१५ अगस्त : उपगणराज्य दिवस कहिये ना के स्वतंत्रता दिवस
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१५ अगस्त ही क्यों ?
६ अगस्त को हिरोशिमा पर पहला परमाणु बम गिराया गया | जापान के राजा ने सिहासन नहीं छोड़ा | ९ अगस्त को दूसरा नगर नागासाकी दूसरे परमाणु बम से पूर्णतः विध्वंस कर दिया गया | इस बार सन्देश और स्पष्ट था के यदि राजतंत्र हटा कर लोकतंत्र नहीं लाये जापान मे, तो कोई जनता ही नही रहेगी राजा के पास हम एक के बाद एक आपके नगर विध्वंस कर देंगे | जापान के राजा ने अपने सामर्थ्य अनुसार प्रजा कि रक्षा का कर्तव्य निभाया और १५ अगस्त को समर्पण कर दिया | १५ अगस्त को जापान के राजा द्वारा समर्पण के साथ ही द्वतीय विश्व युद्ध का अंत हुआ | असंख्य नागरिको को मारने वालो ने मानवाधिकार का गठन किया | आंग्ल लोगो के लिए भी ये दिन विशेष हों गया |
१९४६ का नेवी,एयरफोर्स एवं क्षेत्रिय पुलिस का विद्रोह
१८ फरबरी १९४६ को उस काल मे कही जाने वाली रोयल इंडियन नेवी के जवानो ने विद्रोह कर दिया | अनेको कारण थे पर सबसे बड़ा कारण ये था सेना के जवानो को कांग्रेस का स्वराज्य प्राप्ति का आडम्बर पता चल गया था | आजाद हिंद फ़ौज के सिपाहियों के विरुद्ध लाल किले मे अभीयोग तो चल ही रहा था वो भी असंतोष का कारण था और आजाद हिंद फ़ौज के सिपाही प्रेरणा श्रोत बन गए थे | एक दम स्पष्ट था के अब अगर कांग्रेस पर छोड़ दिया तो कभी भी स्वतंत्रता नही मिलेगी |मुंबई से प्रारंभ हुआ ये विद्रोह हड़ताल के रूप मे था | पर शीघ्र ही ये सभी जगह फ़ैल गया था | देश भर के २० किनारों पर ७८ जहाज और २०००० नाविक इसमें सम्मलित हुए | ब्रिटिश रोयल नेवी ने इनके विरुद्ध कार्यवाही कि | इसमें सरकारी तौर पर ७ जवान बलिदान हों गए | ये विद्रोह बढ़ गया और २० फरबरी को कानपुर से कराची तक रोयल इंडियन एयरफ़ोर्स के ६० हवाई अड्डों पर ५०००० कर्मचारी भी साथ जुड गए | क्षेत्रिय पुलिस भी सम्मलित हों गई | जनता तो जुडी थी ही जब जहाजों पर रसद का अभाव हुआ तो भिखारियो ने चंदा जमा कर के उनकी सहायता करी | पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने ही इस विद्रोह कि निंदा करी | अब समझिए के ये दोनों दल किसके हित चाहने वाले थे ? श्री मोहनदास गाँधी ने तो यहाँ तक कहा के यदि जवानो को समस्या थी तो वे अपना त्यागपत्र दे देते | ध्यान देने योग्य बात है के ये सब वीर सावरकर कि तैयारियो का परिणाम था जो शुरू से कहते आरहे थे के हथियार तो पकड़ो समय आने पर बन्दुक कि नोक किस तरफ मोडनी है समझ आजाएगा | इसी कारण आजाद हिंद फ़ौज खड़ी हों पाई, वीर सवारकर का ही सुझाव था श्री शुभाष चन्द्र वसु जी को के श्री रास बिहारी वसु जी जापान मे तैयार बैठे है | जिसका श्री शुभाष जी ने रेडियो पर अपने अंतिम भाषण मे आभार भी व्यक्त किया |
