Sunday, 29 January 2017

हनुमान जी वानर थे बंदर नहीं

हमारा इतिहास और हमारी मान्यताये जुडी हुई है | इतिहास के अत्याधिक महत्वपूर्ण प्रसंगों व्यक्तित्वों को हमारे पूर्वज नित्य स्मरण करते आये हैं | आदर्शो को इसी प्रकार जीवन में उतारा जाता है | पिछले कुछ सौ वर्षो में मान्यताओ के क्षेत्र में  विवेकशीलता का प्रयोग न्यूनतम हुआ है | हनुमान जिन्हें बजरंग बलि भी हम कहते है उन अत्याधिक नित्य स्मरणीय आदर्शो में से एक है जिन्हें हम लोगो ने भ्रान्तिवश बंदर बना दिया है | हनुमान जी बंदर नहीं थे वानर थे | वानर जनजाती जो जंगलो में रहती थी अत्याधिक विद्वान् जनजाति | आज की व्यवस्था में यदि बचे होते तो उन्हें भारत सरकार अनुसूचित जनजाति कह कर आरक्षित वर्ग में डाल देती |
भगवान राम जब रावण के विस्तारित होते साम्राज्य को समाप्त करने को निकले और एक वन से दुसरे वन लोगो को असुरो से सुरक्षा करने के लिए प्रशिक्षित करते गए ऐसे में अनेको जन जातियों ने उनका साथ दिया | भील, कोल इत्यादि जनजातियाँ उस समय से चली आरही है और वे भगवान श्री राम को अपना राजा मानती आरही है | जंगल में रहने वाले आरक्षित वर्ग जिन्हें जोग शिड्यूल ट्राइब कहते है इतने विद्वान् लोग थे के दिल्ली का महरौली स्तम्भ और मथुरा में रखा विजय स्तम्भ उन्ही जंगल में रहने वाले लोगो के निर्माण का प्रतीक है जिन पर वर्षो से आई.आई.टी के धातुविज्ञानी शोध कर रहे है की किस प्रकार इनमे जंग नहीं लगती |
जंगलो में रहना उस आदि ऋषियों की बनाई व्यवस्था के अनुकूल था | जंगल कटे तो ग्राम बने, ग्राम कस्बो में परिवर्तित्व हुए कसबे नगरो में और इस विस्तार के साथ हमारा समाज देवता से दानवता की ओर भी बढ़ता चला गया |
हनुमान जी अर्थात वज्रांग बलि व्रज के अंगो के सामान बलशाली, अत्याधिक विद्वान्, संयमी, वीर योगी थे | रामायण में अनेको स्थान पर उनके गुणों का गुणगान किआ गया है | एक स्थान पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान्  श्री राम स्वयं लक्ष्मण जी से कहते है -
नानृग्वेद, विनीतस्य नायजुर्वेद धारिणा:। ना सामवेद विदुषा, शक्यमेवं प्रभाषितुम।।
नूनं व्याकरणं कृत्स्नमनेन बहुधा: श्रुतम्। वहु व्याहरतानेन, न किंचिदपशब्दितम्।।
ये मुझे ऋग, साम और यजुर्वेद के विद्वान् प्रतीत होते है क्यों की इनके उच्चारण में मैंने एक भी त्रुटी नहीं पाई, ऐसा व्याकरण के उत्कृष्ट ज्ञान के बिना संभव नहीं |
वानर सेना ने भगवान् श्री राम का बराबर साथ दिया | बिना किसी स्वार्थ के आज के समय में कोई किसी को पानी नहीं पूछता और भगवान् श्री राम के नाम पर लोग मरने को तैयार हो जाते थे | वे भी वे लोग जो उच्च कोटि के विद्वान् हुआ करते थे | हनुमान जी सुग्रीव के दरबार में मंत्रिपद पर तो थे ही इस कारण उन्होंने राजा सुग्रीव से भगवान् श्री राम के साथ जुड़े रहने को प्रेरित किआ |
भगवान् श्री राम के हनुमान जी इतने विश्वसनीय हुए के सीता माता के लिए लंका उन्हें ही भेजा गया | और वे अकेले ही लंका जला कर आगये | अब आपके मन में दो प्रश्न उठेंगे -
हनुमान जी ने समुद्र कैसे पार किया ?
हनुमान जी ने एक टोकरी में समुद्र पार किया था | समुद्र पार करते समय उन्हें निंद्रा आगई और वे सो गए | यही काव्य रूप में सुरसा के मुह में समाना हुआ | सुरसा निंद्रा का पर्यायवाची शब्द है |
हनुमान जी की पूछ में आग कैसे लगी ?
रावण के दरबार में हनुमान जी का उपहास उड़ाने और पीड़ा देने को कृतिम पूछ लगा कर उसमे आग लगा दी | जिसका उत्तर उन्होंने लंका भर में अग्नि फैला कर दिया |
यदि पूर्व की भाति हमारे घरो में वाल्मीकि रामायण, कम्ब रामायण का पाठ होने लगे और उस आर चर्चा होने लगे तो हमारे राष्ट्र को राम राज्य के सिद्धांतो पर लाने में देर नहीं लगेगी |
ओ३म्

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