परमात्मा के विभिन्न नाम
किसी का भी संबोधन हम
उसके नाम से करते हैं | नाम हमारे गुणों के सूचक हैं नियमानुसार रखे
जाए अतः नाम गुण, कर्म और स्वभाव अनुसार रखे जाते हैं |
उस परमात्मा के तो
असंख्य गुण हैं हमें परमात्मा के उन गुणों के बारे उसके भिन्न नामो के साथ वेद ज्ञान करते हैं | सृष्टि
के आदि में मानवजाती के उत्थान के लिए परमात्मा ने आदि ऋषियों
के माध्यम से अपना ज्ञान प्रकट किया जिसे हम वेद के नाम से जानते हैं | वेद
में वर्णित एक-एक शब्द के कई अर्थ बनते हैं इस प्रकार शब्दों के अर्थो को
यथायोग्य स्थानानुसार ही लेना चाहिए | गलत जगह गलत अर्थ लेने से गलत धारणाये
और गलत मान्यताये बनती चली गई जिससे मानव जाती का पतन हुआ |उत्थान
के लिए हमें सत्य अर्थ जाना होगा | सारे शब्दों की रचना के लिये मूल धातुए
वेदो से ही आई हैं अतः सारे संस्कृत शब्द प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से ईश्वर
प्रदत्त ज्ञान से जुड़े हैं | उस परमात्मा के कुछ गुण प्रकृति में भी
मिलते हैं अतः प्राचीन ऋषियों ने प्रकृती की उन चीजों का नाम उनके गुण
अनुसार रखा | परमात्मा का कोई लिंग नहीं इसलिए उसके नाम स्त्रीलिंग
पुर्लिंग और नपुसक लिंग में मिलते हैं | इसी प्रकार मनुष्यों के नाम गुणवाची और
अर्थवाची रखे जाते हैं इतिहास में भी कुछ मनुष्य हुए हैं जिनके नाम वेदों
में वर्णित परमात्मा के गुणात्मक नाम के लिंगानुसार रखे गए हैं | क्यों
की देव और देवी स्वरुप मनुष्यों ने भी परमात्मा के वे धारण कर सकने वाले
गुण धारण किये | उसके कुछ गुण मनुष्य चाह कर भी धारण नहीं कर सकता अतः वे
गुणात्मक नाम मनुष्यों को रखने का अधिकार नहीं | परमात्मा के असंख्य नामो में से हम आपको
कुछ नाम अर्थ समेत बताते हैं |
१. ओ३म् : यह तीन अक्षरों से
बना हैं अ उ म् (अकार
उकार मकार) परमात्मा का श्रेष्ठ नाम हैं | क्यों की इस से उसके बहुत से गुणात्मक नाम आजाते
हैं उदाहरणतः अकार से विराट, अग्नि, विश्वादी | उकार से हिरण्यगर्भ, वायु, तेजस
आदि | मकार
से ईश्वर, आदित्य और प्राज्ञ आदि | ये
सारे गुण ना कोई मनुष्य धारण कर सकता हैं ना ही सारे गुण धारण करने का सामर्थ्य रखता हैं अतः
यह नाम सिर्फ परमात्मा का ही हैं |
२. ओम् : रक्षा करने के कारण उसका यह नाम हैं | ऐसा
गुण रखने वाले मनुष्य को इस नाम से पुकारा जा सकते हैं | या माता पिता अपने बालक को समाज के
कल्याणार्थ यह गुण धारण करवाने की भावना से अर्थवाची यह नाम रख सकते हैं |
३. खम् : सम्पूर्ण आकाश में व्यापक होने से उसका
यह नाम हैं | कोई मनुष्य यह नाम धारण करने का अधिकारी नहीं |
४. ब्रह्म : प्रकृति
और जीवात्मा से सामर्थ्य व गुणों अनुसार बड़ा होने से उसका यह नाम हैं | यह
