Wednesday, 22 February 2017

यात्रा सम्बन्धी कुछ महत्वपूर्ण सुझाव

ये लेख यात्रा करने से पूर्व योजना को सुव्यवस्थित बनाने के लिए है |
आप लोगो को यदि स्मरण हो की बचपन में देशाटन के लाभ बताये जाने के लिए हमें निबंध लेखन में विषय दिया जाता था | तब कोई हमें ये नहीं सिखाता था के यात्रा करते समय किस प्रकार की तैयारी करनी चाहिए | यदि ये हमें बताया जाता तो बड़े होकर हमें कितना सरल पड़ता यात्रा करना |

सहयात्री : बहुत ही विवशता हो तो अकेले यात्रा करे अन्यथा सदैव सहयात्रियो के साथ ही यात्रा करे | और अपने सहयात्री अपने मित्र या पारिवारिक सदस्य चुने |

हल्के चलिए : अंग्रेजी में कहते है ट्रैवेल लाईट | हम भारतीय बहुत सामान लेकर चलते है | ये यात्रा के मूलभूत सिद्धांतो के विपरीत है |

भूगोल : जहा जा रहे है वहा के पुरे भूगोल के बारे में पता कर ले | वह के तापमान के साथ साथ आद्रता और मौसम ऋतू इत्यादि | वहा वनस्पति का आच्छादन एवं मच्छरों के प्रकार के बारे में भी पता कर ले |

इतिहास : स्थान का इतिहास भी अवश्य पूर्व अध्यन कर के ही जाए | इतिहास से ही वहा के लोगो के सामाजिक जीवन का अनुमान लगेगा आपको |

भाषा : उस स्थान की क्षेत्रीय भाषा जान ले संभव हो तो शब्दकोष जो की आपकी भाषा में हो वो भी रख ले  हर जगह अंतरजाल कार्य करे आवश्यक नहीं | गूगल के भरोसे यात्रा मत करियेगा |

भोजन : शाकाहारी ही रहना चाहिए यात्रा के दौरान | स्थानीय भोजन आपके स्वास्थ अनुकूल है की नहीं पहले से ही शोध कर लीजियेगा |

धन : बड़ा आवश्यक है वरना फोन कर पारिवारिक सदस्यों से मित्रो से पैसा मंगाना अच्छा नहीं | खरीदारी में लोग अनावश्यक खर्च कर देते है | विदेश यात्रा में धन का अनुमान रखे और हर खर्च को लिखे भले ही आप कितने ही धनवान क्यों न हो |

यातायात : गंतव्य पर पहुचने का यातायात औरगंतव्य नगर या क्षेत्र के अन्दर घुमने का यातायात |


स्वास्थ सेवाए : बहुत आवश्यक है इसे अपनी चेकलिस्ट में सदैव रखे आसपास स्वास्थ सेवाए है या नहीं |

निकटतम सहयोगी/ एम्बैसी : कोई रिश्तेदार मित्र और कोई नहीं तो आपके देश की एम्बैसी कितनी दूर है |  घुमने से पहले अंतर्जाल पर उस क्षेत्र के लोगो से मित्रता करने का प्रयास करे | यद्दपि पहले से ही सारी योजना न बता दे जो आप पहुचने से पहले ही अपने लुटने का प्रबंध कर ले | लोगो से जान पहचान बनाने में कोई बुराई नहीं है |

कागजात रखिये : अपने कागजात परिचय पात्र पासपोर्ट इत्यादि सदैव अपने पास रखे | और अपना पासपोर्ट किसी अन्य देश के किसी भी व्यक्ति को न दे चाहे कितना ही दबाव क्यों न डाला जाए | सरकारी कर्मचारियो को दिखाया जा सकता है पर यदि वे जब्त भी करे तो उसकी पावती लीजिये |

छोटा समान : छुटपुट सामान अत्याधिक सहायक रहता है | मच्छर भगाने की क्रीम हो या दवाये, फर्स्ट एड का सामान, डायरी संस्मरण हेतु, और सूची क्या ले जाना है क्या करना है | उस सूची में इस क्रम के बिन्दुओ को भी अपनी सुविधानुसार सम्मलित करे |

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आरक्षण की समस्या और उसका सरलतम समाधान

आरक्षण से जितनी हानि सामान्य वर्ग की है उस से अधिक हानि इसका लाभ पाने वाले वर्ग की भी है | आरक्षण के बूते ही सरकार अपनी नाकामयाबी छुपाती है आर्थिक उदारीकरण की लूट को दबाने के लिए ही बैकवर्ड कार्ड खेला गया | संविधानिक तौर पर अनुसूचित जाती और जनजातियों को 22 प्रतिशत का आरक्षण प्राप्त है | वर्ष १९९२ में बैकवर्ड के नाम पर २७ प्रतिशत आरक्षण जोड़ा गया १ प्रतिशत विकलांग कोटा जोड़ा गया | आरक्षण सामाजिक वैमनस्य का जो बीज बोता जा रहा है वो आने वाले वर्षो में बड़ा जातीय वैमनस्य के वृक्ष के रूप में खड़ा मिलेगा |
आरक्षण की समीक्षा
प्रधानमन्त्री ने तो मना कर दिया की आरक्षण की समीक्षा नहीं होगी | अर्थात प्रधानमंत्री को सिर्फ वोटो से मतलब है उन्हें सामाजिक न्याय से कोई लेना देना नहीं | जब समीक्षा ही नहीं करोगे तो पता कैसे चलेगा की लाभ हो रहा है या हानि | उत्तर प्रदेश में देखे तो एस सी आरक्षण का लाभ सिर्फ एक ख़ास वर्ग ले जाता है वही बैकवर्ड में दूसरा ख़ास वर्ग दोनों की बारी बारी सरकारे रहती है आप समझ गए होंगे किसकी बात हो रही | तो क्या आरक्षण के अन्दर आरक्षण नही होना चाहिए | उन सभी जातियों को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण में आरक्षण दिया जाना चाहिए | आरम्भ में इसे दस साल के लिए बनाया गया था बाद में अनिश्चित काल के लिए ताल दिया गया | कोई समय सीमा होगी को लक्ष्य तय होगा आरक्षण का की इसे सरकार कब तक समाप्त करने की मंशा रखती है | पर सरकार क्यों करेगी, बीजेपी का मुख्य वोट बैंक सामान्य वर्ग था जिसकी अधिक आबादी है नहीं और अब बीजेपी लक्षित हो रही है पिछड़ा वर्ग एवं दलित वर्ग की ओर इसीलिए प्रधानमन्त्री को बार-बार गरीबी याद आती है |
समस्या
समस्या ये है की कुंठा का बीज बोता जा रहा है आरक्षण | अधिक नम्बर लाने वाला व्यक्ति चयन सूची से दूर रहता है और कम अंक लाने वाला आरक्षण का लाभ उठाता है | इसके अतिरिक्त इतने वर्षो में जो वर्ग आरक्षित वर्ग का होते हुए भी बेहेतर प्रदर्शन करता है वो सामान्य वर्ग से ही सीट लेता है और ये उसका अधिकार भी है | आरक्षित वर्ग का व्यक्ति सामान्य से अधिक नम्बर लाये तो सामान्य सीट को ही घेरता है जो की न्याय संगत भी है पर एक ही समय में एक व्यक्ति पिछड़ा और सामान्य कैसे हो सकता है ये न्याय की दृष्टि से परे है | मंडल कमिशन के समय तो जाने कितनो ने आत्म दाह करी थी पर सत्ता संवेदना शुन्य थी आज भी है | सरकार केवल तब सक्रीय होती है जब उसे लगता है उसकी सत्ता संकट में है | इसके साथ ही क्रीमे लेयेर सरकार ने 8 लाख रूपए तय कर रखी है यानी की यदि आप वर्ष में 8 लाख तक कमाते है तो भी आप आरक्षित वर्ग में ही रहेंगे | 
यानी आरक्षण का कम्पट बाटने वाली सरकार को आरक्षण के आर्थिक असमानता से कोई लेना देना नहीं है |
पीढ़ी दर पीढ़ी वर्ग विशेष आरक्षण का लाभ उठाये और दूसरे वर्ग नए प्रकार से दबाये और कुचले जाए यानी दलित तैयार करने का सरकारी तरीका है आरक्षण | आप आगे बढाए समाज को इसके लिए सामान्य को पिछड़ा वर्ग क्यों बना रहे है ?
समाधान
यदि श्रेष्ठ लोगो की सरकार बने तो बीच का समाधान निकाला जा सकता है | ताकि ये जो विष का बीज बो रखा है उसके स्थान पर सामाजिक एकता का बीज स्थापित हो | हमें समझना होगा की आरक्षण का ध्येय क्या था और उसी पर हमें काम करना चाहिए | आरक्षण का ध्येय दबे कुचले समाज के जीवन स्तर को ऊपर उठाना था पिछड़े समाज को सामान्य वर्ग में लाना था यही तो ध्येय था | इस ध्येय को तो कई तरीके से पूरा किआ जा सकता है |
१. सर्वप्रथम तो सरकार एक लक्ष्य लेकर आरक्षण की समय सीमा तय करे जिसे आगे नहीं बढाया जा सकेगा | दस साल रख लीजये,  2027 तक का | इन दस सालो में सरकार को ऐसे काम करने होंगे की सभी आरक्षित वर्गों का जीवन स्तर बढे ऐसा हुआ तो देश आर्थिक रूप से बहुत समृद्ध हो जाएगा |
२. क्रीमी लेयेर को उतना कम करे जितना की किसी औसत सामान्य परिवार को मिलता है यदि माह में 60 हजार कमाने वाला भी दलित है तो देश की 90 प्रतिशत से अधिक संख्या दलित है अतः आरक्षित केवल उसे माने जो वाकई पिछड़ा है खाने को नही है | खैर ऐसा सरकार नहीं करेगी तो व्यहवारिक स्तर पर तीन लोगो के परिवार पर यदि कोई १० हजार से कम कमा रहा है तो उसे रखे इस श्रेणी में | इस से सही लोगो को अधिक अवसर मिलेंगे | ये भी न कर सके तो सरकार क्रीमे लेयेर इनकम टैक्स देयमानता के साथ जोड़ दे |
३. आरक्षण में जनसँख्या के अनुपात में आरक्षण दे ताकि सबको अवसर मिले |
४. जहा बहुत गरीबी है उन जनपद स्तरों पर दलित/पिछड़ा उत्थान योजना चलाए इसके अंतर्गत लोगो को सीधे धन या नौकरी दे और बदले में वे अपना आरक्षण छोड़ दे | जब सक्षम लोग गैस सब्सिडी छोड़ सकते है तो सक्षम होते ही आरक्षण भी छोड़ना न्याय संगत है |
इसको थोडा विस्तार से समझाए तो जिनके पास भूमि नहीं है उन्हें भूमि दे सरकार | किसी से छीन कर देने की आवयश्कता नहीं है बहुत सी भूमि अनुपजाऊ है | चम्बल को क्यों नहीं उपजाऊ बनाती है सरकार और हर ४लोगो के परिवार को १ एकड़ भूमि देती है तो भी वे आराम से अपना जीवन यापन कर सकते हैं |
५. व्यापार करने के लिए सीधे-सीधे धन दे सरकार ये रकम किश्तों में रखे और अनुदानित रकम दे लगभग दस लाख तक की | इस से उन्हें आगे बढ़ने का सीधा अवसर मिलेगा |
६. कुछ विशेष क्षेत्र तैयार कर के सिर्फ उन्ही के वर्ग को नौकरी दे |
७. जिनको एक बार सरकारी नौकरी मिल चुकी है उनका आरक्षण तो समाप्त होना ही चाहिए |
जितनी बड़ी समस्या आरक्षण को सरकार ने बना रखा है उतनी बड़ी समस्या नहीं है | पर इसे समाप्त करने के लिए उन्हें वास्तव में समाज का भला करना पड़ेगा | समाज अधिक शिक्षित अधिक जागरूक हुआ तो ये लूट खसोट समाप्त हो जाएगी | हर कार्य की जवाबदेही बनेगी | आरक्षण से पूरी आबादी का जीवन स्तर कभी आगे नहीं बढेगा क्यों की इतनी नौकरिया है ही नहीं न ही सृजित करी जा सकती है जितनी की जन संख्या है | आरक्षण के अंगूर दिखा कर समाज के एक बड़े हिस्से की तरक्की को रोके हुए है क्यों की लोगो ने आरक्षण को ही समस्या का समाधान मान लिया है |

