फिल्में समाज का आयना है या फिल्मो से समाज बदला जा रहा है ?
यदि आप किसी फिल्म
प्रेमी से बोलीवुड की कठोर समीक्षा कर देंगे वे कहेंगे की फिल्मे तो समाज का आयना
होती है | यानी फिल्मे वही दिखाती है जो समाज में हो रहा हैं | फिल्मे समाज का
आयना तब होती थी जब आर्ट फिल्मो का समय था | अब तो हर फिल्म कोमेर्सियल फिल्म होती
है | फिल्म का प्राथमिक ध्येय पैसा कमाना होता है | कम समय में अधिक पैसे वाले
अनेक काम है जैसे झूठ जल्दी फैलता है, गन्दी चीज़ अधिक प्रचलित होती है | हिंदी
फिल्म उद्योग भी ऐसा ही कर रहा है | यहाँ पैसा कमाने के लिए हर वो गंदे प्रयोग
किये गए जिस से जल्दी पैसा बनाना शुरू करे |
यदि फिल्मे समाज का आइना है ये बात पूरी तरह
मान भी ले तो क्या फिल्म उद्योग का अपना सामाजिक कोई कर्तव्य नहीं है ? फिल्म सिर्फ
यदि इंटरटेनमेंट के आधार पर चलती है तो कल को पोर्न फिल्म उद्योग में बोलीवुड बदल
जाए तो कोई आश्चर्य न हो क्यों की उसमे कोई शिक्षा नहीं होती सिर्फ इंटरटेनमेंट
होता है | सेंसर बोर्ड का भी कोई मतलब नही है कुछ भी दिखाओ लोगो को | लोग स्वतंत्र
है देखने को, पर हमारे समाज का ढाचा ऐसे नहीं टिका है |
नए प्रयोग
आज से १०-१२ वर्ष पूर्व
बिपाशा वसु मल्लिका शेरावत जैसी हेरोइनो ने रास्ता खोला था जिसे अश्लीलता का चरम
माना जा रहा था वो आरम्भ था | चुम्बन दृश्यों की आलोचना हुई पर सेंसर बोर्ड है तो
एक सरकारी संस्था जो खाना पूर्ति और पैसा कमाने के लिए बना हुआ है | बिकनी में
हेरोइन का आना, धीमे धीमे ये बढ़ता ही गया | पहले ये प्रयोग का लोगो की प्रतिक्रिया
देखनी थी | फिल्मे चलती गई और फिल्मो में इस प्रकार के दृश्य घुसाने तीव्र गति से
आरम्भ कर दिए गये | जहा कही नहीं भी आवयश्कता थी वह भी जबरदस्ती आइटम सोंग घुसा कर
वो दृश्य दिखाए जाने लगे | किस समाज में आइटम सोंग होते है याने लोग नाचने गाने
वालो को बुलाते है | मिडल क्लास तो कम से कम आइटम सोंग नही देख पाता | और अगर नेता
देखते भी है तो वो आशाये जगा देती है फिल्म नेताओं जैसी ऐयाशी करने को | विवाह
पूर्व संबंधो को इतना सामान्य दिखाए जाने लगा है की अब युवाओ को इसमें कुछ गलत
नहीं दीखता है |
आज से २० साल पहले कौन
ब्रेक अप और पैच अप जैसे शब्द जानता था ? सेक्स और हिंसा इंटरटेनमेंट के नाम पर
परोसा जाता है | अब तीसरा प्रयोग आरम्भ हैं अपराधियों को महिमा मंडित करने का |
किसी समाज में कुछ गलत हुआ भी है तो इसका अर्थ ये नहीं की उसे ऐसे दिखाया जाए के
पुरे देश में फैला दिया जाए | दिल्ली में अगर कुछ लडकियो को स्मोक, ड्रिंक और
विवाह पूर्व सेक्स पसंद है तो उसे फिल्मो में दिखा कर की पूरा का पूरा भारत ऐसा ही
