बोलीवुड की फिल्मो पाकिस्तानी कलाकार क्यों लिए जाते है ?
ये एक स्वाभाविक प्रश्न है की सवा अरब की आबादी वाले देश में 18 करोड़ की आबादी वाले देश से कलाकार ले कर फिल्मे बनाई जाती है | ऐसा भी नहीं की मुंबई में योग्य कलाकारों का अभाव हो | संघर्ष करने वालो की लम्बी कतार है | प्रोड्यूसर भारत के हीरो हेरोइन को लेता है तब तो अपना हर प्रकार से लाभ सिद्ध करता है, तो भला पाकिस्तान से कैसे और क्यों हीरो हेरोइन लायेका बिना अन्य लाभ सिद्ध करे |
पहले व्यापारिक दृष्टिकोण समझे
पाकिस्तानी कलाकरों से पाकिस्तान में चलचित्र अधिक चलेगा | शाहरुख खान को पाकिस्तान में बहुत पसंद किआ जाता है पाकिस्तान में रईस और काबिल जैसी फिल्मो को नो ओब्जेक्शन सर्टिफिकेट दिया जाएगा ये स्वयं नवाज़ शरीफ ने कहा है | माहीर खान भी इसमें और सहायक रही | व्यापार करने में कोई बुराई नहीं, व्यापार होने से सम्बन्ध बेहतर होते हैं | पड़ोसियों में अच्छे सम्बन्ध रहे इस से बेहतर क्या हो सकता है ? अनुमानित २०-२५ करोड़ रूपए का अधिक लाभ होता होगा निर्माता को यदि फिल्म शाहरुख, सलमान, आमिर या सैफ इत्यादि की है पर लाभ हमारे लिए लाभदायक है जब ये रुपया भारत आये | निर्माता को निर्माण के लिए पैसा कहा से आया ये जानना आवश्यक है | ऐसा तो नहीं की पैसा भी पाकिस्तान से लग रहा है और जो लाभ पाकिस्तान में होगा वो वही रहेगा, माध्यम अलग-२ हो सकते है |
हवाला के लिए
पाकिस्तान के एक टी.वी कलाकार को भारत में रातो रात स्थापित कलाकारों के साथ फिल्म मिलती है | उसके बाद मिडिया में वो छाया रहता है | यदि किसी कलाकार का पारिश्रामिक १ करोड़ है और उसे १० करोड़ दिया जा रहा है तो स्वाभविक है की ९ करोड़ हवाला की वो रकम है जो उसे काम दिलाने वाले तक पहुचेगी और हवाला की रकम भारत में किये गए अवैध कार्यो से जुटाई गई होती है | फिर यही रकम जिहाद में प्रयोग की जाए तो वो हानि अलग | कला का आदर होना चाहिए और व्यापारिक सम्बन्ध पड़ोसियों से बेहतर होने चाहिए पर निर्माता के पैसे कहा से लग रहे है इसको जानने का कोई सरकारी तंत्र नहीं है | होगा भी तो पट्टी पढ़ा दी जायेगी |
एक फिल्म आई हैपी भाग जाएगी उसे पाकिस्तान ने सिर्फ इसलिए बैन कर दिया की फिल्म का हीरो कहता है पाकिस्तान तो भारत का नमक खाता आरहा है नमक हम भारत से आयात कराते है | एक बेहद हास्यास्पद फिल्म प्रतिबंधित कर दी जाती है क्यों की कलाकार ने सच बोला | दूसरी ओर हमारे यहाँ ऐसी फिल्मे बनती है जो सीधे जनमानस की धार्मिक मान्यताओ पर आघात करती है |
हमें क्या करना चाहिए ?
