अंग्रेजो ने हमें चुनाव प्रणाली युक्त लोकतंत्र क्यों दिया ?
आदि काल में बिना राजा की व्यवस्था थी | जब जनसँख्या बढ़ी तो असुरिय भोजन भी बढ़ा तमो गुण भी बढ़ा | आर्यों के विपरीत दस्यु अर्थात लुटेरे उत्पन्न हुए | उनसे रक्षा को राजा की आवयश्कता महसूस हुई | सर्वप्रथम ऋषियों को राजा बनने का आग्रह किआ | अनेको ऋषियों ने प्रस्ताव मना कर दिया | महर्षि मनु ने मना कर दिया पर जनता पीछे पड़ गई | उनको आग्रह स्वीकार करना पड़ा | इस प्रकार राज व्यवस्था को व्यवस्थित किआ गया | महान से महान राजा इस आर्यावर्त में होते रहे | असुरो का उदय नहीं होने दिया गया देव स्वाभाव के आर्य राजाओं ने शासन किआ | महाभारत पश्चात पतन होना आरम्भ हो गया | पतन इतना हुआ की नए पंथ नए सम्प्रदाय नई भाषाए बनने लगी | असुरो ने हम पर शासन कर लिया क्यों की हमने अपना देवत्व खो दिया और हम साधारण मनुष्य जैसे ही गुण लिए रहे |
भारत की व्यवस्था फिर भी मनु महाराज के नियमो पर चलती रही | मुस्लिम आक्रान्ता और अंग्रेजो ने आकर उसे तहस नहस करना आरम्भ कर दिया | जिस समाज में शिक्षा का इतना अधिक महत्व था उस समाज में कुरीतिया फैलती गई समृद्ध समाज दलित होते गए अंग्रेजो ने लूट मार की अति कर दी | सन अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रान्ति हुई उसके पश्चात अंग्रेजो को भयंकर जान की हानि हुई | २ साल के युद्ध में अंग्रेजो ने भारत के ही शासको के सहयोग से अपना राज्य स्थापित किआ | अगले दस वर्ष और अधिक तक भारत की जनता का दमन चक्र चलता रहा | अंग्रेजो ने धडाधड कानून बना कर भारतीय व्यवस्था को बदलना आरम्भ किआ | एसियाटिक और ओरिएंटल सोसाइटी से भी समाज को बदल रहे थे | सैयद अहमद खा हो या विवेकानंद धर्म में भी अपने पैरोकार अंग्रेजो ने खड़े किए पर उन्हें पता था की अधिक दिनों तक वे शासन नहीं कर सकते | योजना तभी से बनने लगी | कांग्रेस की स्थापना हुई न होती तो फिर विद्रोह होता | बीस साल के लिए विद्रोह टल गया जब लगा लोग जान गए कांग्रेस के बारे में तो बंगाल विभाजन में उलझा दिया | १९११-१२ से चुनाव कराना आरम्भ किए १९३७ से प्रांतीय चुनाव हुए | चुनाव में भाग लेकर जब सत्ता में हिस्सेदारी मिल जाएगी तो जनता विरोध क्यों करेगी अंग्रेजी हुकुमत का |
कांग्रेस का एक ही रवैया विरोध करती फिर चुप हो जाती फिर स्वीकार कर लेती | अंग्रेज गए और उनकी व्यवस्था और सुद्र्ण हो गई स्वतंत्रता के नाम पर जैसे आज स्वदेशी के नाम पर पूंजीवाद को बढ़ाया जा रहा | स्वतंत्र भारत में अंग्रेजी भाषा, अंग्रेजी व्यवस्था, अंग्रेजी वेश भूषा को इतना बढ़ाया गया के हम तो भूल गए पराधीनता और स्वाधीनता की परिभाषा | जब अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रान्ति हुई भारत के लगभग सारे उद्योग विकेन्द्रित थे यानी घर परिवार चलाते थे जैसे इस्त्पात उद्योग को ही ले अंग्रेजो ने कानून बना बना कर जनता को पंगु बना दिया | संसाधनों पर कुछ पूंजीपतियों का ही आधिपत्य रहे ऐसा फारेस्ट एक्ट बना और इस्पात का नियंत्रण जनता के हाथ से चला गया | अब तोपे बनाना संभव नहीं था टॉप छोडिये नाव की कील बनाना भी कठिन था तलवार चाक़ू बन्दुक कहा से बनाते | अंग्रेजो ने स्वयम को सुधारा और ऐसी व्यवस्था बनाई जहा वे सुरक्षित रहे | इसके साथ जो मजदुर वर्ग रहा उसके लिए कम्युनिस्ट विचार धारा को लाया गया | हमेशा ध्रुवीकरण को लेकर चला गया ताकि शासक केंद्र में रह सके | सत्ता किसी के हाथ में रहे उसे नियंत्रण करने वाले बीचो बीच में रहे | आज भी राष्ट्रवादी कहे जाने वाले आये या पंथनिरपेक्ष कहे जाने वाले पूंजीपति ही लाभ उठाते है जनता में विवेक जाग्रत करने वाले चैनेल भाटो का काम कर रहे है बस राज सत्ता का गुणगान | कोई बुराई करने वाला तो आपको मिलेगा ही नहीं | बुराई छोड़े समीक्षा तो हो सरकार के निर्णयों की वो कितने चैनल कर रहे है | हम सभी वो देखते है जो हम देखना चाहते है | सरकार का रिपोर्ट कार्ड बनाना