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Tuesday, 21 February 2017

महर्षि दयानंद के बारे मे अन्य सुप्रसिद्ध व्यक्तियो के विचार

कोई कितनी ही आलोचना क्यों न कर ले महर्षि दयानंद के कार्य और चरित्र पर कोई ऊँगली नहीं उठा सकता उनके महान कार्यो की प्रसंशा सभी करते है | अनेको महापुरुष उन्हें अपना आदर्श मानते है |
 १- “स्वराज्य और स्वदेशी का सर्वप्रथम मन्त्र प्रदान करने वाले जाज्वल्यमान नक्षत्र थे दयानंद |” – लोक मान्य तिलक

२- “आधुनिक भारत के आद्द्निर्मता तो दयानंद ही थे | महर्षि दयानन्द सरस्वती उन महापुरूषो मे से थे जिन्होनेँ स्वराज्य की प्रथम घोषणा करते हुए, आधुनिक भारत का निर्माणकिया । हिन्दू समाज का उद्धार करने मेँ आर्यसमाज का बहुत बड़ा हाथ है।- नेता जी सुभाष चन्द्र बोस

३- “सत्य को अपना ध्येय बनाये और महर्षि दयानंद को अपनाआदर्श|”- स्वामी श्रद्धानंद

४- “महर्षि दयानंद इतनी बड़ी हस्ती हैं के मैं उनके पाँवके जूते के फीते बाधने लायक भी नहीं |”- ए .ओ.ह्यूम

५- “स्वामी जी ऐसे विद्वान और श्रेष्ठ व्यक्ति थे, जिनका अन्य मतावलम्बी भी सम्मान करतेथे।”- सर सैयद अहमद खां

६- “आदि शङ्कराचार्य के बाद बुराई पर सबसे निर्भीक प्रहारक थे दयानंद |”- मदाम ब्लेवेट्स्की

७- “ऋषि दयानन्द का प्रादुर्भाव लोगों को कारागार से मुक्त कराने और जाति बन्धन तोड़ने के लिए हुआ था। उनका आदर्श है-आर्यावर्त ! उठ, जाग, आगे बढ़।समय आ गया है, नये युग में प्रवेश कर।”- फ्रेञ्च लेखक रिचर्ड

८- “गान्धी जी राष्ट्र-पिता हैं, पर स्वामी दयानन्द राष्ट्र–पितामह हैं।”- पट्टाभि सीतारमैया

९- “भारत की स्वतन्त्रता की नींव वास्तव में स्वामी दयानन्द ने डाली थी।”- सरदार पटेल

१०- “स्वामी दयानन्द पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने आर्यावर्त (भारत)आर्यावर्तीयों (भारतीयों) के लिए की घोषणा की।”-एनी बेसेन्ट

११- “महर्षि दयानंद स्वाधीनता संग्राम के सर्वप्रथम योद्धा थे |”-वीर सावरकर

१२- “ऋषि दयानंद कि ज्ञानाग्नि विश्व के मुलभुत अक्षर तत्व का अद्भुत उदाहरण हैं |”-डा. वासुदेवशरण अग्रवाल

१३- “ऋषि दयानंद के द्वारा कि गई वेदों कि व्याख्या कि पद्धति बौधिकता, उपयोगिता, राष्ट्रीयता एव हिंदुत्व के परंपरागत आदेशो के अद्भुत योग का परिणाम हैं |” -एच. सी. ई. जैकेरियस

१४- “स्वामी दयानंद के राष्ट्र प्रेम के लिए उनके द्वारा उठाये गए कष्टों, उनकी हिम्मत, ब्रह्मचर्य जीवन और अन्य कई गुणों के कारण मुझको उनके प्रति आदर हैं | उनका जीवन हमारे लिए आदर्श बन जाता हैं | भारतीयों ने उनको विष पिलाया और वे भारत को अमृत पीला गए|”-सरदार पटेल

१५- “दयानंद दिव्य ज्ञान का सच्चा सैनिक था, विश्व को प्रभु कि शरणों में लाने वाला योद्धा और मनुष्य व संस्थाओ का शिल्पी तथा प्रकृति द्वारा आत्माओ के मार्ग से उपस्थितकि जाने वाली बाधाओं का वीर विजेता था|”-योगी अरविन्द

१६- “मुझे स्वाधीनता संग्राम मे सर्वाधिक प्रेरणा महर्षि के ग्रंथो से मिली है |”-दादा भाई नैरो जी

१७- “मैंने राष्ट्र, जाती और समाज की जो सेवा की है उसकाश्री महर्षि दयानंद को जाता है|”-श्याम जी कृष्ण वर्मा

१८- स्वामी दयानन्द मेरे गुरु है मैने संसार मेँ केवल उन्ही को गुरु माना है वे मेरे धर्म के पिता है और आर्यसमाज मेरी धर्म की माता है, इन दोनो की गोदी मे मै पला हूँ, मुझे इस बात का गर्व है कि मेरे गुरु ने मुझे स्वतन्त्रता का पाठ पढ़ाया ।-पंजाब केसरी लाला लाजपत राय

१९- “राजकीय क्षेत्र मे अभूतपूर्व कार्य करने वाले महर्षि दयानंदमहान राष्ट्रनायक और क्रन्तिकारी महापुरुष थे |”- लाल बहादुर शास्त्री

२०- सत्यार्थ प्रकाश का एक-एक पृष्ठ एक-एक हजार का हो जाय तब भी मै अपनी सारी सम्पत्ति बेचकर खरीदुंगा उन्होने सत्यार्थ प्रकाश को चौदह नालो का तमंचा बताया।-पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी

२१- मै उस प्रचण्ड अग्नि को देख रहा हूँ जो संसार की समस्त बुराइयोँ को जलाती हुई आगे बढ़ रही है वह आर्यसमाज रुपी अग्नि जो स्वामी दयानन्द के हृदय से निकली और विश्व मे फैल गयी ।- अमेरिकन पादरी एण्ड्यू जैक्सन

२२- आर्यसमाज दौडता रहेगा तो हिन्दू समाज चलता रहेगा। आर्यसमाज चलता रहेगा, तो हिन्दूसमाज बैठ जायेगा। आर्यसमाजबैठ जायेगा तो हिन्दूसमाज सो जायेगा। और यदि आर्यसमाज सो गया तो हिन्दूसमाजमर जायेगा।- पंडित मदन मोहन मालवीय

२३- सारे स्वतन्त्रता सेनानियोँ का एक मंदिर खडा किया जाय तो उसमेँ महर्षि दयानन्द मंदिर कीचोटी पर सबसे ऊपर होगा।- श्रीमती एनी बेसेन्ट

२४- महर्षि दयानन्द इतने अच्छे और विद्वान आदमी थे कि प्रत्येक धर्म के अनुयायियो के लिए सम्मान के पात्र थे।- सर सैयद अहमद खाँ

२५- अगर आर्यसमाज न होता तो भारत की क्या दशा हुई होती इसकी कल्पना करना भी भयावह है। आर्यसमाज का जिस समय काम शुरु हुआ था कांग्रेस का कहीँ पता ही नही था । स्वराज्य का प्रथम उद्धोष महर्षि दयानन्द ने ही किया था यह आर्यसमाज ही था जिसने भारतीय समाज की पटरी से उतरी गाड़ी को फिर से पटरी पर लाने काकार्य किया। अगर आर्यसमाज न होता तो भारत-भारत न होता।- अटल बिहारी बाजपेयी

