Wednesday, 22 February 2017

आरक्षण की समस्या और उसका सरलतम समाधान

आरक्षण से जितनी हानि सामान्य वर्ग की है उस से अधिक हानि इसका लाभ पाने वाले वर्ग की भी है | आरक्षण के बूते ही सरकार अपनी नाकामयाबी छुपाती है आर्थिक उदारीकरण की लूट को दबाने के लिए ही बैकवर्ड कार्ड खेला गया | संविधानिक तौर पर अनुसूचित जाती और जनजातियों को 22 प्रतिशत का आरक्षण प्राप्त है | वर्ष १९९२ में बैकवर्ड के नाम पर २७ प्रतिशत आरक्षण जोड़ा गया १ प्रतिशत विकलांग कोटा जोड़ा गया | आरक्षण सामाजिक वैमनस्य का जो बीज बोता जा रहा है वो आने वाले वर्षो में बड़ा जातीय वैमनस्य के वृक्ष के रूप में खड़ा मिलेगा |
आरक्षण की समीक्षा
प्रधानमन्त्री ने तो मना कर दिया की आरक्षण की समीक्षा नहीं होगी | अर्थात प्रधानमंत्री को सिर्फ वोटो से मतलब है उन्हें सामाजिक न्याय से कोई लेना देना नहीं | जब समीक्षा ही नहीं करोगे तो पता कैसे चलेगा की लाभ हो रहा है या हानि | उत्तर प्रदेश में देखे तो एस सी आरक्षण का लाभ सिर्फ एक ख़ास वर्ग ले जाता है वही बैकवर्ड में दूसरा ख़ास वर्ग दोनों की बारी बारी सरकारे रहती है आप समझ गए होंगे किसकी बात हो रही | तो क्या आरक्षण के अन्दर आरक्षण नही होना चाहिए | उन सभी जातियों को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण में आरक्षण दिया जाना चाहिए | आरम्भ में इसे दस साल के लिए बनाया गया था बाद में अनिश्चित काल के लिए ताल दिया गया | कोई समय सीमा होगी को लक्ष्य तय होगा आरक्षण का की इसे सरकार कब तक समाप्त करने की मंशा रखती है | पर सरकार क्यों करेगी, बीजेपी का मुख्य वोट बैंक सामान्य वर्ग था जिसकी अधिक आबादी है नहीं और अब बीजेपी लक्षित हो रही है पिछड़ा वर्ग एवं दलित वर्ग की ओर इसीलिए प्रधानमन्त्री को बार-बार गरीबी याद आती है |
समस्या
समस्या ये है की कुंठा का बीज बोता जा रहा है आरक्षण | अधिक नम्बर लाने वाला व्यक्ति चयन सूची से दूर रहता है और कम अंक लाने वाला आरक्षण का लाभ उठाता है | इसके अतिरिक्त इतने वर्षो में जो वर्ग आरक्षित वर्ग का होते हुए भी बेहेतर प्रदर्शन करता है वो सामान्य वर्ग से ही सीट लेता है और ये उसका अधिकार भी है | आरक्षित वर्ग का व्यक्ति सामान्य से अधिक नम्बर लाये तो सामान्य सीट को ही घेरता है जो की न्याय संगत भी है पर एक ही समय में एक व्यक्ति पिछड़ा और सामान्य कैसे हो सकता है ये न्याय की दृष्टि से परे है | मंडल कमिशन के समय तो जाने कितनो ने आत्म दाह करी थी पर सत्ता संवेदना शुन्य थी आज भी है | सरकार केवल तब सक्रीय होती है जब उसे लगता है उसकी सत्ता संकट में है | इसके साथ ही क्रीमे लेयेर सरकार ने 8 लाख रूपए तय कर रखी है यानी की यदि आप वर्ष में 8 लाख तक कमाते है तो भी आप आरक्षित वर्ग में ही रहेंगे | 
यानी आरक्षण का कम्पट बाटने वाली सरकार को आरक्षण के आर्थिक असमानता से कोई लेना देना नहीं है |
पीढ़ी दर पीढ़ी वर्ग विशेष आरक्षण का लाभ उठाये और दूसरे वर्ग नए प्रकार से दबाये और कुचले जाए यानी दलित तैयार करने का सरकारी तरीका है आरक्षण | आप आगे बढाए समाज को इसके लिए सामान्य को पिछड़ा वर्ग क्यों बना रहे है ?
समाधान
