Monday, 30 January 2017

बोलीवुड की फिल्मो पाकिस्तानी कलाकार क्यों लिए जाते है ?

ये एक स्वाभाविक प्रश्न है की सवा अरब की आबादी वाले देश में 18 करोड़ की आबादी वाले देश से कलाकार ले कर फिल्मे बनाई जाती है | ऐसा भी नहीं की मुंबई में योग्य कलाकारों का अभाव हो | संघर्ष करने वालो की लम्बी कतार है | प्रोड्यूसर भारत के हीरो हेरोइन को लेता है तब तो अपना हर प्रकार से लाभ सिद्ध करता है, तो भला पाकिस्तान से कैसे और क्यों हीरो हेरोइन लायेका बिना अन्य लाभ सिद्ध करे |
पहले व्यापारिक दृष्टिकोण समझे
पाकिस्तानी कलाकरों से पाकिस्तान में चलचित्र अधिक चलेगा | शाहरुख खान को पाकिस्तान में बहुत पसंद किआ जाता है पाकिस्तान में रईस और काबिल जैसी फिल्मो को नो ओब्जेक्शन सर्टिफिकेट दिया जाएगा ये स्वयं नवाज़ शरीफ ने कहा है | माहीर खान भी इसमें और सहायक रही  | व्यापार करने में कोई बुराई नहीं, व्यापार होने से सम्बन्ध बेहतर होते हैं | पड़ोसियों में अच्छे सम्बन्ध रहे इस से बेहतर क्या हो सकता है ? अनुमानित २०-२५ करोड़ रूपए का अधिक लाभ होता होगा निर्माता को यदि फिल्म शाहरुख, सलमान, आमिर या सैफ इत्यादि की है पर लाभ हमारे लिए लाभदायक है जब ये रुपया भारत आये | निर्माता को निर्माण के लिए पैसा कहा से आया ये जानना आवश्यक है | ऐसा तो नहीं की पैसा भी पाकिस्तान से लग रहा है और जो लाभ पाकिस्तान में होगा वो वही रहेगा, माध्यम अलग-२ हो सकते है |
हवाला के लिए 
पाकिस्तान के एक टी.वी कलाकार को भारत में रातो रात स्थापित कलाकारों के साथ फिल्म मिलती है | उसके बाद मिडिया में वो छाया रहता है | यदि किसी कलाकार का पारिश्रामिक १ करोड़ है और उसे १० करोड़ दिया जा रहा है तो स्वाभविक है की ९ करोड़ हवाला की वो रकम है जो उसे काम दिलाने वाले तक पहुचेगी और हवाला की रकम भारत में किये गए अवैध कार्यो से जुटाई गई होती है | फिर यही रकम जिहाद में प्रयोग की जाए तो वो हानि अलग | कला का आदर होना चाहिए और व्यापारिक सम्बन्ध पड़ोसियों से बेहतर होने चाहिए पर निर्माता के पैसे कहा से लग रहे है इसको जानने का कोई सरकारी तंत्र नहीं है | होगा भी तो पट्टी पढ़ा दी जायेगी |
एक फिल्म आई हैपी भाग जाएगी उसे पाकिस्तान ने सिर्फ इसलिए बैन कर दिया की फिल्म का हीरो कहता है पाकिस्तान तो भारत का नमक खाता आरहा है नमक हम भारत से आयात कराते है | एक बेहद हास्यास्पद फिल्म प्रतिबंधित कर दी जाती है क्यों की कलाकार ने सच बोला | दूसरी ओर हमारे यहाँ ऐसी फिल्मे बनती है जो सीधे जनमानस की धार्मिक मान्यताओ पर आघात करती है |
हमें क्या करना चाहिए ?
भारत से पैसा कमाने वाले कलाकारों में इतनी तो नैतिकता होनी चाहिए की वो भारत में होने वाले आतंकी हमलो की निंदा कर सके | इसमें भारत या पाकिस्तान का विषय नहीं आतंकी हमले तो पाकिस्तान के अन्दर भी होते है तो क्या भारत सरकार उसकी निंदा नहीं करती ? पर निंदा करने पर ये विचार करना की पाकिस्तान के कट्टरपंथी उसका विरोध करेंगे तो भारत में भी लोग है जिन्हें कट्टरपंथी कह सकते है जो विरोध करेंगे आप लोगो का यदि आप जिहादी हमलो का विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाते | लोग अपने समाज का उत्पाद होते है | अधिकतर लोग अच्छे ही होते है और घृणित कार्य को घृणित ही कहते है पर यदि आप नहीं कह रहे तो आप चाहे न चाहे आप समर्थन कर रहे है उन आतंकी हमलो का | और जो लोग ऐसे लोगो का समर्थन कर रहे है वे भी आतंक के ही समर्थक है |
किसी को पसंद करना अलग बात है | लोग हिटलर को, सद्दाम को, गद्दाफी को पसंद करते है वे भी जो उनके सिद्धांतो को नहीं मानते थे पर इस से वे उनको मिले दंड पर सहमत के विरोधी नही हो जाते | अच्छी कला को कौन नहीं पसंद करेगा चाहे वो गायक हो, नायाक हो या नायिका परन्तु हम में इतनी नैतिकता होनी चाहिए की राष्ट्र सर्वोपरि की भावना हम में हो | हम उन्हें लाभान्वित न करे जो हमारे राष्ट्र के हित की बात नहीं करते | वरना राष्ट्र सर्वोपरि की बाते तो राजनितिक दल भी किआ करते है और देश में विदेशियो को अधिग्रहण के लिए हाथ जोड़ जोड़ बुलाते है उनमे और हम में कोई भेद नहीं रह जाएगा हम भी ढोंगी ही कहे जायेंगे | यदि पाकिस्तानी कलाकारों को भारत का फिल्म उद्योग अच्छा लगता है उन्हें यहाँ संभावनाए दिखती है तो वे यही स्थापित हो जाए भारत को अपना देश माने | उन्हें गलत को गलत और सही को सही कहना आना चाहिए | आप यहाँ से पैसा कमा कर अपने देश ले जायेंगे और लोग अगर कहेंगे के भारत में हुए किसी आतंकी हमले की निंदा करे तो आप चुप नहीं रह सकते |
यह निश्चित मान ले की निर्माताओ को लाभ होता है २०-२५ करोड़ का | हाल की फिल्म रईस को ले जिसे दो कंपनियों ने मिलकर निर्मित किआ है | एक शाहरुख खान की स्वयं की कम्पनी है रेड चिलीस दूसरी कम्पनी फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी की एक्सेल एंटरटेनमेंट है | पाकिस्तानी कलाकार को लेने का सीधा अर्थ है पाकिस्तान में व्यापार करना | तो शाहरुख क्या ये बात जानते है की भारत में उनकी फिल्मे सिर्फ थीएटरो की संख्या के कारण चल रही है उनके असली फैन पाकिस्तान में है ? जितना बड़ा हमारा हिंदी फिल्म उद्योग है उस हिसाब से २०-२५ करोड़ की अतिरिक्त रकम को सही फिल्म बना कर भी कमाई जा सकती थी ? पर उस से वो ध्येय नही पूरित होंगे वो सन्देश नहीं जाएगा जो पी.के, मैं हूँ ना, मिशन कश्मीर, हैदर, शौर्य इत्यादि जैसी अनेको फिल्मो से जाता है |
भारत के दर्शक अपना विवेक स्वयं निर्मित करे | किसी व्यक्ति का अनावश्यक विरोध सही नहीं | किसी का विरोध इसलिए भी सही नहीं क्यों की वो किसी दुसरे संप्रदाय का है या मान्यता का है | यदि किसी व्यक्ति के कार्य से भारत की आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था का उत्थान होता है और उसे लाभ मिलता है तो उसका समर्थन करना चाहिए परन्तु यदि केवल मात्र आर्थिक लाभ ही मिलता है और सामाजिक क्षति होती है तो ऐसी फिल्मो का बहिष्कार करना चाहिए | फिल्म क्या सन्देश दे रही है केवल मनोरंजन ही यदि ध्येय है तो मनोरंजन को हमें बहुत सी गलत चीजों में भी हो जाता है ये हम पर निर्भर कर्ता है के हम स्वयं के नागरिक एवं सामाजिक कर्तव्यो का पालन करे या नहीं |