२६- मेरा सादर प्रणाम है उस महान गुरु दयानन्द को जिनकेमन ने भारतीय जीवन के सब(राजनैतिक,सामाजिक तथा धार्मिक) अंगो को प्रदीप्त कर दिया। मै आधुनिक भारत के मार्गदर्शक उस दयानन्द को आदर पूर्वक श्रद्धांजलि देता हुँ।-रवीन्द्रनाथ टैगोरस्वामी 


दयानन्द एक विद्वान थे।उनके धर्म नियमोँ की नीव ईश्वर कृप वेदोँ पर थी। उन्हे वेद कण्ठस्थ थे उनके मन और मस्तिक मेँ वेदोँ ने घर किया हुआ किया हुआ था। वर्तमान समय मेँ संस्कृत व्याकरण का एक ही बडा विद्वान साहित्य का पुतला, वेदोँ के महत्व को समझनेवाला अत्यन्त प्रबल नैयायिक और विचारक यदि भारत मेँ हुआ है तो वह महर्षि दयानन्द सरस्वती ही था।- मैक्स मूलर

२७- डी॰ए॰बी॰ यानी दयानन्द एंग्लो वैदिक स्कूल मेँ हम सब भाइयोँ को सत्यार्थ प्रकाश पढने का अवसर मिला। हमारे विचारोँ और मानसिक उन्नति के निर्माण मे सबसे बडा हाथ आर्य समाज का ही है। हम सब इसके लिए आर्यसमाज के ऋणी है।- अमर क्रान्तिकारी भगत सिँह

२८- महर्षि दयानन्द के क्रान्तिकारी विचारोँ से युक्त सत्यार्थ प्रकाश ने मेरेजीवन के इतिहास मेँ एक नया पृष्ठ जोड़ दिया।-अमर क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल.

२९- महर्षि दयानन्द स्वाधीनता संग्राम के सर्वप्रथम योद्ध औरहिन्दू जाति के रक्षक थे। स्वतन्त्रता के संग्राममे आर्य समाजियोँ का बड़ा हाथ रहा है । महर्षि जी का लिखा अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश हिन्दू जाति की रगो मेँ क्रान्तिकारी (उष्ण रक्त) का संचार करने वाला है । सत्यार्थ प्रकाश की विद्यामनता मे कोई विधर्मी अपने मजहब की शेखी नहीँ बघार सकता ।- स्वातन्त्र्य वीर सावरकर

३०- स्वराज्य आन्दोलन के प्रारम्भिक कारण स्वामी दयानन्द की गिनती भारत के निर्माताओ मेँ सर्वोच्च है। वेभारत के कीर्ति स्तम्भ थे जहाँ-जहाँ आर्यसमाज वहाँ-वहाँक्रान्ति (विद्रोह) की आग है।- ग्रास ब्रोण्ड(एक अंग्रेज अधिकारी)

३१- महर्षि दयानन्द महान नायक और क्रान्तिकारी महापुरुष थे। उन्होने स्वराज्य और स्वदेशी की ऐसी लहर चलाई कि जिससे इण्डियन नेशनल कांग्रेस के निर्माण की पृथ्ठभूमि तैयार होगयी।- लाल बहादुर शास्त्री

३२- महर्षि दयानन्द सरस्वती राष्ट्र के पितामह थे। वे राष्ट्रीय प्रवृत्ति और स्वाधीनता के आन्दोलन के प्रथमप्रवर्तक थे ।- अनन्त शयनम् आयंगर

३३- यदि हम महर्षि दयानन्द की नीतियोँ पर चलते तो देश कभी नही बंटता । आज देश मेँ जो भी कार्य चल रहे है। उनका मार्ग स्वामी जी ने वर्षो पूर्व बना दिये थे ।- सरदार वल्लभ भाई पटेल



"वेदों की ओर लौटो!"
ओ३म्

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महर्षि दयानंद अनुयायी एवं आर्य समाज क्रांतिकारी (संक्षिप्त सूची)

आज भले ही आर्य समाज ठंडा पड़ा है पर आज जो भी क्रान्ति के ज्वलंत भाव आपको मिलते है उसमे कही न कही आर्य समाज का बड़ा योगदान है | आर्य समाज के भवनों पर अधिग्रहण को लेकर बहुत से स्थानों पर घुसपैठ हुई है | स्वयं आर्य समाज में लोगो ने उस प्रकार चिन्तन मनन करना समाप्त कर दिया है जिस प्रकार महर्षि देव दयानंद ने करने को कहा था | जिस प्रकार वेद कहते है नेति-नेति, न इति न इति | पर आरम्भ से ही आर्य समाज महान विचारको समाज सुधारको का संघठन रहा है | अंग्रेज आर्य समाज और ऋषि दयानंद को सदैव शत्रु मानते रहे है | हम संक्षेप में वो लघु सूची प्रस्तुत कर रहे है जिस से आप लोगो को अनुमान लग जाएगा की महर्षि दयानंद ने राष्ट्र भक्ति का कितना महान बीज बोया था |
१. लाला मुंशीराम/ स्वामी श्रधानंद : आपने गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना की | अखिल भारत हिन्दू शुद्धि सभा के आप अध्यक्ष थे | आपने ही शुद्धी आन्दोलन चला कर २० लाख के लगभग मुस्लिम भाइयो को अपने पूर्वजो के धर्म में वापस लाया था | अब्दुल राशिद नाम के मतान्ध ने आपकी हत्या कर दी थी |
२. शिवकर बापूजी तलपदे : आपने आधुनिक काल में विश्व के प्रथम विमान का अविष्कार किआ था |
३. भाई परमानंद : आप महान क्रन्तिकारी थे हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रहे हैं | आरे से चिरवा दिए गए भाई ब्राह्मण मातिदास के कुल से है आप |
४. श्याम जी कृष्णवर्मा : आपने लन्दन में इण्डिया हाउस की स्थापना की | जो की क्रान्तिकारियो का दुश्मन के खेमे में बंकर बना वीर सावरकर ने यही रह कर इंग्लैंड और भारत में कई काण्ड करवाए |
५. रास बिहारी बोस : इंडियन नैशनल आर्मी जो आजाद हिन्द फ़ौज कहलाई उसे रास बिहारी जोड़ रहे थे | भारत के स्वतंत्रता इतिहास में सबसे बड़े बहरूपिये जाने जाते थे एक महान क्रांतिकारी और ऋषि दयानंद अनुगामी |
६. स्वामी सोमदेव : आर्य सन्यासी एवं पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के प्रेरणा श्रोत |
७. पंडित राम प्रसाद बिस्मल : उत्कृष्ट साहित्यकार, कवी एवं महान क्रांतिकारी जिन्होंने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी की स्थापना की थी | बिस्मिल के प्रभाव से पूरा समूह ही आर्य समाज के विचारों से प्रभावित था |
८. ठाकुर रोशन सिंह/राजेन्द्र लाहिड़ी : आप दोनों को काकोरी काण्ड में फ़ासी हुई थी आर्य समाज से ही आपको बलिदान होने की प्रेरणा मिली | बिस्मिल के सहयोगी एवं महान क्रांतिकारी |
 ९. मुंशी प्रेमचंद्र : आपने आर्य समाज के छठे नियम का पालन किआ और सामाजिक उन्नति के लिए जीवन पर्यंत लिखते रहे | आर्य समाज के लिए भी आपने कार्य किआ |
 १०. अजीत सिंह (भगत सिंह के दादा एवं उनका परिवार) : आप लोगो ने यदि लेजेंड ऑफ़ भगत सिंह देखि होगी तो आपने गौर किआ होगा की उन्होंने ऋषि दयानंद का चित्र भगत सिंह के परिवार में दिखाया इसके साथ भगत सिंह कह रहे है के वालिद साहब ने मुझे जनेऊ के समय देश को समर्पित कर दिया था | भगत सिंह उस समय की क्रान्ति की विचारधारा से अवश्य प्रेरित थे परन्तु जेल में गीता पाठ करने वाले भी भगत सिंह ही थे |
११. लाला लाजपत राय : आप हिन्दू महासभा के अध्यक्ष भी रहे | महान नेता, वक्ता, क्रान्तिकारियो के प्रेरणाश्रोत | आपकी अंग्रेजो ने हत्या कर दी |
 १२. पूर्णचन्द्र गुप्त : आप दैनिक जागरण के संस्थापक थे |
१३. श्यामा प्रसाद मुखर्जी : आपने जन संघ की स्थापना की थी | १९४४ के आर्य महासम्मेलन में तो आपने अध्यक्षता भी की थी | १९५३ में आपकी हत्या करा दी गई थी |
 १४. बलराज मधोक : आपने प्रजा परिषदं पार्टी बनाई थी जन संघ में विलय किआ था | आपको नियोजित षड्यंत्र के अंतर्गत अपने ही बनाए संघठन से बाहर कर दिया गया | पिछले वर्ष २०१६ में आपने अंतिम स्वास ली |
 १५. लाल बहादुर शास्त्री : भारत के अद्वतीय प्रधानमंत्री आपकी हत्या करा दि गई |
 १६. राजीव दीक्षित : काले अंग्रेजो के शासन के विरुद्ध आवाज उठाने वाले १९४७ के बाद के क्रांतिकारी, अपने व्याख्यानों में आपने इस बात को स्वीकार किआ, आपकी भी हत्या करा दी गई |

