Wednesday, 18 January 2017

हवाई जहाज के भारतीय अविष्कारक शिवकर बापूजी तलपदे

शिवकर बापूजी तलपदे जी ने गत २०० वर्षो में प्रथम विमान की रचना की और उसे उड़ा कर भी दिखाया | ये विषय आर्य समाज के लेखको ने तो लिखा परन्तु बहुत थोड़े लोग ही इस बात को जानते थे | रिलायंस एंटरटेनमेंट ने जब इस पर चलचित्र बनाया हवाईजादा तब बहुत लोगो तक ये बात पहुच पाई | यद्दपि मुंबई के ही कुछ लोगो ने इस पर जिस प्रकार चलचित्र में तलपदे जी का चरित्र हनन किआ गया उस पर आपत्ति उठाई | उन्हें शराबी चित्रित किआ गया फिल्म में | आइये जानते है प्रथम तलपडे जी के बारे में |



शिवकर बापूजी तलपदे जी का जन्म बम्बई, महाराष्ट्र के चीरा बाजार में सन १८६४ ई में सूर्यवंशी पठारे प्रभु समुदाय में हुआ था | आपकी शिक्षा जे जे स्कुल आफ आर्ट में हुई थी | आपको श्री चिरंजीलाल वर्मा जी मार्गदर्शन मिला और ऋषि दयानंद कृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में महर्षि दयानंद के ऋग्वेद के मंत्रो के भाष्य देखे जो विमान विद्या का वर्णन करते थे इस प्रकार महर्षि दयानंद कृत आर्ष साहित्य का आपका अध्यन आरम्भ हुआ | महर्षि भारद्वाज कृत विमान शास्त्र भी बाद में आपको प्राप्त हुआ जो आपकी शोध में सहायक हुआ | आपने अष्टाध्यायी विधि से संस्कृत सीख कर अपनी शोध को नए आयाम दिए | सुब्राया शास्त्री का आपको सानिध्य मिला जो पूर्व से विमान विद्या पर शोध कर रहे थे |  

इस प्रकार आप दोनों ने मिलकर १८९५ में विमान का जुहू के चौपाटी मैदान पर सफल प्रदर्शन किआ |


आपका विमान मनुष्य रहित था और १५०० फीट तक ऊपर गया और वायु में ३७ सेकेण्ड तक रहा | ये ८ वर्ष बाद राईट बंधुओ के विमान से कही उत्तम प्रदर्शन था | उस विमान के दर्शनार्थ प्रसिद्ध जज महादेव गोविन्द रानाडे आये थे, सयाजीराव गायकवाड तृतिय एवं तिलक जैसे प्रसिद्ध जन आये थे |  

विमान के नीचे गिरने के पश्चात आपने शोध को और गति दी और पारद को विमान के ईधन पर कार्य करने के लिए पारे की वाष्प से चलने वाले इंजन को बनाना शुरू किआ | नासा ने इस पर १९६० के दशक में मरकरी वोर्टेक्स इंजन पर काम आरम्भ किआ था और ये अभी भी अपने समय के आगे की शोध है | आपने अपने उस प्रथम विमान का नाम मरुतसखा रखा | दूसरा विमान आपने रुक्म विमान बनाया | अंग्रेजो ने आप पर कई गलत आरोप लगाए और जेल में डाल दिया | १९२३ में प्रकाशित हुई डेविड हैचर चिल्ड्रेस की पुस्तक में वर्णित विमानों की डिजाइन आप की शोध पर ही आधारित थी | इस शोध का नाज़ी जर्मनी में भी बहुत लाभ उठाया गया और हिटलर की उड़न तश्तरी में भी आपकी शोध का प्रयोग किआ गया |
आपके जीते जी अंग्रेजो ने आपको पनपने न दिया | उस समय आको १०,००० की आवयश्कता थी शोध पूर्ण करने हेतु जो सहायता आपको न मिल सकी |

निजी जीवन एवं साहित्यिक कार्य

आपकी एक पत्नी व तीन बच्चे थे जिनमे दो उतर और एक पुत्री थी | आपने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका का मराठी में अनुवाद किआ था | श्रीपाद सातवलेकर जी आपके मित्र हुआ करते थे उन दिनों वे श्रीदास विद्यार्थी के नाम से लिखा करते थे उनकी पुस्तको का सम्पादन का कार्य आप किआ करते थे | आपने निम्न पाँच पुस्तकें लिखी है ।
       १.  प्राचीन विमान कला का शोध
२.     ऋग्वेद-प्रथम सूक्त व उसका अर्थ
३.     पातञ्जलि योगदर्शनान्तर्गत शब्दों का भूतार्थ दर्शन
४.     मन और उसका बल
५.     गुरुमंत्र महिमासम्पादन कार्य

सम्पादन कार्य 

१.    वैदिक धर्मस्वरुप(ऋग्वेदादिकभाष्यभूमिकाका मराठी अनुवाद), १९०५
२- राष्ट्रीय उन्नतीचीं तत्वें
३- ब्रह्मचर्य, १९०५
४- राष्ट्रीसूक्त व त्याचा अर्थ
५- वैदिक विवाह व त्याचा उद्देश
६- सत्यार्थप्रकाश पूर्वार्ध, १९०७
७- गृहस्थाश्रम, १९०८
८- योगतत्त्वादर्श

अन्य सम्पादन एवं सामाजिक कार्य

१.      संपादक, ‘आर्यधर्म
२- मंत्री, वेद विद्या प्रचारिणी पाठशाला
३- प्रकाशक, शामराव कृष्णअणि मंडली
४- सदस्य, वेदधर्म प्रचारिणी सभा
६- कोल्हापूर शंकराचार्य से विद्याप्रकाशप्रदीपउपाधि से समान्नित
आप सदस्य रहे आर्य समाज, काकड़वाडी,मुंबई के | और आर्य समाज के लोग संशय करते है की तलपदे जी आर्य समाजी थे या नहीं | श्री राजीव दीक्षित जी ने भी आपके आविष्कार के विषय में प्रकाश डाला है | राजीव जी ने ये भी अपने व्याख्यान में कहा की तलपदे जी का कार्य रैले ब्रदर्स ने हथिया लिया | विचारणीय है की रैले भी साइकिल के कार्य से जुड़े थे और १८९६ से इनका कार्य विशेष रूप से आगे बाधा और राईट बंधू भी साइकिल मेकेनिक थे | तलपदे जी का गुमनामी ने १७ सितम्बर १९१७ में ५३ वर्ष की आयु में देहावसान हो गया | यदि भारत सरकार चाहे तो सही दस्तावेज निकाल सकती है और दो भारतीय विद्वान् सुब्रय शास्त्री व तलपदे जी को उनका सही सम्मान दे सकती है |



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1 Comments:

At 12 April 2018 at 03:28 , Blogger Navyanalनव्यानल said...

http://navyanal.blogspot.in/2015/01/indian-science-congress-2015-goebbels.html

 

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