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नाथूराम गोडसे आतंकी, पागल या राष्ट्रभक्त ?

३० जनवरी गांधी वध का दिन | मरने वाला कोई साधारण मनुष्य नहीं | विश्व के इतिहास में सर्वाधिक लोगो का प्रतिनिधित्व करने वाला नेता | तो मारने वाला कौन ? क्या कोई पागल को एक महात्मा की हत्या कर दे | वो भी ऐसा देश जहा साधू संतो का इतना आदर हैं और जो पागल कहे तो फ़ासी देने का कोई अर्थ नहीं क्यों की मानसिक रोगी को फ़ासी नहीं दी जा सकती | यदि पागल नहीं और कोई धन के प्रलोभन में भी हत्या नहीं हुई तो क्यों लोग सुनना नहीं चाहते, गांधी वध क्यों ?
मैं यहाँ ये नहीं लिखूंगा की गांधी वध क्यों किआ गया | वो तो आप पंडित नाथूराम गोडसे के कोर्ट के दिए बयान जो की गांधी वध क्यों ? नाम की पुस्तक में लिपिबद्ध है में भी पढ़ सकते है | विषय ये है के लोगो का विवेक इतना कम कैसे हो सकता है की बिना दो पक्षों को सुने लोग राय बना लेते है | गांधी जी महान थे महात्मा थे पर कोई तो कारण होगा उनकी हत्या हुई और मारने वाला उतनी ही प्रसन्नता से फांसी चढने को तैयार था जितनी प्रसन्नता से कोई क्रन्तिकारी अंग्रेजो को मारने के बाद तैयार रहता था |
हिंदूवादी या हिन्दू उग्रवादी कह कर विषय को दबाया नहीं जा सकता किन कारणों से गांधी वध हुआ ? पर नाथूराम गोडसे के बलिदान के इतने वर्ष पश्चात भी लोग नहीं जानते क्या-क्या कारण रहे होंगे की एक महात्मा की छवि वाले नेता की गोली मार कर हत्या कर दी गई | क्या उस कृत्य से देश को लाभ हुआ ? हुआ तो कैसे हुआ ?
1966 तक पंडित नाथूराम गोडसे का ब्यान लोगो से छुपा कर रखा गया | न्यायाधीश जी डी घोसला ने ये तक लिखा की उस दिन जिन्होंने गोडसे का बयान सुना यदि उन्हें न्याय करने का अधिकार दिया जाता तो वे गोडसे को बरी कर देते | लोगो के आँख में पानी था जब गोडसे अपना पूरा बयान पढ़ चुके थे |
गांधीवध पश्चात
अहिंसक अनुयायियों ने चितपावन ब्राह्मणों के २०,००० के लगभग मकान, दुकाने जला दिए | ६००० के लगभग ब्राह्मण मार दिए गए | वीर सावरकर के तीसरे भाई नारायण दामोदर सावरकर की हत्या भी गांधी वध के पश्चात प्रतिक्रिया स्वरूप हुई | ईट पत्थरों से हमला कर के अहिंसक अनुयायियों ने क्रान्तिकारी राष्ट्रवादी की हत्या करने का गौरव प्राप्त किआ | विचार करे कितने लोगो ने ये आपको बताया या इस पर चर्चा करी ?
यदि गांधीवध न होता तो ?
कल्पना करे की गांधी जीवित होते तो कश्मीर आक्रमण के समय वे पाकिस्तान को भारत से धन दिलवा सकते थे | पाकिस्तान और पूर्व पाकिस्तान के बीच एक पट्टी भी देने की मांग स्वीकृत कर सकते थे | हैदराबार में ओपरेशन पोलो गांधी के रहते संभव नहीं था | आज आन्ध्र प्रदेश गोडसे के कारण ही जूडा हुआ है भारत से  |
तो हम क्या करे ?
एक स्वाभाविक प्रश्न है लोग अपनी ई एम् आईस में फसे है किसे फुर्सत है गांधी गोडसे को जानने के बारे में | तो आपका भविष्य आपके इतिहास के ज्ञान पर ही निर्भर है इस बात का ज्ञान आपको रखना होगा | कुछ करे न करे सूर्य भारती प्रकाशन से प्रकशित होने वाली गांधी वध क्यों अवश्य पढ़े | संभव है तब आप विचार कर सके के एक समाचार पत्र चलाने वाला कलम छोड़ रीवोल्वर क्यों उठा लेता है | क्यों एक ३८ वर्षीय युवक जिसे पता है की फ़ासी लगने पर गर्दन कैसे टूट जाती है और कितनी दर्दनाक माध्यम से मृत्यु मिलती है इस निर्णय पर पंहुचा | ८ नवम्बर को फ़ासी की सजा सुनाई गई और १५ नवम्बर को टांग दिया गया फ़ासी पर अम्बाला जेल में | इतनी तत्परता अगर कांग्रेस ने ली होती आतंकियो को टांगने में तो भी कुछ समझ आता |
आतंकी वह होता है जो अकारण जनमानस में आतंक फैलाए | गांधी ने जिस प्रकार जनता द्वारा दि शक्ति और अधिकारों का दुरपयोग किआ वैसा कोई अन्य नेता न करने पाए यदि ऐसा आतंक बनता है तो ठीक | पागल अकारण ही चीज़े करता है पर कोई पागल भी आत्महत्या नहीं करता | राष्ट्रभक्त वह जो स्वयं को अर्पित कर दे ताकि उसकी कौम जीवित रह सके अपने अधिकारों के साथ, आपकी मान्यताए आपका धर्मपालन आपका अधिकार है | ऐसा व्यक्ति जिसने अपनी अंतिम इच्छा में अपनी अस्थिया तब तक न बहाने को कहा जबतक भारत पुनः अखंड न हो जाए | आप  आगे बढ़ सके देश का विस्तार हो सके इसलिए किसी ने प्राण दिए, उसके दिए ब्यान को पढना चाहिए  और चिन्तन करना चाहिए की कौन सी शासन करने वाली शक्ति हमें अनविज्ञ बनाए रखना चाहती है ||
प्रकाशक : सूर्य भारती प्रकाशन,
२५९६, नई सड़क दिल्ली-०६

