Tuesday, 28 March 2017

अंग्रेजो ने हमें चुनाव प्रणाली युक्त लोकतंत्र क्यों दिया ?

आदि काल में बिना राजा की व्यवस्था थी | जब जनसँख्या बढ़ी तो असुरिय भोजन भी बढ़ा तमो गुण भी बढ़ा | आर्यों के विपरीत दस्यु अर्थात लुटेरे उत्पन्न हुए | उनसे रक्षा को राजा की आवयश्कता महसूस हुई | सर्वप्रथम  ऋषियों को राजा बनने का आग्रह किआ | अनेको ऋषियों ने प्रस्ताव मना कर दिया | महर्षि मनु ने मना कर दिया पर जनता पीछे पड़ गई | उनको आग्रह स्वीकार करना पड़ा | इस प्रकार राज व्यवस्था को व्यवस्थित किआ गया | महान से महान राजा इस आर्यावर्त में होते रहे | असुरो का उदय नहीं होने दिया गया देव स्वाभाव के आर्य राजाओं ने शासन किआ | महाभारत पश्चात पतन होना आरम्भ हो गया | पतन इतना हुआ की नए पंथ नए सम्प्रदाय नई भाषाए बनने लगी | असुरो ने हम पर शासन कर लिया क्यों की हमने अपना देवत्व खो दिया और हम साधारण मनुष्य जैसे ही गुण लिए रहे |
भारत की व्यवस्था फिर भी मनु महाराज के नियमो पर चलती रही | मुस्लिम आक्रान्ता और अंग्रेजो  ने आकर उसे तहस नहस करना आरम्भ कर दिया | जिस समाज में शिक्षा का इतना अधिक महत्व था उस समाज में कुरीतिया फैलती गई समृद्ध समाज दलित होते गए अंग्रेजो ने लूट मार की अति कर दी | सन अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रान्ति हुई उसके पश्चात अंग्रेजो को भयंकर जान की हानि हुई | २ साल के युद्ध में अंग्रेजो ने भारत के ही शासको के सहयोग से अपना राज्य स्थापित किआ | अगले दस वर्ष और अधिक तक भारत की जनता का दमन चक्र चलता रहा | अंग्रेजो ने धडाधड कानून बना कर भारतीय व्यवस्था को बदलना आरम्भ किआ | एसियाटिक और ओरिएंटल सोसाइटी से भी समाज को बदल रहे थे | सैयद अहमद खा हो या विवेकानंद धर्म में भी अपने पैरोकार अंग्रेजो ने खड़े किए पर उन्हें पता था की अधिक दिनों तक वे शासन नहीं कर सकते | योजना तभी से बनने लगी | कांग्रेस की स्थापना हुई न होती तो फिर विद्रोह होता | बीस साल के लिए विद्रोह टल गया जब लगा लोग जान गए कांग्रेस के बारे में तो बंगाल विभाजन में उलझा दिया | १९११-१२ से चुनाव कराना आरम्भ किए १९३७ से प्रांतीय चुनाव हुए | चुनाव में भाग लेकर जब सत्ता में हिस्सेदारी मिल जाएगी तो जनता विरोध क्यों करेगी अंग्रेजी हुकुमत का |
कांग्रेस का एक ही रवैया विरोध करती फिर चुप हो जाती फिर स्वीकार कर लेती | अंग्रेज गए और उनकी व्यवस्था और सुद्र्ण हो गई स्वतंत्रता के नाम पर जैसे आज स्वदेशी के नाम पर पूंजीवाद को बढ़ाया जा रहा | स्वतंत्र भारत में अंग्रेजी भाषा, अंग्रेजी व्यवस्था, अंग्रेजी वेश भूषा को इतना बढ़ाया गया के हम तो भूल गए पराधीनता और स्वाधीनता की परिभाषा | जब अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रान्ति हुई भारत के लगभग सारे उद्योग विकेन्द्रित थे यानी घर परिवार चलाते थे जैसे इस्त्पात उद्योग को ही ले अंग्रेजो ने कानून बना बना कर जनता को पंगु बना दिया | संसाधनों पर कुछ पूंजीपतियों का ही आधिपत्य रहे ऐसा फारेस्ट एक्ट बना और इस्पात का नियंत्रण जनता के हाथ से चला गया | अब तोपे बनाना संभव नहीं था टॉप छोडिये नाव की कील बनाना भी कठिन था तलवार चाक़ू बन्दुक कहा से बनाते | अंग्रेजो ने स्वयम को सुधारा और ऐसी व्यवस्था बनाई जहा वे सुरक्षित रहे | इसके साथ जो मजदुर वर्ग रहा उसके लिए कम्युनिस्ट विचार धारा को लाया गया | हमेशा ध्रुवीकरण को लेकर चला गया ताकि शासक केंद्र में रह सके | सत्ता किसी के हाथ में रहे उसे नियंत्रण करने वाले बीचो बीच में रहे | आज भी राष्ट्रवादी कहे जाने वाले आये या पंथनिरपेक्ष कहे जाने वाले पूंजीपति ही लाभ उठाते है जनता में विवेक जाग्रत करने वाले चैनेल भाटो का काम कर रहे है बस राज सत्ता का गुणगान | कोई बुराई करने वाला तो आपको मिलेगा ही नहीं | बुराई छोड़े समीक्षा तो हो सरकार के निर्णयों की वो कितने चैनल कर रहे है | हम सभी वो देखते है जो हम देखना चाहते है | सरकार का रिपोर्ट कार्ड बनाना जनता को आता ही नहीं | कैसे विदेशी निवेश से आर्थिक गुलामी के बड़े मुद्दे दबा दिए जाते हैं राम मंदिर के नाम पर या मंडल कमिशन के नाम पर | कोयला के आवंटन हो या नोट छपाई का काम, बालू का खनन हो या सी एन जी के मूल्य निर्धारण का अधिकार कौन किसान के अनाज के भाव तय कर रहा कौन माध्यम वर्ग के निवाले का मूल्य निर्धारित कर रहा | गरीबी कर्ज या कोर्ट कचहरी में फसी जनता जागरूक कहा से रहे, एक वोट मिला है वो भी टी वी भाषणबाजी को देख कर दे देते है | यदि वोट देने से कुछ परिवर्तित होता तो अंग्रेज इस प्रणाली को हमें जबरदस्ती दे न जाते | इसी तंत्र को गांधी जी ने वैश्या तंत्र कहा था एक समय | यदि समस्याओं का समाधान चाहिए तो अंग्रेजो के तंत्र से बाहर आना होगा हमें | हो तो ये रहां है के लोगो की जमा पूंजी भी निकल आई घरो से राष्ट्रवाद के नाम पर | कैसे इस्तेमाल हो रही जनता और हर बार जनता को समझने में तीस चालीस साल लग जाते है जैसे नेहरु जी क्या कर के गए और अभी क्या हो रहा है |
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Monday, 20 March 2017