जनता को आता ही नहीं | कैसे विदेशी निवेश से आर्थिक गुलामी के बड़े मुद्दे दबा दिए जाते हैं राम मंदिर के नाम पर या मंडल कमिशन के नाम पर | कोयला के आवंटन हो या नोट छपाई का काम, बालू का खनन हो या सी एन जी के मूल्य निर्धारण का अधिकार कौन किसान के अनाज के भाव तय कर रहा कौन माध्यम वर्ग के निवाले का मूल्य निर्धारित कर रहा | गरीबी कर्ज या कोर्ट कचहरी में फसी जनता जागरूक कहा से रहे, एक वोट मिला है वो भी टी वी भाषणबाजी को देख कर दे देते है | यदि वोट देने से कुछ परिवर्तित होता तो अंग्रेज इस प्रणाली को हमें जबरदस्ती दे न जाते | इसी तंत्र को गांधी जी ने वैश्या तंत्र कहा था एक समय | यदि समस्याओं का समाधान चाहिए तो अंग्रेजो के तंत्र से बाहर आना होगा हमें | हो तो ये रहां है के लोगो की जमा पूंजी भी निकल आई घरो से राष्ट्रवाद के नाम पर | कैसे इस्तेमाल हो रही जनता और हर बार जनता को समझने में तीस चालीस साल लग जाते है जैसे नेहरु जी क्या कर के गए और अभी क्या हो रहा है |
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कांग्रेस का एक ही रवैया विरोध करती फिर चुप हो जाती फिर स्वीकार कर लेती | अंग्रेज गए और उनकी व्यवस्था और सुद्र्ण हो गई स्वतंत्रता के नाम पर जैसे आज स्वदेशी के नाम पर पूंजीवाद को बढ़ाया जा रहा | स्वतंत्र भारत में अंग्रेजी भाषा, अंग्रेजी व्यवस्था, अंग्रेजी वेश भूषा को इतना बढ़ाया गया के हम तो भूल गए पराधीनता और स्वाधीनता की परिभाषा | जब अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रान्ति हुई भारत के लगभग सारे उद्योग विकेन्द्रित थे यानी घर परिवार चलाते थे जैसे इस्त्पात उद्योग को ही ले अंग्रेजो ने कानून बना बना कर जनता को पंगु बना दिया | संसाधनों पर कुछ पूंजीपतियों का ही आधिपत्य रहे ऐसा फारेस्ट एक्ट बना और इस्पात का नियंत्रण जनता के हाथ से चला गया | अब तोपे बनाना संभव नहीं था टॉप छोडिये नाव की कील बनाना भी कठिन था तलवार चाक़ू बन्दुक कहा से बनाते | अंग्रेजो ने स्वयम को सुधारा और ऐसी व्यवस्था बनाई जहा वे सुरक्षित रहे | इसके साथ जो मजदुर वर्ग रहा उसके लिए कम्युनिस्ट विचार धारा को लाया गया | हमेशा ध्रुवीकरण को लेकर चला गया ताकि शासक केंद्र में रह सके | सत्ता किसी के हाथ में रहे उसे नियंत्रण करने वाले बीचो बीच में रहे | आज भी राष्ट्रवादी कहे जाने वाले आये या पंथनिरपेक्ष कहे जाने वाले पूंजीपति ही लाभ उठाते है जनता में विवेक जाग्रत करने वाले चैनेल भाटो का काम कर रहे है बस राज सत्ता का गुणगान | कोई बुराई करने वाला तो आपको मिलेगा ही नहीं | बुराई छोड़े समीक्षा तो हो सरकार के निर्णयों की वो कितने चैनल कर रहे है | हम सभी वो देखते है जो हम देखना चाहते है | सरकार का रिपोर्ट कार्ड बनाना जनता को आता ही नहीं | कैसे विदेशी निवेश से आर्थिक गुलामी के बड़े मुद्दे दबा दिए जाते हैं राम मंदिर के नाम पर या मंडल कमिशन के नाम पर | कोयला के आवंटन हो या नोट छपाई का काम, बालू का खनन हो या सी एन जी के मूल्य निर्धारण का अधिकार कौन किसान के अनाज के भाव तय कर रहा कौन माध्यम वर्ग के निवाले का मूल्य निर्धारित कर रहा | गरीबी कर्ज या कोर्ट कचहरी में फसी जनता जागरूक कहा से रहे, एक वोट मिला है वो भी टी वी भाषणबाजी को देख कर दे देते है | यदि वोट देने से कुछ परिवर्तित होता तो अंग्रेज इस प्रणाली को हमें जबरदस्ती दे न जाते | इसी तंत्र को गांधी जी ने वैश्या तंत्र कहा था एक समय | यदि समस्याओं का समाधान चाहिए तो अंग्रेजो के तंत्र से बाहर आना होगा हमें | हो तो ये रहां है के लोगो की जमा पूंजी भी निकल आई घरो से राष्ट्रवाद के नाम पर | कैसे इस्तेमाल हो रही जनता और हर बार जनता को समझने में तीस चालीस साल लग जाते है जैसे नेहरु जी क्या कर के गए और अभी क्या हो रहा है |
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Labels: राजनितिक सुधार
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