शिव संकल्प सूत्र
ओ३म्
चरित्र का निर्माण मन पर नियंत्रण से होता हैं | यजुर्वेद के शिव संकल्प सूत्र मन को
नियंत्रण करने में अत्याधिक सहायक हैं | अपने बालक बालिकाओ को नित्य रात्री में शयन पूर्व
इन मंत्रो से प्रार्थना करना सिखाये |
स्वंय भी नित्य प्रार्थना करे परमात्मा से | शीघ्र आप जीवन में परिवर्तन देखेंगे | मंत्रो के भाष्य महर्षि दयानंद के
प्रस्तुत किये जा रहे हैं |
यजुर्वेद ३४-१
पदार्थ : (यत्) जो (जाग्रतः) जाग्रत अवस्था में
(दुरम् उदैती) दूर दूर भागता हैं और (सुप्तस्य) सुप्त अवस्था में भी (तथा+एव) उसी
प्रकार ही (एती) जाता है | (तत्) वह
(दूरं गमं) दूर दूर पहुचने वाला (ज्योतिषां ज्योतिः) ज्योतियो का भी ज्योति रूप
प्रधान इन्द्रीय (एकं) एकमात्र (दैव) दिव्य शक्ति सम्पन्न (में मनः) मेरा मन
(शिवसंकल्पमस्तु) शुभ संकल्पों वाला (अस्तु) हो |
यजुर्वेद
३४-२
पदार्थ : (येन) जिस मन से (अपसः) पुरुषार्थी (धीराः)धीर
और (मनीषिणः) मनस्वी या मननशील पुरुष (यज्ञे) सत्कर्म
और (विदथेषु) युद्धादि में भी (कर्माणि) इष्ट
कर्मो को (क्रन्वन्ति) करते हैं और (यत्) जो (अपुर्वम्) अपूर्व हैं और (प्रजानाम्) प्राणियों
के (अन्त) भीतर (यक्षम्) मिला हुआ हैं (तत्) वह
(में) मेरा
(मनः) मन
(शिवसंकल्पमस्तु) शिव
संकल्पो वाला हो |
यजुर्वेद ३४-३
पदार्थ : (यत्) जो मन (प्रज्ञानं) ज्ञान (चेतः) चिंतन (उत)
और (धृति) धैर्य से युक्त हैं (च) और (यत्) जो (प्रजासु) प्रजाओ के (अन्तः) अंदर
(अमृतम्)अमृत (ज्योतिः) ज्योति हैं और (यस्मात्) जिसके (ऋते) विना (किंचन) कुछ
(कर्म) काम (न) नहीं (क्रियते) किया जाता हैं (तन्मे मनः) वह मेरा मन
(शिवसंकल्पमस्तु) शिव संकल्पों वाला हो |
यजुर्वेद ३४-४
पदार्थ : (येन) जिस (अमृतेन) अमर मन से (भूतम्) भूत
(भुवनम्) वर्तमान (भविष्यत्) भविष्य सब कुछ (परिग्रहीतम्) परिगृहीत हैं | (येन) जिस मन से (सप्त होता) सात (ऋत्वाजो) द्वारा
होने वाला यज्ञ (तायते) फैलाया जाता हैं (तन्मे मनः) वह मेरा मन (शिवसंकल्पमस्तु)
अच्छे संकल्पों वाला हो |
यजुर्वेद ३४-५
पदार्थ : हे प्रभो ! (यास्मिन्) जिस शुद्ध मन में (ऋचः
साम) ऋग्वेद और सामवेद तथा ((यास्मिन्) जिसमे (प्रजानाम्) प्राणियों के समग्र (चित्तम्)
ज्ञान (ओतम्) सूत में मणियों के सामान सम्बद्ध हैं (तत्) वह (में) मेरा (मनः) मन
(शिवसंकल्पमस्तु) उत्तम संकल्पों वाला हो |
यजुर्वेद ३४-६
पदार्थ : (यत्) जो मन (मनुष्यान्) मनुष्यों को (सुषारथिः)
उत्तम सारथी (अश्वानिव) घोडो कि तरह (नेनियते) इधर-उधर ले जाता हैं और जो मन, अच्छा सारथी (अभीशुभिः) रस्सियों से
(वाजिन इव) वेग वाले घोडो के समान मनुष्यों को वश में रखता हैं और (यत्) जो
हत्प्रतिष्ठम् ह्रदय में स्थिर हैं (अजिरम्) जरा सहित हैं (जविष्ठम्) जो अतिशयगमन
शील हैं | (तत्) वह
(मे) मेरा (मनः) मन (शिव-संकल्पमस्तु) उत्तम संकल्पों वाला हो |
यजुर्वेद ४-१४
हे प्रभो ! तू अच्छी तरह जागता रहता हैं, इसलिए हम सुख पूर्वक निश्चिंत होकर सोते
हैं, तू प्रमाद रहित होते
हुए हमारी रक्षा कर और प्रातः ही पुनः हमें प्रबुद्ध कर-पुनः हमें जगा |
इस मन्त्र को नित्य कर्म विधि से अति संछेप में
प्रस्तुत कर रहा हू |
Labels: धर्म एवं अध्यात्म
1 Comments:
साधुवाद बंधू
एक श्रेष्ठ प्रस्तुति हेतु बधाई।
जारी रखे ये अभियान
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