श्री वल्लभ पटेल और मोहम्मद अली जिना के नेतृत्व मे अधिकारियो से बात कर के हड़ताल खत्म कराइ गई | जो के बाद मे उन अधिकारियों ने अपने साथ छलावा ही कहा | अब नेहरु और गांधी तो साहस करते नहीं सेना के अधिकारियो से मिलने के लिए क्यों के लोग जान चुके थे इनके बारे मे | पर हुआ वही जो नेहरु और गांधी करते | कोर्ट मार्शल का दौर चला | आंग्ल लोगो के जाने के बाद भी किसी को वापस सेवा मे नहीं रखा गया | यानी जिनके कारण आंग्ल लोगो के हाथ पाँव फुले और जिन्होंने १८५७ कि क्रान्ति कि पुनार्विभिसिका कि संभवाना आंग्ल लोगो को समझा दी हमारी कथित स्वंतत्र भारत कि सरकार ने उन्ही वीरो को प्रताड़ित किया गया | ये सिद्ध करने के लिए पर्याप्त था के काले अंग्रेज गोरो के लिए अत्याधिक निष्ठावान रहेंगे इन्डियन डोमिनियन मे यानी भारतीय उपगणराज्य मे |
१८५७ कि क्रान्ति का भय
आंग्ल लोग ये तो शुरू से ही जानते थे के वे अधिक दिनों तक यहाँ नही रह सकते अतः उन्होंने इंडियन एजुकेशन एक्ट १८३५ मे बनाया था | पर इसके उपरान्त भी पीढ़ी दर पीढ़ी सहस्त्रो वर्षों से गुरुकुल शिक्षा के संस्कारो को कैसे खत्म करे उन्हें नही पता था | जब १८५७ कि क्रान्ति हुई आंग्ल लोगो का जडमूल से नाश कर दिया गया | उंगलियो पर गिने जाने लायक अंग्रेज बचे थे | भारतीय राजाओ ने चिठ्ठी लिख कर उन्हें सहायता और अभय रहने का आश्वासन दिया और गोरो को २ साल लग गए युद्ध खत्म करने मे, तात्या टोपे जैसा शूरवीर सेना नायक जिसने धुल चटा दी, अंग्रेज जनरल आते थे और मरते थे और हमारा सेनापति वही का वही रहता था | उन्हें भी धोखे से पकड़ा गया और फ़ासी पर टांग दिया गया | नाना साहब पेशवा कि लड़की वीर मैना को जीवित जला दिया गया स्त्रियों को जीवित जलाने मे तो अंग्रेजो को सैकडो वर्षों का अनुभव है | पर उस वीरंगना से वे कुछ भी ना जान पाए | नाना साहब पेशवा कभी पकडे नहीं गए | वीर कुवर सिंह ८५ वर्ष कि आयु मे अद्भुत सैन्य नेतृत्व कर्ता थे पर हाथ मे क्षेपणी(गोली) लगने के कारण उन्होंने खुद ही तलवार से अपना हाथ काट डाला | संभवतः उन्हें गैंग्रीन हुआ होगा जिसके कारण उनका देहांत हों गया | १८६० से आंग्ल लोगो ने व्यापक परिवर्तन किए उन्हें समझ आगया के उनको तरीके बदलने होंगे अन्यथा अगली बार के विद्रोह मे इंग्लैंड मे पीढ़ी बढाने को कोई ना बचेगा | उन्होंने इन्डियन पुलिस एक्ट बनाया, सिविल सर्विसेस एक्ट बनाया, इंडियन पीनल कोड बनाया, सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट बनाया इत्यादि अनेको अनेक कानून बनाये जो आज दिन भी वैसे के वैसे ही थे |
योगी का आगमन
परमात्मा कि कृपा सदैव से रही है जब हर स्तर पर हमारे समाज पर हमारे अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगाने वाला हमला हों रहा था तब ऐसा व्याकरण का महापंडित जो बाद मे सिद्ध योगी हुआ का प्रादुर्भाव हुआ जिसने ऋषि परंपरा को फिर से जीवित कर दिया | जैसे अगस्तस्य ऋषि के सामने रावण का भी साहस नहीं होता था ऐसे ही एक मुमुक्षु सन्यासी जो स्वामी और फिर महर्षि दयानंद कहलाया | १९०० के बाद के लगभग सभी क्रांतिकारीयो के मूल मे ऋषि दयानंद थे जिन्हें सब गर्व से स्वीकार करते थे | लगभग ८० प्रतिशत क्रन्तिकारी आर्य समाज से जुड़ा हुआ था | इस बात के अनेको प्रमाण मिलते है के महर्षि दयानंद ने सीधे १८५७ कि क्रान्ति मे सशस्त्र विद्रोह मे भाग लिया था | वास्तव मे ये सन्यासीयो द्वारा प्रायोजित विद्रोह ही था जिसकी तैयारी १८५४ से चल रही थी | परिणाम भी उसी अनुरूप मिले पर जैसा के ऋषि ने कहा ही है के भाइयो कि फूट | विरजानंद के आश्रम से निकलने के बाद स्वामी दयानंद ने ५ वर्षों मे लगभग ९ गुरुकुल खुलवाए पर वो अर्थाभाव मे चले नहीं | कारण था, अंग्रेजो को यही तो तोडना था गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था | उन्होंने और तप किया | शनैः-शनैः उनकी विद्वता और प्रसिद्धि सर्वत्र थी | महर्षि दयानंद कि लिखी “आर्याभिविनय” क्रांतिकारियों कि गीता कही जाने लगी |
१८७५ मे आर्य समाज कि स्थापना हुई | वाइसरॉय से महर्षि दयानंद कि चर्चा के बाद से ऋषि पर बराबर जासूसी कि जाने लगी क्यों के अंग्रेजो का कैसा भी प्रयास काम नही किया | और“सत्यार्थ प्रकाश” मे स्वराज्य कि बात इतने खुल कर लिखना | विदेशी शासन का स्थान-२ पर विरोध अंग्रेजो के लिए खतरे कि घंटी था | राज व्यवस्था को इतने सूक्ष्म स्तर पर समझने वाले ऋषि दयानंद ने वैदिक राज व्यवस्था का ना केवल वेद से प्रमाण दिया वेदों मे विमान विद्या,तार विद्या, परमाणु विज्ञान अपने ग्रन्थ“ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका” मे दिखा कर अंग्रेजो के झूठ वेद गडरियो के गीत इस बात कि धज्जिया उड़ा दी | उनके रहते आर्य बाहर से आये अधिक प्रचारित ना कर पाए क्यों के ऋषि ने राष्ट्रवादी संघठन “आर्य समाज” कि स्थापना कि | १८८३ मे जब आंग्ल लोगो ने उनकी हत्या कराई वे गौ रक्षा के लिए १ करोड लोगो के हस्ताक्षरी अभियान चला रहे थे | उनकी मृत्यु के बाद तो आंग्ल लोगो कि तो जैसे चांदी हों गई | उन्होंने अपने विचारों को स्थापित करने के लिए शैतानी संघठन फ्री मेसनरी से जुड़े व्यक्ति को १८९३ मे शिकागो पंहुचाया | सेक्युलारिस्म कि नीव डलवाने का प्रयास किया, वैदिक धर्म मे गौ मांस, राम कृष्ण कभी हुए नहीं इन बातो को सिद्ध करना चाहते थे भगवाधारी के मुख से कहला कर पर उस समय ये चल नहीं पाया | इधर आर्य समाज मे जो गुरुकुलो कि स्थापना का विचार चल रहा तथा उसका विरोध आंग्ला लोगो से सहानभूति रखने वालो ने किया और देखिये आंग्ला का विरोध करने वाले दयानंद के नाम के बाद एंग्लो और वेद का विरोध करने वालो को वैदिक से पहले एंग्लो इस प्रकार “दयानंद एंग्लो वैदिक” जो संछेप मे डी.ए.वी कहा गया कि स्थापना कि गई जो आज सरकार द्वारा अधिगृहित है सहायता के नाम पर |
कांग्रेस कि स्थापना
ह्यूम कि जिस रिपोर्ट मे सन्यासी विद्रोह का वर्णन आता है जिसके कारण वो कांग्रेस कि स्थापना कि संस्तुति कर रहा था उसके पीछे ऋषि दयानंद का ही हाथ था | निश्चित तौर पर अन्य साधू सन्यासी भी पूर्ण सहयोग दे रहे होंगे क्यों के सबसे अधिक जनबल महर्षि दयानंद के पास ही था | और महर्षि दयानंद कि ऋतम्भरा बुद्धि केवल अध्यात्म तक सिमित ना थी | इंग्लैण्ड मे इण्डिया हाउस कि स्थापना करने वाले श्याम जी कृष्ण वर्मा ऋषि दयानंद कि उत्तराधिकारी सभा के सदस्य थे | इण्डिया हाउस क्रांतिकारियों का गड था वही से वीर सावरकर ने १८५७ कि स्वातंत्रता समर लिख कर और फ्रेंच मे अनुवादित कर के फैलाई थी | तो अंग्रेजो को ऐसा मंच चाहिए था जिसमे जनता का विश्वास हों सके और जिसके कारण जनता सशस्त्र विद्रोह ना करे | कांग्रेस का ध्येय गोरो के प्राण बचाना था और अंग्रेजो को उस समय तक डोमिनियन व्यवस्था का सिद्धांत भी समझ आने लगा था |
