आर्यों के सोलह अनिवार्य संस्कार
आदि काल से ही ऋषियों ने श्रेष्ठ प्रजा की उत्पत्ति
के लिए वेद अनुसार १६ संस्कारो को अनिवार्य किआ गया हैं | वैसे तो सम्पूर्ण जीवन काल हम स्वयम को संस्कारित ही
करते रहते है परन्तु ये १६ संस्कार परम अनिवार्य हैं जिनमें से अधिक को हम पालन तो
कर रहे है पर इस प्रकार की वो पुर्णतः हमें लाभ नहीं दे पाते इस का कारण उन
संस्कारो का हमें सही प्रकार ज्ञान न होना है |
ये सोलह प्रमुख संस्कार क्रमानुसार संक्षिप्त वर्णित है
गर्भाधान संस्कार
(Garbhaadhan Sanskar) – लोक भाषा में इसे सेक्स कहा जाता है और हम पर जब से
पश्चिम की संस्कृति हावी हुई है ये केवल आनंद का पर्याय ही बन गया है | परन्तु ऋषियों के भारत में ऐसा न था सभी संस्कारों का
मूल था | सही प्रकार से
सही जीवात्मा सही जोड़ो द्वारा गर्भ में स्थापित हो एक अत्याधिक महान यज्ञ जिस पर
सम्पूर्ण मानव जाती का अस्तित्व निर्भर करता हैं | वेद भी इस विषय पर ज्ञान देते है हमें, सत्यार्थ प्रकाश में भी वर्णन है और संस्कार विधि नामक पुस्तक में भी | अतः संतान की प्रथम कोशिका बनने की क्रिया पर सभी
माता पिता विशेष ध्यान दे ताकि हमारे देश को महान राजा रानियों जैसे बालक बालिकाए
प्राप्त हो पावे |
पुंसवन संस्कार (Punsavana Sanskar) –एक ऐसा संस्कार जिसे हम न समझते है और न ही पालन करते
है | गर्भ स्थापित
होने के दुसरे माह से ही पुंसवन संस्कार बालक का आरम्भ कर देना चाहिए | वेद मंत्रो के पाठ से लेकर माता के भोजन तक में
परिवर्तन कर के | यह इतना
शक्तिशाली संस्कार है की इसके माध्यम से संतान का लिंग गर्भ में निर्धारित किआ जा
सकता है | गर्भाधान में हुए
दोष को भी इस संस्कार के माध्यम से दूर किआ जा सकता है|
सीमन्तोन्नयन संस्कार ( Simantonayan Sanskar) – जब माता द्वनाडी होती है तब उसकी प्रत्येक इच्छा पूरी की जाती है | जिस प्रकार की जीवात्मा गर्भ में आती है उसके श्रेष्ठ
गुणों का अनुमान विद्वान् जन जान जाते है | ऋषि मुनियों के आश्रम में राज पुत्रो का जन्म इसी संस्कार का भाग है | गर्भ के चौथे छठवे आठवे महीने के पश्चात संतान
को गर्भ में महान बनाने का कार्य ये संस्कार करता है | वेद में अनेको मन्त्र है जिनके पाठ से गर्भस्थ स्त्री
को सीधे लाभ हो सकता है |
जातकर्म संस्कार (Jaat-Karm Sansakar) – बालक के जन्म के पश्चात उसकी जिह्वा पर स्वर्ण सलाखा
से धृत और शहद से ओ३म् लिखे | धृत शक्ति का प्रतीक है और शहद मधुर वाणी का, एक बल और दूसरा बुद्धि का | जन्म के पश्चात नाल काटने पर भय की उत्पत्ति बालक के मानसिक स्तर पर ऐसा
प्रभाव पड़ने की सम्भावना रहती है के उसमे जीवन पर्यंत भय व्याप्त हो जाए अतः इस
संस्कार से उसमे आर्यत्व का भाव बढाया जाता है |
नामकरण संस्कार (Naamkaran Sanskar) – शब्द ब्रह्म कहा जाता है | नाम दो प्रकार से रखे जा सकते है गुण वाची और अर्थ वाची | गुण वाची नाम बालक के गुण अनुसार रखे इस प्रकार का नाम रखना
हो तो थोडा समय ले बालक के गुणों को देखने में | दूसरा तरीका है अर्थ वाची जैसे गुण चाहते है वैसा नाम रखे |
निष्क्रमण संस्कार (Nishkraman
Sanskar) – निष्क्रमण का अर्थ है बाहर निकालना, जन्म के चौथे महीने में यह संस्कार किया जाता है। बालक को चार महीने तक बाहरी
वातावरण से दूर रखा जाता है तत्पश्चात उसे सूर्य की रौशनी एवं चन्द्रमा का दर्शन
कराया जाए इस से उसके मानसिक एवं शारीरिक विकास में भी तीव्रता आएगी |
अन्नप्राशन संस्कार (Annaprashana) – संतान के दांत निकलने के साथ ही
