ग्राम स्वराज्य के लिए कुछ प्रारंभिक प्रयास
ग्रामीण क्षेत्रो मे विदेशी कंपनियों के विस्तार के कारण अब तक जो ग्राम बचे हुए थे अब बर्बाद होने को आगे बढ़ रहे है | आगे कि पीढ़ी के वस्त्र, भोजन परम्पराए सब बदल रही है | वृतपत्रों से लेकर, चलभाष, समाचार चैनल, सब कि पहुच उन तक होने से उनकी सोच बदल रही है | किसान अपने बेटे को इसलिए पढ़ाना चाहता है ताकि उसका परिवार कृषि से बाहर निकल सके और वो अच्छी नौकरी कर सके |विदेशी एफ एम सी जी कम्पनिया विस्तार कर रही है | वास्तविकता ये है के गुलामी के विस्तार का आखिरी चरण पूर्त हों रहा है | हम नगरीय लोगो कि समस्या ये है के हम पाश्चात्य शैली मे फसे हुए है जो जान रहे हमारी समस्याओ का मूल वे थोडा बहुत निकलने का प्रयास कर भी रहे हैं | अब तक ग्रामीण क्षेत्रो ने हमारी परम्पराए बचा के रखी थी | क्योंकी ग्रामीण क्षेत्रो के पुराने लोग पुरानी व्यवस्थाओ के महत्त्व को अच्छे से समझते है पर उनके आगे कि पीढ़ी पूरी तरह नगरीय रंग मे आरही है, जो के स्वाभाविक है | ग्राम अब विद्युतीकरण के साथ खत्म हों रहे है और छोटे नगरीय मोहल्लो के स्वरूप मे परिवर्तित होता है | यद्दपि हर बिंदु विस्तार का विषय है पर जो राष्ट्रवादी ग्रामीण क्षेत्रो मे राष्ट्रीय चेतना फैलाने का कार्य कर रहे हैं वो इस लेख से लाभ उठा सकते हैं |
१. भाषा : आर्य भाषा का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार | समाचारों के माध्यम से उर्दु,फ़ारसी और आंग्ला के शब्दों से हमारी भाषा दूषित की जा रही है अतः हमें यथासंभव विशुद्ध तत्सम शब्द निष्ठ हिंदी का प्रयोग करना होगा | चीन ने विदेशी शब्दों के प्रयोग को अपने समाचार पत्रों में प्रतिबंधित कर दिया | महर्षि दयानंद ने पहले ही कहा था “जो जिस देश की भाषा बोलता है उसे उसी का संस्कार होता है” | अतः यदि हमें संस्कृत को राष्ट्र भाषा का स्थान पर पहुचाना है तो हमें आर्य भाषा हिंदी और देवनागिरी लिपि का सर्वाधिक प्रचार करना होगा |
२. भेष : हमारे वस्त्र बर्तानिया उपनिवेश(१९४७ से पूर्व) से बर्तानिया उपगणराज्य(१९४७ के पश्चात) मे पूर्णतः परिवर्तित हों चूका है | धोती, आंगा और पगड़ी इत्यादि सबकी छूट गई और सब विदेशी वस्त्रों में आगये तो शनः हमे पुराने भेष को धारण करना होगा | यदि नगरीय क्षेत्र के लोग़ अवसर विशेष पर धोती पहनना प्रारंभ करे तो ग्रामीण क्षेत्रो मे प्रभाव जाएगा | ग्रामीण नगरीय क्षेत्रो के लोगो का अनुसरण करते है |
३. गौ आधारित अर्थ व्यवस्था : जब तक राष्ट्र गौ आधारित अर्थव्यवस्था पर निर्भर था समृद्ध था जब से पूंजीवाद आया उसके पीछे साम्यवाद खड़ा किया गया पूरी विकेन्द्रित व्यवस्था नष्ट हों गई | अतः वृषभो पर आधारित कृषि, गोमय और गौ मूत्र आधारित खाद, गौ दुग्ध इत्यादि मूल-भूत बातो को कृषको तक पुनः पंहुचा कर कार्यान्वित करनी होगी | आपात काल में यही उपयोगी होगा |