है पुरे देश में ये फैलाना कहा की सामाजिक हित की बात हुई ? फिल्मे पहले भी बनती
थी उस समय भी विरोध होता था नाच गाना लेकिन बुराई पर अच्छाई की जीत का सन्देश तो
देती थी | देश की सेना का गुणगान तो करती थी फिल्मे | भगवानो और मान्यताओं पर लोगो
की आस्था तो दिखाती थी फिल्मे | अब सब पलट दिया गया है | और कल्पना करे अगले २०
वर्षो का जब आपके बच्चे बड़े होंगे तब ये फिल्म उद्योग कहा का कहा पहुच जाएगा |
अमेरिका जैसे देशो में भी
अमेरिकन पाई नाम की फिल्म बनी हो पर कवो मिटमेंट अर्थात प्रतिबद्धता नाम की चीज़ जो
बढ़ावा देती है | फिल्मे यदि समाज का आइयाना है तो क्या सलमान खान, शाहरुख खान या
सैफ अली खान इत्यादी अभिनेता किसी रिक्शेवाले का जीवन दिखाएँगे परदे पर | समाज तो
वो भी है | पर भाई उन्हें देखने कौन आयेगा | गरीबी देखने के लिए कौन २०० रूपए की
टिकट लेगा उसके लिए यही कहा जाएगा | आप जो दिखाएँगे लोग वो देखेंगे | एक समय था जब
बलराज साहनी जैसे अभिनेता ऐसे पात्रो का अभिनय करते थे जो समाज की गरीबी दिखाते थे
वो आइयना कहा जा सकता था | समाज से बहुत कम और फिल्मो से बहुत अधिक समाज में वापस
आरहा है | जो आरहा है वो बहुत अच्छा नहीं आरहा है |
इसका विकल्प ये है के इन
दातो को यदि अंदर नहीं कर सकते तो तोड़ दे | अश्लीलता एवं अपराध को बढ़ावा देने वाली
फिल्मो को प्रतिबंधित किआ जाए | सेंसर बोर्ड अपनी कैची पैनी करे और कला के नाम पर
नग्नता परसोना बंद किआ जाए | फिल्म उद्योग में जिनका पैसा लग रहा उनके कुछ और ही
ध्येय है | लम्बी कौड़ी लगा रहे है वे | सनी लियोन को बोलीवुड में ला कर ये सन्देश
दिया गया है की आप पोर्न इंडस्ट्री के माध्याम से भी हिंदी फिल्म उद्योग में आ
सकते है | पोर्न इंडस्ट्री को जानने वाले लोग तो बढे ही आगे चल कर पोर्न इंडस्ट्री
भारत में बढ़ेगी सो अलग | बहुत बड़ा उद्योग है पोर्न उद्योग और भारत हर उद्योग के
लिए बहुत बड़ा बाज़ार | लोगो की जेब से पैसा निकालना हर उद्योग लगाने वाले का ध्येय
बस यही होता है | उनको इस से मतलब नहीं है की समाज में लोग कितना लम्बा जियेंगे या
अपराध बढ़ेंगे | अनैतिक सम्बन्ध बढ़ेंगे, हत्याए बढेंगी उन्हें सिर्फ जल्दी और अधिक
धन कमाने से अर्थ है |
लोगो के पास इसका विकल्प है
फिल्मो में पैसा सोच समझ कर लगाए | यदि फिल्म अच्छा सन्देश नहीं देती और आपको
फिल्म देखनी ही है तो कुछ समय प्रतीक्षा कर ले टी वी पर अजाएगी या यू ट्यूब पर |
ऐसी फिल्मो को पैसा देकर आगे मत बढ़ाइए जो हमारी और हमारी आने वाली पीढियों के लिए
समस्या पैदा कर दे |
Labels: फिल्म समीक्षा
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home