डोमिनियन का विचार अच्छे से १८८८ तक उनके विचार मे आगया था प्रमाण स्वरुप डफरिन के विचार वाला ये दस्तावेज देखे जो मैं बगल मे दे रहा हू, इंडियन आशा से अधिक गुलाम निकले कर प्रणाली का कभी विरोध ही नहीं किया चोरी के नए तारिक अवश्य निकाले | वापस विषय पर आते है, कांग्रेस ने वही किया, जब भी कोई छलावे मे आया देशभक्त नेता कांग्रेस से जुड कर वास्तविक स्वराज्य कि मांग कर्ता तो वर्षों के लिए जेल मे डाल दिया जाता | श्री तिलक, श्री अरबिंदो इसके उदारहण थे | प्रफुल चाकी और खुदीराम वसु के चीफ प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड को मारने के प्रयास को तिलक ने सही ठहराया | जिसके कारण उन्हें जेल मे ६ वर्ष १९०८ से १९१४ तक डाल दिया गया | जेल काट के निकले तो कांग्रेस मे दुबारा मुश्किल से जगह बना पाए क्यों के जो बैठे थे वो अंग्रेजो के चाटुकार थे | १९१५ तक गोखले के जीवित रहते उनका कांग्रेस मे वापस आना मुश्किल ही रहा | १ अगस्त १९२० को मरते ही मोहनदास गाँधी का भाग्य चमक गया और कांग्रेस कि कमान उनके हाथ मे आगई | असहयोग आन्दोलन चला और २ वर्षों मे अंग्रेज डोमिनियन देने कि सोचने लगे | पर वैसे ही ५ फरबरी चौरी चौरा कि घटना हुई | कांग्रेस इसी को रोकने के लिए तो बनी थी गांधी ने अपना कर्तव्य निभाया १ सप्ताह मे यानी १२ फरबरी को आंदोलन वापस ले लिया | फिर चितरंजनदास और मोतीलाल ने १९२३ मे स्वराज्य पार्टी बनाई तो क्रांतिवीर सचिंद्रनाथ सान्याल और अमर बलिदानी क्रांतिवीर पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जी ने १९२४ मे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन बनाई क्यों के कांग्रेस का ध्येय लोग समझ चुके थे | यहाँ तक के चौरी चौरा कांड के लिए २२८ लोगो पर आरोप लगे १७२ क्रांतिकारियो को फ़ासी कि सजा हुई | मदन मोहन मालवीय जी ने जो के अधिवक्ता के तौर पर सन्यास ले चुके थे उनका केस लड़ा और १५० के करीब लोगो को फ़ासी के फंदे से बचाया पर फिर भी गोरो ने हमारे १९ क्रांतिवीरो को फ़ासी पर टांग दिया और ६ लोगो को पुलिस ने अपने अत्याचारों से मार दिया था | अंगेज भारतीयों का खून चूस रहे थे और समय काट रहे थे | कांग्रेस के साथ अनविज्ञता मे शुरू मे देशभक्त जुड़ते और फिर इसे समझते ही या तो निकाल दिए जाते या खुद छोड़ देते | बहुत से देश भक्त लम्बे समय तक इस खेल को समझ ही ना पाए | वीर सावरकर ने तो जेल मे रह कर ही कांग्रेस कि कालिख लगने से स्वयं को बचा लिया और कांग्रेस मे सम्मलित होने के प्रस्ताव को ठुकरा कर हिंदू महासभा का चयन किया | लाला लाजपत राय और मदन मोहन मालवीय जी हिंदू महासभा ही विकल्प है ये समझ चुके थे और खुद शुभाष चन्द्र वसु जी को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से मोहन दास गांधी ने त्यागपत्र देने को बाध्य किया | १९४२ कि अगस्त क्रांति मे १३-१४ के बच्चे-बच्चिया मारे गए पुलिस थानों मे अहिंसा का पालन करते हुए तिरंगा लगाने मे | यदि यही सशस्त्र विद्रोह होता तो १९४२ मे काले अंग्रेज भी मारे जाते |