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Sunday, 29 January 2017

शौर्य, पवित्रता एवं राष्ट्र निष्ठा की प्रतीक महारानी पद्मावति

भारत में इतिहास लोक कथाओं के माध्यम से संरक्षित होता रहा है | यदि ऐसा न होता तो जो राजा आता वो अपने अनुसार इतिहास लिखवाता रहता | यही होता रहा है इसीलिए आधुनिक युग की कहावत है की इतिहास विजेताओं के साथ होता है | इसके साथ साथ इतिहास को संरक्षित करने का एक माध्यम हमारे देश में मंदिर भी रहे है | इस से वो स्थान संरक्षित हो जाते और लोग स्थान भ्रमण के नाम पर उन लोक कथाओं को जान पाते | भगवान श्री राम का जन्मस्थान हो या माता सीता का या सीता माता की रसोई इसका प्रमाण है | बहुत ही बड़े काण्ड को लिपिबद्ध भी किआ जाता रहा है जैसे रामायण या महाभारत |
महारानी पद्मावती के बारे में लिपिबद्ध अवधि में काव्य खंड मालिक मुहम्मद जायसी द्वारा १५४० में पूर्ण हुआ | फ़रिश्ता और इतिहासकार टॉड ने भी लिखा | भारतीय इतिहासकारों के वामपंथी धड़े की तो ये मान्यता बनी हुई है की यदि भारत की वीरता का बखान है तो वो विश्वसनीय नहीं है और यदि आक्रमणकारी की विजय गाथा है तो वो प्रमाणिक है | अलाउद्दीन खिलजी जैसे राक्षसों के बारे में और महारानी पद्मावती जैसी देवी वीरांगनाओ के बारे में लोग बिना स्कूली इतिहास के भी अपने माता पिता से सुनते आये हैं |
बप्पा रावल द्वारा स्थापित गहलोत वंश के राणा रतन सिंह की पंद्रहवी पत्नी महारानी पद्मावती सिंहल द्वीप (आज का श्री लंका) की थी |  आपका वरण स्वयंवर में राजा मलखान सिंह को हरा राणा रत्न सिंह ने किआ था | उस समय राज सभा के आधीन राजा होते थे और ये राजसभा जहा ब्राह्मण मंत्री और क्षत्रिय सैन्य अधिकारी  प्रजा के हित का सोचते थे | राणा के इतनी पत्निया होना उसी राजनितिक विवशता का परिणाम था | श्री लंका तक से राजनैतिक सम्बन्ध बना कर रखना ये उच्च कोटि की राजनैतिक कुशलता थी | इस से ये सिद्ध होता है की हमारे राजपूतो का शासन चौदहवी शताब्दी तक श्री लंका तक था अन्यथा वैवाहिक सम्बन्ध संभव नहीं थे |
प्रचलित गाथा
अलाउद्दीन स्त्रियों का भूखा तुर्क लुटेरा था | जिस भी राज्य में सुंदर स्त्री के बारे में पता चलता वही आक्रमण की योजना बना देता | महारानी पद्मावती के बारे में भी जब उसे पता चला तो उसने मेवाड पर आक्रमण किआ पर मेवाड़ की किलेबंदी इतनी उच्च कोटी की थी की उन्हें कोई प्रभाव नहीं पड़ा | राजा रतन सिंह से महारानी पद्मावती के दर्शन कर के चला जाऊँगा इस तरह का संधि प्रस्ताव भेज कर उसने महारानी के दर्पण में दर्शन को मना लिया | महारानी का रूप देख कर अलाउद्दीन के होश उड़ गए | बाहर राजा के आते ही उसने राजा को बंधक बना लिया और सन्देश भिजवा दिया की राजा को तब छोड़ेगा जब महरानी उसके साथ चलेगी | महारानी जितनी वीर थी उतनी ही बुद्धिमान भी उन्होंने कहलवा दिया की वे आयेंगी अपनी दासियों के साथ | सौ पालकी और हर पालकी में लगभग ८ सिपाही जो कहार भी थे इस प्रकार ८०० की एक सैन्य टुकड़ी लेकर महारानी ने उस स्थान पर आक्रमण कर दिया जहा उनके राजा बंदी थे | बड़ी वीरता से वे सिपाही राजा को छुड़ा लाये | इस घटना से अलाउद्दीन पागल सा हो गया और उसने पूरी शक्ति से चित्तौड़ पर आक्रमण किआ |
महारानी अपनी सहेलियों दासिओ संग जौहर
अलाउद्दीन के आक्रमण में राणा वीरगति को प्राप्त हुए और महरानी ने अपनी ८०० दासियों संग जौहर को प्राप्त किआ | इतिहास में इस जौहर के प्रकरण से तो कोई भाग ही नहीं सकता |
राजपूत माताए क्यों अग्नि में भस्म कर लेती थी स्वयं को ?
ये एक स्वाभाविक प्रश्न है | हमारे वेदों में तो आत्म हत्या वाले को पुनः मनुष्य जन्म नहीं मिलने का बताया गया है उधर इस प्रकार की वीरगति | इसका प्रथम उत्तर तो वो वचन है जो विवाह में पत्नी और पति दोनों एक दुसरे के प्रति निष्ठावान रहने के लिए अग्नि के सामने लेते है | उसी वचन को न निभा पाने पर अग्नि में भस्म करने को संकल्पित रहते थे | वो वीर अर्जुन की जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा को या महाराजा जयपाल का गांधार प्रदेश की रक्षा न कर पाना हो अपने प्राणों की आहुति देने से कभी आर्य देव देविया नहीं घबराई |
वीरगति के भाव से प्राणों को त्यागना पर आत्म हत्या का पाप नहीं प्राप्त होता | वीरगति के भाव अपकर्षण क्रिया को सम्यक बनाए रखता है |
महारानी पद्मावती के सम्मान में हम क्या कर सकते है ?
कितने लोग अपनी पुत्रियों के नाम हमारी महान राजपूत माताओं के नाम पर रखते है | पद्मिनी या पद्मावती नाम हो या अहिल्याबाई या लक्ष्मीबाई हो ट्विंकल, पिंकी इत्यादि कुछ भी नाम रखे जाते है पर इतिहास के महान लोगो के नाम नहीं रखे जाते | अपने बालिकाओ को ये कथाये बताये क्यों की एक समय था जब लूट कर ले जाते थे आज तो फुसला के ले जाते है | ऐसे में आप का कर्तव्य है की हमारे पूर्वज क्या क्या सामना कर के आये है ये अपनी पीढियों को बताये वरना इतिहास को फिल्मो के माध्यम से बदलने का प्रयास तेज़ी से आरम्भ है ताकि ५० साल बाद कहानी कुछ और हो जाए | किसी भी महान राजा या रानी के नाम को बिना विशेषण के कभी न ले | महाराजा, राणा, या महारानी अवश्य लगाये | किसी को पद्मावती नाम से फिल्म बनाने का शीर्षक नहीं मिलना चाहिए यदि वो इतिहास पर बन रही है | महरानी शब्द जोड़ा जाना चाहिए इसके साथ-२ यदि इतिहास इस प्रकार बदला जा रहा है के तथ्य ही विपरीत किये जा रहे है तो किसी भी प्रकार ऐसी फिल्म को अनुमति नहीं मिलनी चाहिए |
यदि ऐसी फिल्मो को अनुमति मिलती है तो समझ ले के छद्म राष्ट्रवादी ताकते ही छद्म पंथनिरपेक्ष ताकतों को पोषित कर रही है ताकि शुद्ध राष्ट्रवादी सदैव बेवकूफ बना रहे और उसका इस्तेमाल होता रहे |

