Wednesday, 8 March 2017

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक रहस्यमयी संघठन

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ देश का ही नहीं दुनिया का सबसे बड़ा स्वयं सेवी संगठन | स्थापित हुआ वर्ष १९२५ में अब तक कई बार प्रतिबंधित हो चूका है | नागपुर से संचालित होता ये संघठन मराठी ब्राह्मणों द्वारा स्थापित किआ गया था संभव है पेशवा की उस गद्दी को पुनः स्थापित करने के लिए | कम से कम ऐसा आभास तो होता है पर अब इस संगठन के सौ वर्ष होने को आरहे है और ये संघठन सत्ता में बैठे लोगो का नियंत्रणकर्ता भी है, कभी हिन्दू राष्ट्र का लक्ष्य लेकर स्थापित हुआ ये संघठन अब अपने ध्येय से कोसो दूर दिखता है या संभव है ये उसी ध्रुवीकरण का हिस्सा है जिस पर लोकतंत्र चलता है | अंग्रेजो का हमें कांग्रेस देना फिर चुनावी प्रणाली देना और फिर राष्ट्रीय स्वयं सेवक जैसे संघठन को पनपने देना अपने आप में प्रश्न चिन्ह उठाता है | यदि कहे हिन्दुओ को संगठित करने वाला कोई संगठन नहीं था तो पुर्णतः असत्य होगा क्यों की हिन्दू महासभा और आर्य समाज दोनों ही हिन्दू हितो के लिए पूर्व से ही अद्भुत कार्य कर रहे थे | क्या इसके पीछे इन्ही संगठनों को समाप्त करना तो नहीं था ? आर्य समाज जहा क्रांतिकारी और विद्वानों की खेप खड़ा करता जा रहा था वही हिन्दू महासभा ने हिन्दू शुद्धी सभा बनाकर और आर्य समाज का साथ लेकर चार वर्षो में १९२२ से १९२६ तक २० लाख मुस्लिमो की शुद्धिया कर दी थी | हेडगेवार को कोई दोष नहीं दे रहा कई बार ऐसा होता है की हमें पता ही नहीं होता की हमारा इस्तेमाल हो रहा है | वीर सावरकर ने कभी इस संस्था को नहीं चुना अपितु इसके कार्य न करने पर व्यंग ही किआ | बटवारे के समय इस संगठन को ४० लाख युवाओं का संगठन कहा जाता है, इसके उपरान्त भी बटवारे के समय लाखो की संख्या में हिन्दुओ का जनसंहार हुआ | जो विषय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को संदेह के घेरे में लाते है वे निम्न है :-
१. हिंदुत्व का फासीवादी स्वरूप (Fascist side of Hinduism) : संघ कहने को भले ही १९२५ में बना हो पर ये सुचारू रूप से १९३४ से ही आरम्भ हो पाया था | इसको बनाने में जो मुख्य लोग थे वे थे डा. केशव बलिराम हेडगेवार, डा. बालकृष्ण शिवराम मुंजे, लक्ष्मण वामन परांजपे, नारायण दामोदर सावरकर (वीर सवारकर के छोटे भाई) इत्यादि विद्वान थे पर संघ की विशेषता है के ये केवल एक ही चेहरा सामने रखता है ये फासीवादी संघठन की कार्यप्रणाली का हिस्सा है | फासीवादी रूप और राष्ट्रवादी दोनों सर्वथा भिन्न है | वीर सावरकर ने परिणाम दिए जो कहा वो करा, हिन्दुओ का सैनीकीकरण, राजनीत का हिन्दुयीकरण | सेना में हिन्दू युवको को भेजना वही युवक आजाद हिन्द फ़ौज के काम आये ये दूरगामी सोच वीर सावरकर और रास बिहारी बोस की देश में अंग्रेजो को भगाने में बड़ी सहायक सिद्ध हुई | पर अल्बानिया में जो जोगी सैल्यूट (Zogist Salute) कराया जाता उसे हमारे देश में लाना समझ से परे है | जब क्रांतिकारी धोती कुर्ता पहन कर अंग्रेजो से लोहा लेते थे तो ये हाफ पेंट, शर्ट और चमड़े की बेल्ट लगाकर हिंदुत्व की बात कर रहे थे | यदि हिंदुत्व और राष्ट्रवाद एक दुसरे का पर्याय है तो अंग्रेजो के समय उनके विरुद्ध ये राष्ट्रवाद कहा गया था ? आर्य समाज और हिन्दू महासभा की तरह क्यों नहीं सीधे अंग्रेजो के विरोध में संघ आया था ? कुछ तो गड़बड़ रही है अन्दर की | मार्च १९, १९३१ को डा. मुंजे और इटली के तानाशाह बेनेटो मसोलिनी की भेट भी संघठन को रहस्य के घेरे में लाती है | अल्बानिया का जोगी सैल्यूट (Zogist Salute) जिसे संघ अपनाता है उस देश पर इटली १९३९ में कब्ज़ा कर लेता है | इटली और अल्बानिया के सामरिक सम्बन्ध संदेह को और बढाते है |