जब ZEE NEWS का सुधीर चौधरी १०० करोड़ की रिश्वत मांगते हुए पकड़ा गया

कुछ वर्ष पूर्व बड़ा सन्देश चलता था मिडिया बिकाऊ है इसाई और विदेशियों ने घेर रखा है | श्रेध्येय श्री राजीव दीक्षित ने जो विदेशी कंपनियों की लूट को उजागर किआ था उसका ये मतलब नहीं था की स्वदेशी की ब्रांडिंग कर के जनता को कोई देशी लुटे या विदेशी के विरोध में तो जनता हो पर देशी कंपनिया लूटने लगे | कंपनी का मालिक लूट के लंदन भाग गया विजय माल्या जैसा तो वो भी एक ही बात है | हानि जनता की होती है चाहे वो अंग्रेज करे या काले अंग्रेज | ध्येय था छोटे उद्योग स्थापित हो लोग स्वाबलंबी हो | कोल आवंटन के मामले में नवीन जिंदल का नाम आया और मिडिया में ये चला | इस विषय पर जी न्यूस ने सक्रियता दिखाई |
जी न्यूस के पत्रकार सुधीर चौधरी ने जिंदल स्टील के प्रतिनिधि से सौ करोड़ रूपए की मांग करी तब जा कर हम जिंदल के बारे में खबर नहीं दिखाएँगे | एक कंपनी लूट रही हैं देश का खनिज एक प्रकार से दूसरा चैनेल जो की बहुत से लोग बड़ा ही सत्यवादी चैनेल मानते हैं वो उस लूट में अपना हिस्सा मांग रहा हैं | इस वीडियो में आप देख सकते है 
https://www.youtube.com/watch?v=WFhfPn95hKg
सुधीर चौधरी को २०१३ का रामनाथ गोयंका एवार्ड मिला पत्रकारिता के लिए | अन्य पुरस्कार भी मिले हैं | NDTV को हम लोग बहुत ही गालिया देते रहे है | पर विदेशी नहीं तो देशी चैनेलो को लूट मचाने का अधिकार कहा से मिल जाता है | उपरोक्त वीडियो में जिंदल स्टील का प्रतिनिधि कहता है की २० करोड़ से सीधे १०० करोड़ | पत्रकार कहते है एक साल में इतना कर सकते है | डैमेज कण्ट्रोल यही है की आगे कोई खबर नहीं आएगी | मिडिया का काम होता है सच दिखाना जनता को आर्थिक लूट से बचाना | जनता को जागरूक एवं विवेकशील बनाना कह सकते है मिडीया को राष्ट्र का पुरोहित होना चाहिए | जैसा की हम कहते है वयं राष्ट्रे पुरोहितं जागृयाम् | सब के सब बस धन के उपासी हो गए है | जो ऐसे में जनता का कर्तव्य है की वो अपना विवेक दिखाए और सबक सिखाये | ऐसे चैनेल ऐसे कर्मचारियों को न केवल निकाले अपितु माफ़ी भी मांगे तब तक जनता उनका चैनेल फिर से देखना न आरम्भ करे | विकिपीडिया पर आप देखिये इस स्टिंग की कोई भी सूचना नहीं प्रकाशित है | भीड़ की स्मरण शक्ति बहुत ही क्षीण होती है | बात जिंदल स्टील की नही कल अम्बानी होंगे परसों कोई और किसी को तो इमानदारी से काम करना होगा |

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Sunday, 19 March 2017

INA National Anthem को उचित सम्मान दे सरकार

श्री रविन्द्र नाथ टैगोर ने जन गण मन लिखा जोर्ज पंचम की प्रशंसा में जो की १९११ में भारत आये थे | उन्हें भारत के जन गण मन का अधिनायक बताया गया | इतनी जबरदस्त प्रसंशा से प्रसन्न हो कर रविन्द्रनाथ जी को नोबल पुरस्कार  दिलवा दिया गया गीतांजलि के लिए | जन गण मन को कभी भी स्वाधीनता के लिए संघर्ष करने वालो ने स्वीकार नहीं किया | वंदेमातरम् था क्रान्तिकारियो का गाना जिसे पढ़ते पढ़ते लाखो लोगो ने बलिदान दिया | अंग्रेजो को ये कैसे राष्ट्र गान स्वीकार हो सकता था आरोप रख दिया गया मुसलमानो पर या तुष्टिकरण नीतियों पर, सत्य तो ये है के वन्देमातरम स्वीकार नहीं था अंग्रेजो को | जन गण मन की धुन को ही लेते हुए इंडियन नैशनल आर्मी ने मिलता हुआ एंथम बनाया उसका कारण सेना के जवान जो अंग्रेजो की सेना छोड़ कर आये थे उनकी आस्था तो अभी अभी छूटी थी अंग्रेजो की सेना से | अब रविन्द्र नाथ टैगोर का राष्ट्रगान सिनेमाहाल तक में अनिवार्य है और वदेमातरम के नाम से अभी भी राजनितिक खेल खेले जाते है 
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जनगणमन अधिनायक जय हे, 
भारतभाग्यविधाता।पंजाब सिंध गुजरात मराठा, द्राविड़ उत्कल बंग।
विंध्य हिमाचल यमुना गंगा, उच्छल जलधि तरंग।
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे।
गाहे तव जयगाथा।
जनगणमंगलदायक 
जय हे, भारतभाग्यविधाता।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे॥
अब नेता जी सुभास चन्द्र बोस की सेना के एंथम को पढ़ते हैं | उसे लिखा है श्री आबिद हसन सफ्रानी और मुमताज़ हुसैन ने इसमें संगीत दिया है कैप्टन श्री राम सिंह ठाकुर ने 


शुभ सुख चैन कि बरखा बरसे , भारत भाग है जागा
पंजाब, सिन्ध, गुजरात, मराठा, द्राविड उत्कल बंगा
चंचल सागर, विन्ध्य, हिमालय, नीला जमुना गंगा
तेरे नित गुण गाएँ, तुझसे जीवन पाएँ
हर तन पाए आषा।
सूरज बन कर जग पर चमके, भारत नाम सुभागा,
जए हो! जए हो! जए हो! जए जए जए जए हो!॥
सब के दिल में प्रीत बसाए, तेरी मीठी बाणी
हर सूबे के रहने वाले, हर मज़हब के प्राणी
सब भेद और फ़र्क मिटा के, सब गोद में तेरी आके,
गूंधें प्रेम की माला।
सूरज बन कर जग पर चमके, भारत नाम सुभागा,
जए हो! जए हो! जए हो! जए जए जए जए हो!॥
शुभ सवेरे पंख पखेरे, तेरे ही गुण गाएँ,
बास भरी भरपूर हवाएँ, जीवन में रुत लाएँ,
सब मिल कर हिन्द पुकारे, जय आज़ाद हिन्द के नारे।
प्यारा देश हमारा।
सूरज बन कर जग पर चमके, भारत नाम सुभागा,
जए हो! जए हो! जए हो! जए जए जए जए हो!॥
यह बात हम सभी जानते है की आज़ाद हिन्द फ़ौज के कारण रोयल इंडियन नेवी में विद्रोह की चिंगारी पहुच गई थी | ऐसे में अंग्रेजो का भारत में सेना सम्हालना खतरे का सूचक था | जैसे भी गए सत्ता का हस्तानांतरण ही सही ये तो हमारी कमी रही की हमारे नेता स्वदेशी निति पर स्वराज्य की निति पर आने का साहस न कर सके | अब जब लोग जाग रहे है ऐसे में क्या आवयश्कता है जोर्ज पंचम के प्रशंसा गीत पर हम सिनेमा हाल से लेकर सभी जगह खड़े हो या फिर सरकार स्पष्ट करे की वो भारत भाग्य विधाता किसे मानती है |


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हिन्दू समाज के सोलह अनिवार्य संस्कार