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हनुमान जी वानर थे बंदर नहीं

हमारा इतिहास और हमारी मान्यताये जुडी हुई है | इतिहास के अत्याधिक महत्वपूर्ण प्रसंगों व्यक्तित्वों को हमारे पूर्वज नित्य स्मरण करते आये हैं | आदर्शो को इसी प्रकार जीवन में उतारा जाता है | पिछले कुछ सौ वर्षो में मान्यताओ के क्षेत्र में  विवेकशीलता का प्रयोग न्यूनतम हुआ है | हनुमान जिन्हें बजरंग बलि भी हम कहते है उन अत्याधिक नित्य स्मरणीय आदर्शो में से एक है जिन्हें हम लोगो ने भ्रान्तिवश बंदर बना दिया है | हनुमान जी बंदर नहीं थे वानर थे | वानर जनजाती जो जंगलो में रहती थी अत्याधिक विद्वान् जनजाति | आज की व्यवस्था में यदि बचे होते तो उन्हें भारत सरकार अनुसूचित जनजाति कह कर आरक्षित वर्ग में डाल देती |
भगवान राम जब रावण के विस्तारित होते साम्राज्य को समाप्त करने को निकले और एक वन से दुसरे वन लोगो को असुरो से सुरक्षा करने के लिए प्रशिक्षित करते गए ऐसे में अनेको जन जातियों ने उनका साथ दिया | भील, कोल इत्यादि जनजातियाँ उस समय से चली आरही है और वे भगवान श्री राम को अपना राजा मानती आरही है | जंगल में रहने वाले आरक्षित वर्ग जिन्हें जोग शिड्यूल ट्राइब कहते है इतने विद्वान् लोग थे के दिल्ली का महरौली स्तम्भ और मथुरा में रखा विजय स्तम्भ उन्ही जंगल में रहने वाले लोगो के निर्माण का प्रतीक है जिन पर वर्षो से आई.आई.टी के धातुविज्ञानी शोध कर रहे है की किस प्रकार इनमे जंग नहीं लगती |
जंगलो में रहना उस आदि ऋषियों की बनाई व्यवस्था के अनुकूल था | जंगल कटे तो ग्राम बने, ग्राम कस्बो में परिवर्तित्व हुए कसबे नगरो में और इस विस्तार के साथ हमारा समाज देवता से दानवता की ओर भी बढ़ता चला गया |
हनुमान जी अर्थात वज्रांग बलि व्रज के अंगो के सामान बलशाली, अत्याधिक विद्वान्, संयमी, वीर योगी थे | रामायण में अनेको स्थान पर उनके गुणों का गुणगान किआ गया है | एक स्थान पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान्  श्री राम स्वयं लक्ष्मण जी से कहते है -
नानृग्वेद, विनीतस्य नायजुर्वेद धारिणा:। ना सामवेद विदुषा, शक्यमेवं प्रभाषितुम।।
नूनं व्याकरणं कृत्स्नमनेन बहुधा: श्रुतम्। वहु व्याहरतानेन, न किंचिदपशब्दितम्।।
ये मुझे ऋग, साम और यजुर्वेद के विद्वान् प्रतीत होते है क्यों की इनके उच्चारण में मैंने एक भी त्रुटी नहीं पाई, ऐसा व्याकरण के उत्कृष्ट ज्ञान के बिना संभव नहीं |
वानर सेना ने भगवान् श्री राम का बराबर साथ दिया | बिना किसी स्वार्थ के आज के समय में कोई किसी को पानी नहीं पूछता और भगवान् श्री राम के नाम पर लोग मरने को तैयार हो जाते थे | वे भी वे लोग जो उच्च कोटि के विद्वान् हुआ करते थे | हनुमान जी सुग्रीव के दरबार में मंत्रिपद पर तो थे ही इस कारण उन्होंने राजा सुग्रीव से भगवान् श्री राम के साथ जुड़े रहने को प्रेरित किआ |
भगवान् श्री राम के हनुमान जी इतने विश्वसनीय हुए के सीता माता के लिए लंका उन्हें ही भेजा गया | और वे अकेले ही लंका जला कर आगये | अब आपके मन में दो प्रश्न उठेंगे -
हनुमान जी ने समुद्र कैसे पार किया ?
हनुमान जी ने एक टोकरी में समुद्र पार किया था | समुद्र पार करते समय उन्हें निंद्रा आगई और वे सो गए | यही काव्य रूप में सुरसा के मुह में समाना हुआ | सुरसा निंद्रा का पर्यायवाची शब्द है |
हनुमान जी की पूछ में आग कैसे लगी ?
रावण के दरबार में हनुमान जी का उपहास उड़ाने और पीड़ा देने को कृतिम पूछ लगा कर उसमे आग लगा दी | जिसका उत्तर उन्होंने लंका भर में अग्नि फैला कर दिया |
यदि पूर्व की भाति हमारे घरो में वाल्मीकि रामायण, कम्ब रामायण का पाठ होने लगे और उस आर चर्चा होने लगे तो हमारे राष्ट्र को राम राज्य के सिद्धांतो पर लाने में देर नहीं लगेगी |
ओ३म्

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Sunday, 22 January 2017

नेता जी की मृत्यु के चौकाने वाले रहस्य

स्वतंत्रता के महानायकों में से एक नेता जी शुभाष चन्द्र बोस का नाम है | आपको वीर सावरकर से रास बिहारी बोस से मिलने की प्रेरणा मिली जिन्होंने जापान में सेना बना रखी थी | नेता जी जब जापान पहुचे रास बिहारी बोस ने सेना का नेतृत्व नेता जी के हाथो में दे दिया | सिंगापूर से ये आई.एन.ए का मोवमेंट शुरू हुआ | ब्रिटिश इंडियन आर्मी और आई.एन.ए के बीच लम्बा संघर्ष रहा | १९४५ में जापान के सरेंडर के पश्चात आई एन ए डिसबैंड कर दी गई |

मृत्यु का रहस्य

१८ अगस्त को फोर्मोसा जो की अब ताईवान में है नेता जी का विमान नष्ट हो गया और नेता जी की मृत्यु हो गई | जापानी मिडिया ने इस खबर को फैलाने में सहायता की |

उस समय भी लोगो को ये विश्वास करना अत्याधिक कठिन था | ताइवान सरकार ने भी ये माना है की उस उनके यहाँ किसी प्रकार का कोई विमान हादसा हुआ ही नहीं |
उसके बाद से कई तरह के नए नए सिद्धांत आये नेता जी की मृत्यु से जुड़े |
नेता जी भाग निकले और रूस में रहे जहा १९५३ में वे स्टालिन की कैद में रहे | 