वीर सावरकर, चन्द्र शेखर आजाद , भगवती चरण वोहरा, मानवती आर्य, मदन लाल धींगरा, उद्धम सिंह, करतार सिंह सराबा, अशफाक़उल्ला खां  इत्यादि अनेको अनेक क्रान्तिकारियो व उनके आर्य समाज के संबंधो पर विस्तार से लिखने की आवयश्कता है | महर्षि दयानंद न केवल स्वयं बलिदान हुए अपितु उनके विचारों ने, लेखो ने उनके बाद बलिदान होने वालो का एक संघठन ही तैयार कर दिया | एक आन्दोलन खड़ा हो गया राष्ट्र की वेदी पर प्राणों की आहुति देने का | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम जब आप पढेंगे तो आप को ७०-८० प्रतिशत क्रांतिकारी आर्य समाजी ही मिलेंगे | इसी कारण अंग्रेजो के जाने के बाद सबसे पहले आर्य समाज को समाप्त करने का षडयंत्र रचा गया और बहुत हद तक उसमे राजनितिक ताकते सफल भी रही | यहाँ मैंने सिर्फ आपको एक संक्षेप में उदहारण दिखाया की आर्य समाज और ऋषि दयानंद में कुछ ऐसा है जिसके कारण लोग प्राण देने को ख़ुशी ख़ुशी प्रेरित होते थे | अतः आज ही अपने निकटतम आर्य समाज से जुड़े और क्रान्ति की ज्वाला को ज्वलंत रखे | ओ३म् के ध्वज को उचा रखे |
ओ३म्

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Sunday, 19 February 2017

गर्व से कहिये भारत सपेरो का देश

इसरो की अंतरिक्ष में १०४ उपग्रह प्रक्षेपण की सफलता पर जिन्हें भारत की प्रशंसा करनी पड़ी वे भी ताना देते हुए बोले के भारत अब सपेरो का देश नहीं रहा | ये प्रसंशा से अधिक वो अवसर धुंड कर ताना मारना जैसा था की भारत कभी सपेरो का देश रहा | सत्य तो ये है के हमें कुछ भी सुनाने की आवयश्कता नहीं है | भारत वो देश रहा जिसने प्राचीन काल में भी वैज्ञानिक सर्वोच्चता प्राप्त की और आधुनिक काल में भी | सपेरो पर व्यंग आपने अंग्रेजो के मुख से करते हुए समाचार पत्रों में या किसी फिल्म में सुना या पढ़ा होगा | इस विषय पर भी निश्चिंत रहिये के जिस सपेरो के समुदाय की आज दुर्दशा है वे कितने बड़े कारक रहे है एक समय भारत की सुरक्षा के लिए |
इस विषय पर तो आपने सुना या पढ़ा होगा की सपेरे विष वैज्ञानिक है | पर जब मैंने इनकी जन संख्या देखी तो ये विश्वास कर पाना मुश्किल था की इतने अधिक विष वैज्ञानिकों की आखिर क्यों आवयश्कता पड़ गई | इतनी बड़ी मात्रा में विष की आवयश्कता का क्या प्रयोजन हो सकता है | क्यों की भारत स्वस्थ लोगो का देश रहा है अतः इतनी औषधि की भी आवयश्कता नहीं पड़ने वाली | इसके साथ हमें ये भी विचार करना होगा की बिना राज्य के प्रयोजन के कोई वर्ग, कोई समुदाय और कोई व्यवसाय फलता फूलता नहीं है फिर क्यों इतने सारे लोगो ने सर्प पालन और विष विद्या का ज्ञान लेने का निर्णय लिया | निश्चित तौर पर ये व्यवसाय बहुत अधिक लाभदायक रहा होगा एक समय | काल के कुचक्र में फास कर अन्य समुदायों की भाति सर्प पालको की भी दुर्दशा हो गई विशेष कर अंग्रेजो की नीतियों के कारण |
इस विषय को समझने के लिए हमें थोडा पीछे जाना पड़ेगा | मौर्य वंश की नीव रखवाने वाले आचार्य चाणक्य चन्द्रगुप्त को थोडा थोडा विष देते थे ये बात तो अधिकतर लोग जानते है | विष को बाल्यकाल से ही चन्द्रगुप्त मौर्य को थोडा-थोडा देने का प्रयोजन आचार्य का न केवल चन्द्रगुप्त का बल बढ़ाना था अपितु कभी कोई शत्रु विष देना भी चाहे तो चन्द्रगुप्त मौर्य के शरीर में विष कार्य ही नहीं करेगा | यहाँ प्रतिरोधन क्षमता बढ़ाना और बल बढ़ाना दोनों ही महत्वपूर्ण बाते है | फिर चन्द्रगुप्त मौर्य ही क्यों यदि पूरी सेना को नियमित विष दिया जाए सही मात्रा, और सही संयोजको के साथ तो वो अमृत सामान ही होगा | इसी लिए ये सपेरे विष वैज्ञानिक के साथ भारतीयों की महान आर्य सेना के बल को बढाने का कार्य करते थे | सरकार को चाहिए की वो अखिल भारतीय विष विज्ञान संस्थान (All India Institute of Toxicology) की स्थापना करे | इस संस्थान की शाखाए पुरे देश भर में बनवाये और सभी सपेरो को वहां भर्ती किआ जाए विष वैज्ञानिकों के भिन्न-२ पदों पर | आरक्षण कार्य नहीं करेगा लोगो को उनकी योग्यता अनुसार कार्य दे | यहाँ केवल यही वर्ग परिणाम दे पायेगा और इनके परिणामो को आधुनिक विज्ञान के साथ मिलाकर भारतीय सेना को पुनः पूर्व की भाति शक्तिशाली बनाए | जिस सेना ने यूरोप के खूंखार हूणों को बड़ी सरलता से हर दिया | ये विष पीने वाले भगवान् शंकर का देश है यहाँ यदि इन सपेरो का आदर और सम्मान नहीं होगा तो फिर कही नहीं होगा | अगली बार जब आप कोई पारंपरिक सपेरा देखे तो उसके सहयोग की भावना रखे | और सपेरे भी अपने कुल के मिले ज्ञान को संरक्षित करे सरकार आज नहीं कल जागेगी ही |

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Sunday, 12 February 2017

महर्षि दयानंद के हिन्दू समाज पर उपकार

बड़ी विडंबना है की जिस व्यक्ति ने सन १८७५ में एक हिन्दू संगठन आर्य समाज की स्थापना की और जो आगे चल कर क्रान्तिकारियो और राष्ट्रवाद की फैक्ट्री बना उन्ही स्वामी दयानंद सरस्वती को हिन्दू संगठन होने का दावा करने वाले संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघठन स्मरण करने से बचते है | आने वाली पीढियों को ऋषि दयानंद के कार्यो को बताया तक नहीं जाता | यहाँ संछेप में हम उनके कार्यो को वर्णन करते है |
१. वेद उद्धार : वेद इतने सर्व सुलभ नहीं होते यदि ऋषि दयानंद न होते | फिर उनका भाष्य जितना भी वे अपने जीवित रहते कर पाए इतना बड़ा कार्य हुआ जिसके लिए हिन्दू समाज उनका सदैव आभारी रहेगा | इस बात में कोई भी संशय नहीं कर सकता की ऋषि दयानंद के भाष्य विश्व के अब तक के किए गए वेद भाष्यों में श्रेष्ठतम वेद भाष्य है | सुप्रसिद्ध लेखक श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक का भी इस विषय पर यही मत है |
२. व्याकरण  उद्धार : यदि ऋषि दयानंद दंडी स्वामी विरजानंद के व्याकरण के ज्ञान को सही प्रकार न लेते और वे उसे वे सरलता से हम तक उपलब्ध कराने का प्रबंध न करते तो संभव है आज व्याकरण का सूर्य अस्त हो गया होता | पाणिनि मुनि की व्याकरण को जीवित रखने के लिए महर्षि दयानंद का जितना धन्यवाद् दिया जाए उतना कम है |
३. दलित उद्धार : जो आर्थिक और समाजिक कारणों से समाज से पिछड़ गए थे | उन्हें साथ लाने का प्रयास और महत्वपूर्ण बात ये है की ब्राह्मण कुल में जन्मे ऋषि ने ब्राह्मण समाज से सहयोग और समर्थन प्राप्त किआ | कुछ पोप लोगो का विरोध तो स्वाभाविक था पर उनके इस प्रयास से हिन्दू समाज फिर सशक्त हुआ |
४. नारी उद्धार : नारियो की जो दशा थी हिन्दू समाज में उस काल में उसके लिए ऋषि दयानंद ने मूल आधार से प्रयास किआ | कन्या गुरुकुलो का आरम्भ हुआ नारी को वेद शिक्षा | स्त्रियों को स्त्रियों सामान शिक्षा और पुरुषो को पुरुषो सामान शिक्षा के समर्थक जो से गौ हत्या बंद कराने के लिए सीधे लोहा लेना ये ऋषि दयानंद ही थे | ऋषि दयानंद गौ हत्या बंद करने के लिए एक करोड़ लोगो के लक्ष्य को लेकर हस्ताथे स्वामी जी |
५. गौ रक्षा : गौ शालाओं को खुलवाना इसके साथ अंग्रेक्षरी कार्य करवा रहे थे जब अंग्रेजो ने नियोजित षड्यंत्र के अंतर्गत उनकी हत्या करवा दी |
६. स्वदेशी की आवाज उठाना : तिलक हो या गांधी या श्री राजीव दीक्षित सभी एक मत से मानते है की ये स्वामी दयानंद ही थे जिन्होंने स्वदेशी की बात सर्वप्रथम उठाई | स्वदेशी ही स्वाबलंबन का आधार है |
७. स्वराज्य : ऋषि दयानंद ने खुल कर कहा की स्व राज्य ही सर्वोत्तम है | जहा एक ओर राजा आधीन थे अंग्रेजो के वही राजाओ में फिर से शौर्य भरने का कार्य ऋषि दयानंद कर रहे थे | स्वराज्य की बात करना और सन १८५७ की क्रान्ति जैसी पुनः क्रान्ति की तैयारी कर रहे थे ऋषि दयानंद जब उनकी हत्या हुई |
८. आर्य समाज : श्रेष्ठ लोगो का समाज, उन्होंने जो अच्छा किआ वो स्वयं तक नहीं रखा विरासत में आगे बढ़ाया | आर्य समाज ही अधिकतर सशस्त्र क्रान्तिकारियो की क्रान्ति की पाठशाला रही | अंग्रेजो ने आर्य समाज को अपना खुला शत्रु माना | और इसी लिए उन्होंने आर्य समाज को और ऋषि दयानंद को दबाने के लिए छद्म हिन्दू संघठन एवं हिन्दू सन्यासी बनाने की योजना बनाई |
इसके अतिरिक्त ऋषि दयानंद ने लेखन, भाषण, और अनेको कार्यो से समाज एवं राष्ट्र की सेवा की | अब क्या मुझे कोई स्वयं को देश भक्त कहने वाला व्यक्ति बतायेगा की जो संघ विवेकानंद को आदर्श दिखाता है उन विवेकानंद को जो मैक्स मुलर को ऋषि बताते है, प्राचीन ब्राह्मणों को माँसाहारी, स्वयम मांस खाते थे और मांस का समर्थन करते थे, अंग्रेजो से आर्थिक सहायता लेते रहे किस प्रकार हिन्दू समाज के लिए आदर्श है ?  क्या विवेकानंद ने गौ रक्षा पर कोई प्रयास किआ ? क्या गुरुकुल शिक्षा प्रणाली पर कोई कार्य किआ ? या स्वराज्य की कोई बात करी ? केवल भाषणबाजी ही देश भक्ति के लिए पर्याप्त है क्या ? यदि ऐसा है तो इन सब कार्यो का कोई अर्थ नहीं | आप विदेश में जा कर पंथ निरपेक्षता का भाषण दे आये और आप महान | आप समाज हित का कार्य करे अपने प्राण न्योछावर करे तो आपकी उपेक्षा | ये कैसा राष्ट्रवाद है ? देश भक्ति के सर्वोत्तम उदाहरण में से महर्षि देव दयानंद का उदाहरण एक है | यदि कोई संघठन ऋषि दयानंद की उपेक्षा करता है तो उस संगठन के मूल श्रोत और आर्थिक ढाचे की जड में जाना चाहिए |