आर्यों के सोलह अनिवार्य संस्कार
आदि काल से ही ऋषियों ने श्रेष्ठ प्रजा की उत्पत्ति के लिए वेद अनुसार १६ संस्कारो को अनिवार्य किआ गया हैं | वैसे तो सम्पूर्ण जीवन काल हम स्वयम को संस्कारित ही करते रहते है परन्तु ये १६ संस्कार परम अनिवार्य हैं जिनमें से अधिक को हम पालन तो कर रहे है पर इस प्रकार की वो पुर्णतः हमें लाभ नहीं दे पाते इस का कारण उन संस्कारो का हमें सही प्रकार ज्ञान न होना है |
ये सोलह प्रमुख संस्कार क्रमानुसार संक्षिप्त वर्णित है
गर्भाधान संस्कार (Garbhaadhan Sanskar) – लोक भाषा में इसे सेक्स कहा जाता है और हम पर जब से पश्चिम की संस्कृति हावी हुई है ये केवल आनंद का पर्याय ही बन गया है | परन्तु ऋषियों के भारत में ऐसा न था सभी संस्कारों का मूल था | सही प्रकार से सही जीवात्मा सही जोड़ो द्वारा गर्भ में स्थापित हो एक अत्याधिक महान यज्ञ जिस पर सम्पूर्ण मानव जाती का अस्तित्व निर्भर करता हैं | वेद भी इस विषय पर ज्ञान देते है हमें, सत्यार्थ प्रकाश में भी वर्णन है और संस्कार विधि नामक पुस्तक में भी | अतः संतान की प्रथम कोशिका बनने की क्रिया पर सभी माता पिता विशेष ध्यान दे ताकि हमारे देश को महान राजा रानियों जैसे बालक बालिकाए प्राप्त हो पावे |
पुंसवन संस्कार (Punsavana Sanskar) –एक ऐसा संस्कार जिसे हम न समझते है और न ही पालन करते है | गर्भ स्थापित होने के दुसरे माह से ही पुंसवन संस्कार बालक का आरम्भ कर देना चाहिए | वेद मंत्रो के पाठ से लेकर माता के भोजन तक में परिवर्तन कर के | यह इतना शक्तिशाली संस्कार है की इसके माध्यम से संतान का लिंग गर्भ में निर्धारित किआ जा सकता है | गर्भाधान में हुए दोष को भी इस संस्कार के माध्यम से दूर किआ जा सकता है|
सीमन्तोन्नयन संस्कार ( Simantonayan Sanskar) – जब माता द्वनाडी होती है तब उसकी प्रत्येक इच्छा पूरी की जाती है | जिस प्रकार की जीवात्मा गर्भ में आती है उसके श्रेष्ठ गुणों का अनुमान विद्वान् जन जान जाते है | ऋषि मुनियों के आश्रम में राज पुत्रो का जन्म इसी संस्कार का भाग है | गर्भ के चौथे छठवे आठवे महीने के पश्चात संतान को गर्भ में महान बनाने का कार्य ये संस्कार करता है | वेद में अनेको मन्त्र है जिनके पाठ से गर्भस्थ स्त्री को सीधे लाभ हो सकता है |
जातकर्म संस्कार (Jaat-Karm Sansakar) – बालक के जन्म के पश्चात उसकी जिह्वा पर स्वर्ण सलाखा से धृत और शहद से ओ३म् लिखे | धृत शक्ति का प्रतीक है और शहद मधुर वाणी का, एक बल और दूसरा बुद्धि का | जन्म के पश्चात नाल काटने पर भय की उत्पत्ति बालक के मानसिक स्तर पर ऐसा प्रभाव पड़ने की सम्भावना रहती है के उसमे जीवन पर्यंत भय व्याप्त हो जाए अतः इस संस्कार से उसमे आर्यत्व का भाव बढाया जाता है |

नामकरण संस्कार (Naamkaran Sanskar) शब्द ब्रह्म कहा जाता है | नाम दो प्रकार से रखे जा सकते है गुण वाची और अर्थ वाची | गुण वाची नाम बालक के गुण अनुसार रखे इस प्रकार का नाम रखना हो तो थोडा समय ले बालक के गुणों को देखने में | दूसरा तरीका है अर्थ वाची जैसे गुण चाहते है वैसा नाम रखे |
निष्क्रमण संस्कार (Nishkraman Sanskar)  – निष्क्रमण का अर्थ है बाहर निकालना, जन्म के चौथे महीने में यह संस्कार किया जाता है। बालक को चार महीने तक बाहरी वातावरण से दूर रखा जाता है तत्पश्चात उसे सूर्य की रौशनी एवं चन्द्रमा का दर्शन कराया जाए इस से उसके मानसिक एवं शारीरिक विकास में भी तीव्रता आएगी |
अन्नप्राशन संस्कार (Annaprashana) –  संतान के दांत निकलने के साथ ही इस संस्कार को करना चाहिए | हमारा समाज शाकाहारी रहा है आदि काल से इसी से सिद्ध होता है वरना कोई मांसप्राशन संस्कार नहीं कहता अन्न प्राशन ही कहा जाता है और अभी भी होता है समाज में |
चूडाकर्म/मुंडन संस्कार (Mundan Sanskar)संतान के पहले तीसरे या पाचवे वर्ष में ये संस्कार किआ जाता है | बालक का सर मजबूत होता है साथ-साथ शुचिता का कार्य भी संपन्न हो जाता है |

विद्या आरंभ संस्कार ( Vidya Arambh Sanskar) संतान को सही आयु के होते ही उसकी घर पर ही शिक्षा आरम्भ कर देनी चाहिए | आजकल विद्यालयों में गुलाम बनाए जाते है अतः विद्या आरम्भ बालक में विवेकशीलता जाग्रत करने के ध्येय से करनी चाहिए |
कर्णवेध संस्कार ( Karnavedh Sanskar) –  ये संस्कार बालक के बल के लिए अत्याधिक आवश्यक होता है | कुशल वैद्य बुला कर तीन नाड़ियो के बीच में कुंडल पहनाये | इस से बालको में अंडकोष वृद्धि नहीं होगी और उन्हें कुशल सैन्य प्रशिक्षण सरलता से दिया जा सकता है | बालिकाओं में कर्णवेध केवल श्रृंगार के लिए ही नहीं वात पित्त कफ का संतुलन बना रहेगा |
उपनयन या यज्ञोपवित संस्कार (Yagyopaveet Sanskar) – उप यानी पास और नयन यानी ले जाना। गुरु के पास ले जाने का अर्थ है उपनयन संस्कार। वहां गुरु यज्ञोपवीत करता है जनेऊ के तीन धागे ज्ञान कर्म उपासना के प्रतीक है ये प्रतीक है ऋषि ऋण, पितृ ऋण एवं देवताओं के ऋण के अतः संन्यास लेने तक जनेऊ को कंधे पर आर्य रखते थे और पालन करते थे |
वेदारंभ संस्कार (Vedaramba Sanskar) – जब बालक को संस्कृत एवं व्याकरण का वेद सीखने भर का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त हो जाता है तब आचार्य वेद के ज्ञान का आरम्भ करते है |
केशांत संस्कार (Keshant Sanskar) – बालो को साफ़ रखवा कर केवल शिखा राखी जाती है | गुरुकुल शिक्षा से पूर्व और पश्चात ये कार्य किआ जाता है | जब शिक्षा पूर्ण होगी तब समावर्तन से पूर्व फिर ये किआ जाता है |
समावर्तन संस्कार   (Samavartan Sanskar)- समावर्तन संस्कार अर्थ है फिर से लौटना, अपने घर में बालक वापस आता है | शिक्षा पूर्ण कर के बालक को एक वर्ण मिलता है तत्पश्चात उसे समाज में अपना कार्य कर के योगदान देना होता है |
विवाह संस्कार ( Vivah Sanskar) – ये श्रेष्ठतम संस्कार है इसके बिना प्रजाति ही आगे न बढे | इसके अतिरिक्त मोक्ष में भी दो जीवात्माए एक दुसरे की सहायता करती है | भोग का नहीं अपितु योग की उच्चाइयो पर पहुचने के साधन रहा है वैदिक समाज में विवाह संस्कार |
अंत्येष्टी संस्कार (Antyesti Sanskar)ये हवन क्रिया है जिसमे भाष्मांत शरीरम् के मन्त्र के साथ शरीर को अग्नि में प्रवेश करा दिया जाता है | प्रकृति में संतुलन बना रहता है इस संस्कार के माध्यम से | इसे अंतिम संस्कार भी कहते है इसके बाद कोई संस्कार शेष नहीं रह जाता | छ्म्छी बरसी इत्यादि संस्कार नहीं होते पूर्वजो को स्मरण करने का कोई भी बहाना कर लिया जाए पर अंतिम संस्कार अंत्येष्टि ही होती है |


