Saturday, 29 April 2017

मगध साम्राज्य का खज़ाना जिस से कई विश्व बैंक ख़रीदे जा सकते हैं

मगध साम्राज्य का खज़ाना जिस से कई विश्व बैंक ख़रीदे जा सकते हैं
हर्यका वंश के शासक बिम्बसार ने मगध साम्राज्य का बड़ा विस्तार किआ | बिम्बसार के तीन रानिया थी आपकी पहली पत्नी कोसला देवी थी आपके जुड़ने से काशी दहेज़ में मिल गया मगध साम्राज्य को | आपकी दूसरी पत्नी छलना थी जो लिच्छवी साम्राज्य के राजा चेतक की पुत्री थी | आपकी तीसरी पत्नी क्षेमा थी जो माद्र वंश की थी जो पंजाब से थी | जर्मन इंडोलोजिस्ट हरमन जैकोबी का मानना था की महावीर वर्धमान की माता त्रिशाला चेतक की पुत्री थी | इस प्रकार से महावीर वर्धमान और आजातशत्रु आपस में मौसेरे भाई हुए | देवदत्त जो भगवान् बुद्ध का चचेरा भाई था आजातशत्रु का मामा था वो भड़काता रहता था आजातशत्रु को | इसमें सांप्रदायिक मान्यताओ का भी बड़ा योगदान रहा है आजातशत्रु वैष्णव था और बिम्बसार जैन और बौद्ध मत की ओर प्रभावित थे देवदत्त का पक्ष यही था की बिम्बसार सारी सम्पत्ति बौद्ध मत में लुटा देगा | देखा जाए तो हुआ भी यही पर बिम्बसार ये कार्य न कर सका तो सम्राट अशोक ने किआ | वो बौद्ध प्रभाव कुछ सौ वर्ष बाद पड़ा और देश की वैज्ञानिक उन्नति में हानि हुई, सेना की हानि हुई और धन की हानि हुई |
आजातशत्रु ने राज्य के लालच में बिम्बसार को बंदी बना लिया | इस कृत्य से उसकी माँ ने और बिम्बसार ने जैन मुनि भैर्द्व को ये विशाल खजाना दान में दे दिया जो एक गुफा में छुपा दिया गया भला तपस्वियों को धन की क्या पड़ी | ये गुफा पहाडो को काट कर बनाई हुई है | आज ये नालंदा जनपद के राजगीर स्थान में पड़ती है | इसको जरासंध का खजाना भी कहा जाता है संभव है ये राजकोष जरासंध के समय से ही आगे बढ़ा चला आरहा हो | वैसे भी यदि श्री पुरुषोत्तम नागेश जी के इतिहास संशोधन और बुद्ध के काल में ८०० वर्ष का दोष माने तो ये लगभग १४०० ईसा पूर्व का काल हुआ जो की महाभारत काल से मात्र १६-१७०० वर्ष ही दूर का काल था यानी इतने समय तक एक खजाने को कोई राज्य बचाए रख सकता है |
सोन भण्डार गुफा में पहला कक्ष ही सैनिको का कक्ष है | १०.४ मीटर लम्बा ५.२ मीटर चौड़ा और १.५ मीटर उचा ये कक्ष है | 
ऊपर बायीं ओर नीचे दाई ओर का दृश्य

इसके आगे खजाने का दरवाजा है पर वो आज तक कोई खोल नही पाया है | लोगो का ये भी कहना है कि खजाने तक पहुचने के लिए वैभवगिरी पर्वत सागर से होकर सप्तपर्णी गुफाओ तक जाता है, जो कि सोन भंडार गुफा के दुसरी तरफ़ तक पहुँचती है । कोई आश्चर्य नहीं गुफाये बहुत विस्तृत होती है दूसरा छोर तो होता ही है |