यदि श्रेष्ठ लोगो की सरकार बने तो बीच का समाधान निकाला जा सकता है | ताकि ये जो विष का बीज बो रखा है उसके स्थान पर सामाजिक एकता का बीज स्थापित हो | हमें समझना होगा की आरक्षण का ध्येय क्या था और उसी पर हमें काम करना चाहिए | आरक्षण का ध्येय दबे कुचले समाज के जीवन स्तर को ऊपर उठाना था पिछड़े समाज को सामान्य वर्ग में लाना था यही तो ध्येय था | इस ध्येय को तो कई तरीके से पूरा किआ जा सकता है |
१. सर्वप्रथम तो सरकार एक लक्ष्य लेकर आरक्षण की समय सीमा तय करे जिसे आगे नहीं बढाया जा सकेगा | दस साल रख लीजये,  2027 तक का | इन दस सालो में सरकार को ऐसे काम करने होंगे की सभी आरक्षित वर्गों का जीवन स्तर बढे ऐसा हुआ तो देश आर्थिक रूप से बहुत समृद्ध हो जाएगा |
२. क्रीमी लेयेर को उतना कम करे जितना की किसी औसत सामान्य परिवार को मिलता है यदि माह में 60 हजार कमाने वाला भी दलित है तो देश की 90 प्रतिशत से अधिक संख्या दलित है अतः आरक्षित केवल उसे माने जो वाकई पिछड़ा है खाने को नही है | खैर ऐसा सरकार नहीं करेगी तो व्यहवारिक स्तर पर तीन लोगो के परिवार पर यदि कोई १० हजार से कम कमा रहा है तो उसे रखे इस श्रेणी में | इस से सही लोगो को अधिक अवसर मिलेंगे | ये भी न कर सके तो सरकार क्रीमे लेयेर इनकम टैक्स देयमानता के साथ जोड़ दे |
३. आरक्षण में जनसँख्या के अनुपात में आरक्षण दे ताकि सबको अवसर मिले |
४. जहा बहुत गरीबी है उन जनपद स्तरों पर दलित/पिछड़ा उत्थान योजना चलाए इसके अंतर्गत लोगो को सीधे धन या नौकरी दे और बदले में वे अपना आरक्षण छोड़ दे | जब सक्षम लोग गैस सब्सिडी छोड़ सकते है तो सक्षम होते ही आरक्षण भी छोड़ना न्याय संगत है |
इसको थोडा विस्तार से समझाए तो जिनके पास भूमि नहीं है उन्हें भूमि दे सरकार | किसी से छीन कर देने की आवयश्कता नहीं है बहुत सी भूमि अनुपजाऊ है | चम्बल को क्यों नहीं उपजाऊ बनाती है सरकार और हर ४लोगो के परिवार को १ एकड़ भूमि देती है तो भी वे आराम से अपना जीवन यापन कर सकते हैं |
५. व्यापार करने के लिए सीधे-सीधे धन दे सरकार ये रकम किश्तों में रखे और अनुदानित रकम दे लगभग दस लाख तक की | इस से उन्हें आगे बढ़ने का सीधा अवसर मिलेगा |
६. कुछ विशेष क्षेत्र तैयार कर के सिर्फ उन्ही के वर्ग को नौकरी दे |
७. जिनको एक बार सरकारी नौकरी मिल चुकी है उनका आरक्षण तो समाप्त होना ही चाहिए |
जितनी बड़ी समस्या आरक्षण को सरकार ने बना रखा है उतनी बड़ी समस्या नहीं है | पर इसे समाप्त करने के लिए उन्हें वास्तव में समाज का भला करना पड़ेगा | समाज अधिक शिक्षित अधिक जागरूक हुआ तो ये लूट खसोट समाप्त हो जाएगी | हर कार्य की जवाबदेही बनेगी | आरक्षण से पूरी आबादी का जीवन स्तर कभी आगे नहीं बढेगा क्यों की इतनी नौकरिया है ही नहीं न ही सृजित करी जा सकती है जितनी की जन संख्या है | आरक्षण के अंगूर दिखा कर समाज के एक बड़े हिस्से की तरक्की को रोके हुए है क्यों की लोगो ने आरक्षण को ही समस्या का समाधान मान लिया है |

Labels:

2 Comments:

At 9 March 2017 at 09:00 , Blogger Unknown said...

Bakwas hai, sabse badi bat jispe gujarti hai whi janta hai .

 
At 10 March 2017 at 05:36 , Blogger Unknown said...

Vahi to hum bhi bol rahy jis py gujarti hy vahi janta hy...
Genral valo s pucho 1 no s un ko job nnhi milte

 

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home