अब पुरे १६ संस्कार सभी के हो ये आदर्श स्तिथि है | किसी का कर्णवेध नहीं होता तो कोई आजीवन ब्रह्मचारी निकल जाता | इन संस्कारो से आदर्श सामाजिक व्यवस्था बनी हुई थी | भय मुक्त संयमित समाज की स्थापना हुई थी | इन संस्कारो को समाज के ही विद्वान् आदर्श प्रकार से स्थापित करे हुए थे | इन संस्कारों के बारे में लोग जाने और ठीक प्रकार से करे ताकि श्रेष्ठ प्रजा की उत्पत्ति हो सके और हमारा राष्ट्र पुनः आर्य राष्ट्र बनेगा जब राष्ट्र आर्य होगा तब विश्व को भी हम अरे बना पायेंगे |

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Thursday, 16 March 2017

होलिका, प्रहलाद और हिरण्यकश्यप का वैज्ञानिक रहस्य

होली और दीपावली दो महत्वपूर्ण त्यौहार है जो भारत की बहुसंख्यक जनता मनाती है | दोनों के साथ कथाये जुडी हुई है | होली के उत्सव के साथ भी ऐसी ही कथा जुडी है | पर विशेष बात ये है की ये दोनों त्यौहार नई फसल का उत्सव होते रहे है | वे कथाये भी बड़ी वैज्ञानिक और तथ्य लिए हुए है जिन्हें हमने समझा भी है और नहीं भी | होली और दीपावली दोनों ही नवसस्येष्टि यज्ञ है | नव अर्थात नया, सस्य अर्थात फसल इष्टि यज्ञ है यज्ञ समाज हित की इच्छित कामना हेतु किआ गया यज्ञ | पूरा देश कृषि पर निर्भर है और देश ही नहीं सम्पूर्ण मानवजाती की प्राथमिक आवयश्कता कृषि ही है | अतः नई फसल अच्छी हो ये राष्ट्र की समृधि और सुख शान्ति के लिए परम आवश्यक है |
हिरण्यकश्यप प्रहलाद और होलिका के विषय में कहा जाता है की की हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को जलाया और होलिका ने उसे लपेट लिया परन्तु होलिका ही जल गई प्रहलाद बच गया | ये कथा तीन महत्वपूर्ण तथ्य बताती है वेद मंत्रो की भाति इसकी भी हम तीन व्याख्याए कर सकते है |
होलक अन्न के ऊपर वो छिक्ला है जो जल जाता है प्रहलाद अन्न है जो बच जाता है और हिरण्यकश्यप अग्नि रूपी परमात्मा है | प्रहलाद के सेवन से शरीर में आह्लाद की उत्पत्ति होती है अतः प्रहलाद अन्न होता है | गावो का कहा जाता होरा भुन्झा जाता है | जो मानवीकरण कथा है उसको समझने में कई वैज्ञानिक दोष है | 
प्रहलाद की प्रार्थना पर भगवान् ने खम्बा फाड़ के हिरण्यकश्यप का पेट फाड़ दिया खम्बे से निकल कर | परमात्मा विष्णु है अर्थात व्यापक है तो वो अन्दर से भी हिरण्यकश्यप का हृदय फाड सकता था | अब समझते है इस कथा को वैज्ञानिक तरीके से | प्रहलाद कहता है मेरे प्रभु विष्णु है विष्णु अर्थात व्याप्तो तो हिरण्यकश्यप यानी वो अग्नि जो अंदर है कहती है मैं ही परमात्मा हु | हिरण्यकश्यप प्रहलाद की बुआ को उसे जलाने को भेजता है | अब इसे समझे प्रकृति से अन्न समय आने पर किस प्रकार पक जाता है | ऊपर का छिकला हरा होता है फिर उसका रंग बदल जाता है | ये प्रकृति में अन्न के पकने का किस्सा हुआ | जब हम अग्नि में उसे जलाते है तो भी यही होता है छिकला जलता है और अन्न बच जाता है जो की हम होली के हवन में ही करते है | शारीर में भी यही क्रिया होती है यहाँ अमाशय में पेट की अग्नि वो अम्ल (एसिड्स) है जो अन्न को अच्छे से पचाते है | प्रहलाद अर्थात आनंद की रक्षा होती है अन्न को ग्रहण करने से | और ब्रह्माण्ड में भी इस किस्से को समझे के महाविस्फोट से पूर्व सब एक में होगा यानी हिरण्यकश्यप ने सब को समेटा हुआ है और विस्फोट होते ही होलिका विस्तारित हो गई प्रहलाद अह्लाद की रक्षा हुई सृष्टि निर्माण हुआ | यदि ये होलिका के जलने की अग्नि होती तो क्या हम घर में शमशान की अग्नि लाते अतः होती हवन ही है जो नई फसल में हम करते है | हमारे अनेको त्यौहार इतिहास और विज्ञान का रहस्य लिए हुए है | 


सन्दर्भ : शब्दकल्पद्रुमकोश के अनुसार- तृणाग्निभ्रष्टार्द्धपक्वशमीधान्यं होलकः।
भावप्रकाश के अनुसार- अर्द्धपक्वशमीधान्यैस्तृणभ्रष्टैश्च होलकः होलकोऽल्पानिलो मेदकफदोषश्रमापहः।

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Friday, 10 March 2017

अंग्रेज बंगाल से ही क्यों आये ?