गुफा की दीवार पर शंख लिपि में लिखा हुआ है लोग इसे दरवाजा खोलने का कूट यानी कोड मानते है | शंख लिपि अब लुप्त हो चुकी है, बख्तियार खिलजी ने ११९३ ई. में नालंदा विश्विद्यालय एवं उसका पुस्तकालय नष्ट कर दिया जिसके कारण शंख लिपि के अध्यन से जुड़े सारे ग्रन्थ जल के राख हो गए | अब कोई विद्वान् बचा नहीं इस लिपि को पढने वाला | पर यदि ये कूट अब नहीं पढ़ सकते तो आजातशत्रु क्यों न पढ़ सका ? या तो ये कूट बहुत बाद में लिखा गया होगा |


आजातशत्रु विभिन्न यातनाये देता था अपने बाप को पर जब स्वयं पिता बना तो उसके विचार बदले और उस दिन वो उन्हें मुक्त करने जा रहा था | पर उसके आने की खबर सुन कर बिम्बसार ने हीरा चाट लिया | बिम्बसार जहा बंदी रहे और जरासंध का आखाडा सब पास पास ही है | मुगलों ने प्रयास किआ अंग्रेजो ने तोपे चलाई पर दरवाजा नहीं खुला | जगदीश चन्द्र बोस से राय ली गई डाईनामाईट से उड़ाने की तो उन्होंने कहा की यदि इसे उड़ाया गया तो इसका प्रभाव भूगर्भ तक जा सकता है लावा भी बाहर आसकता है |

 आज ये बिहार में पर्यटन का केंद्र है | पर यदि भारत सरकार चाहे तो आधुनिक तकनीक से बिना कोई तोड़फोड़ के अंदर क्या है अब पता किआ जा सकता है | इस बात का अनुमान किआ जा सकता है के मगध साम्राज्य के खजाने से विश्व बैंक का कर्ज तो सब चुक ही जाएगा पूरी दुनिया को कर्जा बाटा जा सकता है |

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Wednesday, 19 April 2017

संयम एवं स्नान के समय के लिए अघमर्षण मन्त्र

भीष्म पितामह से मृत्यु शय्या पर जब पांडव उनके ब्रह्मचर्य के बल का कारण पूछते है तब वे इसी मन्त्र का उपदेश देते है | स्नान करते समय इस मन्त्र के पाठ से संयम में वृद्धि होती हैं |


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Tuesday, 11 April 2017

आर्य समाज के दस नियमो का वैदिक आधार

आर्य समाज के दस नियम
1. सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सबका आदिमूल परमेश्वर है।

2. ईश्वर सच्चिदानंदस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वांतर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है, उसी की उपासना करने योग्य है।

3. वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढना – पढाना और सुनना – सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।

4. सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोडने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिये।

5. सब काम धर्मानुसार, अर्थात सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहियें।

6. संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना।

7. सबसे प्रीतिपूर्वक, धर्मानुसार, यथायोग्य वर्तना चाहिये।

8. अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिये।

9. प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट न रहना चाहिये, किंतु सब की उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिये।

10. सब मनुष्यों को सामाजिक, सर्वहितकारी, नियम पालने में परतंत्र रहना चाहिये और प्रत्येक हितकारी नियम पालने सब स्वतंत्र रहें।

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संघठन सूक्त

ओ३म्सं समिधवसे वृषन्नग्ने विश्वान्यर्य |
इड़स्पदे समिधुवसे नो वसुन्या भर                            |
         हे प्रभो ! तुम शक्तिशाली हो बनाते सृष्टि को ||
        
वेद सब गाते तुम्हें हैं कीजिए धन वृष्टि को ||
ओ३म सगंच्छध्वं सं वदध्वम् सं वो मनांसि जानतामं | 
देवा भागं यथा पूर्वे सं जानानां उपासते               |
       प्रेम से मिल कर चलो बोलो सभी ज्ञानी बनो | 
      
पूर्वजों की भांति तुम कर्त्तव्य के मानी बनो ||
समानो मन्त्र:समिति समानी समानं मन: सह चित्त्मेषाम् |
समानं मन्त्रमभिमन्त्रये : समानेन वो हविषा जुहोमि    ||
      हों विचार समान सब के चित्त मन सब एक हों |
    