नाम ही सिद्ध करता हैं के वह परमात्मा अकेला नहीं | बड़ा तभी होता हैं जब कोई छोटा हो | केवल
तुलात्मक परिस्थियों में ही मनुष्य को य जड़ वास्तु को यह नाम देना चाहिए अन्यथा
परमात्मा को जब ब्रह्म कहा जाए तब कदापि नहीं |
५. अग्नि : स्वप्रकाशित होने की वजह से उसका नाम अग्नि हैं | सृष्टि
के आदि में महर्षि अग्नि उन चार ऋषियों में से एक हुए हैं जिनको वेद
का ज्ञान प्राप्त हुआ | परमाणुओ की उच्च उतेजित आवस्था जिसमे तापीय गुण हैं
उसे भी अग्नि कहा गया हैं |
६. मनु : विज्ञान स्वरुप होने से मनु भी हैं उसका
नाम | इस
नाम के इतिहास में महर्षि रहे हैं जिन्हें जन आग्रह पर विश्व का प्रथम राजा बनाना
पड़ा था |
७. प्रजापति : सबका पालन करने वाला होने के कारण
विधाता का यह भी नाम हैं | कई राजाओं के नाम रहे हैं |
८. इंद्र : परम ऐश्वर्यवान होने से उसे इन्द्र कहा गया | सभी
का राजा होने से भी उसको इन्द्र कहा गया | इतिहास में कई राजाओ के नाम इन्द्र रखे
गए | संभवतः
उपाधि ही हो गई | वेद में इन्द्र के नाम से कई उपदेश हैं | सौर्यमंडल
के सातवे ग्रह को भी यह नाम दिया गया हैं कुछ अरुण भी कहते हैं उस
पिंड को |
९. प्राण : सबका जीवनमूल होने से उसे प्राण कहा गया | जैसे
प्राणों से इन्द्रियवश में रहती हैं परमात्मा के वश में सब जगत रहता हैं
| आधुनिक
युग में हिंदी चलचित्र उद्योग से जुड़े प्रसिद्ध अभिनेता का भी
यही नाम हैं |
१०. ब्रह्मा : सब जगत के बनाने से उसका यह नाम हैं | सृष्टि
के आदि में वेदों के प्राप्तकर्ताओ ने भी जिस ऋषि को चारों वेद कंठस्त कराये उनका
नाम भी ब्रह्मा
हुआ |
११. विष्णु : सब जगह व्यापक होने से उसका नाम विष्णु
हैं | इतिहास
में इस नाम का कोई पुरुष था या नहीं यह शोध का विषय हैं |
१२. रूद्र : दुष्टों को दण्डित कर के न्याय करने की
वजह से उसका नाम रूद्र हैं |
१३. शिव : सबका कल्याणकर्ता करने से उसका नाम शिव
हैं |
१४. अक्षर : अविनाशी अर्थात उसका कभी क्षरण ना होने
के कारण उसका नाम अक्षर हैं |
१५. स्वराट : (ट
में हलंत) स्वं प्रकाश स्वरुप होने से उसका यह नाम हैं |
१६. कालाग्नि : प्रलय में काल का भी काल होने से उसका
नाम कालाग्नि हैं | काल (समय) उसके आधीन हैं |
१७. दिव्य : वो प्रकृति के दिव्या पदार्थो में
व्याप्त हैं अतः उसका नाम दिव्या हैं |
१८. सुपर्ण : जिसका पालन उत्तम हैं और कर्म पूर्ण हैं
इसलिए वह सुपर्ण हैं |
१९. गुरुत्मान : जिसका आत्मा यानी स्वारूप महान हैं | अतः
वह गुरुत्मान हैं |
२०. मातरिश्वा : जो अनंत बलवान हैं उसे मातरिश्वा भी
कहते हैं |
२१. भूमि : जिसमे सब भुत प्राणी होते हैं, इसलिए
ईश्वर का नाम भूमि हैं | धरती में भी इस पृथ्वी के सब भुत होते हैं अतः हम धरती
