहा बंदी रहे और जरासंध का आखाडा सब पास पास ही है | मुगलों ने
प्रयास किआ अंग्रेजो ने तोपे चलाई पर दरवाजा नहीं खुला | जगदीश चन्द्र बोस से राय
ली गई डाईनामाईट से उड़ाने की तो उन्होंने कहा की यदि इसे उड़ाया गया तो इसका प्रभाव
भूगर्भ तक जा सकता है लावा भी बाहर आसकता है |
आज ये बिहार में पर्यटन का केंद्र
है | पर यदि भारत सरकार चाहे तो आधुनिक तकनीक से बिना कोई तोड़फोड़ के अंदर क्या है
अब पता किआ जा सकता है | इस बात का अनुमान किआ जा सकता है के मगध साम्राज्य के
खजाने से विश्व बैंक का कर्ज तो सब चुक ही जाएगा पूरी दुनिया को कर्जा बाटा जा
सकता है |
Labels: इतिहास
1 Comments:
Khul skta hai
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