इस संस्कार को करना चाहिए | हमारा समाज
शाकाहारी रहा है आदि काल से इसी से सिद्ध होता है वरना कोई मांसप्राशन संस्कार
नहीं कहता अन्न प्राशन ही कहा जाता है और अभी भी होता है समाज में |
चूडाकर्म/मुंडन संस्कार (Mundan Sanskar)– संतान के पहले
तीसरे या पाचवे वर्ष में ये संस्कार किआ जाता है | बालक का सर मजबूत होता है साथ-साथ शुचिता का कार्य भी संपन्न हो जाता है |
विद्या आरंभ संस्कार ( Vidya Arambh Sanskar) – संतान को सही आयु के होते ही उसकी घर पर ही शिक्षा आरम्भ कर देनी चाहिए | आजकल विद्यालयों में गुलाम बनाए जाते है अतः विद्या आरम्भ
बालक में विवेकशीलता जाग्रत करने के ध्येय से करनी चाहिए |
कर्णवेध संस्कार ( Karnavedh Sanskar) – ये संस्कार बालक के बल के लिए अत्याधिक
आवश्यक होता है | कुशल वैद्य बुला कर
तीन नाड़ियो के बीच में कुंडल पहनाये | इस से बालको में अंडकोष वृद्धि नहीं होगी और उन्हें कुशल सैन्य प्रशिक्षण
सरलता से दिया जा सकता है | बालिकाओं में
कर्णवेध केवल श्रृंगार के लिए ही नहीं वात पित्त कफ का संतुलन बना रहेगा |
उपनयन या यज्ञोपवित संस्कार (Yagyopaveet Sanskar) – उप यानी पास और नयन यानी ले जाना। गुरु के पास ले जाने का अर्थ है उपनयन
संस्कार। वहां गुरु यज्ञोपवीत करता है जनेऊ के तीन धागे ज्ञान कर्म उपासना के
प्रतीक है ये प्रतीक है ऋषि ऋण, पितृ ऋण एवं देवताओं के ऋण के अतः संन्यास लेने तक जनेऊ को कंधे पर आर्य रखते
थे और पालन करते थे |
वेदारंभ संस्कार (Vedaramba Sanskar) – जब बालक को संस्कृत एवं व्याकरण का वेद सीखने भर का
पर्याप्त ज्ञान प्राप्त हो जाता है तब आचार्य वेद के ज्ञान का आरम्भ करते है |
केशांत संस्कार (Keshant Sanskar) – बालो को साफ़ रखवा कर केवल शिखा राखी जाती है | गुरुकुल शिक्षा से पूर्व और पश्चात ये कार्य किआ जाता है | जब शिक्षा पूर्ण होगी तब समावर्तन से पूर्व फिर ये किआ जाता
है |
समावर्तन संस्कार (Samavartan Sanskar)- समावर्तन संस्कार अर्थ है फिर से लौटना, अपने घर में बालक वापस आता है | शिक्षा पूर्ण कर के बालक को एक वर्ण मिलता है तत्पश्चात उसे समाज में अपना
कार्य कर के योगदान देना होता है |
विवाह संस्कार ( Vivah Sanskar) – ये श्रेष्ठतम संस्कार है इसके बिना प्रजाति ही आगे न बढे | इसके अतिरिक्त मोक्ष में भी दो जीवात्माए एक दुसरे की
सहायता करती है | भोग का नहीं अपितु
योग की उच्चाइयो पर पहुचने के साधन रहा है वैदिक समाज में विवाह संस्कार |
अंत्येष्टी संस्कार (Antyesti Sanskar)– ये हवन क्रिया है जिसमे भाष्मांत शरीरम् के मन्त्र के साथ
शरीर को अग्नि में प्रवेश करा दिया जाता है | प्रकृति में संतुलन बना रहता है इस संस्कार के माध्यम से | इसे अंतिम संस्कार भी कहते है इसके बाद कोई संस्कार शेष
नहीं रह जाता | छ्म्छी बरसी
इत्यादि संस्कार नहीं होते पूर्वजो को स्मरण करने का कोई भी बहाना कर लिया जाए पर
अंतिम संस्कार अंत्येष्टि ही होती है |
अब पुरे १६ संस्कार सभी के हो ये आदर्श स्तिथि है | किसी का कर्णवेध नहीं होता तो कोई आजीवन ब्रह्मचारी निकल
जाता | इन संस्कारो से
आदर्श सामाजिक व्यवस्था बनी हुई थी | भय मुक्त संयमित समाज की स्थापना हुई थी | इन संस्कारो को समाज के ही विद्वान् आदर्श प्रकार से स्थापित करे हुए थे | इन संस्कारों के बारे में लोग जाने और ठीक प्रकार से करे
ताकि श्रेष्ठ प्रजा की उत्पत्ति हो सके और हमारा राष्ट्र पुनः आर्य राष्ट्र बनेगा जब
राष्ट्र आर्य होगा तब विश्व को भी हम अरे बना पायेंगे |