रूस में वे १९६८ तक रहे और ये तथ्य गुमनामी बाबा से से कही से भी नहीं मिलता है | इकोनोमिक टाईम्स में छपी एक रिपोर्ट
इसी विषय पर मेजर जनरल जी दी बक्षी ने अपनी पुस्तक "Bose: The Indian Samurai - Netaji and the INA Military Assessment". बोस दी इंडियन समुराय – नेताजी एंड दी आई.एन.ए मिलिट्री एसेसमेंट में लिखा की रूस में नेता जी को दर्दनाक तरीके से मार दिया गया |

क्या गुमनामी बाबा नेता जी थे ?
ये भी बात बहुत प्रचलित है की गुमनामी बाबा ही सुभाष चन्द्र बोस थे | नेहरु की मृत्यु के समय भी वे देखे गए | 

ये विषय भी स्वीकार नहीं क्यों की नेता जी यदि भारत वापस आये तो उनके साथ जनता का पूरा समर्थन रहना तय था | ऐसे में भले ही नेहरु ने उन्हें वार क्रिमिनल स्वीकारा हो जनता के रहते नेता जी को कोई सजा नहीं दी जा सकती थी | ख़ास कर तब जब आज़ाद हिन्द फौज के सिपाहियो को स्वतंतत्रता सेनानी माना जाता है |

एक तीसरा कोण

कुछ वर्ष पूर्व एक सज्जन जिनकी दूकान से मैं घड़ी ठीक कराने जाता रहता था उनसे अच्छा परिचय हो गया | हाला के वे संघ के ही एक बहुत ही उच्च स्कुल के ही उत्पाद थे | मेरे पिता जी अभी भी चाभी देने वाली घडी प्रयोग करते है इस कारण से उसकी सर्विसिंग करानी पड़ती है समय-२ पर बौद्धिक चर्चाये होती रहती थी उनसे नेता जी के विषय में भी हुई |
तब उन्होंने बताया के वे १९८६ में इंडोनेशिया गए थे | वहा आज़ाद हिन्द फ़ौज के कमांडर डब्लू तेजुमल से मिले | उन्होंने चौकाने वाली बात बताई और अपनी बात बताते-२ डब्लू तेजुम्ल रो पड़े |
उन्होंने बताया की नेता जी ताइवान से हवाई जहाज से नहीं पनडुब्बी से गए थे | उस पनडुब्बी में उनके साथ गद्दारी करी गई | एक मुस्लिम और एक सक्सेना अधिकारी अंग्रेजो के साथ मिल गए | उन्हें पनडुब्बी के अन्दर ही उनकी आँखों के सामने तुरंत ही गोली मार दी गई | उनकी लाश भी बाहर न आने पाए इस कारण से उसे टुकड़े-२ कर के समुन्द्र में बहा दिया गया |
ये सुन कर मन बड़ा विचलित सा हुआ | इतने वीर व्यक्ति का ऐसा अंत नहीं बनता | मृत्यु तो कम से कम सम्मान की होनी चाहिए | उन सज्जन ने जब डब्लू तेजुमल से कहा की ये बात दुनिया को बताये तो उन्होंने कहा के उन्हें मरवा दिया जाएगा | नेहरु उन्हें आज़ाद हिन्द फ़ौज के खजाने के विषय में पूछने के लिए कई बार बुलाती रही पर वे जानते थे की नेहरु उन्हें मरवा सकते है |
अब जरा इस पुरे विषय पर चिंतन करते है |
अंग्रेजो ने मसोलिनी को तुरंत ही मार दिया था | हिटलर ने आत्महत्या कर ली थी ऐसा माना जाता है पर उसके नजदीकी कमांडर तुरंत मार दिए गए थे | यद्दपि हमारे लिए सुभाष जी के आगे हिटलर मस्सोलिनी कही भी नही है पर अंग्रेजो के राजनितिक दृष्टिकोण से हमें ये मान सकते है के अंग्रेजो ने उसी समय उनकी हत्या करवा दी हो और बाद में जनता शांत रहे इस कारण से इस प्रकार से प्रचार किआ की जैसे उनके हाथ कोई लगा ही न हो | अंग्रेजो के पास प्रपोगैंडा का विभाग तो रहा ही था युद्ध के समय |
अब इस उन सज्जन की बात को पुष्टि करने के लिए हमें सर्वप्रथम वो सूची चाहिए जिसमे आजाद हिन्द फ़ौज के कमांडरो में क्या किसी डब्लू तेजुमल का नाम का कोई अधिकारी रहा ? क्या इस नाम का व्यक्ति इंडोनेशिया में पुनर्वास का जीवन जी रहा था ? क्या अंत समय कोई मुस्लिम और सक्सेना उपनाम का अधिकारी नेता जी के साथ था ?
नेता जी को जर्मनी से पनडुब्बी उपलब्ध हुई थी उन्हें अन्य पनडुब्बी कहा से उपलब्ध हुई ?
नेता जी फ़ौज का खजाना कहा गया ? निश्चित तौर पर वो अंत समय तक उनके साथ रहा होगा तो
क्या ये संभव है के उनके साथी अधिकारियो में से कुछ लालच में आकर अंग्रेजो के ख़ुफ़िया विभाग से मिल गए और नेता जी के साथ गद्दारी कर दी ? आखिर अंग्रेजो ने ये देश गद्दारों के बल पर ही तो जीता और इस पर शासन बनाए रखा | नेहरु सरकार का ब्रिटिश सरकार को ये कहना के नेता जी युद्ध अपराधी थे एक राजनितिक नाटक हो सकता है राजनीत नाटक से ही चलती है |
नेता जी पर ऐसे कई लोग है जो वर्षो से शोध कर रहे है मेरा उनसे निवेदन है के वे इस विषय पर भी खोज करे |