को भी भूमि कहते हैं |
२२. विश्व : जिसमे पाचो महाभूत (अग्नि-जल-पृथ्वी-आकाश-वायु)
प्रवेश कर रहे हैं अर्थात वह इन सब में व्यापक हैं इसलिए वह विश्व नाम से भी जाना जाता
हैं | दुनिया
को भी हम विश्व कहते हैं |
२३. हिरण्यगर्भ : जिसमे संपूर्ण सुर्य्यादी लोक उसी के आधार पर रहते हैं
अर्थात वह इन सभी लोको का गर्भ हैं अतः उसका नाम हिरण्यगर्भ हैं | एक
वेद विज्ञानि* अनुसार वेद की खगोलीय भाषा में भी यह कार्ययुक्त शब्द हैं |
२४. वायु : अपने बल से सबका धारण करने वाला और प्रलय
करने वाला सबसे बलशाली होने के कारण उसका नाम वायु हैं | सृष्टि के आदि में महर्षि वायु उन चार
ऋषियों में से एक हुए हैं जिनको वेद का ज्ञान प्राप्त हुआ | प्रकृति
में हमारे आसपास के मंडल में जो जीवन के लिए आवश्यक अद्रश्य पदार्थ हैं उसे भी
बलशाली होने के कारण हम वायु कहते हैं |
२५. तैजस : जो स्वं प्रकाशित होता हैं और सूर्यादि लोको
को भी प्रकाशित कर्ता हैं | मनुष्यों को भी वहा समाधी में प्रकाशित
कर्ता हैं अतः उसका नाम तैजस हैं |
२६. ईश्वर : जिसका सत्य विचारशील ज्ञान और सत्य
ऐश्वर्य हैं उस परमात्मा का नाम ईश्वर हैं |
२७. आदित्य : जिसका विनाश कभी ना हो उसी ईश्वर को
आदित्य कहते हैं | आधुनिक युग में कई लोगो का ये नाम होता हैं जब के ये गुण
जीवात्मा का हो सकता हैं शरीर का नहीं |
२८. प्राज्ञ : जो
सब पदार्थो का जानने वाला | जो जीवात्मा और प्रकृति के गुणों और
स्वाभाव को जानने वाला हैं वहा परमात्मा का नाम प्राज्ञ हैं |
२९. मित्र : जो सबसे स्नेह करके सब के प्रीती योग्य, सबका
सहायक हैं वहा परमात्मा का नाम मित्र भी हैं | वेद विज्ञानियों ने परमाणु के एक उपभाग को
भी मित्र कहा हैं | जो हमसे स्नेह कर्ता हैं आव्यशकता पर धर्मानुसार सहायक
होता हैं उसे भी हम मित्र कहते हैं |
३०. वरुण : जो मुमुक्षुओ(मोक्ष के इक्छुक) द्वारा ग्रहण
किया जाता हैं उस ऐश्वर्यवान परमात्मा का नाम वरुण हैं | वेद विज्ञानियों ने परमाणु के एक उपभाग
को भी मित्र कहा हैं | सौर्यमंडल के आठवे गृह को भी ये नाम
दिया गया हैं |
३१. अर्य्यमा : जो पाप और पुण्य करने वालो को यथायोग्य फल देता हैं उस
परमात्मा को आर्यमा कहते हैं | वेद विज्ञानि** ने परमाणु के एक उपभाग को भी
मित्र कहा हैं |
३२. ब्रहस्पति : जो बड़े से भी बड़ा हैं और समस्त आकाश को भी धारण करे
हुए हैं उसका नाम ब्रहस्पति हैं | ऋषियों ने हमारे सौर्य मंडल के सबसे
बड़े गृह को भी यही नाम दिया हैं |
३३. उरुक्रम : महापराक्रमी होने से उसका नाम उरुक्रम
हैं |
३४. शम् : सबके लिए सुखदायक होने से उसका नाम शम्
हैं |
३५. सूर्य्य : सबको प्रकाशित करने के कारण उसका नाम