गणतंत्र और चुनाव
१९११-१२ से जो चुनाव प्रक्रिया आरम्भ हुई जिसका सबने विरोध किया | १९३७ के प्रांतीय चुनावो को कांग्रेस शुरुआती नखरे दिखाते हुए स्वीकार कर लेती है | अर्थात १९३५ के बने गवर्मेंट आफ इंडिया एक्ट पर सहमत हों गए और जिसे गांधी ने कभी वैश्या तंत्र कहा था आज कांग्रेसी उसी मे तैरने के लिए लालायित थे | १९४७ का इन्डियन इंडिपेंडेंस एक्ट १९३५ के कानून के अंतर्गत है बस डोमिनियन के घोषणा के साथ [श्रोत: देखे बर्तानिया विधि पुस्तकालय] | बाद मे जो संविधान बना वो तो पूरी कि पूरी आंग्ल शासन पद्धति कि नकल रहा | नकल भी ऐसी है के कॉमा और फुल स्टॉप भी वैसे के वैसे ही है | स्वतंत्रता कि खुशी मना रहे वो भोले-भाले क्रांतिकारी जिन्हें कोई मूल्य नही चाहिए था | जिन्होंने जान दी शरीर पर ही नहीं आत्मा पर भी वार झेले | वो ब्राह्मण क्रन्तिकारी जो साफ़ सफाई का विशेष ख्याल रखते थे उन्हें विशेषकर गोरो ने मु मे मल मूत्र तक ठुसे और उन्होंने वो भी सरलता से झेल लिया पर टूटे नहीं | चमड़े के चाबुक और बर्फ कि सिल्लिया मजाक थी, क्रांतिकारियो के लिए उस से भी बड़ा मजाक बना रखा था फ़ासी का | किस मिट्टी से बने है इस देश एक बालक और बालिकाए ये अंग्रेज कभी समझ ना पाए | पर इसका मूल्य देना स्वतंत्रता संग्रामी पेंशन, क्या वे किसी मूल्य के लिए लड़े थे वे ? लाभ उन्होंने उठाया जिन्होंने कभी एक डंडा भी नही खाया और कांग्रेसी कार्यालय मे नारेबाजी कि | अंग्रेज चाहते थे हम चारित्रिक तौर पर गिरते चले जाए इसके लिए उन्होंने वर्षों से सोच रखा था गणतंत्र बनने पर वैसा ही हुआ | हम गिरते गए आज हमने भ्रष्टाचार के सर्वोच्च शिखर पर पहुच गए | हमने दासता कि पराकाष्ठा पार कर दी | आज ६७ वर्ष बाद भी हमारे प्रधान मंत्री संध्या के समय सूर्यास्त के बाद प्रधानमंत्री कि शपथ लेते है | क्यों के साढ़े ५ घंटे पहले इंग्लैंड मे संसद का समय हुआ कर्ता था | लोकतंत्र ने फूट मे फूट डाली दी | पहले फुटन कोढ़ थी, तो अब खाज हों गई |
२६ जनवरी का ढोंग
यदि सरदार पटेल ने उन क्रांतिकारियो को ना रोका होता और काश सशस्त्र विद्रोह हों जाता तो भारत मे आज डोमिनियन शासन ना होता | पर फिर शायद किसी कांग्रेसी को सत्ता सुख ना मिलता | और जो राज्य अंग्रेज नहीं जीत पाए थे वो भी आज श्री पटेल के प्रयासों से राज्यों का संघ मे बर्तानिया डोमिनियन मे सम्मलित है | संभवतः इसीलिए कुछ राजा मिलना नहीं चाहते थे राज्य संघ मे क्यों के वो जानते थे के भारत मे सत्ता किन काले अंग्रेजो के हाथ मे जा रही है | फिर भी सयुक्त होना अधिक उत्तम है जब सीमाए विधर्मी राज्यों से लगी हों | कांग्रेस खुद डोमिनियन कि मांग करती रही पर जब पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जी कि बनाई एच.आर.ए (बाद मे एस.एस.आर.