भारत से पैसा कमाने वाले कलाकारों में इतनी तो नैतिकता होनी चाहिए की वो भारत में होने वाले आतंकी हमलो की निंदा कर सके | इसमें भारत या पाकिस्तान का विषय नहीं आतंकी हमले तो पाकिस्तान के अन्दर भी होते है तो क्या भारत सरकार उसकी निंदा नहीं करती ? पर निंदा करने पर ये विचार करना की पाकिस्तान के कट्टरपंथी उसका विरोध करेंगे तो भारत में भी लोग है जिन्हें कट्टरपंथी कह सकते है जो विरोध करेंगे आप लोगो का यदि आप जिहादी हमलो का विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाते | लोग अपने समाज का उत्पाद होते है | अधिकतर लोग अच्छे ही होते है और घृणित कार्य को घृणित ही कहते है पर यदि आप नहीं कह रहे तो आप चाहे न चाहे आप समर्थन कर रहे है उन आतंकी हमलो का | और जो लोग ऐसे लोगो का समर्थन कर रहे है वे भी आतंक के ही समर्थक है |
किसी को पसंद करना अलग बात है | लोग हिटलर को, सद्दाम को, गद्दाफी को पसंद करते है वे भी जो उनके सिद्धांतो को नहीं मानते थे पर इस से वे उनको मिले दंड पर सहमत के विरोधी नही हो जाते | अच्छी कला को कौन नहीं पसंद करेगा चाहे वो गायक हो, नायाक हो या नायिका परन्तु हम में इतनी नैतिकता होनी चाहिए की राष्ट्र सर्वोपरि की भावना हम में हो | हम उन्हें लाभान्वित न करे जो हमारे राष्ट्र के हित की बात नहीं करते | वरना राष्ट्र सर्वोपरि की बाते तो राजनितिक दल भी किआ करते है और देश में विदेशियो को अधिग्रहण के लिए हाथ जोड़ जोड़ बुलाते है उनमे और हम में कोई भेद नहीं रह जाएगा हम भी ढोंगी ही कहे जायेंगे | यदि पाकिस्तानी कलाकारों को भारत का फिल्म उद्योग अच्छा लगता है उन्हें यहाँ संभावनाए दिखती है तो वे यही स्थापित हो जाए भारत को अपना देश माने | उन्हें गलत को गलत और सही को सही कहना आना चाहिए | आप यहाँ से पैसा कमा कर अपने देश ले जायेंगे और लोग अगर कहेंगे के भारत में हुए किसी आतंकी हमले की निंदा करे तो आप चुप नहीं रह सकते |
यह निश्चित मान ले की निर्माताओ को लाभ होता है २०-२५ करोड़ का | हाल की फिल्म रईस को ले जिसे दो कंपनियों ने मिलकर निर्मित किआ है | एक शाहरुख खान की स्वयं की कम्पनी है रेड चिलीस दूसरी कम्पनी फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी की एक्सेल एंटरटेनमेंट है | पाकिस्तानी कलाकार को लेने का सीधा अर्थ है पाकिस्तान में व्यापार करना | तो शाहरुख क्या ये बात जानते है की भारत में उनकी फिल्मे सिर्फ थीएटरो की संख्या के कारण चल रही है उनके असली फैन पाकिस्तान में है ? जितना बड़ा हमारा हिंदी फिल्म उद्योग है उस हिसाब से २०-२५ करोड़ की अतिरिक्त रकम को सही फिल्म बना कर भी कमाई जा सकती थी ? पर उस से वो ध्येय नही पूरित होंगे वो सन्देश नहीं जाएगा जो पी.के, मैं हूँ ना, मिशन कश्मीर, हैदर, शौर्य इत्यादि जैसी अनेको फिल्मो से जाता है |
भारत के दर्शक अपना विवेक स्वयं निर्मित करे | किसी व्यक्ति का अनावश्यक विरोध सही नहीं | किसी का विरोध इसलिए भी सही नहीं क्यों की वो किसी दुसरे संप्रदाय का है या मान्यता का है | यदि किसी व्यक्ति के कार्य से भारत की आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था का उत्थान होता है और उसे लाभ मिलता है तो उसका समर्थन करना चाहिए परन्तु यदि केवल मात्र आर्थिक लाभ ही मिलता है और सामाजिक क्षति होती है तो ऐसी फिल्मो का बहिष्कार करना चाहिए | फिल्म क्या सन्देश दे रही है केवल मनोरंजन ही यदि ध्येय है तो मनोरंजन को हमें बहुत सी गलत चीजों में भी हो जाता है ये हम पर निर्भर कर्ता है के हम स्वयं के नागरिक एवं सामाजिक कर्तव्यो का पालन करे या नहीं |
Labels: फिल्म समीक्षा
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