सूर्य्य हैं | ऋषियों ने हमारे सौर्यमंडल के तारे को भी यही नाम दिया हैं |
३६. परमात्मा : जो सबसे उत्कृष्ट और सभी में सूक्ष्म अति सूक्ष्म रूप से
व्याप्य अंतर्यामी हैं अतः वहा परम आत्म परमात्मा कहेलाता हैं | यह
नाम सिर्फ उस एक जगत निर्माता का ही हैं |
३७. परमेश्वर : जिसके तुल्य कोई ऐश्वर्यवान नहीं | यह
नाम सिर्फ उस एक जगत निर्माता परमात्मा का ही हैं |
३८. ईश्वर : वह अकेला सामर्थ्यवान हैं अतः उसका नाम
ईश्वर हैं | मनुष्यों का यह नाम रखा जा सकता हैं |
३९. सविता : वह जगत का उत्पति कर्ता हैं इसलिये और
सबको धर्म के लिए प्रेरित कर्ता हैं इसलिए वहा सवितु देव परमात्मा हैं |
४०. देव : जो सिर्फ जगत को देता ही देता हैं बिना किसी
वापसी की इक्छा के वह देव परमात्मा का नाम हैं | और भी भिन्न कारणों से हम उसे देव कहते हैं |
४१. कुबेर : जो अपनी व्याप्ति से सबका आच्छादन करे, इस
से उस परमेश्वर का नाम कुबेर हैं | लंका के पूर्व राजा रावण के धनवान सम्बन्धी का नाम भी
कुबेर था |
४२. पृथ्वी : सब जगत का विस्तार
करने वाला हैं इसलिए उसका
नाम पृथ्वी हैं | हम जिस पर धारा पर खड़े हैं वह भी विस्तृत हैं अतः उसे भी पृथ्वी
ऋषियों ने नाम दिया |
४३. जल : वो दुष्टों का तारण कर्ता और अव्यक्त हैं
तथा परमाणुओ का संयोग वियोग कर्ता हैं उस परमात्मा का नाम जल हैं | संयोग
वियोग के गुण से जीवन के लीय आवश्यक तरल पदार्थ का नाम भी जल रखा गया |
४४. आकाश : सब ओर से सब जगत का प्रकाशक हैं इसलिए वह
आकाश हैं | प्रकाश जिसके माध्यम से मार्ग तय कर के जगत प्रकाशित कर्ता हैं उसे भी आकाश कहा
गया |
४५. अन्न, अन्नाद, अत्ता : जो सबको भीतर रखने और सबको ग्रहण करने योग्य
चराचर जगत का ग्रहण करने वाला हैं उसका नाम अन्न, आन्नद, अत्ता हैं |
४६. वसु : जिसमे सब आकाश भुत वस्ते
हैं जो सबमे वास कर्ता हैं उसका नाम वसु हैं | बंगाल में यह उपनाम प्रसिद्द हैं जिसका अपभ्रंश
बोस हो गया हैं |
४७. नारायण : जल
और जीवो का नाम नारा हैं, वे आयन अर्थात निवासस्थान हैं जिसका
इसलिए सब जीवो में व्यापक परमात्मा का नाम नारायण हैं |
४८. चंद्र : वो आनंदस्वरूप सबको आनंद
देने वाला हैं अतः उसका नाम चन्द्र हैं | आकाशीय पिंड की शीतल किरणों के आनंददायी गुणों के
कारण पृथ्वी के उपग्रह को चन्द्र या चंद्रमा कहा गया |
४९. मंगल : सबका कल्याण करने के कारण उसका नाम मंगल
हैं | सौर्य
मंडल के चौथे गृह को भी यह नाम दिया गया हैं |
५०. बुध : जो स्वंबोध स्वरुप हैं और दूसरों को बोध
करता हैं उसका नाम बुध हैं | सौर्यमंडल में पहला गृह का नाम भी यही रखा गया
हैं ऋषियों द्वारा |
५१. शुक्र : जो पवित्र हैं और जिसका संग जीवो को भी पवित्र कर्ता हैं