वास्को डी गामा ने भारत के पश्चिमी तट पर कदम रखा, क्यों की १४५३ ओटोमन साम्राज्य के कोंसटीटोपल (अब इस्ताम्बुल) पर कब्जे के कारण यूरोप भारत का भूमिमार्ग अवरुद्ध था वास्को डी गामा के आने के बाद समुद्री मार्ग व्यापार करने के लिए पूर्वी तट से ही खुला | इसके उपरान्त भी अंग्रेज पश्चिम बंगाल से ही भारत में पैर जमा पाए | अंग्रेजो को मगरमच्छ कहा गया है क्यों की मगरमच्छ पानी के रास्ते आता है | गुजरात जैसे समृद्ध राज्य जो बंगाल की तुलना में लूट करने के लिए अधिक समृद्ध थे | ऐसा नहीं की बंगाल समृद्ध नहीं था बस बंगाल में बौद्धिक भी अधिक थे और व्यापार भी पर्याप्त होता था पर गुजरात थोडा अधिक समृद्ध था क्यों की वहा स्वराज्य आरंभ से ही रहा | गोमान्तक (अब गोआ)  में ब्राह्मणों पर जो अत्याचार वास्को डी गामा  पुर्तगालियो ने किए वो इतिहास में मिलते है | कालीकट के महाराज की जैसे हत्या हुई और उनके किले को आग में जला दिया गया वो सब गुंडा गर्दी के किस्से यूरोपीय जातियों के इतिहास में मिल जाते है जो ये सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है की वास्को डी गामा कोई खोजक नहीं था | क्यों की खोजक लूटेरे नहीं होते धोखेबाज भी नहीं होते | पर प्रश्न ये उठता है की जब यूरोपी जातिया पूर्वी तट से आने जाने लगी तो अंग्रेजो को बंगाल ही क्यों पैर जमाने के लिए सही लगा |
इस प्रश्न का उत्तर है की किसी मजबूत जंजीर को तोड़ना है तो उसके कमज़ोर हिस्से को पकड़ो | बंगाल में मुगलों का राज था | दिल्ली के आस पास का थोडा सा क्षेत्र और बंगाल का क्षेत्र मुगलों एवं मुस्लिम शासको के पास बचा था | नवाब सिराजुद्दौला को १७५७ में मरवा कर मीर जाफर को बैठाया गया बाद में मीर जाफर को हटा कर अंग्रेजो ने उसके दामाद मीर  कासिम को बैठाया जब कासिम अपनी चलाने लगा तो फिर मीर जाफर को बैठाया | मीर कासिम की जो दुर्गति हुई वो इतिहास में पठनीय है | जो बैंकिंग घरानों से या सत्ता में अधिक ताकतवर लोगो से पंगा लेता है वो आज भी उसी स्तिथि में पहुच जाता है | सुब्रतो राय या आशा राम इसके उदाहरण है | यानी जो आज बड़े कोर्पोरेट घराने लोकतंत्र में सरकार बनाते गिराते है वो यही अंग्रेजो की ही नीति का विस्तारित स्वरूप है | जनता में असंतोष था और सैन्य शक्ति सबसे दुर्बल थी | मराठा साम्राज्य का भगवा झंडा पुरे देश में ही फैला हुआ था और वीर शिवा जी जैसा बुद्धिमान शासक जो गोरो की नियत को आरम्भ से ही जानते थे इस कारण से मराठो के बीच सेंधमारी करना काफी कठिन था उनके लिए | इसके साथ साथ दुनिया की सबसे बड़ी जल सेना भी मराठो के पास थी | अगर दौड़ा लेते तो इंग्लैंड भी हाथ से चला जाता इसलिए रोबर्ट क्लाइव जैसो के लिए बंगाल एक सरल और आसान क्षेत्र रहा | दुर्भाग्य रहा उस क्षेत्र का की मुगलो की मार के बाद अंग्रेजो की मार झेलनी पड़ी फिर कम्युनिस्टों का शासन और बांग्लादेश तो अलग हो ही गया | होना तो बंगाल को भी गुजरात जितना ही समृद्ध था | सबक यही है के शत्रु वही से हमला करेगा जहा हम कमजोर होंगे | राजनीत के जो हथकंडे अंग्रेजो ने अपनाए और हमें नहीं पढाये जाते वो हर दिन भारतीय राजनीत में प्रयोग होते है बस हम उसे समझ नहीं पाते |

क्यो खाई जाती है बंगाल में मछलिया ?

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Wednesday, 8 March 2017

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक रहस्यमयी संघठन

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ देश का ही नहीं दुनिया का सबसे बड़ा स्वयं सेवी संगठन | स्थापित हुआ वर्ष १९२५ में अब तक कई बार प्रतिबंधित हो चूका है | नागपुर से संचालित होता ये संघठन मराठी ब्राह्मणों द्वारा स्थापित किआ गया था संभव है पेशवा की उस गद्दी को पुनः स्थापित करने के लिए | कम से कम ऐसा आभास तो होता है पर अब इस संगठन के सौ वर्ष होने को आरहे है और ये संघठन सत्ता में बैठे लोगो का नियंत्रणकर्ता भी है, कभी हिन्दू राष्ट्र का लक्ष्य लेकर स्थापित हुआ ये संघठन अब अपने ध्येय से कोसो दूर दिखता है या संभव है ये उसी ध्रुवीकरण का हिस्सा है जिस पर लोकतंत्र चलता है | अंग्रेजो का हमें कांग्रेस देना फिर चुनावी प्रणाली देना और फिर राष्ट्रीय स्वयं सेवक जैसे संघठन को पनपने देना अपने आप में प्रश्न चिन्ह उठाता है | यदि कहे हिन्दुओ को संगठित करने वाला कोई संगठन नहीं था तो पुर्णतः असत्य होगा क्यों की हिन्दू महासभा और आर्य समाज दोनों ही हिन्दू हितो के लिए पूर्व से ही अद्भुत कार्य कर रहे थे | क्या इसके पीछे इन्ही संगठनों को समाप्त करना तो नहीं था ? आर्य समाज जहा क्रांतिकारी और विद्वानों की खेप खड़ा करता जा रहा था वही हिन्दू महासभा ने हिन्दू शुद्धी सभा बनाकर और आर्य समाज का साथ लेकर चार वर्षो में १९२२ से १९२६ तक २० लाख मुस्लिमो की शुद्धिया कर दी थी | हेडगेवार को कोई दोष नहीं दे रहा कई बार ऐसा होता है की हमें पता ही नहीं होता की हमारा इस्तेमाल हो रहा है | वीर सावरकर ने कभी इस संस्था को नहीं चुना अपितु इसके कार्य न करने पर व्यंग ही किआ | बटवारे के समय इस संगठन को ४० लाख युवाओं का संगठन कहा जाता है, इसके उपरान्त भी बटवारे के समय लाखो की संख्या में हिन्दुओ का जनसंहार हुआ | जो विषय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को संदेह के घेरे में लाते है वे निम्न है :-
१. हिंदुत्व का फासीवादी स्वरूप (Fascist side of Hinduism) : संघ कहने को भले ही १९२५ में बना हो पर ये सुचारू रूप से १९३४ से ही आरम्भ हो पाया था | इसको बनाने में जो मुख्य लोग थे वे थे डा. केशव बलिराम हेडगेवार, डा. बालकृष्ण शिवराम मुंजे, लक्ष्मण वामन परांजपे, नारायण दामोदर सावरकर (वीर सवारकर के छोटे भाई) इत्यादि विद्वान थे पर संघ की विशेषता है के ये केवल एक ही चेहरा सामने रखता है ये फासीवादी संघठन की कार्यप्रणाली का हिस्सा है | फासीवादी रूप और राष्ट्रवादी दोनों सर्वथा भिन्न है | वीर सावरकर ने परिणाम दिए जो कहा वो करा, हिन्दुओ का सैनीकीकरण, राजनीत का हिन्दुयीकरण | सेना में हिन्दू युवको को भेजना वही युवक आजाद हिन्द फ़ौज के काम आये ये दूरगामी सोच वीर सावरकर और रास बिहारी बोस की देश में अंग्रेजो को भगाने में बड़ी सहायक सिद्ध हुई | पर अल्बानिया में जो जोगी सैल्यूट (Zogist Salute) कराया जाता उसे हमारे देश में लाना समझ से परे है | जब क्रांतिकारी धोती कुर्ता पहन कर अंग्रेजो से लोहा लेते थे तो ये हाफ पेंट, शर्ट और चमड़े की बेल्ट लगाकर हिंदुत्व की बात कर रहे थे | यदि हिंदुत्व और राष्ट्रवाद एक दुसरे का पर्याय है तो अंग्रेजो के समय उनके विरुद्ध ये राष्ट्रवाद कहा गया था ? आर्य समाज और हिन्दू महासभा की तरह क्यों नहीं सीधे अंग्रेजो के विरोध में संघ आया था ? कुछ तो गड़बड़ रही है अन्दर की | मार्च १९, १९३१ को डा. मुंजे और इटली के तानाशाह बेनेटो मसोलिनी की भेट भी संघठन को रहस्य के घेरे में लाती है | अल्बानिया का जोगी सैल्यूट (Zogist Salute) जिसे संघ अपनाता है उस देश पर इटली १९३९ में कब्ज़ा कर लेता है | इटली और अल्बानिया के सामरिक सम्बन्ध संदेह को और बढाते है |



