लिंगानुपात सुधारने का सरलतम उपाय
भारत में बेटी बचाओ का नारा बड़ी तेजी से चल रहा है | 2011 के आकडे के अनुसार हर १००० पुरुषो पर ९४० महिलाए ही है | अनेको कारण है इस लिंगानुपात बिगड़ने के पर यदि सरकार थोड़ी भी राज व्यवस्था के नियंत्रण के सूत्र समझती तो इस समस्या को बिना जनता के पता लगे सुलझा लेती | प्राचीन ऋषि मुनियों ने ऐसे ही नहीं हजारो वर्षो तक उत्तम एवं संतुलित व्यवस्था बनाए रखी | लिंगानुपात बिगड़ने का सबसे बड़ा कारण ये की लोग लडकियो को दायित्व मानते है जिसका निर्वहन करना होता है | जब की लडकिया समाज की आधार शीला है | प्राचीन काल में राजा पुत्र एवं पुत्री दोनों ही पैदा करते थे | राज सभा इन विषयों पर गहन चिन्तन कर के ही राजा को निर्देश देती थी | प्रजा भी उसी अनुसार चलती थी | पिछले ३० वर्षो में दाय भाग की परम्परा अधिक बिगड़ गई है | हम अवश्य इसमें व्यापक सुधार आरहा है |
बस ये विचारणीय है की इस प्रकार का सुधार संतुलन न बिगाड़े | जैसे भारत में तलाक दर बढती जा रही है | अदालतों में लोग तारीख लेने के लिए खड़े है क्यों की लडकियो ने भारी मुआवजे की मांग कर रखी है | फिर शिक्षा में सुधार होने से समस्या का जड से सुधार नहीं हो रहा | हरियाणा जैसे राज्यों में जहा लिंगानुपात ८६१ हैं राष्ट्रीय औसत से कही नीचे यहाँ कारण सिर्फ उतने नहीं जितने दीखते है | इसके साथ-२ आप ये भी देखेंगे के यादव समाज में भी इसकी समस्या है जाटो और गुजरो में भी ये औसत ठीक नहीं | ऐसा नही की ये समाज के लोग लडकिया चाहते नहीं | इसका रहस्य ये है की ये लड़ाकू कौमे है इनका भोजन बहुत अधिक लम्बे समय से रजो गुणी रहा है इस कारण से शरीर में टेस्टेस्टेरोन की मात्रा कही अधिक है |
ये बात मुझे अपने एक चिन्तन से समझ आई मेरे गाँव में जहा मैंने बच्चो एक लिए विद्यालय खुलवाया आम के पेड़ अधिक है | इसके साथ-२ लडकिया अधिक है इसके साथ मैंने उन पुरुषो की चाल में भी प्रभाव देखा जो बचपन से आम खा रहे थे | आम की ख़ास प्रजाति जिसे कच्ची अमिया कहा जाता है | मुझे समझ अगया की यहाँ लिंगानुपात संतुलन का कारण आम का पेड़ है और ये बात सम्भवतः हमारे पूर्वज जानते थे | तो सरकार को सिर्फ ये करना है की वन विभाग के जगहों पर बबुल की जगह आम के पेड़ लगवा दे वो भी कच्चे आमो की उन ग्रामो में जहा लिंगानुपात बिगड़ा हुआ है | मैंने अपने इस विचार की पुष्टि करी[1] की क्यों की मैं ये जानता था की कच्ची अमिया खाने से शरीर में टेस्टेस्टेरोन की मात्रा कम हो जाती है | इसी बात को हमारे पूर्वजो ने कहा है की खाई खटाई तो मर्द गया | टेस्टेस्टेरोन की कम मात्रा से लडकियो के जन्म की संभावना बढ़ जाती है और अधिक मात्र से लडको की | इसी कारण राजाओ के अधिकतर लड़के ही होते थे साथ ही लिंग निर्धारण का रहस्य विद्वानों को पता था | जब तक शासन व्यवस्था आयुर्वेद से सामाजिक समस्याओं के समाधान नहीं ढूंढेगी समाधान नही होगा | यही होगा वैदिक व्यवस्था की पुनर्स्थापना का आरम्भ |
Labels: समाज सुधार
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