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Saturday, 21 January 2017

राष्ट्र के प्रमुख संकट एवं उस से बचने के विकल्प


१.      बैंकिंग : जिस पर बैंकिंग का विस्तार किआ गया है | जितना बैंको का विस्तार होगा उतना मुद्रा का अवमूल्यन होगा उतनी महगाई बढ़ेगी परिणामतः गरीबी बढ़ेगी | संछेप में बैंक आपकी बचत से नहीं अपने बाटे कर्ज से चलते है | उसी कर्ज से सडको पर मोटर साईकिले और मोटर गाडिया दिख रही है | जितना पेट्रोल/डीजल की खपत बढ़ेगी उतनी मांग बढ़ेगी मूल्य बढ़ेगा | तेल के लिए डॉलर चाहिए और रुपया टूटेगा, महगाई बढती जाएगी | ऋण की दरों से पूरी अर्थव्यवस्था नियत्रित होती है | जो भी क्षेत्र उठाना होता बैंक उसकी दरे गिरा देता | बैंक रिसर्व बैंक में एक निश्चित मूल्य रखता सी.आर.आर दर जो ५ प्रतिशत के आस पास होता है | यानी अगर बैंक डूब गया तो आपको केवल आपके जमा के उतना ही मूल्य मिलेगा जितना कैश रिसर्व रेशियो अनुसार उस बैंक ने जमा किया होगा | नरेगा के माध्यम से किसानो के खाते खुलवाए गए है विमुद्रीकरण के नाम पर जबरदस्ती लोगो को बैंक से जोड़ा गया है | अब ऋण व्यवस्था का विस्तार कर के दासता और बढ़ेगी |
विकल्प : बैंको के कर्ज से बचे | हर प्रकार के ऋण से बचे अपनी आव्यश्क्ताये न्यून रखे या आय को विस्तारित करे |
२.      कट्टरपंथ : सरकारी आकडो के अनुसार २०६० में भारत में मुस्लिम और हिंदू आबादी ५०% के बराबर हों जाएगी | मुस्लिम वृद्धि दर लगभग ३४ प्रतिशत है जब के हिंदू वृद्धि दर १९ प्रतिशत है कुछ वर्ष पूर्व के आकडो अनुसार | वर्तमान में भारत में २५ करोड मुस्लिम आबादी मानी जा रही है | ६-८ करोड बांग्लादेशी घुसपैठिये बसे हुए है | अनावश्यक विरोध किसी भी समाज का ठीक नहीं | अनावश्यक कट्टरता भी ठीक नहीं फिर चाहे वो हिन्दुओ की हो या मुस्लिमो की | आज के समय में ध्रुवीकरण की राजनीत की जाती हैं दोनों ध्रुवो को नियंत्रित करने वाला एक ही होता है जिनके हित छुपे रहते हैं  लोगो की आपसी हिंसा में |
विकल्प : जनसँख्या नियंत्रण, आर्य शुद्धि सभा का निर्माण | जैसे स्वामी श्रद्धानंद जी के नेतृत्व में ४ वर्षों में २०७८७३८ मुसलमानों की शुद्धिया की गई थी | शुद्धि सांस्कृतिक आक्रमण का स्थायी विकल्प है परन्तु मिलजुल कर रहना भी परम आवश्यक है | विचारधारा किसी पर थोपी नहीं जा सकती यही वैदिक और ऋषियों की व्यवस्था है अतः हिन्दू और मुस्लिमो का आपस में व्यापार ताकि भविष्य में एक दुसरे के आर्थिक हित सधे रहे |
३.      प्रलोभित ईसाईकरण : इस्लामीकरण के संकट से लोग डर जाते है या कहे डराए जाते है, बढते दंगो, अपराध और लूटपाट से वही ईसाईकरण की वृद्धिदर दबे पाँव बढती जा रही है क्योकी लोगो का ध्यान नही जा रहा | बड़ी समस्या ये है के इसका समाधान शुद्धि भी नहीं क्यों के अधिकतर ईसाई धर्मान्तरण धन या संसाधनों के लालच में की जाती है |
विकल्प : अन्धविश्वास निर्मूलन के साथ-२ रोजगार सृजन, आर्यो(हिंदू) के दान का सही प्रयोग, कम मूल्य पर गुणवत्ता पूर्वक शिक्षा, निशुल्क स्वास्थ संसाधन इत्यादि देने होंगे |
४.      नक्सली/साम्यवाद : साम्यवाद यानी कम्युनिस्म के नाम पर कितना रक्त बहाया गया है ये सर्विदित है | भारत में २०० से ऊपर जिलो में नक्सली सेना खड़ी है | इनके नीचे से उपर तक अधिकारी होते है, जिन्हे पद अनुसार वेतन मिलता है | २००० करोड रूपये से उपर का रक्षा बजट पास होंता है | ये धन विदेशी कंपनियों के गठजोड़ और छोटे व्यापारियों से फिरौती प्राप्त होता है | राजनितिक संरक्षण के रहते नक्सली सशक्त होते जाते है | इस कम्युनिस्ट नक्सली विचारधारा का ध्येय जंगलो से निकल नगरों की ओर आने का हैं | रूस में बोल्शोविक क्रांति में हुआ दिल्ली पर अधिकार कर के पुरे देश पर अधिकार किया जाए यद्दपि इस तरह के उनके विचार अनावश्यक है देश की सेना सशक्त है | ईसाई आतंकवाद व अलगाववाद की आग में पूरा पुर्वोतात्तर जल रहा है | समस्या सरकार तभी जागती है जब ७०-१०० जवान मार दिए जाते है | नक्सली अब जंगलो की रक्षा नही कर रहे कुछ गुट कर भी रहे हो तो भी वहा विदेशी कंपनिया खनन कर रही है |
विकल्प : आदिवासी क्षत्रो में पहुच कर उन्हें वैदिक विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था से साक्षरित बनाना और राजनितिक विकल्प खड़ा करना | सरकार उन्हें स्वायत्तता दे और सनातन संस्कृति की व्यवस्था कोसमाप्त करने के स्थान पर आगे बढ़ने दे |
५.      देशी/विदेशी पूंजीवाद : लोगो को स्वरोजगार को जाग्रत ना कर के छोटे उद्योगों को प्रोत्साहित ना कर के देशी व विदेशी पूंजीवाद के माध्यम से नौकरी के नाम पर दास बनाया जा रहा हैं | रोजगार सृजित हो ये उत्तम है पर उस से भी उत्तम है लोग अपना कार्य करे न ही लोगो को ऐसी शिक्षा मिलती है न ही माहोल | अनुपयोगी वस्तुओ को प्रलोभन और नारी प्रयोग द्वारा विज्ञापित किया जाता और शिक्षा के माध्यम से उनकी सोचने की क्षमता क्षीण की जा रही | लोगो का स्वास्थ खराब कर के फिर दवाइयों के जाल में फसा कर और बीमार किया जाता है | आपके देश में महगाई बढ़ाने के लिए आपका ही प्रयोग किया जाता है | हमारे समृद्ध समाज में जो लोहार, चमार, शिल्पकार, नाऊ, बढ़ई, दाई इत्यादि* उद्योगपतियो से लेकर वैद्य, शिक्षक जैसे सर्वसुलभ और दानी समुदाय को खत्म कर के कम्पनी बना बना कर वैदिक विकेन्द्रीकरण को तोडा गया है |
विकल्प : वैदिक अर्थव्यवस्था को पुनः लाया जाये तब ही देश में स्वर्ण बहेगा महगाई नियंत्रित होगी |
६. सांस्कृतिक पतन : फिल्म, सिनेमा, इन्टरनेट पर पोर्न, और कुछ भी वस्तु बेचने के लिए नारी को वस्तु की भाति परोसना इत्यादि | धार्मिक साक्षरता और संचार माध्यमों से महापुरुषों के जीवन चरित्रो को प्रस्तुत कर के ही इस से निपटा जा सकता है | नैतिक शिक्षा के अभाव में अपराध बढ़ेंगे, अन्धविश्वास बढ़ेगा, कोई कुछ भी नया लाकर लोगो को मुर्ख बनाएगा | इसका विकल्प है लोगो को विवेकशील बनाने के लिए वेदों की शिक्षा का प्रचार प्रसार ही एक मात्र समाधान है |
विकल्प : नाट्य मंचों के माध्यम से, संस्कृत और वैदिक संगीत के माध्यम से, अंतरजाल से, लेखो से, पुस्तकों के प्रचार से भाषणों एवं संवादों से समाज के हर वर्ग को वैदिक व्यवस्था की श्रेष्ठता बताई जा सकती है |
७. अवैदिक शिक्षा : वर्तमान शिक्षा अधिकाधिक शुद्र(श्रामिक) बनाने की है | वैदिक व्यवस्था समाज में योग्यता अनुसार व्यक्ति का चरित्र निर्माण करती थी | गरीब अमीर के बालक साथ बढते थे | लोगो के अपने व्यवसाय थे बजाये दूसरों के आधीन कार्य करने के | केवल राजा की नौकरी ही श्रेष्ठ मानी जाती थी क्यों के वो राष्ट्र सेवा होती थी | उच्च नैतिक मूल्य और चरित्र होते थे और लोग जीवन का ध्येय नही भूलते थे | समाज में आर्थिक और नैतिक समृधि के साथ-२ अध्यात्मिक समृधि भी थी | अभी तो अंग्रेजियत की लहर उची ही होती जा रही है |
विकल्प : इतिहास का सही लेखन शोधन साथ पुनः गुरुकुल व्यवस्था को लाना होगा और राष्ट्र का सही इतिहास बालको को बताना होगा अन्यथा कुछ समय बाद राष्ट्र भक्त होना बंद हों जाएँगे और सेना में लोग सिर्फ वेतन के लिए ही जाएँगे |
८. लोकतंत्र : जैसे-२ देश में लोकतंत्र की वर्तमान व्यवस्था की जड़े मजबूत होगी देश में महगाई, अपराध, नैतिक पतन, विघटन, विदेशी नियंत्रण और ऊपर बताई समस्याओ के साथ-२ अनेको समस्याए बढती जाएँगी | दुनिया की सबसे निकृष्ट व्यवस्था है लोकतंत्र | द्वतीय विश्वयुद्ध में जापान के २ महानगरों को परमाणु विस्फोट से नष्ट कर के लाखो मनुष्यों की हत्या कर दि गई सिर्फ इसलिए के जापान का राजा राजपद छोड़ के लोकतंत्र स्वीकार कर ले | गरीब लोकतांत्रिक देशो में धनवान देशो का नियंत्रण सबसे सरल है | किसी भी देश को नियंत्रित करना है तो उसकी अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करिये और अर्थव्यवस्था के लिए बैंक और बाजार ये २ माध्यम है | देश में ऐसी सरकारे बनाई जाती है और रही है जो विदेशियों को खुले दिल से आमंत्रित करती रही और देश में गरीबी बढ़ाती चली गई | लोकतंत्र में कोई नेता नहीं होता | अतः हमें पुनः वैदिक संसदीय प्रणाली लानी होगी राष्ट्र का निर्माण करने के लिए ऋषि प्रणित वैदिक प्रजतंत्र व्यवस्था लानी होगी |
विकल्प : इसी लोकतंत्र में सुधार करे जाए | चुनाव के बाद महगाई बढ़ने के स्थान पर घटे तब तो लोगो को लाभ मिले सरकार बदलने का | लोग घर बैठे वोट कर सके वोट के लिए ३० दिन का समय दिया जाए इस बीच लोग तीन बार अपना वोट बदल सके | एक व्यक्ति के चरित्र के अनुसार उसके वोट का मान किआ जाना चाहिए | एक शैतान और साधू दोनों के मत का मान एक नही होना चाहिए |
राम राज्य सिर्फ वैदिक राष्ट्र में संभव है जहा राष्ट्र की संसद पर ओ३म् का भगवा ध्वज लहराए और वेद मंत्रो से सदन का आरम्भ व समापन हों | अतः हमारी समस्याओ का समाधान है वैदिक राष्ट्र का निर्माण |