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वजन बढाने और घटाने का एक सामान उपाय

आज कल अंतरजाल (इन्टरनेट) पर वजन बढाने घटाने की औषधियों की बहुत भरमार है | औषधिया अपना कार्य करती है पर यदि कोई ऐसा उपाय मिल जाए जिससे हम जड से इलाज कर पाए तो कितना उत्तम होगा | ऐसा उपाय तो है पर वो औषधि सेवन जितना सरल उपाय नहीं हैं | ये अभ्यास का विषय है पर इस उपाय पर चर्चा करने से पूर्व हम उन कारणों को जानते है जिनके कारण व्यक्ति का स्वास्थ उसके भोजन के अनुकूल नहीं रहता | यदि व्यक्ति दुबला है तो संतुलन बिगड़ा है और यदि कोई व्यक्ति मोटा है अर्थात उसमे चर्बी अधिक है तो संतुलन बिगड़ी है | इन दोनों संतुलन को बनाए रखने के लिए ये समझना होगा की गलत कहा हो रहा हैं | आहार निंद्रा ब्रह्मचर्य तीन अच्छे स्वास्थ के आधार होते है | अतः हम प्रथम एवं मूलभूत कारण पर चर्चा करते है |
लोग कुछ भी खा रहे है और किसी भी क्रम में खा रहे है किसी के ऊपर कुछ भी | गरम पर ठंडा, अम्लीय क्षारीय शारीर प्रयोगशाला बना ली है | बीमारिया होती है तो लोग डोक्टर को पैसा देने पर भी खुश है उन्हें लगता है ये सरलतम उपाय है जीवन का आनंद लेने का | जब की सरलतम उपाय तो ये है की आयुर्वेद के नियमो को जीवन में जितना उतार सके उतना अच्छे स्वास्थ की ओर कदम है | तपस्या करने वाले साधुओ का जंगलो में भी अच्छा स्वास्थ रहता था कैसे ? ऐसा नहीं की वे भरपूर खाते थे जब तक की गले तक छक न जाए | ये तो आजकल का चलन है बस खाए रहो | और वे लोग जो जम के खाते है आपको दुबले भी मिलेंगे और मोटे भी | दोनों के अपने कारण हो सकते है | पर एक ही कारण से उनके शरीर में संतुलन आ सकता है |
जो भोजन लोग कर रहे है उसका एक एक अणु टूट कर व्यक्ति के शरीर में लगे | तो शरीर को पर्याप्त मात्रा में खनिज मिल जायेंगे | हां अब भोजन सही हो न के जहर खाया जा रहा हो | जहर वो जो शारीर में अपाच्य हो अपथ्य हो | तो जो लोग सही खाने पर भी सही वजन को प्राप्त नहीं कर पाते उनके लिए ये उपाय है |
आप दुबले हो या मोटे यदि आप भोजन को चबला कर करते है तो आपको आवयश्कता ही नहीं है किसी दावा की वजन बढाने की | पूर्वजो ने एक कौर बत्तीस बार चबलाने को कहा है | यदि आप बहुत अच्छे से भी प्रयास करेंगे तो आपका निवाला १५-१६ बार चबलाने पर अंदर चला जाएगा | ऐसे में आपको अधिक अभ्यास करना पड़ेगा | यदि आपके दांत अपना कार्य ढंग से नही करते तो आपकी आंतो को वो कार्य करना पड़ेगा परिणामतः आंतो में सुजन कब्ज इत्यादि की समस्या होगी | यदि आप एक कौर को पच्चीस बार भी चबलाने का अभ्यास पंहुचा लेते है तो आपको बहुत ही अच्छे परिणाम मिलने लगेंगे | एक तो आपकी लार भरपूर प्रकार से आपके भोजन में मिल जायेंगी जिस से थोड़े ही पाचक रसो में आपका भोजन पच जाएगा | भोजन बहुत ही सरलता से नीचे उतरेगा | लार के मिलने के कारण इसके अतिरिक्त आयुर्वेद के छोटे छोटे नियमो का निरंतर ध्यान दे | परिणाम आपको तीस दिन के अन्दर दिखेंगे | यदि आपको अधिक खाने का अभ्यास भी है तो भी आप अधिक खा ही नहीं पायेंगे क्यों की सलाईव्री ग्लांड इतनी लार नहीं दे पाएगी, आपका मुह दर्द होने लगेगा और आपकी अग्नि थोड़े भोजन में ही शातं हो जाएगी | इस से वो नियम जिसके अनुसार कहा गया है की भूख से आधा भोजन एक चौथाई जल और एक चौथाई वायु के लिए अमाशय में स्थान रखना चाहिए पालन हो सकेगा | अतः आज से ही इसका अभ्यास करना आरम्भ कर दे परिणाम निश्चित मिलेंगे |

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लिंगानुपात सुधारने का सरलतम उपाय

भारत में बेटी बचाओ का नारा बड़ी तेजी से चल रहा है | 2011 के आकडे के अनुसार हर १००० पुरुषो पर ९४० महिलाए ही है | अनेको कारण है इस लिंगानुपात बिगड़ने के पर यदि सरकार थोड़ी भी राज व्यवस्था के नियंत्रण के सूत्र समझती तो इस समस्या को बिना जनता के पता लगे सुलझा लेती | प्राचीन ऋषि मुनियों ने ऐसे ही नहीं हजारो वर्षो तक उत्तम एवं संतुलित व्यवस्था बनाए रखी | लिंगानुपात बिगड़ने का सबसे बड़ा कारण ये की लोग लडकियो को दायित्व मानते है जिसका निर्वहन करना होता है | जब की लडकिया समाज की आधार शीला है | प्राचीन काल में राजा पुत्र एवं पुत्री दोनों ही पैदा करते थे | राज सभा इन विषयों पर गहन चिन्तन कर के ही राजा को निर्देश देती थी | प्रजा भी उसी अनुसार चलती थी | पिछले ३० वर्षो में दाय भाग की परम्परा अधिक बिगड़ गई है | हम अवश्य इसमें व्यापक सुधार आरहा है |
बस ये विचारणीय है की इस प्रकार का सुधार संतुलन न बिगाड़े | जैसे भारत में तलाक दर बढती जा रही है | अदालतों में लोग तारीख लेने के लिए खड़े है क्यों की लडकियो ने भारी मुआवजे की मांग कर रखी है | फिर शिक्षा में सुधार होने से समस्या का जड से सुधार नहीं हो रहा | हरियाणा जैसे राज्यों में जहा लिंगानुपात  ८६१ हैं राष्ट्रीय औसत से कही नीचे यहाँ कारण सिर्फ उतने नहीं जितने दीखते है | इसके साथ-२ आप ये भी देखेंगे के यादव समाज में भी इसकी समस्या है जाटो और गुजरो में भी ये औसत ठीक नहीं | ऐसा नही की ये समाज के लोग लडकिया चाहते नहीं | इसका रहस्य ये है की ये लड़ाकू कौमे है इनका भोजन बहुत अधिक लम्बे समय से रजो गुणी रहा है इस कारण से शरीर में टेस्टेस्टेरोन की मात्रा कही अधिक है |
ये बात मुझे अपने एक चिन्तन से समझ आई मेरे गाँव में जहा मैंने बच्चो एक लिए विद्यालय खुलवाया आम के पेड़ अधिक है | इसके साथ-२ लडकिया अधिक है इसके साथ मैंने उन पुरुषो की चाल में भी प्रभाव देखा जो बचपन से आम खा रहे थे | आम की ख़ास प्रजाति जिसे कच्ची अमिया कहा जाता है | मुझे समझ अगया की यहाँ लिंगानुपात संतुलन का कारण आम का पेड़ है और ये बात सम्भवतः हमारे पूर्वज जानते थे | तो सरकार को सिर्फ ये करना है की वन विभाग के जगहों पर बबुल की जगह आम के पेड़ लगवा दे वो भी कच्चे आमो की उन ग्रामो में जहा लिंगानुपात बिगड़ा हुआ है | मैंने अपने इस विचार की पुष्टि करी[1] की क्यों की मैं ये जानता था की कच्ची अमिया खाने से शरीर में टेस्टेस्टेरोन की मात्रा कम हो जाती है | इसी बात को हमारे पूर्वजो ने कहा है की खाई खटाई तो मर्द गया | टेस्टेस्टेरोन की कम मात्रा से लडकियो के जन्म की संभावना बढ़ जाती है और अधिक मात्र से लडको की | इसी कारण राजाओ के अधिकतर लड़के ही होते थे साथ ही लिंग निर्धारण का रहस्य विद्वानों को पता था | जब तक शासन व्यवस्था आयुर्वेद से सामाजिक समस्याओं के समाधान नहीं ढूंढेगी समाधान नही होगा | यही होगा वैदिक व्यवस्था की पुनर्स्थापना का आरम्भ |

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Saturday, 11 February 2017

कुछ वर्ग विशेष अधिक बच्चे क्यों पैदा करते है ?

