राष्ट्रीय एकता का सूत्र कान्यकुब्ज भाषा-हिंदी
अंतरजाल पर बढाए, आर्य भाषा का मान
अंतरजाल अर्थात इन्टरनेट, आर्य भाषा यानी हिंदी, यानी हिंदी भाषा एवं देवनागिरी लिपि का अधिकाधिक प्रयोग करे अंतर्जाल पर | तों क्या अन्य भाषाए आर्य भाषाए ना हुई, जैसी असमी, पंजाबी, उड़िया, गुजरती, मराठी, बंगाली, तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम इत्यादि बिलकुल हुई पर इन सब भाषाओ को आपस में हिंदी जोडती है किस प्रकार वो हम आगे समझायेंगे | और भी प्रमुख कारण तों पूरी दुनिया देख रही है के भारत के वासी कैसी सोच रखते है भारत खिचड़ी देश नहीं इसकी भी अपनी पहचान है इसकी भी अपनी भाषा है | यदि हम लोगो को अपने देश की भाषा का प्रयोग करना ना अच्छा लगेगा तों यहाँ की अन्य बातो संस्कृति का क्या मान करेंगे?
सबसे ज्यादा बहाना ये लगाया जाता है के देश में अन्य भाषाए भी है यदि हम हिंदी प्रयोग करते है तों देश के अन्य लोग साथ नहीं आएंगे | जब के ये विचार मौकोले के मानस पुत्रो द्वारा फैलाया गया है जिसमे अन्य भोले लोग भी बिना विचार किये सहमत हों लिए | भाषा देश को जोड़ती हैं | वैदिक संगठन सूक्त कहता है के हों सम विचार हमारे, चित्त मन सब एक हों | जब पुरे देश की भाषा एक हों जाएगी तों देश संगठित हों जाएगा | पर जो संगठन की ताकत जानते है वो कभी इस देश के लोगो को संगठित नहीं होने देने |जितने भी समृद्ध देश है उनकी भाषाए एक है पुरे देश में | ऐसा नहीं के भारत में ही हर २-कदम में भाषा बदल जाती है, हर देश में ऐसा ही होता है | पर उस देश का शासन-प्रशासन भाषाई एकता का महत्व जानता है | एक भाषा पुरे देश के होने का अर्थ है के देश के एक कोने का व्यक्ति देश के दूसरे कोने के व्यक्ति से अपना विचार रख सकता है किसी भी विषय पर | चाहे शासन प्रणाली की पद्धति हों या कोई ऐसा समान कानून जो उन दोनों पर केन्द्र द्वारा लगाया जा सकता है | यदि भाषा ही अलग होगी तों वो संगठित नहीं हों सकते | संगठित नहीं हों सकते तों आंदोलित नहीं हों सकते |
इसके साथ ही उनका देश प्रेम भी प्रभावित होगा | केवल प्रजा की आवयश्कता नहीं भाषाई एकता राज व्यवस्था को भी एक करना होता है पुरे देश की भाषा को राष्ट्र की रक्षा के लिए | ताकि देश पर कोई संकट आने पर एक क्षण में वो बात प्रचारित की जा सके बिना विषय के बदले | भाषा के आधार पर राज्य की मांग करना या देश की मांग हों सकती है क्यों के लोग दावा का सकते है के हम आप में से नहीं है हमारी भाषा आपसे अलग है यांनी हमारे पूर्वज अलग है | चीन में भी भाषाए बदल जाती है थोड़ी-२ दुरी पर वहा के शासन ने सबको एक कर के मदेरियं चीनी को स्थापित किया | आप १९५० के पूर्व के मानचित्र देखे तों चीन एक छोटा सा देश दिखेगा | वह मंचुरिया राज्य नहीं, सिकियांग नहीं, त्रिविष्टप नहीं (यानि तिब्बत या स्वर्ग लोक) आज कितने बड़े क्षेत्र में चीन है हमारी भूमि पर भी कब्ज़ा कर्ता जा रहा है | अमेरिका को लीजिए भारत से लगभग तिगुना है क्षेत्रफल में पुरे देश में एक भाषा है जब के स्पैनिश भी वहा रही हैं पर आंग्ला को उन्होंने स्थापित किया | कैनेडा में भी यही हाल है | रूस को लीजिए कितना बड़ा देश और भाषा एक |
हिंदी के बारे में एक भ्रान्ति फैला रखी है के ये तों मुसलमानों की भाषा है | कारण ये है के समाचार पत्र या वृतपत्र और चलचित्र यानी फिल्मो में जो संवाद होते है उन्हें उर्दु फ़ारसी के शब्दों का प्रयोग अधिक होता है | उसका कारण राजव्यवस्था की एंग्लो लोगो की फुट डालो राज करो निति का अनुकरण करना और चलचित्र उद्योग में संवाद लेखकों में मुस्लिम समुदाय का अधिक योगदान होना | पुरानी फिल्मो में कमाल अमरोही, कादर खान और नई फिल्मो में अब्बास टायर वाला जावेद अख्तर जैसे लेखक | ये अपनी संस्कृति के संस्कार लोगो के अवचेतन में पहुचाते है हिंदी में मिलावट कर के | विशुद्ध हिंदी पर किसी भी दक्षिण भारत के बंधू को कोई आपत्ति नहीं है | चीन ने अपने समाचार पत्रों में विदेशी शब्दों का प्रयोग निषेध कर रखा है उन्हें पता है राष्ट्र की सीमाओ को कैसे स्थिर रखना है और बढ़ाना है | यहाँ तों वृतपत्रों पर इस प्रकार का नियम बनाने का कोई सोच भी नहीं सकता | क्यों के हर कोई लगा है भारत को खिचड़ी देश सिद्ध करने में |