४. वैदिक कृषि : जिसे आजकल अपूर्ण रूप से जैविक कृषि कहा जा रहा जो भाग है वैदिक कृषि का | वैदिक कृषि की शिक्षा कृषको को पुनः देनी होगी | यूरिया, डी.ए.पी, कीट नाशको का मूल्य बचेगा साथ-साथ विदेशी मुद्रा बचेगी, जैविक अनाज से अन्न मे ओज आयेगा लोगो का स्वास्थ उन्नत होगा और ग्राम का धन ग्राम में रहेगा | फसल चक्र के क्रम निर्धारण से राष्ट्र मे पूंजी कि वृद्धि होगी, मृदा कि उर्वरा शक्ति बढ़ेगी और किसान भाई तो समृद्ध होंगे ही | बीजारोपण वैदिक मंत्रोच्चार के साथ किया जाता था तो अन्न मे ओज रहता था | एक रात्रि पूर्व सोने के पानी मे बीज को भीघोया जाता था | वर्षा के लिया आवयश्कता अनुसार यज्ञ होते थे |
५. विकेन्द्रित वैदिक व्यवस्था : पुनः लोहार, चर्मकार (चमार), कुम्भकार (कुम्हार), मोची, नाई, दाई, ठठेरो इत्यादि के कार्यों को बढ़ाना | वैश्विक पूंजीवाद को तोड़ने का मात्र यही माध्यम है स्वरोजगार व कुटीर उद्योग | यद्दपि राजव्यवस्था कभी नहीं चाहेगी के ऐसी व्यवस्था चले क्यों के ऐसी व्यवस्था आपस मे अनाज के लेनदेन पर और तपस्वी जीवन के सिधान्तो पर आधारित थी | बाहर के काम से सोने मे व्यापार होता था | इसलिए १७वि सदी तक भारत सोने कि चिड़िया कहा गया | अंग्रेजी कानूनों ने सबके धिमे२ काम बंद करवाये | आज जाती(ज्ञाति) व्यवस्था का दुष्प्रचार इस प्रकार किया गया के हम सभी को लगता हैं ये कोई बहुत बुरी चीज रही होगी | जो लोग अपना खुद का काम कर रहे हैं उन्हें पुरा सहयोग और बढ़ावा दे |
६. बैंकिंग विस्तार को रोके :रिसर्व बैंक के सर्वेक्षण अनुसार हर १३००० नागरिक पर एक बैंक है | इसका और तेजी से विस्तार हों रहा है, बैंको मे इसीलिए इतने बड़े स्तर से भर्ती कि जा रही है | बैंकिंग गरीबी को बढाएगी | ग्रामीण क्षेत्रो मे नरेगा के बहाने से किसानो के बैंक खाते खुलवा लिए गए | पहले श्रम के बदले अनाज मिलता था कोई कितना भी बेचे शराब के लिए थोडा तो घर मे बच्चो को खाने को मिलता ही था | और नरेगा मे सिर्फ भ्रस्टाचार ही होता है | सामूहिक रोजगार का प्रयास किया जाए | और बिना उर्जा के प्रयोग का उत्पादन किया जाए तो बैंकिंग से ग्रामीण क्षेत्रो को बचाया जा सकता है | जैसे जुट बैग के पोलीथीन का अच्छा विकल्प है और हाथ से बनाये जा सकते जुट ग्रामो मे उत्पादित करी जा सकती है | अरबो का उद्योग ग्रामो से चल सकता है बिना बिजली कि खपत के, विकेन्द्रित व्यवस्था के पुनः स्थापन होने पर |