२. विवेकानंद को आदर्श दिखाना : आज के सेक्युलरिस्म की जो बाते कांग्रेस या वामपंथी दल करते है विवेकानंद को कह सकते है उसकी शुरुआत करने वाला | विवेकानंद न केवल स्वयं गौ मांस खाते थे खाने का समर्थन भी करते थे | जो कम्युनिस्ट किताबो में लिखते है और संघ उस पर हल्ला करते है विवेकानंद उसी बात को कहते रहे | आपके गुरु राम कृष्ण परमहंस तो मुस्लिम भी हो गए थे और तीन बार की नमाज़ भी पढने लग गए थे | ऐसे में ऐसे व्यक्ति को जबरदस्ती का आदर्श बताना राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को एक छद्म राष्ट्रवादी संघठन सिद्ध करने से अधिक कुछ भी नहीं |

३. भारत माता की मूर्ति स्थापित करना : बंकिम चन्द्र चैटर्जी ने जो अपने उपन्यास आनंद मठ के माध्यम से कल्पित किआ उसे संघ ने बढ़ाया उन्होंने तो दुर्गा जी को ही कल्पित किआ | पर बहुत कम लोगो को पता है की भारत माता ब्रिटेन की देवी ब्रिजेंटेस (Brigantes) का ही स्वरूप है | यहाँ भी अंग्रेजो की ही देवी का स्वरूप लिया जा रहा है | अथर्वेद में गौ पृथ्वी सूक्त है उन्ही सूक्तो में राष्ट्र की स्वतंत्रता एवं चक्रवर्ती राज्य की कामना के ले प्रार्थना है | महर्षि दयानंद की लिखी आर्याभिविनय क्रान्तिकारियो की गीता थी उसपर कोई कार्यवाही अंग्रेज कर नहीं पाते थे क्यों के हम तो अपना धर्म शास्त्र ही पढ़ रहे होते है | ऐसे में हम वेदों के सूक्त से दूर हो गए और बस भारत माता की जय पर ही अटक गए | भूमि माता क्यों कही गई, किस प्रकार का राज्य स्थापित होना चाहिए आर्यों का सार्वभौम चक्रवर्ती राज्य स्थापित होना चाहिए ऐसी कामना करना बंद हो कर लोग एक नारे पर ही अटक गए | हमें भूलना नहीं चाहिए वन्दे मातरम की प्रेरणा अथर्वेद के सूक्त ही है | नमो वत्सले गान जो की मराठी में लिखा गया और उसमे आर्य भूमि शब्द प्रयोग किआ गया परन्तु संस्कृत में उसका अनुवाद करते समय आर्य भूमि को हिन्दू भूमि कर दिया गया, ये वर्ष १९३४ की बात है |

४. कार्य न करना : एक देश, एक भाषा, एक संस्कृति की बात करने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अब कर क्या रहा है ? देश के कई राज्यों में भाजपा की सरकार है पर परिवर्तन कुछ भी नही हुआ | अब तो अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त हो जानी चाहिए | अब तो देश में गौ रक्षा का कानून बन जाना चाहिए | अब तो कम से कम हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा पर कार्य होना चाहिए | संघ वस्तुतः स्थान घेरे हुए है क्यों की यदि संघ नहीं घेरेगा तो कोई वास्तविक राष्ट्रवादी संघठन कार्य करने लगेगा | जिस के लिए संघ की स्थापना हुई भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने के लिए उसकी तो अब संघ बात भी नहीं करता | जिन मुद्दों को लेकर शिशु मंदिर के बच्चो का दिमाग खराब रखा उनमे से कितने मुद्दे आप पूरे कर रहे है ?

गांधी वध के लिए जबरदस्ती श्रेय संघ को दिया जाता जब की संघ पल्ला तो झाड़ता पर स्पष्ट मना भी नही करता | हिन्दू महासभा और आर्य समाज जैसे विशुद्ध राष्ट्रवादी संघठनो को हाशिये पर लाने में संघ का विशेष हाथ रहा है | सन १९६० के दशक में सी.आई.ए की रिपोर्ट के अनुसार संघ से उन्हें कोई समस्या नहीं | हम नही पूछते आपको कहा से धन प्राप्त हुआ ? 1950 के दशक में नेहरु स्वयं परेड के लिए आमंत्रित करते है | यदि आप राष्ट्रवादी है तो आपको ये नाम में लगाने की आवयश्कता नहीं आपका काम आपको राष्ट्रवादी सिद्ध करेगा | भाषणबाजी को सौ वर्ष हो गए अब संघ हिन्दू राष्ट्र कब बना रहा है हिन्दू राष्ट्र छोडिये अंग्रेजी की अनिवार्यता ही समाप्त करवा दे और वो भी छोडिये गौ रक्षा का केंद्र में कठोर बिना लूप होल का कानून ही बनवा दे और बीफ निर्यात रुकवा दे | वरना अपने नाम से राष्ट्रीय हटा कर केवल स्वयं सेवक संघ ही कर ले |
नमस्ते

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Tuesday, 7 March 2017

अंग्रेजो की भारत को देन

हम हमेशा अंग्रेजो की बुराई करते रहते है आइये जाने उन प्रमुख चीजों के बारे में जो अंग्रेजो ने हमें दि हैं :- 
१. लोकतंत्र/गणतंत्र (Democracy/Republican): न न करते कांग्रेस के माध्यम से लोकतंत्र थोप ही दिया गया | १९०८ में हिन्द स्वराज्मे इसे वैश्या तंत्र कहने वाले गांधी जी भले ही सहमत न हो पर १९३७ के प्रांतीय चुनावों तक ये व्यवस्था स्वीकृत हो गई थी | अंग्रेज भारत में १००० वर्ष शासन करने के स्वप्न को लेकर आये थे और उनका ये स्वप्न पूरा भी हुआ जा रहा है | इतने वर्ष तो रोमन भी अंग्रेजो पर शासन नहीं कर पाए | सत्तावन की क्रान्ति के बाद अंग्रेजो को ऐसी विधि चाहिए थी जिस से उनका शासन उनकी व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहे | कांग्रेस उसी व्यवस्था की शुरुआत थी जब कभी कांग्रेस में किसी ने तिलक जैसे नेताओं ने विद्रोह किआ उन्हें उठा के जेल में डाल दिया गया | जो पार्लियामेंट अंग्रेजो ने बनवाई आज उसी व्यवस्था से देश शासित होता है |

