Monday, 6 February 2017

क्यो खाई जाती है बंगाल में मछलिया ?

ब्राह्मण भूमि कही जाने वाले बंगाल में मछलिया खाना सामान्य बात है | मांसाहार में मछली कही अधिक अहितकारी है | लोगो की त्वचा में सफ़ेद दाग होना मछली खाने वाले लोगो में अधिक होता है | ऐसे विद्वानों के देश में जहा चट्टोपाध्याय (चटर्जी), मुखोपाध्याय (मुखर्जी), बंदोपाध्याय(बैनर्जी), दास, राय, सेन इत्यादियो से लेकर सभी में ये सामान्य बात है | कुछ परिवारों की बात छोड़ दे अपवाद हर स्थान पर होते है | पर बंगाल सदैव से ऐसा नहीं था | मुगल, अंग्रेज और तत्पश्चात कम्यूनिस्टो के शासन में रहा बंगाल के इतिहासिक एवं सामाजिक ढाचे के साथ व्यस्थित तौर पर छेड़छाड़ की गई | क्रान्तिकारियो की भूमि की आगामी पीढ़ी को नपुसंक बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी गई |
जतिन बग्गा या रास बिहारी के बारे में कितने लोग जानते है ? नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जी के नाम को दबाने का तो बहुत प्रयास किआ गया पर इसलिए नहीं दबा पाए क्योंकी नेता जी पुरे देश के नेता बन कर उभरे थे | उनके कहने पर देश के लिए मरने को हिन्दू मुस्लिम सभी आगे आगए थे |
नेपाल में यदि मांसाहार अभी भी प्रचलित है तो समझ आता है क्यों की वहा समाज सुधार का कोई आन्दोलन उतना नहीं चला जितना उत्तर भारत में चला | पर बंगाल में जहा विलियम जोन्स जैसे लोगो को संस्कृत की शिक्षा लेने के लिए पसीने छुट गए | वहा मछली खाने का प्रचलन भला कैसे हो सकता है ? इसका उत्तर समझ आता है जब हम ईस्ट इंडिया कंपनी के बंगाल अधिग्रहण बाद की परिस्तिथियों का चिंतन और अध्यन करते है | बक्सर के युद्ध के पश्चात सं १७६८ से १७७३ तक अंग्रेजो ने इतनी भुखमरी और अकाल की स्तिथि पैदा कर दी थी की अकाल की त्रासदी से अकेले ही १ करोड़ लोग मारे गए थे | मुर्शिदाबाद और बीरभूम प्रमुख क्षेत्र थे जो अकाल प्रभावित रहे थे |
१ करोड़ आपको बड़ी संख्या लग रही है पर ये भयंकर गरीबी समृद्ध बंगाल में अंग्रेजो ने अपनी नीतियों से पैदा करी थी | इसके विपरीत बंगालियों ने अथक श्रम कर के कई दशको में सामान्य जीवन तो प्राप्त किआ | अंग्रेज तो देश में जन संहार कर रहे थे कारण ये भी था की इतनी बड़ी जनसँख्या उनसे नियंत्रित नहीं होनी थी | बंगाल हर प्रकार से समृद्ध प्रदेश रहा है ठीक वैसे ही जैसे की गुजरात | समुद्री तट होने के कारण बंगाल का व्यापार पुरे विश्व में फैला था | प्राकृतिक तौर पर भी बंगाल बहुत समृद्ध था गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदिया बंगाल में थी | आज का बंगलादेश भी उस समय बंगाल का भाग था | ऐसे में अनाज का उत्पादन न होने का प्रश्न ही नहीं उठता | अकाल के कारण जबरदस्ती पैदा करी गई गरीबी से लोग मछली खाने को मजबूर हुए बंगाल में | लम्बे समय से भुखमरी से जुझ रहा समाज भला क्या न करेगा ? धीमे-धीमे खान पान परम्पराओं में आगया और अब हर कोई बंगाल में मछली खाता हैं | विवाह पश्चात की रस्मो में मछली जुड़ गई है |
लेकिन अब वहा के विद्वानों को ये चिन्तन करना चाहिए की अब तो बंगाल में भुखमरी नहीं है | यदि सही हाथो में बंगाल में शासन रहता तो बंगाल व्यापारिक तौर पर गुजरात से भी अधिक राज्य बन गया होता |
जो समाज सुधार की ओर नही जाता वो पतन की ओर जाता है | अंग्रेज और यूरोपीय जाती निरंतर स्वयं में सुधार करती गयी और परिणाम ये हुआ की उनका साम्राज्य पूरी दुनिया में विस्तारित हुआ | यदि हमें भी आर्थिक एवं सामाजिक समृधि को पाना है तो गलत परम्पराओं के विरोध में हल्ला बोलना होगा |

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