ए) के पूर्ण स्वराज्य कि मांग के कारण जन समर्थन पाने लगी जब के उसके कार्यकर्ता सशस्त्र क्रांति कर ही स्वराज्य लेना चाहते थे और फासियो पर चढ़ रहे थे | कांग्रेस को भी पूर्ण स्वराज्य पर आना पड़ा २६ जनवरी १९३० को पूर्ण स्वराज्य कि मांग करी | १५ अगस्त का कारण हम लिख चुके तो कांग्रेस ने अपना सम्मान बचाने के लिए २६ जनवरी १९५० को गणतंत्र दिवस घोषित किया संविधान को लागू कर के जो के २ मास पूर्व नवम्बर १९४९ मे ही पूर्ण हों गया था | यानी डोमिनियन कि बात दबी रहे और कानून बना कर स्वतंत्रता कैसे मिल सकती है ये आप ना सोच सके क्यों के कानून बना कर स्वतंत्रता अगर मिलने लगी तो कानून बदल कर स्वतंत्रता हट सकती है मजाक है स्वतंत्रता का | ये गणपति का देश है हमे गणतंत्र नहीं चाहिए हमें तो गणपति तंत्र चाहिए | अर्थात वेद कि व्यवस्था चाहिए |
दासता कि पराकाष्ठा
डोमिनियन मे समस्या क्या है ? ये सबसे बड़ा प्रश्न होगा आप के मस्तिष्क मे | हमारी अर्थव्यवस्था आज तक नही पनप पाई | भारत मे पैदा होने वाले को किसी देश मे जाकर काम नही करना पड़ता था | पूरी दुनिया का सोना यहाँ आकार गिरता था | धर्म अध्यात्म समृधि हमारे पास आरम्भ से ही थी कारण २ थे पहला वेदों का ज्ञान दूसरा भौगोलिक सुविधाए | सभी कुछ उत्पादन कि क्षमता और दिव्य जल से युक्त नदिया, हिमालय और समुद्र. मैदानी भाग और रेगिस्तान | अंग्रेज तो शुरू से समझते थे पर खत्म करने के लिए जो उन्होंने किया वो आज जा कर सफल हुए है |
१.प्रथम तो देखे हमारा संविधान उनके तंत्र अनुरूप बना | २.हमारा राष्ट्रगान उनके राजा कि प्रशंसा वाला आज भी चल रहा है भारत भाग्य विधाता जोर्ज पंचम | ३.हमारा झंडा जो के रामायण से महाभारत तक और महाभारत से सन्यासी विद्रोह और अंत तक भगवा ही रहा | क्रन्तिकारी बसंतीचोला ही रंगने कि प्रार्थना करते रहे | उसे सांप्रदायिक आधार पर बनाया गया और बहाना बनाया गया के फलाना रंग इस बात का प्रतीक है | ४.आंग्ल जिसकी हमें कोई आवयश्कता नही थी उसे हटाने के स्थान पर और बढ़ा दिया गया | ५.पहले हमारा विज्ञान और राजाओ का इतिहास छुपाया गया अब तो हमारे क्रांतिकारियो का इतिहास भी नही ढूंढे मिलता है | ६.उच्चतम न्यायालय कि आज तक अधिकारिक भाषा आंग्ल है | ७.धोती कुर्ता सभी का छूट गया और हम सभी पैंट शर्ट मे आगये | ८.हमारी राजव्यवस्था मूर्खो वाली दी गई | एक समय था जब ऋषि राजा होते थे या राजा चुनते थे आज एक बलात्कारी और एक संत दोनों का मतदान का एक ही महत्व है | ९.विकेन्द्रित व्यवस्था के स्थान पर केंद्रित एवं कंपनी निकाय फ़ैल गया नौकरी करना जहा निकृष्ट माना जाता था आज लोगो के पास कोई विकल्प नही है १०.किसान अभी भी ऐसा एक मात्र उत्पादक है जो अपने उत्पादित पदार्थ का मूल्य निर्धारण का अधिकार नहीं रखता | ११.आंग्ल लोगो के बनाए सहस्त्रो* कानून वैसे के वैसे ही है | १२.किसान छोड़ कोई भी भोगवाद या तंत्र से जुड़ा कार्य करने वाला वेतन से सामान्य या सामान्य से ऊपर जीवन जी लेगा | इस कारण लोगो मे आत्मनिर्भरता के विचार का शिक्षा के माध्यम से लोप करा दिया गया | १३.हर क्षेत्र मे विदेशी निवेश खोलते चले गए और क्रम चालु है | १४.