शौर्य, पवित्रता एवं राष्ट्र निष्ठा की प्रतीक महारानी पद्मावति
भारत में इतिहास लोक कथाओं के माध्यम से संरक्षित होता रहा है | यदि ऐसा न होता तो जो राजा आता वो अपने अनुसार इतिहास लिखवाता रहता | यही होता रहा है इसीलिए आधुनिक युग की कहावत है की इतिहास विजेताओं के साथ होता है | इसके साथ साथ इतिहास को संरक्षित करने का एक माध्यम हमारे देश में मंदिर भी रहे है | इस से वो स्थान संरक्षित हो जाते और लोग स्थान भ्रमण के नाम पर उन लोक कथाओं को जान पाते | भगवान श्री राम का जन्मस्थान हो या माता सीता का या सीता माता की रसोई इसका प्रमाण है | बहुत ही बड़े काण्ड को लिपिबद्ध भी किआ जाता रहा है जैसे रामायण या महाभारत |
महारानी पद्मावती के बारे में लिपिबद्ध अवधि में काव्य खंड मालिक मुहम्मद जायसी द्वारा १५४० में पूर्ण हुआ | फ़रिश्ता और इतिहासकार टॉड ने भी लिखा | भारतीय इतिहासकारों के वामपंथी धड़े की तो ये मान्यता बनी हुई है की यदि भारत की वीरता का बखान है तो वो विश्वसनीय नहीं है और यदि आक्रमणकारी की विजय गाथा है तो वो प्रमाणिक है | अलाउद्दीन खिलजी जैसे राक्षसों के बारे में और महारानी पद्मावती जैसी देवी वीरांगनाओ के बारे में लोग बिना स्कूली इतिहास के भी अपने माता पिता से सुनते आये हैं |
बप्पा रावल द्वारा स्थापित गहलोत वंश के राणा रतन सिंह की पंद्रहवी पत्नी महारानी पद्मावती सिंहल द्वीप (आज का श्री लंका) की थी | आपका वरण स्वयंवर में राजा मलखान सिंह को हरा राणा रत्न सिंह ने किआ था | उस समय राज सभा के आधीन राजा होते थे और ये राजसभा जहा ब्राह्मण मंत्री और क्षत्रिय सैन्य अधिकारी प्रजा के हित का सोचते थे | राणा के इतनी पत्निया होना उसी राजनितिक विवशता का परिणाम था | श्री लंका तक से राजनैतिक सम्बन्ध बना कर रखना ये उच्च कोटि की राजनैतिक कुशलता थी | इस से ये सिद्ध होता है की हमारे राजपूतो का शासन चौदहवी शताब्दी तक श्री लंका तक था अन्यथा वैवाहिक सम्बन्ध संभव नहीं थे |
प्रचलित गाथा
अलाउद्दीन स्त्रियों का भूखा तुर्क लुटेरा था | जिस भी राज्य में सुंदर स्त्री के बारे में पता चलता वही आक्रमण की योजना बना देता | महारानी पद्मावती के बारे में भी जब उसे पता चला तो उसने मेवाड पर आक्रमण किआ पर मेवाड़ की किलेबंदी इतनी उच्च कोटी की थी की उन्हें कोई प्रभाव नहीं पड़ा | राजा रतन सिंह से महारानी पद्मावती के दर्शन कर के चला जाऊँगा इस तरह का संधि प्रस्ताव भेज कर उसने महारानी के दर्पण में दर्शन को मना लिया | महारानी का रूप देख कर अलाउद्दीन के होश उड़ गए | बाहर राजा के आते ही उसने राजा को बंधक बना लिया और सन्देश भिजवा दिया की राजा को तब छोड़ेगा जब महरानी उसके साथ चलेगी | महारानी जितनी वीर थी उतनी ही बुद्धिमान भी उन्होंने कहलवा दिया की वे आयेंगी अपनी दासियों के साथ | सौ पालकी और हर पालकी में लगभग ८ सिपाही जो कहार भी थे इस प्रकार ८०० की एक सैन्य टुकड़ी लेकर महारानी ने उस स्थान पर आक्रमण कर दिया जहा उनके राजा बंदी थे | बड़ी वीरता से वे सिपाही राजा को छुड़ा लाये | इस घटना से अलाउद्दीन पागल सा हो गया और उसने पूरी शक्ति से चित्तौड़ पर आक्रमण किआ |
महारानी अपनी सहेलियों दासिओ संग जौहर
अलाउद्दीन के आक्रमण में राणा वीरगति को प्राप्त हुए और महरानी ने अपनी ८०० दासियों संग जौहर को प्राप्त किआ | इतिहास में इस जौहर के प्रकरण से तो कोई भाग ही नहीं सकता |
राजपूत माताए क्यों अग्नि में भस्म कर लेती थी स्वयं को ?