उस परमात्मा का नाम शुक्र हैं | सौर्यमंडल में दूसरा गृह का नाम भी यही
रखा गया हैं ऋषियों द्वारा |
५२. शनैश्चर : जो सब में सहज से प्राप्त धैर्यवान हैं, इस
से उस परमेश्वर का नाम शनैश्चर हैं | इस नाम का कोई इतिहास में प्रसिद्ध पुरुष हुआ यह
शोध का विषय हैं | शनि ब्रहस्पति के बाद के गृह को भी नाम दिया गया |
५३. राहू : जो एकांत स्वरुप यानी जिसके स्वरुप में
दूसरा पदार्थ संयुक्त नहीं उस परमात्मा का नाम राहू हैं |
चंद्रमा की पृथ्वी की
परिक्रमा करते वक्त एक बिंदु वाले स्थान का नाम भी राहू हैं यह केतु के विपरीत होता हैं |
५४. केतु : जो सब जगत का निवास स्थान सब रोगों से रहित और
मुमुक्षुओ को मुक्ति समय में सब रोगों से छुडाता हैं इसलिए उस परमात्मा
का नाम केतु हैं | चंद्रमा की पृथ्वी की परिक्रमा करते वक्त एक बिंदु
वाले स्थान का नाम भी केतु हैं यह राहू के विपरीत होता हैं |
५५. यज्ञ : जो सब पदार्थो को सयुक्त कर्ता हैं और सब विद्वानों को
पूज्य हैं और ब्रह्मा से लेकर सब ऋषियों मुनियों को पूज्य था हैं और होगा
उस परमात्मा का नाम यज्ञ हैं | जो समाज हित के किया जाए उस संस्कार, शोध, संकल्पित
कार्य को भी यज्ञ कहते हैं | सब मनुष्यों को यज्ञ करना चाहिए |
५६. होता : जीवो को देने योग्य पदार्थ का दाता और
ग्रहण करने योग्यो (मुमुक्षुओ) का ग्राहक हैं उस विधाता का नाम होता हैं |
५७. बंधू : जिसने सब लोक्लोकंतारो को नियमों से बद्ध कर
रखा हैं और सहोदर के सामान सहायक हैं इस से उसका नाम बंधू हैं | भ्राता
भी सहायक होने से बंधू कहलाया हैं |
५८. पिता : जो सबका रक्षक और उन्नति चाहने वाला हैं वह पिता परमात्मा
का अन्य नाम हैं | जो हमारी रक्षा कर्ता हैं और हमारी उन्नति चाहता हैं वह
भी लोक में पिता कहलाता हैं |
५९. पितामह : जो पिताओ का पिता हैं उस परमात्मा का
नाम पितामह हैं | पिता के पिता को भी लोक में यही कहते हैं |
६०. प्रपितामह : जो पिताओ के पितरो का पिता हैं इससे
परमेश्वर का नाम प्रपितामह हैं | लोक में भी इसी प्रकार नामकरण किया गया
हैं |
६१. माता : कृपायुक्त
जननी अपनी संतानों का सुख और उन्नति चाहती हैं वैसे ही परमेश्वर का नाम भी माता
हैं |
६२. आचार्य : जो सत्य आचार का ग्रहण
करनेवाला और सब विद्याओ की प्राप्ति का हेतु हो के सब विद्या प्राप्त कराता हैं, उस
परमेश्वर का नाम आचार्य हैं | लोक में जिसका आचरण अच्छा हो और जो पदार्थो का ज्ञान
करे उसको आचार्य कहा जा सकता हैं |
६३. गुरु : जो विद्यायुक्त ज्ञान का उपदेश कर्ता हैं
वो जो वेदों का सृष्टि के आदि में ऋषियों को उपदेश कर्ता हैं और वह उन ऋषियों का भी गुरु
हैं उस गुरु का नाम परमात्मा हैं | लोक में विद्यादाता को गुरु कहा गया |
