Monday, 6 March 2017

ईश्वर प्रार्थना क्यों करे ?


बहुत से लोगो के मन में ये प्रश्न है की जब कर्म से ही सब प्राप्त होगा तब प्रार्थना करने का क्या मतलब है?
ईश्वर प्रार्थना क्यों की जाए ?
इस प्रश्न के अर्थ को समझने के लिए हमें समझना होगा की प्रार्थना भी आत्म विकास का एक अभ्यास है जिसके माध्यम से हम अपने अवचेतन मस्तिष्क को प्रशिक्षित करते है | एक ही बात को बार बार कहने से वो हमारे अवचेतन मस्तिष्क में पहुच जाती है और अवचेतन मस्तिष्क बहुत ही अद्भुत शक्तियों का स्वामी होता है | कभी आपने इस विषय पर गौर किआ की रात्री में जितने बजे आप प्रातः उठने का संकल्प कर के सोये प्रातः उतने ही बजे आँख खुल गई | या आप जिस व्यक्ति का विचार कर रहे होते है उस से मिलना चाहते है और उस व्यक्ति से मिल जाते है या आप किसी चीज़ के लिए आशंकित रहते है डरे रहते है और वो हो जाती है | ये सब अवचेतन मस्तिष्क के चमत्कार है | वेदों में प्रार्थनाओं के माध्यम से ऐसे अद्भुत शब्द दिए है जो हम स्वयं तो चयनित न कर पाते | उन शब्दों का का पुनः बार बार उच्चारण करने से हमारा मस्तिष्क उन उद्देश्यों और ध्येय के प्रति संकल्पित होता जाता है और वो काम अपने आप होने लगते है | कैसे होने लगते है इस विषय पर तो बड़ा ग्रन्थ लिखा जाए तो भी कम है की अवचेतन मस्तिष्क कैसे कार्य करता है | और जितना लिखा जाए रहस्य उतना बड़ा ही रहेगा | 
यदि आपको मन्त्र का अर्थ नहीं पता ?
तो भी मन्त्र तो कार्य करेगा ही क्यों की वो संस्कृत में है संस्कृत मानवो की भाषा है इसलिए अधिक प्रभावशाली है | यदि अर्थ पता हो कर मन्त्र का जाप करते है तो इसका अद्भुत प्रभाव रहेगा | अतः जो भी मन्त्र का पाठ करे उसका अर्थ पता हो तो अति उत्तम | मन्त्र पाठ कर रहे है और अर्थ नहीं पता तो भी आपका मस्तिष्क जान रहा है की आप किस चीज़ के लिए मन्त्र पाठ कर रहे है | जैसे आप सुरक्षित यात्रा के लिए मन्त्र पाठ कर रहे है तो भले ही आपको मन्त्र का अर्थ नहीं पता पर आपका अवचेतन ये समझ रहा है की आपको सुरक्षित यात्रा चाहिए और वो उसी प्रकार स्वयं को तैयार कर लेता है यानी की सुरक्षा एवं सावधानी युक्त यात्रा के लिए | इसी प्रकार सारे मंत्रो को भाव को समझिये |
प्रार्थनाये क्यों नहीं कार्य करती है ?
यदि प्रार्थना करना सार्थक है तो फिर प्रश्न उठता है की प्रार्थना कार्य क्यों नहीं करती है ? प्रार्थनाये इसलिए कार्य नहीं करती क्यों की लोगो में शंका और भय होता है | संस्कृत में कहावत भी है संशय आत्म विनश्यति | शंका मत करिए विश्वास करिए | शंका और भय ही हमें असफल करता है | हम चाहते है कोई चीज़ पर उस चीज़ को पाने के लिए हम आशंकित रहते है और हमारे आशंका के भाव बढ़ते चले जाते है इसलिए  अवचेतन उसी को पूर्ण करता है जिसके बारे में हम अधिक चिन्तन करते है | अतः आपके सकरात्मक भाव एवं सोच आपकी प्रार्थनाओं की सफलता के लिए अवश्यंभावी है |

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