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Friday, 20 January 2017

संकल्प जो पहाड़ तोड़ दे – दशरथ मांझी

ऋषि दयानंद ने ब्रह्मचर्य बनाए रखने के लिए संकल्प को प्रेरणा बताया था | यजुर्वेद के शिव संकल्प सूत्र शुभ संकल्प की ही महिमा गाते है | ऐसा ही प्रकरण है दसरथ मांझी का | 
जिसे लोग चूहा खाने वाली छोटी जाती का व्यक्ति कहते है उसने अपने संकल्प से वो कर के दिखाया जो किसी भी बड़े से बड़े मैनेजमेंट स्कुल में प्रेरणा श्रोत के तौर पर पढ़ाया जाना चाहिए | इस से ये भी सिद्ध होता है के हम किसी भी समाज में पैदा हुए हो अपनी अच्छी पहचान बनाने से हमें कोई नहीं रोक सकता | हम समाज को क्या दे कर जाते है इसी से हमारी पहचान बनती है | पहचान प्रेरणादायक हो ये अधिक बेहतर बात है |
आरंभिक परिचय
दशरथ मांझी का जन्म १९३४ में बिहार में गया के गहलौर ग्राम में हुआ था और ये व्यक्ति जाना जाता है अपने जूनून के लिए जिसने १९६० में आरम्भ किआ कार्य १९८२ में लगभग 22 वर्षो में ११० मीटर लम्बी, ७.७ मीटर गहरी और ९.१ मीटर चौड़ी सड़क पहाड़ काट के बना डाली | और ये सब सिर्फ एक छेनी हथौड़ी के दम पर किआ | लोगो ने पागल समझा कोई भी समझेगा पर इस व्यक्ति ने अपनी धुन नही छोड़ी और आर पार रास्ता बना डाला जिस से जिससे अत्री से वजीरगंज ब्लोक का रास्ता ५५ किलोमीटर से १५ किलोमीटर ही रह गया यानी ४० किलोमीटर की दुरी कम हो गई | अब यदि हम आर्थिक तौर पर भी जोड़े के मार्ग बनने से और आने वाले समय में कितने वाहनों का कितना ईधन बचा और बचेगा तो इस व्यक्ति ने देश के लिए भी इस प्रकार अपना योगदान दिया |
प्रेरणा का श्रोत
खेतो पर काम करते समय दशरथ मांझी की पत्नी फाल्गुनी देवी खाना लाते समय पहाड़ के दर्रे में गिर गई | गंभीर चोट लगने और समय पर अस्पताल न पहुच पाने के कारण फाल्गुनीदेवी की मृत्यु हो गई | ये विषय दशरथ मांझी के लिए प्रेरणा का श्रोत बना | कोई अन्य स्वास्थ सेवाओं के अभाव में नही मरेगा इस प्रेरणा से एक पूरा पहाड़ अकेले दम पर काट देना निश्चित तौर पर बहुत बड़ा प्रेरणा का श्रोत है | जब एक अनपढ़ व्यक्ति अपने संकल्प की शक्ति से इतना कुछ कर सकता है तो हम पढ़े लिखे लोग क्यों नहीं कर सकते और क्या नहीं कर सकते जिस से समाज की दिशा और दशा बदले ?
मृत्यु
आपका निधन ७३ वर्ष की आयु में अखिल भारती आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली में १७ अगस्त २००७ में पित्ताशय के कैंसर से हुआ | राज्य सरकार ने अंत्येष्टि संस्कार में पूरा सम्मान दिया | माउन्टेन मैन नाम की ख्याति से दशरथ मांझी अपनी पहचान छोड़ गए |
फिल्में एवं सम्मान
कुमुद रंजन ने आपके जीवन पर वृतचित्र बनाया वर्ष २०११ में | वर्ष २०१५ में नवाजुद्दीन सिद्धकी को लेकर केतन मेहता ने आप पर चलचित्र बनाया | कन्नड़ में भी आप पर फिल्म बनी है | आमिर खान अपने शो सत्यमेव जयते के लिए दशरथ के पुत्र भागीरथ मांझी और उनकी पत्नी बसंती देवी से भी मिले थे उनके आर्थिक सहायता देने का वादा भी किआ था | यद्दपि धन के अभाव में बसंती देवी का वर्ष २०१४ में निधन हो गया था | दशरथ मांझी के सम्मान में नितीश कुमार ने ३ किलो मीटर लम्बी रोड और एक अस्पताल बनवाने का वादा किआ है |