२. नौकरशाही (Bureaucracy): ६-६, ७-७ चेन से जब कोई फ़ाइल हो कर आती है तो लगता है इसमें भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश नहीं है | पर लोकतंत्र को चलाने के लिए भ्रष्टाचार का धन इसी नौकरशाही से मिलता है | हर टेबल पर पैसा खिलाइए तब कोई काम होता है | गोली भले ही सेना में एक जैसी मिले पर अधिकारी और जवान के वेतन में इतना अंतर रहेगा की हमें याद रहेगा की अंग्रेजी बोलने वाला अफसर और गाव की शुद्ध हिंदी बोलने वाला नौकर ही रहता है |

३. कर प्रणाली (Taxation System): ऐसी अद्भुत कर प्रणाली आपको कही नहीं मिलेगी | इस देश में टैक्स पर भी टैक्स लगता है और जनता खुश रहती है | सरकार फिर भी परेशान रहती हैं की अधिक से अधिक जनता इनकम टैक्स नही देती | एक यही कर है जिसपर सरकार का बस नहीं चलता प्रधानमन्त्री जी की दया से अब बैंको के विस्तार से अधिक से अधिक लोग आयकर भी भरेंगे | मजेदार बात ये है किए पिच्यानवे से ऊपर प्रकार के टैक्स लेने वाली सरकार के खर्चे तब भी पुरे नहीं होते और वो कर्ज लेकर घाटे के बजट बना कर सरकार चलती है चाहे राज्य की हो या केंद्र की | खैर अब बैंको के विस्तार के बाद लोग कर्ज लेकर अपना घर भी चलाएंगे इसलिए अब किसी को शिकायत नहीं होगी |
४. पुलिस (Police): वही लाठी वही ३०३ की राइफल हां अब इन्सांस भी आगई है लागत है पुलिस अपनी सी हो गई है | वही धाराए वही नियम किसे परवाह है कानून बदलने की हम तो उनकी तरह बनना चाहते है | किसी को भी उठा सकती है अहिंसक प्रदर्शनकारियों पर लाठिया चला सकती है राम भक्तो पर गोलिया चला सकती है हमारी पुलिस जो १८६० में दोबारा कोई १८५७ का विद्रोह न हो इसलिए बनाई थी एकदम सफल रही और अपना कार्य सुचारू रूप से कर रही है | अतः हमें इम्पीरियल पुलिस के भारतीय पुलिस सेवाओं में परिवर्तित करने का भारत सरकार का धन्यवाद देना चाहिए |

५. अंग्रेजी (English): इस भाषा से तो पूरा देश एक है | वरना हम तो लड़ने भिड़ने वाले राज्य थे | हमारे राजाओ ने तो एक भी किला नहीं बनवाया | अंग्रेजी भाषा में आप हमारा इतिहास पढ़ लीजिये हमारी कानून व्यवस्था न्याय भी हमें इसी भाषा में मिलता है | हमें आती भले न हो पर हम २ शब्द भी बोल ले तो गौरान्वित होते है | अपने बच्चो को हम शिखा, कर्घिनी या संस्कृति के प्रतीकों से परिचित तो नहीं कराते पर बचपन से एप्पल बनाना अवश्य सिखाने लगते है | हमने अपने बच्चो के नाम तो बाद में बदलने आरम्भ किये पहले अपने देश का नाम ही इन्डिया स्वीकार किआ | आर्यावर्त और भारत वैकल्पिक नाम हमारे लिए रहे है और रहेंगे संभव है २-३ पीढ़ी बाद ये नाम लुप्त भी हो जाए | हिंदी अंग्रेजी की मिली भाषा चले और रोमन लिपि चलने लगे |

इसके अतिरिक्त न्यायपालिका से लेकर अनेको तंत्र आदते हमें अंग्रेज देकर गए है | अपने पुरखो के नियम तो हम न चला पाए पर अंग्रेजो के चाय की आदत को हमने अच्छे से लिया | अंग्रेजो को यहा से जाकर अधिक लाभ हुआ के हमें जो हम अपनी तरह के अंग्रेज बन सके | आप देश की वर्तमान समस्याओं को अंग्रेजो की देन से मत जोदियेगा वरना पिछड़े हुए कहे जायेंगे आज के समय में यही सब विकास है | यद्दपि स्वतंत्रता शब्द का सही अर्थ खोजने की हमें आवयश्कता है |

१५ अगस्त : उपगणराज्य दिवस कहिये ना के स्वतंत्रता दिवस

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Monday, 6 March 2017

ईश्वर प्रार्थना क्यों करे ?


बहुत से लोगो के मन में ये प्रश्न है की जब कर्म से ही सब प्राप्त होगा तब प्रार्थना करने का क्या मतलब है?
ईश्वर प्रार्थना क्यों की जाए ?
इस प्रश्न के अर्थ को समझने के लिए हमें समझना होगा की प्रार्थना भी आत्म विकास का एक अभ्यास है जिसके माध्यम से हम अपने अवचेतन मस्तिष्क को प्रशिक्षित करते है | एक ही बात को बार बार कहने से वो हमारे अवचेतन मस्तिष्क में पहुच जाती है और अवचेतन मस्तिष्क बहुत ही अद्भुत शक्तियों का स्वामी होता है | कभी आपने इस विषय पर गौर किआ की रात्री में जितने बजे आप प्रातः उठने का संकल्प कर के सोये प्रातः उतने ही बजे आँख खुल गई | या आप जिस व्यक्ति का विचार कर रहे होते है उस से मिलना चाहते है और उस व्यक्ति से मिल जाते है या आप किसी चीज़ के लिए आशंकित रहते है डरे रहते है और वो हो जाती है | ये सब अवचेतन मस्तिष्क के चमत्कार है | वेदों में प्रार्थनाओं के माध्यम से ऐसे अद्भुत शब्द दिए है जो हम स्वयं तो चयनित न कर पाते | उन शब्दों का का पुनः बार बार उच्चारण करने से हमारा मस्तिष्क उन उद्देश्यों और ध्येय के प्रति संकल्पित होता जाता है और वो काम अपने आप होने लगते है | कैसे होने लगते है इस विषय पर तो बड़ा ग्रन्थ लिखा जाए तो भी कम है की अवचेतन मस्तिष्क कैसे कार्य करता है | और जितना लिखा जाए रहस्य उतना बड़ा ही रहेगा | 
यदि आपको मन्त्र का अर्थ नहीं पता ?
तो भी मन्त्र तो कार्य करेगा ही क्यों की वो संस्कृत में है संस्कृत मानवो की भाषा है इसलिए अधिक प्रभावशाली है | यदि अर्थ पता हो कर मन्त्र का जाप करते है तो इसका अद्भुत प्रभाव रहेगा | अतः जो भी मन्त्र का पाठ करे उसका अर्थ पता हो तो अति उत्तम | मन्त्र पाठ कर रहे है और अर्थ नहीं पता तो भी आपका मस्तिष्क जान रहा है की आप किस चीज़ के लिए मन्त्र पाठ कर रहे है | जैसे आप सुरक्षित यात्रा के लिए मन्त्र पाठ कर रहे है तो भले ही आपको मन्त्र का अर्थ नहीं पता पर आपका अवचेतन ये समझ रहा है की आपको सुरक्षित यात्रा चाहिए और वो उसी प्रकार स्वयं को तैयार कर लेता है यानी की सुरक्षा एवं सावधानी युक्त यात्रा के लिए | इसी प्रकार सारे मंत्रो को भाव को समझिये |
प्रार्थनाये क्यों नहीं कार्य करती है ?
यदि प्रार्थना करना सार्थक है तो फिर प्रश्न उठता है की प्रार्थना कार्य क्यों नहीं करती है ? प्रार्थनाये इसलिए कार्य नहीं करती क्यों की लोगो में शंका और भय होता है | संस्कृत में कहावत भी है संशय आत्म विनश्यति | शंका मत करिए विश्वास करिए | शंका और भय ही हमें असफल करता है | हम चाहते है कोई चीज़ पर उस चीज़ को पाने के लिए हम आशंकित रहते है और हमारे आशंका के भाव बढ़ते चले जाते है इसलिए  अवचेतन उसी को पूर्ण करता है जिसके बारे में हम अधिक चिन्तन करते है | अतः आपके सकरात्मक भाव एवं सोच आपकी प्रार्थनाओं की सफलता के लिए अवश्यंभावी है |