६४. अज : जो स्वं कभी जन्म नहीं लेता उस परमात्मा
का नाम अज हैं | नमाज(नम्+अज) इसी प्रकार नाम प्रत्यय से
संस्कृत का शब्द हुआ |
६५. सत्य : साधू स्वाभाव के कारण परमात्मा को सत्य
कहते हैं |
६६. ज्ञान : वो जानने वाला हैं इसलिए उसका नाम ज्ञान
हैं |
६७. अनंत : उसका कोई अंत नहीं ना कोई परिमाण अतः
उसका नाम अनंत हैं |
६८. अनादी : जिस से पहले कुछ ना हो जिसके बाद कुछ ना
हो जिसका कोई आदि कारण नहीं उसका नाम अनादी हैं | यह गुण जीवात्मा और प्रकृति में भी हैं |
६९. आनंद : जिसमे सम मुक्त जीव (मोक्ष प्राप्त
जीवात्माए) आनंद को प्राप्त करती हैं उस परमात्मा का नाम आनंद हैं |
७०. सत् : जो सदा रहे काल से परे उसे सत् कहा गया |
७१. चित् : वो चेतन तत्व सब जीवो को चिताने वाला और
सत्यासत्य जानने वाला हैं उसका नाम चित् हैं | जो कहते हैं परमात्मा कुछ नहीं कर्ता वह
परमात्मा के इस गुण पर चिंतन करे | (उपयुक्त तीनो गुण मिल के उसे
सच्चिदानंद कहलाते हैं)
७२. नित्य : वो निश्छल अविनाशी हैं इसलिए नित्य उसका
नाम हैं |
७३. शुद्ध : जो स्वं शुद्ध हैं और दूसरों को भी
शुद्ध कर्ता हैं उसका नाम शुद्ध हैं |
७४. बुद्ध : वो सदा सबको जानने वाला हैं अतः उसका
नाम बुद्ध हैं | शाक्य मुनि गौतम बोध प्राप्ति के कारण बुद्ध कहलाये |
७५. मुक्त : जो स्वं अशुद्धियो से मुक्त और मुमुक्षुओ
को क्लेश से छुडा देता हैं वहा परमात्मा मुक्त कहलाता हैं | वहा
प्रकृति को त्यागे हुए हैं यह भी उसका गुण हैं | (उपयुक्त चारों गुण मिल के उसको
नित्याशुध्बुध्मुक्त कहलाते हैं )
७६. निराकार : जिसका कोई आकार नहीं और ना वह शरीर धारण
कर सकता हैं अतः वह परमात्मा निराकार कहलाया हैं |
७७. निरंजन : जो इन्द्रियों के विषय से अलग हैं अतः
उसका नाम निरंजन हैं |
७८. गणेश : जो सभी जड़ और चेतन गणों(समूहों) का ईश
हैं वहा गणेश (गण+ईश) हैं |
७९. विश्वेश्वर : जो विश्व का ईश्वर हैं वहा परमात्मा का
नाम हैं |
८०. कूटस्थ : जो सब व्यह्वारो में व्याप्त हैं और सब
व्यह्वारो में हो कर भी अपना स्वरुप नहीं बदलता उसका नाम कूटस्थ हैं |
८१. देवी : जो देव का अर्थ हैं वही देवी का बस यहा
चिति का विशेषण हैं |
८२. शक्ति : जिसमे सब जगत को बनाने की शक्ति हैं अतः
उसका नाम शक्ति हैं |
८३. श्री : जिसका सेवन समस्त ब्रह्मांडो के विद्वान, योगी
धर्मात्मा करते हैं उस परम् ईश्वर का नाम श्री हैं |
८४. लक्ष्मी : जो समस्त जगत को चराचर देखता हैं चिन्हित कर्ता और
प्रकृति के पदार्थ से द्रश्य बनाता जैसे शरीर के अंग इत्यादि ब्रह्माण्ड के गृह
नक्षत्र इत्यादि वो योगियों के देखने योग्य परमात्मा का नाम लक्ष्मी
हैं | इस
नाम की यदि कोई ऋषिका हुई हैं तो यह शोध का विषय हैं |