२. विवेकानंद को आदर्श दिखाना : आज के सेक्युलरिस्म की जो बाते कांग्रेस या वामपंथी दल करते है विवेकानंद को कह सकते है उसकी शुरुआत करने वाला | विवेकानंद न केवल स्वयं गौ मांस खाते थे खाने का समर्थन भी करते थे | जो कम्युनिस्ट किताबो में लिखते है और संघ उस पर हल्ला करते है विवेकानंद उसी बात को कहते रहे | आपके गुरु राम कृष्ण परमहंस तो मुस्लिम भी हो गए थे और तीन बार की नमाज़ भी पढने लग गए थे | ऐसे में ऐसे व्यक्ति को जबरदस्ती का आदर्श बताना राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को एक छद्म राष्ट्रवादी संघठन सिद्ध करने से अधिक कुछ भी नहीं |

३. भारत माता की मूर्ति स्थापित करना : बंकिम चन्द्र चैटर्जी ने जो अपने उपन्यास आनंद मठ के माध्यम से कल्पित किआ उसे संघ ने बढ़ाया उन्होंने तो दुर्गा जी को ही कल्पित किआ | पर बहुत कम लोगो को पता है की भारत माता ब्रिटेन की देवी ब्रिजेंटेस (Brigantes) का ही स्वरूप है | यहाँ भी अंग्रेजो की ही देवी का स्वरूप लिया जा रहा है | अथर्वेद में गौ पृथ्वी सूक्त है उन्ही सूक्तो में राष्ट्र की स्वतंत्रता एवं चक्रवर्ती राज्य की कामना के ले प्रार्थना है | महर्षि दयानंद की लिखी आर्याभिविनय क्रान्तिकारियो की गीता थी उसपर कोई कार्यवाही अंग्रेज कर नहीं पाते थे क्यों के हम तो अपना धर्म शास्त्र ही पढ़ रहे होते है | ऐसे में हम वेदों के सूक्त से दूर हो गए और बस भारत माता की जय पर ही अटक गए | भूमि माता क्यों कही गई, किस प्रकार का राज्य स्थापित होना चाहिए आर्यों का सार्वभौम चक्रवर्ती राज्य स्थापित होना चाहिए ऐसी कामना करना बंद हो कर लोग एक नारे पर ही अटक गए | हमें भूलना नहीं चाहिए वन्दे मातरम की प्रेरणा अथर्वेद के सूक्त ही है | नमो वत्सले गान जो की मराठी में लिखा गया और उसमे आर्य भूमि शब्द प्रयोग किआ गया परन्तु संस्कृत में उसका अनुवाद करते समय आर्य भूमि को हिन्दू भूमि कर दिया गया, ये वर्ष १९३४ की बात है |

४. कार्य न करना : एक देश, एक भाषा, एक संस्कृति की बात करने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अब कर क्या रहा है ? देश के कई राज्यों में भाजपा की सरकार है पर परिवर्तन कुछ भी नही हुआ | अब तो अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त हो जानी चाहिए | अब तो देश में गौ रक्षा का कानून बन जाना चाहिए | अब तो कम से कम हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा पर कार्य होना चाहिए | संघ वस्तुतः स्थान घेरे हुए है क्यों की यदि संघ नहीं घेरेगा तो कोई वास्तविक राष्ट्रवादी संघठन कार्य करने लगेगा | जिस के लिए संघ की स्थापना हुई भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने के लिए उसकी तो अब संघ बात भी नहीं करता | जिन मुद्दों को लेकर शिशु मंदिर के बच्चो का दिमाग खराब रखा उनमे से कितने मुद्दे आप पूरे कर रहे है ?

