महंगाई के कारण और संकट
जिस देश मे वर्ष मे ३-४ फसले होती हों, वहा निरंतर महंगाई के बढते रहना दर्शाता है के उस देश के लोग किसी गहरे षण्यंत्र मे फसे हुए है | महंगाई अर्थात निरंतर मुद्रा कि क्रय शक्ति का ह्रास होना | अर्थात १ रूपए मे आप जितनी चीजे ले सकते है अगले वर्ष १ रूपए मे उस से कम अगले वर्ष उस से भी कम क्रमशः इत्यादि | दिवस के घंटे तों बढ़ेंगे नहीं, अब उतने ही समय मे और अधिक धन कमाना होगा लोगो को | सरकार हर दशम वर्ष वेतन आयोग कि अनुशंसा का पालन करते हुए महंगाई भत्ता अपने कर्मचारियों को देती है | अब जो सरकारी नौकरी मे है उनके पास अधिक धन और जो उस व्यवस्था मे नहीं है उनके पास उस अनुपात मे आय वृद्धि नहीं होती परिणामतः कुछ लोग ईष्ट वस्तु के लिए अपना मूल्य लगाते, दूसरे उतना मूल्य नही चूका सकते | परिणामतः आर्थिक असमानता और बढती, बाजार भाव बिगड़ता हैं | जो स्वतंत्र छोटे व्यवसायों मे है वे अपने अनुसार अपनी सेवाओं कि मूल्य वृद्धि करते | सरकार और नोट छापती जाती, बाहर से और कर्ज लेती जाती पर कोई भी इसके मूल का उपचार ना सोचता और यदि जानता भी तों करना नहीं चाहता | हम इनके कुछ मूल कारणों को उल्लेखित करते है |
- लोकतंत्र : राजाओ के समय मे यदि मूल्य वृद्धि होती थी तों प्रमुखता २ ही कारण रहते थे | युद्ध या अकाल और सहस्त्रो वर्षों से इस देश मे मूल्य वृद्धि नहीं हुई थी अनाज कि | आर्थिक से लेकर सामाजिक ढाचा इतना सशक्त था के कही हानि हुई भी तों सामाजिक एका अर्थव्यवस्था को सम्हाल लेती थी | अकाल तों १७६० के बाद अंग्रेजो कि नीतियों के कारण पडना आरम्भ हुआ क्यों के परमात्मा कि कृपा से प्राकृतिक तौर पर हमने सबसे समृद्ध स्थान पर जन्म लिया हैं | किसी भी लोकतांत्रिक देश मे गरीबी या महंगाई का सबसे प्रमुख कारण लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से सत्ता पक्ष के निर्वाचन मे हुआ व्यय होता है | जितना व्यय मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री कि नियुक्ति के लिए होता है, अर्थात केवल एक चुनाव मे हुआ खर्च ही देश को समृद्ध करनेके लिए पर्याप्त है | बहुमत पर कार्य करने वाले किसी भी लोकतान्त्रिक देश मे लगभग सभी समस्याओ का मूल लोकतंत्र मे ही समाहित होता है | वैसे तों बर्तानिया संसदीय व्यवस्था कंपनी सिस्टम को चलाने के लिए है और हमारे क्या किसी भी देश के लिए उपयुक्त नहीं परन्तु यदि चाहे तों इसी व्यवस्था मे से एक स्पष्ट बिना खर्च कि चुनाव प्रणाली निकाली जा सकती है | बिना एक भी रुपया खर्च हुए पुरे देश मे चुनाव हों सकते है पर कोई भी इस प्रकार के लोकतान्त्रिक सुधारों को आगे नहीं आने वाला क्यों के चुनाव कराने के लिए ऋण विश्व बैंक देता है |
- बैंक : महंगाई का दूसरा प्रमुख कारण लोकतांत्रिक या गैर लोकतांत्रिक देश मे बैंक है | अर्थात कोई देश यदि बच गया लोकतंत्र कि मार से तों बैंकिंग से नहीं बच पायेगा | बैंक भोगवाद को बढ़ावा देते है और बैंक चलते भी लोगो के ऋण लेने पर है | बैंको के जो कालांतर सूचक(कैलेंडर) छपते है उनमे आपको एक माह मे अच्छी शिक्षा का लालच होगा, तों दूसरे मे अच्छे घर का, तीसरे मे बड़ी कार का इसी प्रकार वो पुरे वर्ष आपको किसी ना किसी चीज ले लिए ऋण लेने के लिए लालच देते रहेंगे | आपके अवचेतन को