८५. सरस्वती : जिसका विविध विज्ञान शब्द अर्थ सम्बन्ध
प्रयोग का ज्ञान यथावत होवे उस परमेश्वर का नाम सरस्वती हैं | इस नाम की ऋषिका के कार्यों पर शोध होना
चाहिए |
८६. सर्वशक्तिमान : जो बिना किसी सहायता के सृष्टि का
निर्माण कर्ता हैं वहा परमात्मा का नाम सर्वशक्तिमान हैं |
८७. न्याय : जिसका स्वाभाव पक्षपात रहित आचरण करना
हैं उस परमात्मा का नाम न्याय हैं |
८८. दयालु : जो अभय का दाता सत्यासत्य की विद्या को
जानने वाला, सब सज्जनो की रक्षा करने वाला परमात्मा दयालु हैं |
८९. अद्वैत : जो द्वैत से रहित अर्थात प्रकृति और जीवात्मा दोनों से परे
हैं वह परमात्मा का नाम अद्वित हैं | जो केवल ब्रह्मविद्या ही अध्यन करते हैं
उनमे कुछ अद्वैत का कुछ और ही अभिप्राय ले लेते हैं |
९०. निर्गुण : जो शब्द, स्पर्श, रुपादि गुण रहित हैं उस परमात्मा का नाम
निर्गुण हैं |
९१. सगुण : जो सभी सद्गुणी से युक्त हैं वह सगुण
स्वरुप परमात्मा का हैं |
९२. अंतर्यामी : जो सब प्राणियों के भीतर भी व्याप्त हैं
अतः वहा अंतर्यामी सब कुछ जानने वाला हैं |
९३. धर्मराज : जो धर्मं में प्रकाशमान हैं वहा धर्मराज प्रभु
परमेश्वर हैं | महाभारत के युधिष्ठिर को भी कुछ लोंग धर्मराज कहते हैं उनके वेद
विरुद्ध जुआ खेलने के बाद भी |
९४. यम : जो कर्मफल देने की व्यवस्था कर्ता हैं
उसका नाम
यम हैं | सत्य, अहिंसा, अस्तेय
ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह यम के पाच नियम बताये गए हैं |
सौर्य मंडल में वरुण
के बाद वाला पिंड यम कहलाता हैं |
९५. भगवान : ऐश्वर्ययुक्त भजने योग्य उस प्रभु का
नाम भगवान भी हैं | ऐस्वर्यवान मनुष्यों को भी भगवान कहे
सकते हैं |
९६. पुरुष : जो सब जगत में पूर्ण हो रहा हैं इसलिए उसका नाम पुरुष हैं | मनुष्य
को एक जाती को भी यह नाम दिया गया स्त्री के साथ मिल के जगत को पूर्ण बनाने के गुण से
|
९७. विश्वम्भर : वो जगत को धारण और पोषण कर्ता हैं अतः
वह विश्वम्भर कहलाता हैं |
९८. काल : जगत के सब जीवो और पदार्थो की संख्या का
ज्ञाता काल कहलाता हैं |
९९. शेष : वो परमात्मा उत्पत्ति और प्रलय से शेष
हैं अर्थात बचा हुआ हैं अतः उसका नाम शेष हैं |
१००. आप्त : जो सत्योप्देशक,
अभय, सकल-विद्यायुक्त छलकपट से रहित हैं वह
आप्त हैं | महायोगी कृष्ण, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, महर्षि
दयानंद इत्यादि को भी आप्त कहा गया हैं | जिसने कभी पाप कर्म ना किये हो जो सैदैव
धर्म में रहे वहा आप्त कहलाता हैं |
१०१. शंकर : जो
सुख का करने वाला हैं वहा शंकर कहलाता हैं | इस नाम के परम प्रतापी योगी हुए जिनको
लोगो ने राजा माना |