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Wednesday, 18 January 2017

हवाई जहाज के भारतीय अविष्कारक शिवकर बापूजी तलपदे

शिवकर बापूजी तलपदे जी ने गत २०० वर्षो में प्रथम विमान की रचना की और उसे उड़ा कर भी दिखाया | ये विषय आर्य समाज के लेखको ने तो लिखा परन्तु बहुत थोड़े लोग ही इस बात को जानते थे | रिलायंस एंटरटेनमेंट ने जब इस पर चलचित्र बनाया हवाईजादा तब बहुत लोगो तक ये बात पहुच पाई | यद्दपि मुंबई के ही कुछ लोगो ने इस पर जिस प्रकार चलचित्र में तलपदे जी का चरित्र हनन किआ गया उस पर आपत्ति उठाई | उन्हें शराबी चित्रित किआ गया फिल्म में | आइये जानते है प्रथम तलपडे जी के बारे में |



शिवकर बापूजी तलपदे जी का जन्म बम्बई, महाराष्ट्र के चीरा बाजार में सन १८६४ ई में सूर्यवंशी पठारे प्रभु समुदाय में हुआ था | आपकी शिक्षा जे जे स्कुल आफ आर्ट में हुई थी | आपको श्री चिरंजीलाल वर्मा जी मार्गदर्शन मिला और ऋषि दयानंद कृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में महर्षि दयानंद के ऋग्वेद के मंत्रो के भाष्य देखे जो विमान विद्या का वर्णन करते थे इस प्रकार महर्षि दयानंद कृत आर्ष साहित्य का आपका अध्यन आरम्भ हुआ | महर्षि भारद्वाज कृत विमान शास्त्र भी बाद में आपको प्राप्त हुआ जो आपकी शोध में सहायक हुआ | आपने अष्टाध्यायी विधि से संस्कृत सीख कर अपनी शोध को नए आयाम दिए | सुब्राया शास्त्री का आपको सानिध्य मिला जो पूर्व से विमान विद्या पर शोध कर रहे थे |  

इस प्रकार आप दोनों ने मिलकर १८९५ में विमान का जुहू के चौपाटी मैदान पर सफल प्रदर्शन किआ |


आपका विमान मनुष्य रहित था और १५०० फीट तक ऊपर गया और वायु में ३७ सेकेण्ड तक रहा | ये ८ वर्ष बाद राईट बंधुओ के विमान से कही उत्तम प्रदर्शन था | उस विमान के दर्शनार्थ प्रसिद्ध जज महादेव गोविन्द रानाडे आये थे, सयाजीराव गायकवाड तृतिय एवं तिलक जैसे प्रसिद्ध जन आये थे |  

विमान के नीचे गिरने के पश्चात आपने शोध को और गति दी और पारद को विमान के ईधन पर कार्य करने के लिए पारे की वाष्प से चलने वाले इंजन को बनाना शुरू किआ | नासा ने इस पर १९६० के दशक में मरकरी वोर्टेक्स इंजन पर काम आरम्भ किआ था और ये अभी भी अपने समय के आगे की शोध है | आपने अपने उस प्रथम विमान का नाम मरुतसखा रखा | दूसरा विमान आपने रुक्म विमान बनाया | अंग्रेजो ने आप पर कई गलत आरोप लगाए और जेल में डाल दिया | १९२३ में प्रकाशित हुई डेविड हैचर चिल्ड्रेस की पुस्तक में वर्णित विमानों की डिजाइन आप की शोध पर ही आधारित थी | इस शोध का नाज़ी जर्मनी में भी बहुत लाभ उठाया गया और हिटलर की उड़न तश्तरी में भी आपकी शोध का प्रयोग किआ गया |
आपके जीते जी अंग्रेजो ने आपको पनपने न दिया | उस समय आको १०,००० की आवयश्कता थी शोध पूर्ण करने हेतु जो सहायता आपको न मिल सकी |

निजी जीवन एवं साहित्यिक कार्य

आपकी एक पत्नी व तीन बच्चे थे जिनमे दो उतर और एक पुत्री थी | आपने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका का मराठी में अनुवाद किआ था | श्रीपाद सातवलेकर जी आपके मित्र हुआ करते थे उन दिनों वे श्रीदास विद्यार्थी के नाम से लिखा करते थे उनकी पुस्तको का सम्पादन का कार्य आप किआ करते थे | आपने निम्न पाँच पुस्तकें लिखी है ।
       १.  प्राचीन विमान कला का शोध
२.     ऋग्वेद-प्रथम सूक्त व उसका अर्थ
३.     पातञ्जलि योगदर्शनान्तर्गत शब्दों का भूतार्थ दर्शन
४.     मन और उसका बल
५.     गुरुमंत्र महिमासम्पादन कार्य

सम्पादन कार्य 

१.    वैदिक धर्मस्वरुप(ऋग्वेदादिकभाष्यभूमिकाका मराठी अनुवाद), १९०५
२- राष्ट्रीय उन्नतीचीं तत्वें
३- ब्रह्मचर्य, १९०५
४- राष्ट्रीसूक्त व त्याचा अर्थ
५- वैदिक विवाह व त्याचा उद्देश
६- सत्यार्थप्रकाश पूर्वार्ध, १९०७
७- गृहस्थाश्रम, १९०८
८- योगतत्त्वादर्श

अन्य सम्पादन एवं सामाजिक कार्य

१.      संपादक, ‘आर्यधर्म
२- मंत्री, वेद विद्या प्रचारिणी पाठशाला
३- प्रकाशक, शामराव कृष्णअणि मंडली
४- सदस्य, वेदधर्म प्रचारिणी सभा
६- कोल्हापूर शंकराचार्य से विद्याप्रकाशप्रदीपउपाधि से समान्नित
आप सदस्य रहे आर्य समाज, काकड़वाडी,मुंबई के | और आर्य समाज के लोग संशय करते है की तलपदे जी आर्य समाजी थे या नहीं | श्री राजीव दीक्षित जी ने भी आपके आविष्कार के विषय में प्रकाश डाला है | राजीव जी ने ये भी अपने व्याख्यान में कहा की तलपदे जी का कार्य रैले ब्रदर्स ने हथिया लिया | विचारणीय है की रैले भी साइकिल के कार्य से जुड़े थे और १८९६ से इनका कार्य विशेष रूप से आगे बाधा और राईट बंधू भी साइकिल मेकेनिक थे | तलपदे जी का गुमनामी ने १७ सितम्बर १९१७ में ५३ वर्ष की आयु में देहावसान हो गया | यदि भारत सरकार चाहे तो सही दस्तावेज निकाल सकती है और दो भारतीय विद्वान् सुब्रय शास्त्री व तलपदे जी को उनका सही सम्मान दे सकती है |



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