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यात्रा आरम्भ से पूर्व प्रार्थना मन्त्र

भारतीय समाज में एक लोक्त्ती बड़ी प्रसिद्ध है हर कौन बिस्मिल्लाह नहीं होता | उसका एक कारण ये है सनातन समाज में हर क्रिया के लिए ईश्वर को याद तो किआ जाता है पर हर विषय के लिए अलग प्रार्थना | यात्रा करने से पूर्व ऋग वेद का ये मन्त्र पाठ किआ करे यात्रा सुखद एवं सुरक्षित होंगी |
स्वस्ति पन्था मनुचरेम सूर्याचन्द्रमसाविव।
पुनर्ददताऽघ्रनता जानता संगमें यहि॥
ऋग॰ 5। 51।15
जिस प्रकार सूर्य और चन्द्रमाँ अपने सही मार्ग पर चलते है उसी प्रकार हम भी कल्याणकारी मार्ग पर चले और दानी, अहिंसक तथा विद्वान् पुरुषों का साथ करें ।

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Sunday, 5 March 2017

माता पिता के कल्याण हेतु वैदिक प्रार्थना मन्त्र

वेद में अनेको आशीर्वचन के मन्त्र है | कुछ मन्त्र संतानों के लिए भी है ये कर्तव्य तो विद्यालय के शिक्षको का है की वे बालक बालिकाओं को अपने माता पिता के अच्छे स्वास्थ एवं जीवन के लिए उन्हें ये प्रार्थना सिखाये |







मा नो वधीः पितरम्मोत मातरम् | यजुर्वेद १६-१५ 

हे ईश्वर ! हमारे माता पिता को कोई कष्ट न हो पाए |

स्वस्ति मात्र उत पित्रे नो अस्तु | अथर्वेद १-३१-४

हमारे माता तथा पिता का सदैव स्वस्ति हो, सदा कल्याण हो |

ईश्वर हमारी शिक्षा व्यवस्था को पुनः समृद्ध भारत के समय जैसी करने की हमारे राजनेताओं को प्रेरणा दे | ताकि हमारी आने वाली पीढ़िया पुनः वेद पर आजाए |

ओ३म्

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Friday, 3 March 2017

आखिर गुरमेहर के पिता को मारा किसने ?

गुरमेहर कौर दिल्ली विश्विद्यालय की एक छात्रा जो सुर्खियों में है क्यों की उसने शिकायत की है की अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लडको ने सामूहिक बलात्कार की धमकी दी है | इस प्रकार की शिकायत कोई भी बहन बेटी करती हैं तो तुरंत ही कार्यवाही करनी चाहिए और उन लोगो के नाम इत्यादि की जानकारी कर कार्यवाही भी करनी चाहिए | निंदनीय बात तो सदैव निंदनीय रहेगी | देशद्रोही कहने से उसकी शिकायत नजरअंदाज नहीं करी जा सकती | स्त्री कैसी भी हो बलात्कार जैसे घृणास्पद कार्यो की धमकी देने वाले भी दंडनीय है | पर इस सारे मामले में एक महत्वपूर्ण प्रश्न रह गया की 
आखीर गुरमेहर के पिता को मारा किसने ?
यहाँ  हम आपको बताते चले के भारत पाकिस्तान के बीच शान्ति की स्थापना हेतु गुरमेहर कौर ने यूट्यूब पर एक स्लाइड हाथ में लेकर कहा था की पाकिस्तान ने उसके पिता को नहीं मारा युद्ध ने मारा | प्रकरण यू है के जब गुरमेहर छोटी थी लगभग छै वर्ष की तो एक बुरका पहने मुस्लिम महिला को मारने लगी | उनकी माँ ने उन्हें समझाया की उनके पिता को पाकिस्तान ने नहीं युद्ध ने मारा | खैर माँ है ६ वर्ष की बच्ची को जो समझ आया समझा दिया | महत्वपूर्ण विषय ये है की २० वर्ष की आयु में भी इनको वही समझ आया जो ६ वर्ष की आयु में समझ आया था |
पाकितान ने नहीं मारा युद्ध ने मारा, आपकी बात मानते है | इस युद्ध के पीछे कौन था इसकी सी बी आई जाच बैठाई जाए | वैसे फिर तो ये युद्ध भारत ने किआ था क्यों की पाकिस्तान शब्द से स्पष्ट हो गया की भारत ही दोषी है अब भाई तीसरा देश होता तो उस पर दोष मढ़ देते | अब यदि भारत ने मारा तो अपने पिता के हत्यारे देश से क्यों आर्थिक सहायता या कैसी भी सहायता ले रही हो आप | मैं इस बात का बिलकुल भी विरोधी नहीं के आप कुछ बोल या लिख नहीं सकती पर दुसरे भी उतने ही बोलने और लिखने को स्वतंत्र है | आप भारत का अन्न खाते हुए भारत देश से सुविधाए लेते हुए भारत देश को ही सीधे युद्ध के लिए दोषी बता रही है | पाकिस्तान से मित्रता चाहती है तो आप स्वतंत्र है किसी पाकिस्तानी से विवाह करने को आप जा सकती है वहा और भी तरीके है व्यापार कर सकती है पाकिस्तान के साथ | युद्ध किसे चाहिए | एक सैनिक से अधिक शान्ति की अभिलाषा कोई नहीं करता | आप यदि बे सरपैर की बात बोलोगी तो लोग व्यंग करेंगे ही | हां नारी का सम्मान आहत करने की कोई बात करता है तो वो राम भक्त नही हो सकता |
अब आप प्रसिद्धि पा चुकी है इसका लाभ उठाये किसी भी एम एन सी में एक अच्छे वेतन की नौकरी पा सकती है | या आपको कही से वेतन आता हो आपकी तख्तिया टांगने का तो इसी में भविष्य बनाए पर छात्र राजनीत वस्तुतः उस खतरनाक राजनीत का भाग है जो न ही पुर्णतः तलवारों की लड़ाई होती है और न ही दिमागी लड़ाई | हम सिख समाज के आभारी है जिसने बिना आपके बैकग्राउंड को देखते हुए आपके कौर होने पर ही आपकी रक्षा को सामने आया | 

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