कॉमन वेल्थ मे अभी भी हम जुड़े हुए है | १५.आरक्षण का जो विष बीज अंग्रेज बो गए वो आज वृक्ष रूप मे हों गया है | १६.हमारी समृद्ध अर्थव्यवस्था का केन्द्र रहने वाली गौ कि हत्या के निषेध का आज भी केन्द्र मे कानून नही बन सका | अभी भी यहाँ से गौ मांस निर्यात होता है | १७.अभी भी इतिहास कि पुस्तके नहीं बदली अभी भी हम नह जानते बाप्पा रावल कौन थे, बंदा वैरागी ने क्या किया था | चाफेकर बंधू,जतिन बघा, रासबिहारी, गेंदालाल दीक्षित इत्यादि अनगिनत नाम है | मरने वालो ने आह नही कि और हमें समय नही उनके बारे मे पढ़ने तक का | १८.महर्षि दयानंद और आर्य समाज के कार्यों को बताने के बजाये आर्य समाजो का दमन नेहरु सरकार का पहला दायित्व रहा | आज आर्य समाजो पर अधिकतर कब्जे ही हों चुके है जो कभी क्रांतिकारियो का अड्डा होते थे | १९.अभी भी हम स्टैम्प ड्यूटी(जिसका ऋषि दयानंद ने विरोध किया था), कोर्ट फीस, मे फसे है | २०.आज भी नाम नहीं बदले गए भवनों के, जिलो के | अंग्रेजो के कब्रिस्तान स्मारक वैसे ही खड़े है | २१.कर प्रणाली सुधरने के बजाये बिगड़ती चली गई | २२.भारत दुनिया का एक मात्र ऐसा देश है जिसका आंग्ला मे नाम का भी अनुवाद होता है भारतवर्ष का इंडिया |
क्या क्या लिखे और कितना लिखे विचार करिये तो समझ आजाएगा के उन्होंने हमारी विवेकशीलता को खत्म करने वाली शिक्षा प्रणाली दे रखी है | हम धर्म अर्थात सुख के मार्ग से कोशो दुर है इस व्यवस्था मे |
एक ही विकल्प : वैदिक प्रजतंत्र व्यवस्था
इसका विकल्प यही है के देश मे दासता के स्तर को समझा जाए और क्रान्ति आये | वैदिक त्रयीसंसदीय व्यवस्था को पुनः लागू किया जाए | राजार्य सभा, विद्यार्य सभा, धर्मार्य सभा द्वारा राष्ट्र का नियंत्रण हों | समय-२ पर अश्वमेध कर के हम सीमाओं का विस्तार करे | परमात्मा का “कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” का आदेश हम पूरा करे | हमारे लोग पुनः योग के मार्ग का अनुसरण कर के मोक्ष कि सिद्धि मे लग जाए | किसान समृद्ध हों जाए | और फिर से पूरी दुनिया का सोना यहाँ आकार गिरने लगे | ये कोई बहुत बड़ी चीज नही है हम इसके अधिकारी है हम ऋषियों कि संतान है शासन के लिए ही पैदा हुए है | पर संघठन के बिना कोई शक्ति नहीं होती | पहला चरण तो लोगो को बताये के पूर्ण स्वराज्य कि लड़ाई अभी बाकी है | स्वयं के ज्ञान को बढाए और दूसरों को भी बताये जो खुद को पता चलता जाए | क्रांतिकारियों का बलिदान यू बेकार नहीं जाने दें सकते | हम अपने सामर्थ्य, ज्ञान और संघठन को योगबल से बढाए परमात्मा हमें स्वराज्य का मार्ग अपने आप दिखायेगा |
*३४७३५ अन्य श्रोत
लेख पश्चात : लिखने को इतना है के एक पुस्तक मे ही पूरा हों पाए परन्तु एक लेख मे अति संछेप मे इतना पर्याप्त लगा | कृपया पढ़े और दूसरों को पढाये और कहने को जो स्वतंत्रता दिवस कि छुट्टी मिलती है उसे जागरूकता और स्वराज्य प्राप्ति के प्रयासों के लिए प्रयोग करे | शमित्योम्
Collection courtesy : Not exactly known
दे दी हमे आजादी, बिना खडग बिना ढाल: Wʜᴏ ʀᴇᴀʟʟʏ ʙʀᴏᴜɢʜᴛ ᴜs ғʀᴇᴇᴅᴏᴍ?