गांधी वध के लिए जबरदस्ती श्रेय संघ को दिया जाता जब की संघ पल्ला तो झाड़ता पर स्पष्ट मना भी नही करता | हिन्दू महासभा और आर्य समाज जैसे विशुद्ध राष्ट्रवादी संघठनो को हाशिये पर लाने में संघ का विशेष हाथ रहा है | सन १९६० के दशक में सी.आई.ए की रिपोर्ट के अनुसार संघ से उन्हें कोई समस्या नहीं | हम नही पूछते आपको कहा से धन प्राप्त हुआ ? 1950 के दशक में नेहरु स्वयं परेड के लिए आमंत्रित करते है | यदि आप राष्ट्रवादी है तो आपको ये नाम में लगाने की आवयश्कता नहीं आपका काम आपको राष्ट्रवादी सिद्ध करेगा | भाषणबाजी को सौ वर्ष हो गए अब संघ हिन्दू राष्ट्र कब बना रहा है हिन्दू राष्ट्र छोडिये अंग्रेजी की अनिवार्यता ही समाप्त करवा दे और वो भी छोडिये गौ रक्षा का केंद्र में कठोर बिना लूप होल का कानून ही बनवा दे और बीफ निर्यात रुकवा दे | वरना अपने नाम से राष्ट्रीय हटा कर केवल स्वयं सेवक संघ ही कर ले |
नमस्ते

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15 Comments:

At 9 March 2017 at 14:44 , Blogger Unknown said...

उत्तम लेख

 
At 10 March 2017 at 08:38 , Blogger Vishwapriya said...

.
भाई वाह
बहुत अच्छा लिखा है
The Zogist salute मेरे लिए नया था
आप हिंदी में अल्बानिया सेल्यूट के साथ अंग्रेजी भी कोष्ठक में लिखें
ब्रिजेंटेस का अंग्रेजी क्या है स्पेलिंग लिखें

 
At 10 March 2017 at 09:10 , Blogger Pragatisheel Shukla said...

जी जोड़ दिए
सुधार के सुझाव हेतु आपका धन्यवाद _/\_

 
At 15 March 2017 at 08:48 , Blogger Unknown said...

आर्य समाज अपनी इसी कट्टरता की वजह से हासिये पर है, वेद, सत्यार्थ प्रकाश को परम सत्य मानते हुये एक ही बात कहूँगा
रबड़ को एकदम से खिचोगे तो उसके टूटने का डर है, उसको धीरे-2 खीचने से ही उसके पुरे आकार को पाया जा सकता है
अब दूसरे शब्दों में शांति कुञ्ज और पतंजलि योगपीठ के विचारो में आर्यसमाज ही है, लेकिन तरिके में वो कट्टरता नहीं कि आर्यसमाजियों को रामराम भी कहो तो गाली लगती है, आधे से ज्यादा आवादी नास्तिको में गिनती करती है
विचार करे

 
At 15 March 2017 at 10:18 , Blogger Dignesh Bhatt said...

Good work done, good knowledge

 
At 18 March 2017 at 05:50 , Blogger Unknown said...

आर्यसमाजी ही इस लेख के पीछे है या हो सकते है ऐसा मुझे पूरा शक है| अगर ये गलत है तो उसके लिये माफ़ी|

अब मैं तो ठहरा अज्ञानी मानव बस मुझे ये समझ नहि आया कि हाथ का सैल्युट का तरीका और भारत माँ का चित्र कहा से आया कहा से नहि ये सब इतना मायने नहि रखता जब संघ ने मोदी, पर्रिकर, बाजपेयी जैसे चरित्रवान लोग देश को देकर अपनी रास्ट्र के प्रति विश्वसनीयता साबित कर दी है|

अब जिन्होंने ये लेख लिखा है ऐसे महापुरुषो को चाहिए कि इनसे ऊँचे आदर्शो वाले लोग इस देश को देने का कष्ट करे और अपनी अपने ज्ञान की, अपने पुरुषार्थ की योग्यता साबित करे|

 
At 18 March 2017 at 06:07 , Blogger Unknown said...

आरोप लगाने वाले तो बोल सकते है ये जवानो का सलामी करने का तरीका, ये हमारे देश का तिरंगा ये सब भी वैदिक नहि है सब आयातित है| अब है तो सत्य ही कहि न कहि इन फालतू के मुद्दों में तो इस देश के महाज्ञानी लोग ही अपनी ऊर्जा लगा सकते है| हम तो ठहरे अज्ञानी☺

 
At 19 March 2017 at 04:00 , Blogger Pragatisheel Shukla said...

नमस्ते संदीप जी,
कट्टरता अच्छी नहीं | लकीर के फ़कीर बने रहना अच्छा नहीं है | पर आदर्शो नाम की भी कोई चीज़ होती है |

 
At 19 March 2017 at 04:06 , Blogger Pragatisheel Shukla said...