यही सन्देश जाएगा के ऋण लेकर समृद्ध बना जा सकता है | हा बना भी जा सकता है यदि वो आपको चुकाना ना हों या कोई और चुकाए अर्थात आपके पास अतिकुशल धन प्रबंधन हों | पर इस पुरे चक्र मे महंगाई ही बढती है | जितनी गाडिया आज आपको सडको पर दिख रही है अधिकतर बैंक लोन पर होती है | पेट्रोल और डीसल कि खपत बढती है और परिणामतः वस्तुओ कि मूल्य वृद्धि होती है | बैंक कभी भी बैलो के जोड़े या जोड़ो समेत बैलगाडी लेने लिए ऋण नहीं देंगे वे ट्रैक्टर लेने के लिए आपकी भूमि के कागज़ रख कर ऋण दे देंगे |
- अंतरराष्ट्रीय ऋण : जिस देश से ऋण लिया जाता है उस देश कि तुलना मे स्वदेश कि मुद्रा अवमूल्यित होती है | अतः एक बार ऋण लेकर उस देश से कितना भी व्यापार कर लिया जाए, कैसे भी व्यापर कर लिया जाए हानि ऋण लेने वाले देश कि ही हैं | यदि निर्यात करते है तों उतने गुणा अधिक वस्तुए जाएगी और आयत करते है तू उतने अधिक गुणा मुद्रा बाहर जाएगी | अतः महंगाई नियंत्रण के लिए आवश्यक है के अन्तराष्ट्रीय स्तर पर हमारा देश ऋण मुक्त हों | हमारे देश का नाम भारत तभी सार्थक है जब हम दूसरों का भार उठा कर उनकी सहायता करे ना के दूसरे देशो पर अपनी अर्थव्यवस्था का कथित भार डाले | ये शासको कि इच्छा शक्ति और राष्ट्र भक्ति पर है के वो हमारे देश को विश्व बैंक और आई.एम.एफ के ऋण से मुक्त करने के लिए कितना प्रयास करते है और प्रजा को सुखी बनाते है |
- भोगवाद : लोकतंत्र जहा कंपनी निकाय को सशक्त कर्ता है वही बैंकिंग उस कंपनी निकाय(सिस्टम) कि जड़े और गहरी कर्ता है | क्यों के जो वस्तुए कंपनिया बनाती है उनके लिए बैंक ऋण देता है, कंपनियों को भी और उपभोक्ताओं को भो | हर एक बड़ी इकाई लोकतांत्रिक देश मे जिसे राजव्यवस्था(सरकार) बढ़ावा देती है आपस मे संबद्ध है | विज्ञापनों के माध्यम से अधिकतर कंपनिया अपना वो सामान बेचती हैं जिनके होने ना होने से मानव जाती कोई फर्क नहीं पड़ता | अपनी मूलभूत आवयकताओ को पीछे रख कर लोग बड़ी सरलता से विज्ञापनों के जाल मे पड कर भोगवादी होते है | अब हर वस्तु बनती प्राकृतिक संसाधनों से ही है और जो कि सीमित है | तों उतने ही प्राकृतिक संसाधनों का जब अनावश्यक दोहन बढ़ जाएगा तों इसका परिणाम जनता को तों उठाना ही पड़ेगा |
- भ्रष्टतंत्र : लोकतंत्र बिना भ्रष्टाचार के चल ही नहीं सकता | इसका मूल ही है, लोकतंत्र मे मुद्रा कि गति तीव्र होती है | हर व्यक्ति जो छोटा सा भी चुनाव जीत कर आता है स्वयं को राजा समझता है | भारत मे राजतंत्र मे भो दोष थे पर न्यून, जितने कि आज वर्तमान व्यवस्था मे व्याप्त हैं | उन्हें सुधार कर वैदिक संसदीय व्यवस्था का निर्माण होता तों राष्ट्र पुनः विश्वगुरु बन जाता | पर हमें तों लोकतंत्र मे ऐसा फसाया के लोग समझ ही नहीं पा रहे के भ्रष्टाचार का मूल लोकतंत्र मे समाहित है | जो दल जिनसे धन लेकर चुनाव लड़ते हैं, सत्ता मे आने को उन्हें लाभ देते है | जनता के दस-दस रुपये के सहयोग से चुनाव नहीं जीता जा सकता | निर्वाचित अपने संबंधियो को लाभ देते हैं और अधिक से अधिक लाभ कमाने का प्रयास करते हैं | किसी ना किसी सरकारी कर्मचारी पर राजनैतिक हाथ होता है |