ये एक स्वाभाविक प्रश्न है | हमारे वेदों में तो आत्म हत्या वाले को पुनः मनुष्य जन्म नहीं मिलने का बताया गया है उधर इस प्रकार की वीरगति | इसका प्रथम उत्तर तो वो वचन है जो विवाह में पत्नी और पति दोनों एक दुसरे के प्रति निष्ठावान रहने के लिए अग्नि के सामने लेते है | उसी वचन को न निभा पाने पर अग्नि में भस्म करने को संकल्पित रहते थे | वो वीर अर्जुन की जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा को या महाराजा जयपाल का गांधार प्रदेश की रक्षा न कर पाना हो अपने प्राणों की आहुति देने से कभी आर्य देव देविया नहीं घबराई |
वीरगति के भाव से प्राणों को त्यागना पर आत्म हत्या का पाप नहीं प्राप्त होता | वीरगति के भाव अपकर्षण क्रिया को सम्यक बनाए रखता है |
महारानी पद्मावती के सम्मान में हम क्या कर सकते है ?
कितने लोग अपनी पुत्रियों के नाम हमारी महान राजपूत माताओं के नाम पर रखते है | पद्मिनी या पद्मावती नाम हो या अहिल्याबाई या लक्ष्मीबाई हो ट्विंकल, पिंकी इत्यादि कुछ भी नाम रखे जाते है पर इतिहास के महान लोगो के नाम नहीं रखे जाते | अपने बालिकाओ को ये कथाये बताये क्यों की एक समय था जब लूट कर ले जाते थे आज तो फुसला के ले जाते है | ऐसे में आप का कर्तव्य है की हमारे पूर्वज क्या क्या सामना कर के आये है ये अपनी पीढियों को बताये वरना इतिहास को फिल्मो के माध्यम से बदलने का प्रयास तेज़ी से आरम्भ है ताकि ५० साल बाद कहानी कुछ और हो जाए | किसी भी महान राजा या रानी के नाम को बिना विशेषण के कभी न ले | महाराजा, राणा, या महारानी अवश्य लगाये | किसी को पद्मावती नाम से फिल्म बनाने का शीर्षक नहीं मिलना चाहिए यदि वो इतिहास पर बन रही है | महरानी शब्द जोड़ा जाना चाहिए इसके साथ-२ यदि इतिहास इस प्रकार बदला जा रहा है के तथ्य ही विपरीत किये जा रहे है तो किसी भी प्रकार ऐसी फिल्म को अनुमति नहीं मिलनी चाहिए |
यदि ऐसी फिल्मो को अनुमति मिलती है तो समझ ले के छद्म राष्ट्रवादी ताकते ही छद्म पंथनिरपेक्ष ताकतों को पोषित कर रही है ताकि शुद्ध राष्ट्रवादी सदैव बेवकूफ बना रहे और उसका इस्तेमाल होता रहे |
महारानी पद्मावती के बारे में लिपिबद्ध अवधि में काव्य खंड मालिक मुहम्मद जायसी द्वारा १५४० में पूर्ण हुआ | फ़रिश्ता और इतिहासकार टॉड ने भी लिखा | भारतीय इतिहासकारों के वामपंथी धड़े की तो ये मान्यता बनी हुई है की यदि भारत की वीरता का बखान है तो वो विश्वसनीय नहीं है और यदि आक्रमणकारी की विजय गाथा है तो वो प्रमाणिक है | अलाउद्दीन खिलजी जैसे राक्षसों के बारे में और महारानी पद्मावती जैसी देवी वीरांगनाओ के बारे में लोग बिना स्कूली इतिहास के भी अपने माता पिता से सुनते आये हैं |
बप्पा रावल द्वारा स्थापित गहलोत वंश के राणा रतन सिंह की पंद्रहवी पत्नी महारानी पद्मावती सिंहल द्वीप (आज का श्री लंका) की थी | आपका वरण स्वयंवर में राजा मलखान सिंह को हरा राणा रत्न सिंह ने किआ था | उस समय राज सभा के आधीन राजा होते थे और ये राजसभा जहा ब्राह्मण मंत्री और क्षत्रिय सैन्य अधिकारी प्रजा के हित का सोचते थे | राणा के इतनी पत्निया होना उसी राजनितिक विवशता का परिणाम था | श्री लंका तक से राजनैतिक सम्बन्ध बना कर रखना ये उच्च कोटि की राजनैतिक कुशलता थी | इस से ये सिद्ध होता है की हमारे राजपूतो का शासन चौदहवी शताब्दी तक श्री लंका तक था अन्यथा वैवाहिक सम्बन्ध संभव नहीं थे |
प्रचलित गाथा