ये बात सर्वविदित है की कुछ ख़ास वर्ग कही अधिक बच्चे पैदा करते है उनकी तुलना में जो नगरो में हिन्दू व सामान्य वर्ग कहे जाते है | पर इसके पीछे का कारण जाने बगैर ही लोग दोष देने लगते है की ये तो अधिक बच्चे पैदा करते है इसका कारण ये है वो | यहाँ किसी वर्ग विशेष का नाम लिए बगैर मैं इसके वैज्ञानिक कारणों पर प्रकाश डालूँगा | सामाजिक कारण तो होते है जैसे की सामान्य वर्ग में लोग कहते है की एक ही बच्चा पैदा करो उसे अच्छी शिक्षा दो कई करने से क्या लाभ | जब की कट्टरपंथी कहते है की इस देश पर हमें शासन करना है इसके लिए आबादी चाहिए इसलिए दीन की खिदमत करो और अधिक बच्चे पैदा करो | पर हिन्दुओ के कुछ अन्य वर्ग में तो उनको प्रेरित कोई नहीं करता उनकी वजह से ही आबादी का संतुलन कुछ समय के लिए बना हुआ है अन्यथा अब तक तो हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए होते |
तो चाहे हिन्दुओ का वर्ग हो या कोई अन्य वर्ग सामाजिक प्रेरणा इतने बड़े स्तर पर तब तक कार्य नहीं करेगी जब तक की वो आर्थिक कारणों से न जुडी हो | आर्थिक कारणों से जुडी होने पर भी एक अच्छा जीवन हर कोई चाहता है कोई अपने बच्चो से पंचर नहीं जुड़वाना चाहता है | ये आर्थिक इकाई के तौर पर भी लिए जाते है उन क्षेत्रो में जहा अत्याधिक गरीबी है | परन्तु आर्थिक और सामाजिक प्रेरणाए कार्य कैसे करती है | इसका रहस्य छुपा है आयुर्वेद के सामान्य नियमो में |
नगरो में पढ़े लिखे पुरुषो का विवाह सामान्यतः सताईस वर्ष के बाद होता है महिलाओं की भी आयु चौबीस वर्ष हो जाती है | इसके पश्चात वे विवाह के तुरंत पश्चात बच्चो को नहीं चाहते | ऐसे में एक तो उन्हें प्रजनन का काल और कम मिलता है | फिर आर्थिक कारण कार्य करते है बच्चे को बड़े स्कुल में पढ़ाना उसका व्यय उठाने का सामर्थ्य होना | पर शरीर की क्षमता पूर्ववत नहीं रहती | इसके विपरित कम पढ़े लिखे वर्ग में लडकिया जहा अठारह वर्ष की होती और लडके बीस वर्ष के उनके शरीर की प्रजनन क्षमता और इच्छा दोनों ही प्रबल होती उनसे बड़ी आयु वर्ग के जोड़ो की तुलना में | इसके साथ-२ उनको अधिक समय मिलता अधिक बच्चे पैदा करने के लिए | पुराने लोग जो पढ़े लिखे भी होते थे वे अधिक बच्चे इसीलिए पैदा कर पाते थे क्यों की अठारह बीस वर्ष में उनकी शादी हो जाती थी | सरकार विवाह की आयु सीमा में बदलाव आबादी नियंत्रण के प्रयास में ही करती है पर हमें लोगो को दोष देने से पूर्व सारी परिस्तिथियों का अवलोकन करना चाहिए |

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चुनावी घोषणा पत्र पूरा न करने वाले दलों पर हो कानूनी कार्यवाही

सबसे अधिक आवयश्कता देश में लोकतांत्रिक सुधारों की है | भ्रष्टाचार के मूल में वो निति निर्माताओं की चयन व्यवस्था बैठी है जिस के कारण देश की व्यवस्था की नीहास में ही दीमक लग जाती है | कुछ वर्षो से चुनावी लालच सरकारी व्यय पर दिया जाने लगा हैं | चुनाव जिताओ और ये पाओ और वो पाओ, मुफ्त की योजनाओं के नाम पर | इसमें कुछ किआ भी नही जा सकता दल स्वतंत्र है अपनी योजनाये बताने को और जनता स्वतंत्र है उसे कार्य की योजना चाहिए या मुफ्त की योजनाये देने वाली पार्टी | 
चुनावी घोषणापत्र वस्तुतः एक बड़ा लिखित समुझौता होता है जनता और राजनितिक दल के बीच में | घोषणापत्र का दुरपयोग कर जनता की भावनाओ के साथ विश्वास के साथ सीधे खेला जाता है | इसमें सबसे आगे है भारतीय जनता पार्टी, जिसने श्री राम मंदिर के विषय को चुनावी घोषणापत्र में रखा, गौ रक्षा के विषय को, सामान नागरिक सहिंता, धारा ३७० को हटाने को पर इनमे से किसी के लिए भी कार्य नहीं किआ | कार्य छोडिये प्रयास भी नहीं किआ | उल्टा लाल क्रान्ति और देश में बढ़ गई है पशुओ की कटाई दिनों-दिन बढती जा रही है | ये स्पष्ट धोखाधड़ी का मामला है जनता के साथ | जनता को जवाबदेही बनती है राजनितिक दल की | और ये विधिक तौर पर होना चाहिए |
चुनावी घोषणापत्र पूरा न करने पर या पूरा करने का प्रयास तक न करने पर राजनितिक दलों पर आर्थिक दंड लगाया जा सकता है चुनाव आयोग द्वारा | या सीधे धोखाधड़ी का मामला जनता के साथ दर्ज किआ जा सकता है ठीक वैसे ही जैसे कोई चिट फंड कम्पनियों के साथ किआ जाता था | बस यहाँ पैसे के स्थान पर जनता का समर्थन लूटा गया है उनकी भावनाओ का प्रयोग किआ गया है | ऐसा करने से कोई भी राजनितिक दल जनता के साथ मजाक करना बंद कर देगा | कोई कुछ भी अपने घोषणापत्र में नहीं लिख सकता है | जो लिखेगा उसको पूरा करने के लिए उसे कम से कम प्रयास तो करना ही पड़ेगा | अब ऐसा करेगा कौन क्यों की सत्ता में बैठा दल स्पष्ट जानता है की घोषणापत्र का सबसे अधिक दुरपयोग वही कर रही है और कर चुकी है, ये विचारणीय है |

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Monday, 6 February 2017

फिल्में समाज का आयना है या फिल्मो से समाज बदला जा रहा है ?