ज्ञान देता हूँ बराबर भोग्य पा सब नेक हो ||
ओ३म समानी आकूति: समाना ह्र्दयानी : |
समानमस्तु वो मनो यथा : सुसहासति             ||
     हों सभी के मन तथा संकल्प अविरोधी सदा |
   
मन भरे हो प्रेम से जिससे बढे सुख सम्पदा ||



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प्रातःकालीन प्रार्थना मन्त्र

दैनिक जीवन में वेद मंत्रो की प्रार्थना हमें वैदिक जीवन पद्धति के उतने ही निकट पहुचाती हैं | हम महर्षि दयानंद के आभारी है के उनके द्वारा हमें सरलता से वेद मन्त्र पुनः उपलब्ध हुए | अपने घर के बालक बालिकाओ को ये प्रार्थना कंठस्थ करावे व स्वयं भी करे | ऋग वेद के ७ वे मंडल के ४१वे सूक्त के प्रथम पाच मन्त्र से नित्य प्रार्थना करने पर जीवन में अद्भुत परिवर्तन देखे | अर्थो को भी अपने अवचेतन मस्तिष्क में बैठाते जाए | भाष्य श्रीपाद दामोदर सातवलेकर जी के प्रस्तुत किये जा रहे है |


काव्यात्मक रूप में विषय हमें शीघ्र गृहण होता है | अतः आचार्य स्वदेश जी का ये उत्तम काव्यार्थ भी हम प्रस्तुत कर रहे है | ये इतनी उत्तमता से बात कही गई हैं के विद्यालयों में इस तरह की प्रार्थना भी रखाई जा सकती है संस्कृत मंत्रो के उच्चारण के पश्चात |
प्रभात प्रार्थना – आचार्य स्वदेश जी द्वारा रचित
हे प्रकश के पुंज सृष्टिकर्ता ऐश्वर्य प्रदाता | मित्र, वरुण, तु रूद्र देव है सूर्यचन्द्र, निर्माता ||
भक्त, वेद ब्रह्माण्ड पालके व्यापक ब्रह्म कहाता | प्रातः की पावन बेला में मै तेरे गुण गाता ||१|| 
हे विजयशील ऐश्वर्य प्रदाता तेजस्वी तपधारी | अंतरिक्ष के पुत्र सूर्य सम लोको के आधारी ||
हे सर्वज्ञ सुपालक, रक्षक दुर्जन-२ जन भयकारी | प्रातः की पावन बेला में स्तुति करू तुम्हारी ||२||
हे भजनीय सत्यपथ प्रेरक सद्-ऐश्वर्य बढाओ | सदाचार प्रज्ञा प्रदान कर ईश मुझे अपनाओ ||
घोड़े, गाय आदि पशुओ से राजश्री प्रकटाओ | आर्यजनो से हों सनाथ प्रभु कृपा कोर दिखलाओ ||३||
भगवन आज कृपा तेरी हों और परिश्रम मेरा | उत्तम बल वैभव विद्या का मुझमे होये बसेरा ||
दिन के मध्य धनो के स्वामी बने निवेदन मेरा | प्रातःकाल देवो की मति से हों सम्बन्ध घनेरा ||४||
जिससे हे जगदीश्वर तेरे सब सज्जन गुण गावें | भव के भीतर भव्य भावना भर दो भक्त बुलावें ||
भगवन् तुमसा कौन जगत् में पूज्य जिसे अपनावे | कृपा सिंधु कुछ बिंदु दो जग के प्यास बुझावे ||५|| 



शयन कालीन मन्त्र

सोते समय अपने बालको को ये मन्त्र प्रार्थना करना सिखाये | इस प्रकार के संस्कार उनके उज्जवल भविष्य की नीव रखेंगे |

शयन कालीन इश्वर प्रार्थना मंत्र
हे प्रभो ! तू अच्छी तरह जागता रहता हैंइसलिए हम सुख पूर्वक निश्चिंत होकर सोते हैंतू प्रमादरहित होते हुए हमारी रक्षा कर और प्रातः ही पुनः हमें प्रबुद्ध कर-पुनः हमें जगा |
इस मन्त्र को नित्य कर्म विधि से अति संछेप में प्रस्तुत कर रहा हू |