अलाउद्दीन स्त्रियों का भूखा तुर्क लुटेरा था | जिस भी राज्य में सुंदर स्त्री के बारे में पता चलता वही आक्रमण की योजना बना देता | महारानी पद्मावती के बारे में भी जब उसे पता चला तो उसने मेवाड पर आक्रमण किआ पर मेवाड़ की किलेबंदी इतनी उच्च कोटी की थी की उन्हें कोई प्रभाव नहीं पड़ा | राजा रतन सिंह से महारानी पद्मावती के दर्शन कर के चला जाऊँगा इस तरह का संधि प्रस्ताव भेज कर उसने महारानी के दर्पण में दर्शन को मना लिया | महारानी का रूप देख कर अलाउद्दीन के होश उड़ गए | बाहर राजा के आते ही उसने राजा को बंधक बना लिया और सन्देश भिजवा दिया की राजा को तब छोड़ेगा जब महरानी उसके साथ चलेगी | महारानी जितनी वीर थी उतनी ही बुद्धिमान भी उन्होंने कहलवा दिया की वे आयेंगी अपनी दासियों के साथ | सौ पालकी और हर पालकी में लगभग ८ सिपाही जो कहार भी थे इस प्रकार ८०० की एक सैन्य टुकड़ी लेकर महारानी ने उस स्थान पर आक्रमण कर दिया जहा उनके राजा बंदी थे | बड़ी वीरता से वे सिपाही राजा को छुड़ा लाये | इस घटना से अलाउद्दीन पागल सा हो गया और उसने पूरी शक्ति से चित्तौड़ पर आक्रमण किआ |
महारानी अपनी सहेलियों दासिओ संग जौहर
अलाउद्दीन के आक्रमण में राणा वीरगति को प्राप्त हुए और महरानी ने अपनी ८०० दासियों संग जौहर को प्राप्त किआ | इतिहास में इस जौहर के प्रकरण से तो कोई भाग ही नहीं सकता |
राजपूत माताए क्यों अग्नि में भस्म कर लेती थी स्वयं को ?
ये एक स्वाभाविक प्रश्न है | हमारे वेदों में तो आत्म हत्या वाले को पुनः मनुष्य जन्म नहीं मिलने का बताया गया है उधर इस प्रकार की वीरगति | इसका प्रथम उत्तर तो वो वचन है जो विवाह में पत्नी और पति दोनों एक दुसरे के प्रति निष्ठावान रहने के लिए अग्नि के सामने लेते है | उसी वचन को न निभा पाने पर अग्नि में भस्म करने को संकल्पित रहते थे | वो वीर अर्जुन की जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा को या महाराजा जयपाल का गांधार प्रदेश की रक्षा न कर पाना हो अपने प्राणों की आहुति देने से कभी आर्य देव देविया नहीं घबराई |
वीरगति के भाव से प्राणों को त्यागना पर आत्म हत्या का पाप नहीं प्राप्त होता | वीरगति के भाव अपकर्षण क्रिया को सम्यक बनाए रखता है |
महारानी पद्मावती के सम्मान में हम क्या कर सकते है ?
कितने लोग अपनी पुत्रियों के नाम हमारी महान राजपूत माताओं के नाम पर रखते है | पद्मिनी या पद्मावती नाम हो या अहिल्याबाई या लक्ष्मीबाई हो ट्विंकल, पिंकी इत्यादि कुछ भी नाम रखे जाते है पर इतिहास के महान लोगो के नाम नहीं रखे जाते | अपने बालिकाओ को ये कथाये बताये क्यों की एक समय था जब लूट कर ले जाते थे आज तो फुसला के ले जाते है | ऐसे में आप का कर्तव्य है की हमारे पूर्वज क्या क्या सामना कर के आये है ये अपनी पीढियों को बताये वरना इतिहास को फिल्मो के माध्यम से बदलने का प्रयास तेज़ी से आरम्भ है ताकि ५० साल बाद कहानी कुछ और हो जाए | किसी भी महान राजा या रानी के नाम को बिना विशेषण के कभी न ले | महाराजा, राणा, या महारानी अवश्य लगाये | किसी को पद्मावती नाम से फिल्म बनाने का शीर्षक नहीं मिलना चाहिए यदि वो इतिहास पर बन रही है | महरानी शब्द जोड़ा जाना चाहिए इसके साथ-२ यदि इतिहास इस प्रकार बदला जा रहा है के तथ्य ही विपरीत किये जा रहे है तो किसी भी प्रकार ऐसी फिल्म को अनुमति नहीं मिलनी चाहिए |
यदि ऐसी फिल्मो को अनुमति मिलती है तो समझ ले के छद्म राष्ट्रवादी ताकते ही छद्म पंथनिरपेक्ष ताकतों को पोषित कर रही है ताकि शुद्ध राष्ट्रवादी सदैव बेवकूफ बना रहे और उसका इस्तेमाल होता रहे |
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