वैदिक विवाह वचन
वेदों में सभी मानवो के बीच समानता के उपदेश के साथ-२ स्त्री पुरुष
समानता के उपदेश अगर हमें देखने हैं तो हम आर्यो के विवाह में लिए वचन के अर्थ जान
ले हमे इश्वर के न्यायानुकूल जीवन जीने के वेदों के आदेशो पर पूर्ण विश्वास हो
जाएगा | स्त्री और पुरुष दोनों के लिए एक ही नियम/वचन | इन वचनों के महर्षि
दयानंद कृत भाष्य जानने के बाद हमें समझ आता हैं के क्यों आर्यो (हिन्दुओ) में एक
ही विवाह संभव हैं क्यों के जो ये वचन एक के साथ लिए जा सकते हैं वो दूसरे के साथ
लेना कदापि संभव नहीं | एक दूसरे के प्रति जीवन पर्यंत संकल्पित रहने के लिए
परमात्मा से बड़ा साक्षी कौन होगा जो अंदर और बहार दोनों ही और हैं और न्याय करने
वाला हैं और समाज भी नव दपतियो के संकल्प वचनों को जाने क्यों के विवाह एक यज्ञ
हैं | अतः समाज के समक्ष अग्नि यानी परमात्मा को साक्षी मान कर नव दंपत्ति अपनी एक
दूसरे के प्रति अपनी नैतिक निष्ठा का वेदों द्वारा अनुदेषित वचन लेते हैं यदि कोई
भी इस वचन से पीछे हटा या किसी कारण उसका वचन टुटा तो वो स्वं के भौतिक शरीर को
अग्नि(तत्व) में नष्ट कर लेता/लेती थी | महारानी पद्मावती जैसे वीरांगना ने अपने
भौतिक शरीर को अधर्मी राक्षसों के हाथ कभी ना लगने दिया |
कोई किसी भी मत का मानने वाला हो वेद की इन ऋचाओ के अर्थ जानने के बाद
किसी को इन वचनों को लेने में कोई समस्या ना होगी यदि वे वास्तव में अपने प्रियतम
के प्रति निष्ठावान हैं | बहुत से वचनों में ऋग्वेद की केवल २ ऋचाए ही दी जा रही
हैं | अब हम महर्षि दयानंद कृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में संछेप में विवाह विषय को
आपके समक्ष प्रस्तुत करते हैं |
भाषार्थ – (ग्रभ्णामि ते
सौभागत्वाय हस्तं ०)हे स्त्री ! मैं सौभाग्य अर्थात् गृहाश्रम
में सुख के लिए तेरा हस्त ग्रहण करता हू | और इस बात की प्रतिज्ञा करता हू की जो
काम तुझको अप्रिय होगा उसको मैं कभी ना करूँगा | ऐसे ही स्त्री भी पुरुष से
कहे की जो कार्य आपको अप्रिय होगा वो मैं कभी न करूँगी | और हम दोनों व्यभिचारआदि
दोषरहित होके व्रधावस्थापर्यंत परस्पर आनंद के व्यहवार को करेंगे | हमारी इस
प्रतिज्ञा को सब लोग सत्य जाने की इसके उल्टा काम कभी ना किया जायेगा | (भर्गो) जो
ऐश्वर्यवान (अर्यमा) सब जीवो के पाप पुण्य के फलो को यथावत देने वाला (सविता) सब
जगत का उत्पन्न करने और सब ऐश्वर्य का देने वाला (पुरन्धिः) सब जगत का धारण करने
वाला परमेश्वर हैं, वही हमारे दोनों के बीच साक्षी हैं | तथा (मह्यं त्वा०)
परमेश्वर और विद्वानों ने मुझको तेरे लिए तुझको मेरे लिए दिया हैं, की हम दोनों
परस्पर प्रीती करेंगे, तथा उद्योगी हो कर घर का काम अच्छी तरह और मिथ्याभाषण से बचकर सदा धर्म
में ही वर्तेंगे | सब जगत का उपकार करने के लिए सत्यविद्या का प्रचार
करेंगे, और धर्म से पुत्रो को उत्पन्न करके उनको सुशिक्षित करेंगे, इत्यादि
प्रतिज्ञा हम ईश्वर की साक्षी से करते हैं की इन नियमों का ठीक ठाक पालन करेंगे | दूसरे
स्त्री और दूसरे पुरुष से मन से भी व्यभिचार ना करे | (देवाः) हे विद्वान लोगो ! तुम भी हमारे
साक्षी रहो की हम दोनों गृहाश्रम के लिए विवाह करते हैं | फिर स्त्री कहे की मैं
इस पति को छोड के मन, वचन और कर्म से भी दूसरे पुरुष को पति न मानूंगी |
तथा पुरुष भी प्रतिज्ञा करे की मैं इसके सिवाय दूसरी स्त्री अपने मन, कर्म और
वचन से कभी न चाहूँगा ||१||
(इहैव
स्तं) विवाहित स्त्री पुरुषों के लिए परमेश्वर की आज्ञा हैं की तुम दोनों गृहाश्रम
के शुभ व्यह्वारो में रहो | (माँ वियोष्ट) अर्थात विरोध कर के अलग कभी मत हो, और
व्यभिचार भी किसी प्रकार का मत करो | ऋतुगमित्व से संतानों की उत्पत्ति, उनका
पालन और सुशिक्षा, गर्भस्तिथि के पीछे एक वर्ष पर्यंत ब्रह्मचर्य और लडको को
प्रसूता स्त्री का दुग्ध बहुत दिन ना पिलाना, इत्यादि श्रेष्ठ व्यह्वारो से (विश्र्वमा०)
सौ १०० वा १२५ वर्ष पर्यंत आयु को सुख से भोगो | (क्रिडन्तो०) अपने घर में
आनंदित होके पुत्र और पौत्रो के साथ नित्य धर्मपूर्वक क्रीडा करो | इस से विपरीत
व्यहवार कभी ना करो सदा मेरी आज्ञा में वर्तमान रहो ||२||
इत्यादि
विवाहविधायक वेदों में बहुत मन्त्र हैं | उनमे से कई एक संस्कारविधि में भी लिखे
हैं वह से देख लेना |
वाह सुख का क्या उत्तम मन्त्र वेदों ने हमें दिया | महर्षि दयानंद के
भाष्य ने हमें कितने अच्छे से समझाया | ऐसी आज्ञा को मानने वाले समाज का क्या कभी
पतन हो सकता हैं | ऐसा समाज तो प्रेम से परिपूर्ण रहेगा |
१ परमात्मा स्त्री पुरुष दोनों को ही उद्योगी होकर गृह कार्य करने को
कहता हैं | अतः आज जो पुरुष गृह का हर कार्य स्त्री पर दाल देता हैं सो वेद
विरुद्ध आचरण करता हैं |
२ जब प्रेम का भाव होता हैं तो दम्पति स्वमेव कही और नहीं देखते उनमे
दूसरे के प्रति वो भाव नहीं आते और जो किसी कारण वश आवे भी तो परमात्मा के सामने
लिए इन वचनों को याद करियेगा |
Labels: धर्म एवं अध्यात्म
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