७. ग्रामो में सामूहिक बायो गैस संयंत्र : वर्तमान मे कस्बो मे गैस एजेंसिया बनाई जा रही हैं इस से पूंजीवादी बढ़ेंगे, विदेशी मुद्रा पर निर्भरता बढ़ेगी और पुरे देश मे रसोई गैस के दाम बढ़ेंगे | किसी भी ग्राम में एक सामूहिक बायो गैस संयंत्र से पुरे ग्राम को भोजन पकाने हेतु गैस और प्रकाश उपलब्ध हों सकता है | उत्तम खाद उपलब्ध होगी अतिरिक्त रूप में |
८. सौर्य ऊर्जा संचालित कुकर : सौरी उर्जा का प्रयोग करने हेतु सौर्य उर्जा संचालित कुकर का प्रयोग करना | लोगो का स्वास्थ बनेगा |
९. ब्रह्म यज्ञ : बिना ब्रह्म यज्ञ के कोई उत्थान नहीं होगा अतः वैदिक संध्या लोग सीखे | ध्यान देने योग्य बात है के योगाभ्यास करते हुए संध्या करी जाती हैं | लोगो की आत्मिक उन्नती तीव्रता के साथ होगी और हम जीवन के उद्देश्य की ओर उन्मुख होंगे |
१०. देवयज्ञ : पुनः घर-घर हवन होने लगे राष्ट्र पुनः आर्यावर्त बन जाएगा | रोग और जीवाणुओ को उत्पन्न ही नही होने दिया जाएगा जहा वैदिक विधि से नित्य प्रातः-संध्या हवन होने लगे | हर ग्राम में सामूहिक यज्ञशाला होनी चाहिए |
११. अखाड़ा : हर ग्राम में १ अखाड़ा होना चाहिए यज्ञशाला के निकट | हवन पश्चात युवा जब व्यायाम आसन इत्यादि करेंगे, मल्ल युद्ध की शिक्षा लेंगे तो चरित्र निर्माण भी होगा | ग्राम क्षत्रिय सभा भी इसी प्रकार निर्मित होगी जो संकट के समय राष्ट्र रक्षा में सहायक होगी |
१२. अष्टाध्यायी विधि से संस्कृत का प्रचार-प्रसार करना : पंडित ब्रह्मदत्त जिज्ञासु और पंडित युधिस्ठिर मीमांसक के बाद उनके शिष्यों ने अनेको प्रयास किये संस्कृत प्रचार के पर उनके जितनी सफलता नहीं मिली | जिज्ञासु संस्कृत प्रचारिणी कार्य कर रही है विद्वान पंडित धर्मानंद शास्त्री जी आज भी रुग्णावस्था में ज्ञान का प्रसार कर रहे है इसी प्रकार विद्वानों व उनके शिष्यो से ग्रामीण स्तर पर संस्कृत साक्षरता बढानी होगी | व्याकरण के सूर्य स्वामी विरजानंद, महापंडित महर्षि पाणीनि या महर्षि दयानंद के नाम पर विद्वान ग्राम संस्कृत शिक्षण समिति बना सकते है |
१३. आर्य ग्राम : जिन ग्रामो के जो परिवार वैदिक मत के अनुकूल विचार रखे वो अपने गृहों पर ओ३म् का भगवा ध्वज फैराए | इस से उनके मान्य सिधान्तो का प्रचार होगा | जो हम मानते है वे दूसरे भी जाने, ध्वज हमारी मान्यताओ का घोतक होता है |
१४. शाकाहार का प्रचार : लोगो को शाकाहार के प्रति जागरूक करना | लोगो में भक्ष्याभक्ष्य का विवेक जागृत करना | यद्दपि अभी भी ग्रामीण क्षेत्र बचे हैं पर क्यों के लोकतान्त्रिक राजनीति मे दुर्व्यसन विशेष कर जनता मे फैलाए जाते है इसलिए शाकाहार एवं शराब के ठेकों के विरुद्ध जागरूकता आवश्यक है |
