Thursday, 16 March 2017

होलिका, प्रहलाद और हिरण्यकश्यप का वैज्ञानिक रहस्य

होली और दीपावली दो महत्वपूर्ण त्यौहार है जो भारत की बहुसंख्यक जनता मनाती है | दोनों के साथ कथाये जुडी हुई है | होली के उत्सव के साथ भी ऐसी ही कथा जुडी है | पर विशेष बात ये है की ये दोनों त्यौहार नई फसल का उत्सव होते रहे है | वे कथाये भी बड़ी वैज्ञानिक और तथ्य लिए हुए है जिन्हें हमने समझा भी है और नहीं भी | होली और दीपावली दोनों ही नवसस्येष्टि यज्ञ है | नव अर्थात नया, सस्य अर्थात फसल इष्टि यज्ञ है यज्ञ समाज हित की इच्छित कामना हेतु किआ गया यज्ञ | पूरा देश कृषि पर निर्भर है और देश ही नहीं सम्पूर्ण मानवजाती की प्राथमिक आवयश्कता कृषि ही है | अतः नई फसल अच्छी हो ये राष्ट्र की समृधि और सुख शान्ति के लिए परम आवश्यक है |
हिरण्यकश्यप प्रहलाद और होलिका के विषय में कहा जाता है की की हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को जलाया और होलिका ने उसे लपेट लिया परन्तु होलिका ही जल गई प्रहलाद बच गया | ये कथा तीन महत्वपूर्ण तथ्य बताती है वेद मंत्रो की भाति इसकी भी हम तीन व्याख्याए कर सकते है |
होलक अन्न के ऊपर वो छिक्ला है जो जल जाता है प्रहलाद अन्न है जो बच जाता है और हिरण्यकश्यप अग्नि रूपी परमात्मा है | प्रहलाद के सेवन से शरीर में आह्लाद की उत्पत्ति होती है अतः प्रहलाद अन्न होता है | गावो का कहा जाता होरा भुन्झा जाता है | जो मानवीकरण कथा है उसको समझने में कई वैज्ञानिक दोष है | 
प्रहलाद की प्रार्थना पर भगवान् ने खम्बा फाड़ के हिरण्यकश्यप का पेट फाड़ दिया खम्बे से निकल कर | परमात्मा विष्णु है अर्थात व्यापक है तो वो अन्दर से भी हिरण्यकश्यप का हृदय फाड सकता था | अब समझते है इस कथा को वैज्ञानिक तरीके से | प्रहलाद कहता है मेरे प्रभु विष्णु है विष्णु अर्थात व्याप्तो तो हिरण्यकश्यप यानी वो अग्नि जो अंदर है कहती है मैं ही परमात्मा हु | हिरण्यकश्यप प्रहलाद की बुआ को उसे जलाने को भेजता है | अब इसे समझे प्रकृति से अन्न समय आने पर किस प्रकार पक जाता है | ऊपर का छिकला हरा होता है फिर उसका रंग बदल जाता है | ये प्रकृति में अन्न के पकने का किस्सा हुआ | जब हम अग्नि में उसे जलाते है तो भी यही होता है छिकला जलता है और अन्न बच जाता है जो की हम होली के हवन में ही करते है | शारीर में भी यही क्रिया होती है यहाँ अमाशय में पेट की अग्नि वो अम्ल (एसिड्स) है जो अन्न को अच्छे से पचाते है | प्रहलाद अर्थात आनंद की रक्षा होती है अन्न को ग्रहण करने से | और ब्रह्माण्ड में भी इस किस्से को समझे के महाविस्फोट से पूर्व सब एक में होगा यानी हिरण्यकश्यप ने सब को समेटा हुआ है और विस्फोट होते ही होलिका विस्तारित हो गई प्रहलाद अह्लाद की रक्षा हुई सृष्टि निर्माण हुआ | यदि ये होलिका के जलने की अग्नि होती तो क्या हम घर में शमशान की अग्नि लाते अतः होती हवन ही है जो नई फसल में हम करते है | हमारे अनेको त्यौहार इतिहास और विज्ञान का रहस्य लिए हुए है | 


सन्दर्भ : शब्दकल्पद्रुमकोश के अनुसार- तृणाग्निभ्रष्टार्द्धपक्वशमीधान्यं होलकः।
भावप्रकाश के अनुसार- अर्द्धपक्वशमीधान्यैस्तृणभ्रष्टैश्च होलकः होलकोऽल्पानिलो मेदकफदोषश्रमापहः।

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