Monday, 1 August 2016

जब बोध होता हैं....

बोध जब होता हैं तो समाज में क्रांति आती हैं | सर आइस्सक न्यूटन से पहले कितनो ने सेब को गिरते देखा पर गुरुत्व के सिद्धांत तक आधुनिक युग में सिर्फ एक ही पंहुचा | बोध तभी होता हैं जब सत्य को जानने की जिज्ञासा होती हैं, सत्य तक पहुचने के ली पुरुषार्थ करने का सामर्थ्य होता हैं |  और उस से भी बढ़कर जब सत्य को स्वीकारने का साहस होता हैं | सामान्य सी रोजमर्रा में देखने वाली चीज़ के सत्य को हम स्वीकार नहीं करते और इसीलिए हम सत्य तक नहीं पहुच पाते | ईश्वर चन्द्र विद्यासागर कुए में रस्सी से पत्थर पर पड़े निशाँ से प्रेरित हो गए | बड़े-२ वैज्ञानिक किसी न किसी चीज़ से प्रेरित हुए और उन्होंने महान आविष्कार, या खोजे कर डाली | जो दैनिक जीवन में हमें दीखता है हम बस उस पर चिंतन करना आरम्भ कर दे | हमारी मननशीलता ही हमारे बोध का मूल होगी |
  इसी प्रकार एक १४ वर्षीय किशोर बालक के मन में शिव को जानने के प्रति जिज्ञासाए उठी | वह बालक शिव रात्री का व्रत रहा | इस विश्वास के साथ के रात को अन्न ग्रहण करने स्वय शिव आयेंगे वह बालक रात भर जागा | शिव जी की मूर्ति पर मूषक को देख कर बालक के मन में प्रश्न उठ खड़े हुए | आखिर क्यों चढाते हैं हम भोग जब शिव ना खाते हैं वो भोग और ना ही बचा पाते हैं अपने भोजन को छोटे जीवो से | सवाल सच्चा था हम सब देखते हैं मंदिरो में पाषाणों की मूर्तियों पर जीवो को उछल कूद करते | रक्षा भी संरक्षण भी सब हमें करना होता और भोग के नाम की मिठाई भी हम ही खाते | मूर्ति कुछ भी नहीं करती पर हम कभी सोचते नहीं | वैसे भी जब प्रश्न आस्था से जुड़ा हो तो सामान्य वैज्ञानिक भी दिमाग नहीं चलाते | पर विवेकशील की जिज्ञासाए रोकी नहीं जा सकती | सत्य प्रिय की सत्य की खोज को रोका नहीं जा सकता | उस किशोर बालक की भी जिज्ञासाए कोई शांत ना कर सका | उसे बोध तो हो गया के ये गलत हैं पर सत्य क्या हैं ये जानना रह गया था |
   २१ वर्ष में पूर्णानंद के हाथो सन्यास लेकर गुरु की खोज चलती रही | ३५ वर्ष की आयु में जा कर विरजानंद नाम के सन्यासी मिले ३ वर्ष व्याकरण सीखी | आर्ष ग्रंथो का अथा स्वाध्याय किया | आश्रम से निकल कर और तप किया | हिमालय की कंदराओ में तप किया | आखिर उस शिव को खोज ही निकाला | कितनी कठिनाइय आई कितने ही रुकवाटे आई | पर रुके नहीं, समाज में व्याप्त रुढियो की परवाह नहीं की | जो सत्य था उसे खोजा स्वीकार किया और उसका प्रचार किया | उस सत्य को हमें सरलता से “सत्यार्थ प्रकाश” नामक अमर ग्रन्थ में सुलभ कराया | हजारो ग्रंथो के अध्यन का प्रभाव उस अमर कृति में हमें साफ़ दिखती हैं | ऋषि केवल यही नहीं रुके अनेको ग्रन्थ लिखे उसी सत्य के प्रचार के उद्देश्य से | और उस से भी बढ़कर उन्होंने किए वेद भाष्य | समाज में व्याप्त समस्यायो का स्थायी समाधान निकाला उन्होंने वेदों के प्रमाण से | पुनः समाज में क्रान्ति आई | समाज का उद्धार हुआ | राष्ट्र का उद्धार हुआ | वो बालक से सन्यासी और सन्यासी से ऋषि हुआ, उस ऋषि के पथ पर चलते हुए ना जाने कितने राष्ट्र निर्माणक हुए | धर्म रक्षक हुए | भारत को आर्यावर्त बनाने की आवाज उठाने लगी | विश्व में भगवा झंडा झंडा फैराने की महत्वकांक्षाए पुनः आर्यो के मन में आ गई |
उस बालक का नाम था मूल शंकर जो दयानंद बना | आर्य समाज बना कर पूरे विश्व में वैदिक धर्मं का प्रचार प्रसार होने लगा | ऋषि की असमय हत्या से वेद भाष्य का कार्य रुक गया और वैदिक धर्म को आर्यो को अथा क्षति हुई | जिस प्रकार सर आइसाक न्यूटन ने आधुनिक युग में गुरुत्व के सिद्धांत को पुनः तर्क व प्रमाण से प्रकट किया उसी प्रकार ऋषि दयानंद ने अनादी तत्वों के वैदिक सिद्धांत को वेदों के प्रमाण समेत प्रस्तुत किया | पर ऋषि सिर्फ वेदौद्धर के कार्य तक सिमित नहीं रहे | समाज के हित का हर कार्य किया उन्होंने | दलितौद्धारक, नारी शिक्षा उद्धारक, गुरुकुल शिक्षा प्रणाली, गैशालाए, राष्ट्र स्वाभिमान जगाया उन्होंने | और उनकी सिंह गर्जना जो उनके ग्रंथो में मिलती हैं से अँगरेज़ इतना डरे की कभी सामने से हमला करने का साहस नहीं कर सके | राष्ट्र के उद्धारक दयानंद का आज समाज ऋणी हैं | और ये सब उनके बोध के कारण | वह रात्री शिव रात्रि की थी जब उस किशोर बालक को बोध हुआ था | शिव रात्री को ऋषि दयानंद बोधोत्सव के तौर पर भी मनाया जाता हैं |
तो आप में से कितने सत्य का बोध करते हैं | क्यों की जब भी बोध हुआ हैं समाज बदला हैं | समाज बदलना हैं तो सत्य का बोध करिये | वेदों के सन्देश का अनुसरण करिये | परमात्मा को , सत्य शिव को जानिये | जीवन में एक बार “सत्यार्थ प्रकाश” का अध्यन अवश्य करे | आखिर उनके ऋण की इतनी कीमत तो आप चुका ही सकते हैं |
ओं३म्

सर्वे भवन्तु सुखिनः

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