१५. आंग्ला बहिष्कार : लोगो पर से आंग्ला माध्यम के कॉन्वेंट का भूत उतारना आवश्यक है | कॉन्वेंट अर्थात अनाथो का शिक्षालय | इसलिए नगरीय क्षेत्रो के लोग जब हिंदी माध्यम मे और गुरुकुलो मे बच्चे पढायेंगे तब ग्रामीण क्षेत्रो के लोग महत्व समझेंगे |
१६. आर्युवेद की मुलभुत साक्षरता बढ़ाना : लोगो को आयुर्वेद की मूलभुत बातो का ज्ञान हों जाए तो वो बीमार ही नहीं पड़ेंगे | अतः क्या हितकर क्या अहितकर जान कर जीवन में वस्तुओ का प्रयोग करना और आयुर्वेद के अनुसार जीवन व्यतीत करना अत्यावश्यक हैं |
१७. चर्बी वाले साबुन रसायनिक शैम्पू से दुरी बनवाना : वो उत्पाद जो हमे स्पर्श करते है हमारा व्यहवार आचरण भी प्रभावित करते है | अतः सज्जी मिट्टी (मुल्तानी मिट्टी) का साबुन जो घर में बड़ी सरलता से बन सकता ४ रूपए से भी कम के मूल्य पर उसका प्रयोग करे | एक रीठा का पेड पुरे ग्राम के लोगो कि अव्य्श्क्ताओ को पूरा कर सकता है | अतः रीठा से बाल धोने का प्रचार करना होगा |
१८. अल्युमीनियम/स्टील के वर्तनो को दूर करना : अल्युमीनियम न्यूरो टोक्सिक होने के कारण अल्जाइमर कर्ता है और स्टील में निकेल की पर्त होने के कारण कैंसर होता है | निकेल की पर्त चढाने में रासायनिक तीव्र विष साइनाइड का प्रयोग किया जाता है |
१९. टूथपेस्ट व कोल्ड ड्रिंक से दूर करा लोगो को : टूथ पेस्ट में सोडियम लौरेल सल्फेट होता है जो मुख का कैंसर कर्ता है और कोल ड्रिंक एसिड होता है जो कोलाइटिस जैसा रोग भी उत्पन्न कर देती है | अतः दतुन प्रचार कर के प्रयोग करवाना | ग्रामीण क्षेत्रो मे टूथ पेस्ट का व्यापक विस्तार हुआ है | फ्लोराइड पिनियल ग्रंथि को प्रभावित कर्ता है |
२०. वाहनों का न्यून प्रयोग : पुनः घोडो को प्रयोग में जो समृद्ध परिवार ला सकते है लाये | साइकिल का भी प्रयोग करे | तेल की जितनी हों सके बचत करे |
२१. शुद्धि सभा की स्थापना : जब तक पूरा देश वैदिक मतैक्यता पर नहीं आयेगा विदेशीयो के हाथ मे लड़ाई का एक बड़ा बहाना रहेगा | फिर सांस्कृतिक एकता भी नहीं आयेगी अतः ईसाईकरण-इस्लामीकरण कि समस्या से स्थाई समाधान के लिए हर ग्राम मे शुद्धि सभा का ग्राम स्तर पर गठन किया जाए | ग्रामीण क्षेत्रो के लोग़ वापस वैदिक धर्म मे आना चाहते है समस्या सामाजिक ढाचे कि है जो उन्हें समाज मे पुनः अवशोषित नहीं कर्ता अतः समाज का दृष्टिकोण बदलना शुद्धि सभाओ का प्राथमिक ध्येय होना चाहिए |
२२. ग्राम स्वराज्य : ग्रामो की ऐसी व्यवस्था जहा लोग विवाद होने पर पुलिस या न्यायलय ना भागे अपितु वह के आर्य विद्वानों के समक्ष की न्याय को प्राप्त कर लेवे |
ग्राम की मुद्रा बाहर ना जाए | बाहर से मुद्रा ग्राम में आये तो ग्राम समृद्ध होंगे | ग्राम समृद्ध होंगे तो राष्ट्र समृद्ध होगा |
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