जीवन का उद्देश्य
क्यों हमने जन्म लिया
? आनंद
भोग, क्या
सिर्फ इसलिए ? इस जीवन के बाद हमारा क्या होगा ? भिन्न-२
मतवालो की भिन्न-२ मान्यताए हैं | किसी की मान्यता में हमने इसलिए जन्म लिया हैं
के हम स्वर्ग में प्रवेश पाने को अपनी योग्यता सिद्ध कर सके | स्वर्ग
कई सारे मत वाले लोगो के लिए आदर्श स्थान हैं बहुत से हिंदू भाइयो के लिए
ऊपर चार धाम हैं गोकुल,शिवलोक, वैकुण्ठ, साकेत लोक तो हमारे मुस्लिम भाई ज़न्नत
मानते हैं | पर हर कोई सिर्फ अपने लाभ सुख की कल्पना ही कर्ता
हैं कभी ये नहीं सोचता के आदर्श स्थान तो पृथ्वी पर भी बना सकते हैं | क्या
दुर्लभ हैं यहाँ ? आखिर इस शरीर का क्या प्रयोजन हैं | आखिर
इस तरह की कल्पित जगह को तो हम इस शरीर में यहाँ भी भोग ही करने में सक्षम हैं | इस
शरीर का उद्देश्य कुछ ऐसा विशेष हैं जो सिर्फ इसी शरीर में हो सकता हैं | वो
हैं ब्रह्म साक्षात्कार | इस शरीर रूपी अयोध्या में परमात्मा निवास
करता हैं जब हम बाहरी विषयों से दूर होते हैं तो उसको निकट महसूस करते हैं | सोने
के बाद कहते हैं के बड़ा आनंद आया | ये आनंद आत्मा अनुभव करती हैं क्यों की
शरीर तो सो रहा होता हैं पर आत्मा सदैव जाग्रत रहती हैं | जीतनी
गहरी निंद्रा होती हैं हम बाहरी विषयों से उतना ही दूर होते हैं | हम
स्वं को उर्जा से भरपूर पाते हैं यदि बिना स्वप्नों की निंद्रा आती हैं |
पर क्या कोई और तरीका
हैं जिस से हम उस परमात्मा से संपर्क कर सके उसके संपर्क को महसूस कर सके | हां
हैं वो हैं योग का माध्यम जिस से हम उस परमात्मा से जुड सकते हैं | आप
कहेंगे तो क्या अभी नहीं जुड़े ? जुड़े हैं पर हम ही उसे अनुभव नहीं कर पाते | उसका
साक्षात्कार तो सिर्फ समाधि में होता हैं और समाधि इतनी सरल नहीं | बहुत
तप करना होता हैं जब इतने शरीर छोड कर हम मनुष्य शरीर धारण कर सकते हैं तो क्या
इस शरीर में रहते हुए हम उसके लिए तप नहीं कर सकते | बिलकुल
कर सकते हैं | पहले आत्म साक्षात्कार फिर परमात्म साक्षात्कार | योग
दर्शन हमें बताता हैं के योग करने के लिए हमें उसके ८ भागो को समझना और आचरण में लाना
होगा |
वे भाग हैं १.यम
२.नियम ३.आसान ४.प्राणायाम ५.प्रत्याहार ६.धरना ७.ध्यान ८.समाधी
समाधी को विस्तार से
समझने के लिए हमें योग दर्शन के चार पाद समझने होंगे जो हैं १. समाधिपाद २.