आर्य समाजी किसी और गृह से आते है यदि ऐसा है तो मुझे अवश्य बताये हम भी इतने ज्ञानी नहीं | आप अज्ञानी भी कह रहे है और आपको ज्ञान भी है के अटल जी चरित्रवान है मोदी जी चरित्रवान है | वैसे चरित्रहीनता का अर्थ नहीं पता आपको शायद कहा कुछ जाए और करा कुछ जाए यही चरित्रहीनता है | सामर्थ्य अनुसार ही हर व्यक्ति राष्ट्र को देता है कुछ लोग देश को कर्ज देते है विदेशियों के धन के आधीनता देते है और कुछ सिर्फ इस बात का ज्ञान दे सकते है |

 
At 19 March 2017 at 04:10 , Blogger Pragatisheel Shukla said...

जवानो की सलामी ही नहीं उनके वेतन का अंतर भी अंग्रेजो की व्यवस्था अनुसार चल रहा है | ये तो सब जानते हा और मानते है | भगवे झंडे के स्थान पर तिरंगे को देश का झंडा बनाया गया | आप इतने अज्ञानी तो नहीं के ये मुद्दे फ़ालतू कैसे हो गये | क्यों की ये लोगो को सोचने पर मजबूर कर रहे है या इस बात पर की संघ को कार्य करना चाहिए उन बातो पर जिनकी वो बात करता है | बाली वध के पश्चात बिना दबाव के सुग्रीव भी श्री राम का साथ देने को तैयार नहीं हुआ था | काम करवाए जाते है जनता का विवेक जाग्रत किआ जाता है | कुछ काम का तर्क हो तो आगे पोस्ट करे दुसरो के समय का ख्याल रखे | धन्यवाद

 
At 26 March 2017 at 22:55 , Blogger komalbisht said...

Shukla ji kittne Aarya samaji Vedik Dharm kA palan krte he ye bhi Bata do... Sare mandiro pr Abje me lage he.. 1 city me 4 gut Ho gae he.. Or ek dusre ko galat batate he... Arya samaj ne Jo history me kiya wo saraakho pr parantu aaj Arya samaj Desh ko kya de raha he SWAMI AGNIVESH...?
Arya samaji apni Akarmathta k Karan irrelevant Ho gae he or thikra dusro pr fod rahe he ( kisiyani Billi khambha niche) Bhaiya pehle apni thik se Dho loo Fir Kisi or pr ugli uthana.. BURA LAGA HO TO MAAF KRNA ME BHI DAYANAD JI MANTA HU PR ARYASAMAJ SE DUKHI HU

 
At 26 March 2017 at 23:16 , Blogger komalbisht said...

Shukla ji khud bhi dhoti kurta pehna kre

 
At 27 March 2017 at 10:05 , Blogger Pragatisheel Shukla said...

नमस्ते जी,
आपको आर्य समाज से समस्या है ये तो समझ आरहा तो आप लिखे "आर्य समाजी वैदिक धर्म का पालन नहीं करते" "आर्य समाजी भवनों पर कब्जे के लिए लड़ते रहते है" "आर्य समाजी अकर्मठ है" इत्यादि इत्यादि मुझे भी भेजे जो सही होगा समर्थन करूँगा | इन बातो से क्या मेरे लेख में कोई कमी निकल रही है ? लेख में कहा समस्या है आपको वो बताये |

 
At 27 March 2017 at 10:09 , Blogger Pragatisheel Shukla said...

कोमल बिष्ट जी,
१९२५ में होता तो बराबर पहनता परम्पराओं को तोड़ कर अंग्रेजो का वेश ले लू ऐसा तो न करता |
यहाँ तक की १९७० तक यानी सिनेमा के प्रभाव में आने तक भारतीय समाज धोती में रहा है |
मैंने जाने कितनो को धोती पहनने को प्रेरित किआ है |मैं सिर्फ अवसर पर पहनता हूँ काश संघ भी हमें वो अवसर देता |
आप खिसिया किस बात पर रहे है संघ ने धोती का प्रचार नहीं किआ १९२५ में या मैं नहीं आपको धोती पहने नहीं दिख रहा इसलिए ?

 
At 18 April 2017 at 09:16 , Blogger Sonu said...

Ati sunder lekh. Aap ne R. S. S. Ki un baaton ko unaware kiya jinse hum parichit nhi the

 

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