यदि आप किसी फिल्म प्रेमी से बोलीवुड की कठोर समीक्षा कर देंगे वे कहेंगे की फिल्मे तो समाज का आयना होती है | यानी फिल्मे वही दिखाती है जो समाज में हो रहा हैं | फिल्मे समाज का आयना तब होती थी जब आर्ट फिल्मो का समय था | अब तो हर फिल्म कोमेर्सियल फिल्म होती है | फिल्म का प्राथमिक ध्येय पैसा कमाना होता है | कम समय में अधिक पैसे वाले अनेक काम है जैसे झूठ जल्दी फैलता है, गन्दी चीज़ अधिक प्रचलित होती है | हिंदी फिल्म उद्योग भी ऐसा ही कर रहा है | यहाँ पैसा कमाने के लिए हर वो गंदे प्रयोग किये गए जिस से जल्दी पैसा बनाना शुरू करे |
    यदि फिल्मे समाज का आइना है ये बात पूरी तरह मान भी ले तो क्या फिल्म उद्योग का अपना सामाजिक कोई कर्तव्य नहीं है ? फिल्म सिर्फ यदि इंटरटेनमेंट के आधार पर चलती है तो कल को पोर्न फिल्म उद्योग में बोलीवुड बदल जाए तो कोई आश्चर्य न हो क्यों की उसमे कोई शिक्षा नहीं होती सिर्फ इंटरटेनमेंट होता है | सेंसर बोर्ड का भी कोई मतलब नही है कुछ भी दिखाओ लोगो को | लोग स्वतंत्र है देखने को, पर हमारे समाज का ढाचा ऐसे नहीं टिका है |
नए प्रयोग
आज से १०-१२ वर्ष पूर्व बिपाशा वसु मल्लिका शेरावत जैसी हेरोइनो ने रास्ता खोला था जिसे अश्लीलता का चरम माना जा रहा था वो आरम्भ था | चुम्बन दृश्यों की आलोचना हुई पर सेंसर बोर्ड है तो एक सरकारी संस्था जो खाना पूर्ति और पैसा कमाने के लिए बना हुआ है | बिकनी में हेरोइन का आना, धीमे धीमे ये बढ़ता ही गया | पहले ये प्रयोग का लोगो की प्रतिक्रिया देखनी थी | फिल्मे चलती गई और फिल्मो में इस प्रकार के दृश्य घुसाने तीव्र गति से आरम्भ कर दिए गये | जहा कही नहीं भी आवयश्कता थी वह भी जबरदस्ती आइटम सोंग घुसा कर वो दृश्य दिखाए जाने लगे | किस समाज में आइटम सोंग होते है याने लोग नाचने गाने वालो को बुलाते है | मिडल क्लास तो कम से कम आइटम सोंग नही देख पाता | और अगर नेता देखते भी है तो वो आशाये जगा देती है फिल्म नेताओं जैसी ऐयाशी करने को | विवाह पूर्व संबंधो को इतना सामान्य दिखाए जाने लगा है की अब युवाओ को इसमें कुछ गलत नहीं दीखता है |
आज से २० साल पहले कौन ब्रेक अप और पैच अप जैसे शब्द जानता था ? सेक्स और हिंसा इंटरटेनमेंट के नाम पर परोसा जाता है | अब तीसरा प्रयोग आरम्भ हैं अपराधियों को महिमा मंडित करने का | किसी समाज में कुछ गलत हुआ भी है तो इसका अर्थ ये नहीं की उसे ऐसे दिखाया जाए के पुरे देश में फैला दिया जाए | दिल्ली में अगर कुछ लडकियो को स्मोक, ड्रिंक और विवाह पूर्व सेक्स पसंद है तो उसे फिल्मो में दिखा कर की पूरा का पूरा भारत ऐसा ही है पुरे देश में ये फैलाना कहा की सामाजिक हित की बात हुई ? फिल्मे पहले भी बनती थी उस समय भी विरोध होता था नाच गाना लेकिन बुराई पर अच्छाई की जीत का सन्देश तो देती थी | देश की सेना का गुणगान तो करती थी फिल्मे | भगवानो और मान्यताओं पर लोगो की आस्था तो दिखाती थी फिल्मे | अब सब पलट दिया गया है | और कल्पना करे अगले २० वर्षो का जब आपके बच्चे बड़े होंगे तब ये फिल्म उद्योग कहा का कहा पहुच जाएगा |
अमेरिका जैसे देशो में भी अमेरिकन पाई नाम की फिल्म बनी हो पर कवो मिटमेंट अर्थात प्रतिबद्धता नाम की चीज़ जो बढ़ावा देती है | फिल्मे यदि समाज का आइयाना है तो क्या सलमान खान, शाहरुख खान या सैफ अली खान इत्यादी अभिनेता किसी रिक्शेवाले का जीवन दिखाएँगे परदे पर | समाज तो वो भी है | पर भाई उन्हें देखने कौन आयेगा | गरीबी देखने के लिए कौन २०० रूपए की टिकट लेगा उसके लिए यही कहा जाएगा | आप जो दिखाएँगे लोग वो देखेंगे | एक समय था जब बलराज साहनी जैसे अभिनेता ऐसे पात्रो का अभिनय करते थे जो समाज की गरीबी दिखाते थे वो आइयना कहा जा सकता था | समाज से बहुत कम और फिल्मो से बहुत अधिक समाज में वापस आरहा है | जो आरहा है वो बहुत अच्छा नहीं आरहा है |
इसका विकल्प ये है के इन दातो को यदि अंदर नहीं कर सकते तो तोड़ दे | अश्लीलता एवं अपराध को बढ़ावा देने वाली फिल्मो को प्रतिबंधित किआ जाए | सेंसर बोर्ड अपनी कैची पैनी करे और कला के नाम पर नग्नता परसोना बंद किआ जाए | फिल्म उद्योग में जिनका पैसा लग रहा उनके कुछ और ही ध्येय है | लम्बी कौड़ी लगा रहे है वे | सनी लियोन को बोलीवुड में ला कर ये सन्देश दिया गया है की आप पोर्न इंडस्ट्री के माध्याम से भी हिंदी फिल्म उद्योग में आ सकते है | पोर्न इंडस्ट्री को जानने वाले लोग तो बढे ही आगे चल कर पोर्न इंडस्ट्री भारत में बढ़ेगी सो अलग | बहुत बड़ा उद्योग है पोर्न उद्योग और भारत हर उद्योग के लिए बहुत बड़ा बाज़ार | लोगो की जेब से पैसा निकालना हर उद्योग लगाने वाले का ध्येय बस यही होता है | उनको इस से मतलब नहीं है की समाज में लोग कितना लम्बा जियेंगे या अपराध बढ़ेंगे | अनैतिक सम्बन्ध बढ़ेंगे, हत्याए बढेंगी उन्हें सिर्फ जल्दी और अधिक धन कमाने से अर्थ है |

लोगो के पास इसका विकल्प है फिल्मो में पैसा सोच समझ कर लगाए | यदि फिल्म अच्छा सन्देश नहीं देती और आपको फिल्म देखनी ही है तो कुछ समय प्रतीक्षा कर ले टी वी पर अजाएगी या यू ट्यूब पर | ऐसी फिल्मो को पैसा देकर आगे मत बढ़ाइए जो हमारी और हमारी आने वाली पीढियों के लिए समस्या पैदा कर दे |

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एस्कोर्ट सर्विस के नाम पर विधिक तौर पर चल रहा है देहव्यापार

भारत में देह व्यापार गैर कानूनी हैं | गैर कानूनी तो बहुत कुछ है होता भी है | पर इस व्यवसाय ने एक अलग प्रकार से बाजार में खुले आम अपनी पकड़ बना रखी है | उसका नाम है एक्सोर्ट सर्विस | एस्कोर्ट अंग्रेजी का शब्द है जिसका अर्थ होता है किसी की सुरक्षा के लिए जाना | एक्सोर्ट सर्विस यानी सुरक्षा के लिए साथ जाने वालो की सेवा देना | परन्तु देते सेवा ये मनोरंजन के लिए है | एक निश्चित समय के लिए आपके मनोरंजन के लिए ये व्यक्ति आपको भेज देंगे | अब कौन इतना महंगा समय लेगा किसी महिला के लिए जब तक की वो कामेच्छा से न जुड़े |
एस्कोर्ट सर्विस के नाम पर दिल्ली, चंडीगढ़ जैसे शहरों में खुले आप आफिस खोल कर काम चल रहा है | फोने से बुकिंग और वेबसाईट से भी आप सेलेक्शन कर सकते है | भारत सरकार कहने को तो भारत सरकार हैं पर कुछ भी भारतीय व्यवस्था जैसा सरकार में नहीं है | मुगलों और अंग्रेजो के वाहियात विरासत को ये आगे बढ़ा रही है | तरीके बदल गए हैं | लोग व्यग्तिगत स्वार्थो के लिए इस प्रकार की सेवाओं का प्रयोग करते है इसके अतिरिक्त बड़े प्रयोगकर्ता इस प्रकार की सेवाओं के नेता, नौकरशाह कोर्पोरेट जगत के लोग होते है |
बचाव करने वाले सबसे पहले तो कहेंगे की मगध साम्राज्य में भी तो ये सब था | कुछ गलत जो प्राचीन काल में हुआ वो आगे भी हो ऐसा आवश्यक नहीं हैं | जो गलत हुआ उसी कारण से साम्राज्य ढहे | भारत को राक्षसों का देश बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है | पद्मिनियो और ब्रह्मचारियो के देश में देहव्यापार और बलात्कार उसी का परिणाम है | न सही शिक्षा न सही व्यवस्था | हर वो चीज़ जो देश को पतन की ओर ले जाए उस चीज़ को बढ़ावा दिया जाता है | जब सब जानते है की क्या होता है एक्सोर्ट सर्विस के नाम पर तो इसे प्रतिबंधित क्यों नहीं करते | ये बात तो ठीक है के बंद कमरे के पीछे दो लोग स्वेच्छा से क्या करते है ये उनका व्यग्तिगत विषय है अपितु ये समाजिक मर्यादा में रहे | एक व्यक्ति नृत्य करता है दूसरा देखता है या चुटकुले सुना कर किसी का मनोरंजन करता है परन्तु इस बात को जाचने का कोई तरीका नहीं के भेजी गई लड़की और भुगतान करने वाला व्यक्ति शारीरिक संबध बना रहे है या नहीं | और लोगो को पूरा अधिकार है उनकी व्यग्तिगत स्वतंत्रता का |
अतः जैसे गौ रक्षा के नाम पर सरकार के ढोंग होते है उसी प्रकार देहव्यापार को रोकने के लिए भी सरकार का ढोंग है | कानून बनाए जाते है लूप होल दिए जाते है ताकि उन कानूनों से बचा जा सके | कोई चीज़ प्रतिबंधित किआ जाती है उसे करने का दूसरा तरीका निकाल लिया जाता है | एस्कोर्ट सर्विस को बैन नहीं किआ जाएगा क्यों की राजनीत से जूडा हुआ उद्योग है | पर कुछ भी असंभव नहीं है यदि लोग चाहे तो, यदि लोग जागरूक हो तो | लोग जाने तो की किस प्रकार लाखो वर्षो से चले आरहे नैतिकता और सही गलत के नियम को वर्तमान व्यवस्था में बदलने का प्रयास किया जा रहा है |

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क्यो खाई जाती है बंगाल में मछलिया ?