- विदेशी कंपनियों कि लूट : लोकतंत्र के माध्यम से कंपनीवाद, कंपनीवाद से भोगवाद और भोगवाद से और अनावश्यक आवयश्कताओ का निर्माण कराया जाता है | विदेशी कंपनियों को सरलता से गणतांत्रिक देश मे पैर रखने कि छूट मिलती है | तों आयत निर्यात से यदि आप बच कर देश कि मुद्रा या संसाधन बचा भी लेते है तों आपके घर मे घुस के लिपस्टिक, पाउडर, हल्दी, धनिया, नमक इत्यादि बेचने वाली विदेशी कंपनियों से अपने देश को कैसे बचायेंगे ? ये कम्पनिया आपकी मुद्रा चलन से बाहर कर देती है जिस भी रूप मे वो चाहे | आज इतनी विदेशी कम्पनिया आगई है के ये पता करना काफी कठिन है के कौन स्वदेशी कौन विदेशी ? फिर इतना किसके पास समय है के स्वदेशी और देशी देखता फिरे लोग तों बस इष्ट वस्तुए लेना चाहते है | यदि एफ. एम. सी. जी. से विदेशी कंपनिया बाहर चली जाए तों देश के कुटीर उद्योग को तों लाभ होगा ही | मुद्रा अवमूल्यनांक कम होगा, श्री मुरार जी देसाईं के प्रधानमंत्रित्व काल मे डॉलर कि तुलना मे रुपया ५ रूपये* करीब कम हुआ था |
- बीमार होना : आज महानगरों मे हर कोई बीमार है प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, अनेको कारण है | दिनचर्या बिगडना सबसे प्रमुख है | भोगवाद के चक्र मे आकार आनावश्यक वस्तुओ का प्रयोग करना, घर के वर्तन बदलना और अधिक बीमार कर्ता है और सबसे प्रमुख हम आयुर्वेद का मूलभूत ज्ञान भूल चुके है | यदि लोगो को आयुर्वेद कि मूलभूत बातो का ज्ञान होता तों जल्दी बीमार नहीं पड़ते | जब तक “सर्वे सन्तु निरामयः” का पालन था देश मे १०० वर्ष जीना सामान्य बात थी | बिमारी के बाद लोगो का एलोपैथी दवा खाना, जिस से एक चीज ठीक होती तों दूसरी प्रभावित होती | मुद्रा को बिमारी और गति देती है पुरे समाज को भुगतान करना पडता है इसीलिए ऋषियो ने जो सूत्र हमें दिए वो बहुत ही सूक्ष्म स्तर तक प्रभावशाली है |
- किसानो का शोषण होना : जिस देश का अन्नदाता फ़ासी लगाता हों और भूखो मरता हों वो देश कभी समृद्ध नहीं सकता | जब तक गौ और कृषक समृद्ध नहीं होगा सब के सब इसी ऋण के चक्र मे फसे रहेंगे | गौ आधारित अर्थव्यवस्था ही विकल्प है बर्तानिया उपगणराज्य से बाहर आने का और स्वराज्य कि स्थापना करने का | गौ आधारित कृषि और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था इस पुरे चक्र से हमें बाहर निकाल के समृद्ध कर देगी, यदि शासक चाहे तों ये संभव है | हमें समझना होगा कि यदि समाज का कोई एक वर्ग भी पीड़ित और शोषित है तों दूसरा वर्ग अधिक दिनों तक बच नहीं पाएगा | शोषण असंतोष और असंतोष से कभी-२ अपराध कि उत्पत्ति कर देता है | पर असंतोष क्रांति कि भी उत्पत्ति कर्ता है | पर कृषक आने वाले समय मे क्रान्ति नही करने पाए इसके लिए उसे मजदुर बनाने कि योजना पहले ही राजव्यवस्थाए चला रही है |
महंगाई के और भी बहुत कारण है हमने केवल उनको इगिंत किया जिन पर प्रमुखता से लोग ध्यान नहीं देते | एक स्थान पर मुद्रा का संचय या वस्तुओ का संचय जिसे काला बाजारी कहा जाता है वो हमने उपरोक्त उल्लेखित नहीं किया, क्योकि अधिकतर लोग जानते है | लोग यदि बिना सरकार के संज्ञान मे लाये मुद्रा का संचय करते है तों ये अपराध है पर बैंक ये खुले आम करते हैं और सरकार बढ़ावा देती है | भारतीय खाद्यान निगम ये लोगो के सामने कर्ता है और लोग समझ ही नहीं पाते | अब हम महंगाई से उत्पन्न संकट पर चर्चा करते है |
संकट