१०२. महादेव : वहा देवो का भी देव हैं अर्थात सूर्य का
भी प्रकाशक, विद्वानों का भी विद्वान हैं इसलिए महादेव कहलाता हैं |
१०३. प्रिय : जो सब धर्मात्माओ को
प्रसन्न कर्ता हनी इसलिए उसका नाम प्रिय हैं |
१०४. स्वयम्भू : जो
स्वमेव आप हैं, आप से आप हैं , किसी से उत्पन्न नहीं हुआ वहा स्वम्भू
परमात्मा हैं |
१०५. कवी : जो
वेद द्वारा मनुष्य की आव्यशक विद्याओ का वेद द्वारा उपदेष्टा और वेत्ता हैं | इस
लिए उसका नाम कवी हैं |
१०६. स्कंभ : जो सब जगत को धारण कर्ता परमेश्वर हैं
उसका नाम स्कंभ हैं |
१०७. राम : जो
सबको आनंद देने वाला हैं इसलिए उसका नाम राम हैं | इस नाम के परम प्रतापी राजा हुए थे |
१०८. कृष्ण : जो सबको अपने ऐश्वर्य से आकर्षित करे वहा कृष्ण भी ईश्वर
का गुण हैं | महाभारत काल में महायोगी वेदों के ज्ञानी
परमात्मा के परम भक्त
कृष्ण हुए थे |
उपयुक्त नामो से आप
परमात्मा के असंख्य गुणों में से कुछ गुणों के बारे में जान गए होंगे | इसी
बात को ऋषियों ने “एकं सत् विप्र बहुदा वदन्ति” कहे के समझाया हैं के
परमात्मा एक हैं विद्वान लोंग उसे अलग-२ नामो से जानते हैं | विप्र यानि विद्वान इसलिए कहा क्यों की
उसके गुणों को जानते हैं और स्पष्ट कर दिया के परमात्मा एक ही हैं | अब
यह भी एकदम स्पष्ट हो जाता हैं के किसी मनुष्य के सामर्थ्य में नहीं के
इतने गुणों को धारण कर सके ना ही यह परमात्मा का गुण हैं के वह प्रकृति
से मेल करे | परमात्मा के गुण धारण करने से उसमे देवत्व आता हैं ना की कोई
परमात्मा हो जाता हैं | इसलिए ईश्वर एक हैं और वहा ब्रह्म स्वरुप, निराकार, सर्वज्ञानी, सारे
जगत में व्यापक
सृष्टि को निर्माण के साथ चलने वाला फिर कल्याणार्थ नष्ट कर के प्रकृति को मूल
अवस्था में पंहुचा देने वाला और जीवात्मा को सुषुप्ता अवस्था में पंहुचा देने वाला परमेश्वर
शरीर धारण नहीं कर्ता और उसी परमात्मा की उपासना सभी मनुष्यों को
करनी चाहिए |
इति शुभम्
१०५ नामो का प्रमाण
आप महर्षि दयानंद की अमर कृति सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में देख सकते हैं | १०६
ऋषि की ही ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में वर्णित हैं |
यहाँ परमाणु का आशय
लोक में प्रचलित परमाणु से हैं ना ही वेद में वर्णित परम अणु से |
जहा भी मुझे गलत पावे
शुद्ध करावे, विद्वानों से संशोधन आमंत्रित हैं |
* हिरण्यगर्भ
को पंडित भाग्वात्दत्त ने अपनी पुस्तक में स्टोरी ऑफ क्रियेशन में वैज्ञानिक
विवेचना की हैं |
** मित्र अर्यमा वरुण की गुरुदत्त
(साहित्यकार) ने अपनी पुस्तक साइंस और वेद में वैज्ञानिक विवेचना की हैं |
Labels: धर्म एवं अध्यात्म
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home