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“We shall be able to win freedom only through the principles the Congress has adopted for the past thirty years.”
— Mᴀʜᴀᴛᴍᴀ Gᴀɴᴅʜɪ commenting on Netaji Subhas Bose and Indian National Army (INA) in 1946
“The situation in respect of the Indian National Army is one which warrants disquiet. There has seldom been a matter which has attracted so much Indian public interest and, it is safe to say, sympathy…the threat to the security of the Indian Army is one which it would be unwise to ignore.”
— Sɪʀ Nᴏʀᴍᴀɴ Sᴍɪᴛʜ, Director, Intelligence Bureau on 20 November 1945 (Report declassified in 1970s)
“There are two alternative ways of meeting this common desire (a) that we should arrange to get out, (b) that we should wait to be driven out. In regard to (b), the loyalty of the Indian Army is open to question; the INA have become national heroes….”
— Aᴅᴠɪᴄᴇ ғʀᴏᴍ ᴀ ᴅᴇʟᴇɢᴀᴛɪᴏɴ ᴏғ Bʀɪᴛɪsʜ MPs to Prime Minister Clement Attlee in February 1946 (Declassified in 1970s)
“There was considerable sympathy for the INA within the Army. …It is true that fears of another 1857 had begun to haunt the British in 1946.”
— Lᴛ Gᴇɴᴇʀᴀʟ SK Sɪɴʜᴀ (former Governor of J&K and Assam) and one of the three Indian officers who were part of the Directorate of Military Operations in New Delhi in 1946. Sinha wrote this in 1976.
“I don’t know how Mr Attlee suddenly agreed to give India independence. …It seems to me from my own analysis that two things led the Labour party to take this decision: 1. The national army that was raised by Subash Chandra Bose. The British had been ruling the country in the firm belief that whatever may happen in the country or whatever the politicians do, they will never be able to change the loyalty of soldiers. That was one prop on which they were carrying on the administration. And that was completely dashed to pieces.”
— Bᴀʙᴀsᴀʜᴇʙ Bʜɪᴍʀᴀᴏ Aᴍʙᴇᴅᴋᴀʀ in an interview with the BBC in February 1955.
“Toward the end of our discussion, I asked Attlee what was the extent of Gandhi’s influence upon the British decision to quit India. Hearing this question, Attlee’s lips became twisted in a sarcastic smile as he slowly chewed out the word, ‘m-i-n-i-m-a-l!”
— PB Cʜᴀᴋʀᴀʙᴀʀᴛʏ, Chief Justice of Calcutta High Court and acting Governor of West Bengal, recalling his talks with the former British PM in October 1956. This became public knowledge nearly two decades later.
“दे दी हमे आजादी, बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तुने कर दिया कमाल”
— Aɴ ᴀʟʟ-ᴛɪᴍᴇ ғᴀᴠᴏᴜʀɪᴛᴇ Bᴏʟʟʏᴡᴏᴏᴅ sᴏɴɢ of circa 1954 extolling Gandhi for having singlehandedly delivered freedom to India solely through the non-violent means.
“It slowly dawned upon the Government of India that the backbone of the British rule, the Indian Army, might now no longer be trustworthy. The ghost of Subhas Bose, like Hamlet’s father, walked the battlements of the Red Fort (where the INA soldiers were being tried), and his suddenly amplified figure overawed the conference that was to lead to Independence.”
— Bʀɪᴛɪsʜ ʜɪsᴛᴏʀɪᴀɴ Mɪᴄʜᴀᴇʟ Eᴅᴡᴀʀᴅᴇs writing in his 1964 book The Last Years of British India.
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