महंगाई के इनको कारण उसकी मार झेल रही प्रजा उत्तम जानती है पर कुछ कि चर्चा करते हैं | एक स्पष्ट संकट है जो लोगो को दिख नहीं रहा वो है आबादी का | नगरीय क्षेत्रो मे लोग १ से अधिक बच्चा नहीं उत्पन्न कर रहे | उनके तर्क भी सही है हम शिक्षा नहीं दे पाएंगे, पालन पोषण नहीं कर पाएंगे | महंगाई लाने का उद्देश्य भी यही हैं कम आबादी का होना | २.१ कि दर(यानी औसतन ३ बच्चे) से कम बच्चे प्रति परिवार अस्तित्व का संकट उत्पन्न कर देते है | ग्रामीण क्षेत्रो मे अभी भी दाई व्यवस्था पर सरकार नियंत्रण नहीं कर पायी हैं तों अभी भी लगभग २००० रूपए मे स्वस्थ शिशु जन्म करवा देती है | नगरों मे नर्सिंग होम २०-२५ सहस्त्र से कम खर्च ना करवाए | हा, कुछ निकृष्ट लोग ग्रामीण इलाको मे गर्भपात भी करती हैं भविष्य मे सरकार ये बहाना लेकर दाई व्यवस्था पर नियंत्रण करना चाहे तों कोई बड़ी बात नहीं | फिर सिर्फ पैदा करना तों पर्याप्त नहीं दूध के दाम उचाई पर हैं और सरकार नित नए कत्लखाने खुलवाती हैं | कॉन्वेंट का भूत लोगो के सर चढा है पढायेंगे तों आंग्ला माध्यम मे अन्यथा पैदा ही नहीं करेंगे | दूसरा संकट है मुद्रा के छापने का, कर्ज बढ़ता जाएगा और एक समय आएगा के स्वर्ण स्तर से मुद्रा को स्वछन्द करने कि बात चलेगी | ऐसा मेरा अनुमान है तों ये स्तिथि और बुरी होगी जिसमे अमेरिका कि सरकार फसी है वही हम भी फस जाएँगे | संभव है तरीका थोडा भिन्न हों | क्यों के महंगाई बढ़ना फिर वेतन आयोग लगा कर वेतन कि वृद्धि करना फिर और लोग भी ऐसा ही करते हैं ये सिर्फ कागज कि बर्बादी ही दिखता है | यदि मुद्रा छाप कर महंगाई नियंत्रण करना चाह रहे तों कभी नहीं होगी | दर वही रहेगी या थोड़ी बढ़ेगी कागज़ कि खपत अवश्य बढ़ जाएगी | इसलिए बैंको ने ई.सी.एस चलाया निकट भविष्य मे एलेट्रोनिक मुद्रा ही चलेगी |
समाज मे अपराध बढ़ेगा, अनाचार बढ़ेगा | स्त्रियों को भी बाहर निकल के कार्य करना पड़ेगा और वे कर रही है तों इसके दुष्परिणाम पुरुषों को भुगतने पड़ेंगे | अध्यात्म खत्म होगा और जो अध्यात्म प्रतीत होगा उसमे भी अधिकतर कंपनी सिस्टम चल रहा वो लोगो को मुर्ख बना कर धन कमाने का माध्यम होगा |
महंगाई का निवारण इतना सरल नहीं क्यों के उपरोक्त विषय तों किसी बहुत बड़ी क्रांति से ही ठीक किये जा सकते है | लोकतांत्रिक तरीके से कोई सरकार आनी नहीं, आगई तों चलनी नही | मुरार जी देसाई कि सरकार प्रत्यक्ष उदाहरण है | पर हमें समाधान भी इसी मे से निकालना होगा | जब तक स्वराज्य कि स्थापना ना होगी महंगाई से हम ना निकल पायेंगे | तों स्वराज्य कि स्थापना हेतु उन बड़े निवारणो पर वर्तमान मे चर्चा को प्राथमिकता मे ना रखते हुए हम महंगाई से बचने के लिए लोगो को सूत्र आगामी लेखो मे देंगे |
*सामान्य भाषा मे कहा जाता है रुपया डॉलर कि तुलना मे इतना मजबूत हुआ | मुझे ये बुद्धि संगत नहीं प्रतीत होता क्यों के रुपया अभी भी डॉलर कि तुलना मे बहुत नीचे ही होता है | हम रूपए को मजबूत तब कहेंगे जब ६० डॉलर के बराबर १ रुपया हों | और रुपया कमजोर या मजबूत तब कहा जाए जब ५५ या ६५ का मूल्य पहुचे | परमात्मा हमारे देश को समृद्ध करने के लिए हमें स्वराज्य के लिए पुरुषार्थ करने कि सदबुद्धि दे |
Labels: अर्थव्यवस्था सुधार
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