साधनपाद ३. विभुतिपाद ४. कैवल्यपाद
जहा हम कैवल्यपाद पर
पहुचे शरीर में आने का उद्देश्य पूर्ण हो जाता हैं | एक हिंदी गीतकार ने लिखा भी हैं “दिल
की ऐ धडकन ठहर जा, मिल गई मंजिल मुझे” यहाँ हमारे लिए मंजिल वो परमात्मा ही
हैं | जिज्ञासु
पूछ सकते हैं के मोक्ष विषय का क्या ? मोक्ष तो तब मिलेगा जब समाधिस्त होकर
शरीर छोडेंगे | शरीर में रहते तो परमात्मा के दर्शन ही हमारा उद्देश्य हैं | यह
तो हमारे हाथ
में हैं, तप
करेंगे तो फल मिलेगा ही |
ज्यादातर ऋषि कैवल्य
पाद पर पहुच कर लक्ष्य पूर्ति कर के शरीर छोड देते हैं ताकि कही अधिक आयु में अधर्म ना हो
जाए और वे ऋषि मोक्ष के आनंद में निश्चित समय के लिए चले जाते हैं | वैसे
भी उद्देश्य की पूर्ति हो गई शरीर में रहने का अब कारण नहीं बनता | यह
किसी ज़न्नत में संभव नहीं किसी स्वर्ग लोक में संभव नहीं | ऐसा
कोई लोक हो या नहीं पर ध्यान अवस्था से समाधी तक पहुच कर उस परमात्मा के साक्षात्कार सिर्फ और सिर्फ
इस मनुष्य शरीर में संभव हैं |
तो मैं तो ऐसे हजारो
स्वर्ग लोको को उस एक परब्रह्म परमात्मा के साक्षात्कार करने को छोड दू | और
यह भी सत्य हैं की ऋषित्व तक पहुचना इतना सरल नहीं | सम्पूर्ण वैदिक साहित्य उसी ब्रह्म तक
पहुचने की ही विधि बताता हैं | और ध्यानस्त होने के सिवा और कोई माध्यम
नहीं उस तक पहुचने का | कई जन्म लग जाते हैं उसकी उपासना और तपस्या
में | एक
जन्म में शरीर छुट भी जाए तो दूसरे जन्म में हम थोड़े तप में उस
अवस्था में सरलता से पहुच के वही से आगे प्रारंभ कर सकते हैं | पर
आज जब हम सच्चे ब्रह्म से इतना दूर हो गए हैं उसके सच्चे स्वरुप को ही नहीं समझते हम
अपने मानव योनी के लक्ष्य से कितना भटक गए हैं | तो आओ जाने उस परमात्मा को | वेद
हमें जो बताते हैं उस एक पर ब्रह्म के गुण और स्वभाव के बारे में | किस
प्रकार हर चरण की परीक्षा को सफल कर के हम उस तक पहुचे यह सभ कुछ
हमारे ऋषियों ने आर्ष साहित्य में लिख रखा हैं | स्वाध्याय करिये , पालन
करिये क्यों की आचरण रहित ज्ञान किसी काम का नहीं |
उपनिषद जिस लक्ष्य की
बात करते हैं वो यही तो हैं |
“उत्तिष्ठत।
जाग्रत। प्राप्य वरान निबोधत।” कठोपनिषद १.३.१३
उठो जागो और लक्ष्य
की प्राप्ति करो | ज्ञान, विज्ञान, भक्ति और आस्था सभी कुछ चाहिए |
और ऐसा भी नहीं के
भोग छोड दो, भोगो बिना उसमे लिप्त हुए | और लगे रहो इस आशा में के हम सफल होंगे
निश्चित होंगे आज नहीं कल | योग सिर्फ आसन और प्राणायाम का नाम नहीं यह तो
सिर्फ चरण हैं योग तो आत्मा और परमात्मा का सम्प्रेषण में आना हैं | और
उसके लीये आत्म शुद्धि के चरण हैं आसन और प्राणायाम इन्ही चरणों पर मत
अटके रह जाइए आगे भी बढिए | ईश्वर उपासना यही हैं उसके ध्यान में मग्न हो
कर उसको पाने को समाधिस्त हो जाना | वेद हमें हर आवश्यक ज्ञान उपलब्ध करते
हैं | ऋषियो
ने ब्राह्मण ग्रंथो में, उपनिषदों और शास्त्रों में सरल
भाषा में हमें वह ज्ञान उपलब्ध कराया हैं | तप तो हमें ही करना हैं इसका कोई छोटा
मार्ग नहीं |
हम आपको सरल भाषा में
वह सारा ज्ञान उपलब्ध कराने का प्रयास करेंगे जो महर्षि ब्रह्मा से लेकर महर्षि दयानंद
ने हमें उपलब्ध कराया हैं | आप बस जिज्ञासा बढाए यहाँ सब उपलब्ध होगा |
ओं३म्
Labels: व्यक्तित्व विकास
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