ब्राह्मण भूमि कही जाने वाले बंगाल में मछलिया खाना सामान्य बात है | मांसाहार में मछली कही अधिक अहितकारी है | लोगो की त्वचा में सफ़ेद दाग होना मछली खाने वाले लोगो में अधिक होता है | ऐसे विद्वानों के देश में जहा चट्टोपाध्याय (चटर्जी), मुखोपाध्याय (मुखर्जी), बंदोपाध्याय(बैनर्जी), दास, राय, सेन इत्यादियो से लेकर सभी में ये सामान्य बात है | कुछ परिवारों की बात छोड़ दे अपवाद हर स्थान पर होते है | पर बंगाल सदैव से ऐसा नहीं था | मुगल, अंग्रेज और तत्पश्चात कम्यूनिस्टो के शासन में रहा बंगाल के इतिहासिक एवं सामाजिक ढाचे के साथ व्यस्थित तौर पर छेड़छाड़ की गई | क्रान्तिकारियो की भूमि की आगामी पीढ़ी को नपुसंक बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी गई |
जतिन बग्गा या रास बिहारी के बारे में कितने लोग जानते है ? नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जी के नाम को दबाने का तो बहुत प्रयास किआ गया पर इसलिए नहीं दबा पाए क्योंकी नेता जी पुरे देश के नेता बन कर उभरे थे | उनके कहने पर देश के लिए मरने को हिन्दू मुस्लिम सभी आगे आगए थे |
नेपाल में यदि मांसाहार अभी भी प्रचलित है तो समझ आता है क्यों की वहा समाज सुधार का कोई आन्दोलन उतना नहीं चला जितना उत्तर भारत में चला | पर बंगाल में जहा विलियम जोन्स जैसे लोगो को संस्कृत की शिक्षा लेने के लिए पसीने छुट गए | वहा मछली खाने का प्रचलन भला कैसे हो सकता है ? इसका उत्तर समझ आता है जब हम ईस्ट इंडिया कंपनी के बंगाल अधिग्रहण बाद की परिस्तिथियों का चिंतन और अध्यन करते है | बक्सर के युद्ध के पश्चात सं १७६८ से १७७३ तक अंग्रेजो ने इतनी भुखमरी और अकाल की स्तिथि पैदा कर दी थी की अकाल की त्रासदी से अकेले ही १ करोड़ लोग मारे गए थे | मुर्शिदाबाद और बीरभूम प्रमुख क्षेत्र थे जो अकाल प्रभावित रहे थे |
१ करोड़ आपको बड़ी संख्या लग रही है पर ये भयंकर गरीबी समृद्ध बंगाल में अंग्रेजो ने अपनी नीतियों से पैदा करी थी | इसके विपरीत बंगालियों ने अथक श्रम कर के कई दशको में सामान्य जीवन तो प्राप्त किआ | अंग्रेज तो देश में जन संहार कर रहे थे कारण ये भी था की इतनी बड़ी जनसँख्या उनसे नियंत्रित नहीं होनी थी | बंगाल हर प्रकार से समृद्ध प्रदेश रहा है ठीक वैसे ही जैसे की गुजरात | समुद्री तट होने के कारण बंगाल का व्यापार पुरे विश्व में फैला था | प्राकृतिक तौर पर भी बंगाल बहुत समृद्ध था गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदिया बंगाल में थी | आज का बंगलादेश भी उस समय बंगाल का भाग था | ऐसे में अनाज का उत्पादन न होने का प्रश्न ही नहीं उठता | अकाल के कारण जबरदस्ती पैदा करी गई गरीबी से लोग मछली खाने को मजबूर हुए बंगाल में | लम्बे समय से भुखमरी से जुझ रहा समाज भला क्या न करेगा ? धीमे-धीमे खान पान परम्पराओं में आगया और अब हर कोई बंगाल में मछली खाता हैं | विवाह पश्चात की रस्मो में मछली जुड़ गई है |
लेकिन अब वहा के विद्वानों को ये चिन्तन करना चाहिए की अब तो बंगाल में भुखमरी नहीं है | यदि सही हाथो में बंगाल में शासन रहता तो बंगाल व्यापारिक तौर पर गुजरात से भी अधिक राज्य बन गया होता |
जो समाज सुधार की ओर नही जाता वो पतन की ओर जाता है | अंग्रेज और यूरोपीय जाती निरंतर स्वयं में सुधार करती गयी और परिणाम ये हुआ की उनका साम्राज्य पूरी दुनिया में विस्तारित हुआ | यदि हमें भी आर्थिक एवं सामाजिक समृधि को पाना है तो गलत परम्पराओं के विरोध में हल्ला बोलना होगा |

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Wednesday, 1 February 2017

कैसे बकवास फिल्मे भी कमा लेती है 100 करोड़ से ऊपर ?

बोलीवुड में जिस प्रकार से धन कमाने के लिए प्रयोग किये जा रहे है उस से राष्ट्र विरोधी ताकतों के दो हित सध रहे है एक उनको धन का लाभ हो रहा है दूसरा उनकी विचारधारा फ़ैल रही है | एक फिल्म समाज नही बदलती पर एक ही जैसे दसियों फिल्म समाज में बोये बीज को पल्लवित कर देती है | विवाहोत्तर सम्बन्ध हो या विवाह पूर्व सम्बन्ध बोलीवुड की फिल्मे इसे ऐसे दिखाती है जैसे ये नित्य स्नान हो इसमें कुछ भी गलत नहीं | कोई भी व्यवसाय गलत नहीं बस धन पैदा होना चाहिए मरो तो शेरो की तरह मरो दौलत तो कमा ली | भारतीय सेना कश्मीरियों पर अत्याचार करती है आतंकी सेना के अत्याचार से पैदा है हमारी सेना के अधिकारी गोली मारने में छोटी बच्चियों को भी नही छोड़ते इस प्रकार की निरंतर फिल्मे बनती जा रही है जिनपर कोई अंकुश नहीं है |
अधिकतर फिल्मे बकवास होती है पर फिर भी ये बहुत अधिक व्यापार कर लेती है | इसका कारण जानना आवश्यक है वही दूसरी ओर कुछ बहुत ही अच्छा सन्देश देने वाली फिल्मो को कोई जानता भी नहीं है |
फिल्म निर्माण अब घाटे का तो कैसे भी नहीं रह गया है | 
फिल्मे निम्न प्रकार से कमाती है 
१. फिल्म के संगीत से
२. सीधे दर्शको से
३. विदेशो में प्रदर्शन से
४. टी.वी पर प्रसारण के अधिकार को बेचने से

बकवास फिल्मो की कमाई कैसे होती है 
मल्टीप्लेक्स शब्द आपने सुना है एक ही स्थान पर कई सारे थियेटर | फिल्मो का टिकट शुक्ल भी बढ़ा है और मल्टीप्लेक्स की संख्या भी | डिस्ट्रीब्यूशन की कंपनिया भी नई-२ बनी है और सीधे टिकट खरीदने के लिए ऑनलाइन वेबसाईट भी | इसके साथ-२ फिल्म के प्रोमोशन पर बहुत बड़ी रकम व्यय की जाती है | साक्षात्कार कार्यक्रमों में जाकर कलाकार भी प्रचार करते है | अब जो अच्छी फिल्मे भी है उन्हें ५०० से १००० तक के थियेटर ही मिलते है | जब की बड़े स्टार की फिल्मो को २००० से ३००० और ऊपर थियेटर मिल जाते है | अधिकतर फिल्म को प्रसारित करने का समय ऐसा रखा जाता है जब लोग पैसा खर्च करते हैं | अब यदि कोई फिल्म २५०० थियेटरो में प्रसारित हो रही है तो कुछ भी नहीं करना है फिल्म का प्रसारण उस से जुड़े बड़े फिल्मस्टार के नाम से हो रहा है | एक सप्ताह में फिल्म बड़ा व्यवसाय कर लेती है भले ही सीटे आधी ही भरे | अब हाउसफुल के दौर समाप्त हो गए है न ही कोई फिल्म सालो किसी एक थियेटर में लगी रहती है |
इन्टरनेट पर आपको वीर सावरकर के जीवन पर फिल्म मिल जायेगी | उस फिल्म को थीएटर तक नहीं मिले | सरदार नाम की एक फिल्म जो सरदार पटेल की भूमिका पर बनी, बलिदान मास्टर सूर्यसेन के नेतृत्व में चट्टोग्राम विद्रोह पर बनी फिल्म "खेले हम जी जान से" जिसमे अभिषेक बच्चन ने भूमिका निभाई नहीं चली | 
कैसे बदला जाए परिस्तिथियो को 
अनेको विषय है जिनपर फिल्म बना कर हमारा सही इतिहास दिखाया जा सकता है | यदि शिक्षा व्यवस्था बदलना हमारे हाथ में नहीं तो फिल्मे बना कर लोगो को शिक्षित करना तो है | ये उद्योगपती और अच्छे लेखक मिलकर कर सकते है | दक्षिण भारत की फिल्मे बहुत ही बेहतर बनती है | मुझे ये समझ आता है की उनका मजाक इसी डर के कारण बनाया जाता है क्यों की दक्षिण का उद्योग हिंदी फिल्म उद्योग को बड़े स्तर पर नुक्सान पहुचा सकता है | यदि दक्षिण भारत की फिल्मे डबिंग के साथ एक साथ ही पुरे भारत में रिलीस की जाए  तो बहुत अच्छा व्यापार करेंगी और हम अपनी संस्कृति के अधिक पास होंगे | उसी की रीमेक बनी फिल्मे बहुत कमाती है जैसे होलीडे | पर यही हिंदी में सीधे दर्शको को मिले तो दक्षिण और उत्तर में दुरी कम होगी | बाहुबली जैसी फिल्मे एक अच्छा उदाहरण है | चेन्नई वर्सेज चाइना भी अच्छा उदाहरण है | ऐसे अनेको फिल्मे बनी है | लोगो को बेहेतर विकल्प मिलेंगे तो वे बहेतर विकल्प को ही जायेंगे | इसके साथ-२ हिंदी फिल्म उद्योग को दिल्ली के आस पास लाना चाहिए इस से उत्तर भारत की प्रतिभाओं को अच्छा अवसर मिलेगा व्यापार का लाभ कई राज्यों को होगा और जो हिंदी विरोध बैठा है या फैलाया जा रहा है स्वार्थी राजनितिज्ञो द्वारा उनको भी समझ आयेगा |

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