हिंदी जिसे कान्यकुब्ज भाषा भी कहा जाता है | तत्सम, तद्भव निष्ठ हिंदी सुन कर मन आनंदित हों जाता है |
पर भारत में बर्तानिया (ब्रिटिश) उपनिवेश रहने से फुट की नीतिया प्रबल रही और वर्तमान में बर्तानिया उपगणराज्य की स्तिथि में हिंदी की और दुर्दशा करी जा रही है | अब तों ग्राम-२ ए, बी, सी, डी पहुचाई जा रही है | महर्षि दयानंद की मूल भाषा गुजराती होते हुए उन्होंने संस्कृत निष्ठ हिंदी को स्थापित किया | उन्हें पता था राष्ट्र में क्रान्ति का संचार इसी भाषा के आधार पर हों पाएगा | बाद में हिंदी के लेखकों ने बहुत प्रसंशनीय योगदान दिया हिंदी के विकास के लिए | शनैः- शनैः हिंदी को योजनाबद्ध विधि से मिलावटी भाषा में बदलने का प्रयास किया गया | आज लोग जब ऋषि की क्रांतिकारी कृति सत्यार्थ प्रकाश पढते है तों कहते है बहुत कठिन हिंदी में है जब के वास्तव में लोगो का भाषाई स्तर निचे हों चूका है |
आंग्ला भाषा दास मानसिकता का प्रतिक हैं
प्रांतीय भाषाओ की आड़ लेकर म्लेच्छ भाषा आंग्ला (फारसी में अंग्रेजी) का प्रचार किया जाता है | इसमें सबसे ज्यादा लाभ तों विदेशी कंपनियों को है जिनमे अमेरिका और बर्तानिया राज्य की कम्पनिया प्रमुख है जिन्हें भारत में अपने नौकर नियुक्त करना है | इसके लिए उन्हें इस भाषा का सर्वाधिक प्रचार करना है | यद्दपि वे अपने धार्मिक साहित्य को क्षेत्रिय भाषाओ अनुवादित करते है पर उनकी बाइबल की प्रमुख भाषा आंग्ला ही है | इसलिए इस भाषा के प्रयोग से उन्हें संप्रदाय को भी लाभ मिलता है | दो भारतीय जो हिंदी प्रदेश में पैदा हुए, उनके माता-पिता पूर्वज हिंदी ही बोलते आये आपस में आंग्ला में बात करते मिलेंगे | कितना दुःख का विषय है, दोनों एक दूसरे के सिर्फ ये सिद्ध करना चाहते है के वो अधिक पढ़े लिखे है | यही मौकेले की निति थी आंग्ला को पढ़े लिखो की भाषा स्थापित करना जब के वो तों म्लेछो की भाषा थी और है | यदि आप उनसे कुछ कहेंगे तों वे कहेंगे के दक्षिण में हिंदी विरोध है ये बात उत्तर भारत का हिंदी भाषी कहेगा | तों उत्तर में कौन सा विरोध है ? और आप दक्षिण में हिंदी विरोध के कारण जान कर उन्हें समाप्त करने के लिए क्या कर रहे है ? क्या आप दक्षिण की कोई भाषा जानते है या उस भाषा को सिखने का प्रयास कर रहे है ? हिंदी अर्थात शुद्ध हिंदी का प्रयोग दक्षिण की भाषाओ का भी मान बढ़ाएगी क्यों के सभी भारतीय भाषाओ में ७०-९० प्रतिशत शब्द संस्कृत के है | दक्षिण की लिपि यदि देवनागिरी हों जाए तों दक्षिण की भाषाओ को सीखना उत्तर भारतीयों के अत्यंत सरल हों जाए और संस्कृत को भी | फिर आंग्ला का प्रयोग कर के आप दक्षिण की भाषा कैसे सशक्त कर रहे है इसके विपरीत हिंदी और भारतीय भाषाओ का अपमान अवश्य कर रहे है के ये भाषाए बोले जाने योग्य नहीं | जहा आवयश्कता हों वहा बोलिए ना आंग्ला, इसे विवशता कहा जाता है | पर उसके कारण भी यथा शीघ्र दुर् करने का प्रयास करिये |
इसी प्रकार विरोध करने वालो में महाराष्ट्र के एक नेता ने हिंदी विरोध का विषय उठा कर लोकप्रियता अर्जित की पर उनके खुद के बालक आंग्ला माध्यम अर्थान इंग्लिश मीडियम में पढते है | शास्त्रों में ऐसे ही लोगो को राक्षस कहा गया है जिसकी कथनी और करनी अलग हों | भारत के किसी प्रांत की भाषा आंग्ला नहीं है | उसके उपरान्त भी भारत एक राज्य नागा राज्य को नागालैंड कहा जाने लगा कारण ईसाईकरण | भारत के उच्चतम न्यायालय जिसे सुप्रीम कोर्ट कहा जाता उसकी भाषा आज तक आंग्ला है | हिंदी लोगो से मत लेकर जाते पर संसद में आंग्ला में विवाद-संवाद करते | देश इसीलिए भी भ्रष्टाचार की दल-दल में जाता जा रहा है | एंग्लो लोगो का हित तों इस बात में था के भारत के लोग ना जाने के वो क्या कर रहे हैं कैसे कानून बना रहे है किस भाषा में न्याय दे रहे है यद्दपि उनका न्याय देना एक हास्य का ही विषय है यदि भारत के लोग जाने तों केवल वो लोग जो उनके वेतन पर पले है इसीलिए उन्होंने राजव्यवस्था की नौकरीयो में आंग्ला की प्रधान अनिवार्यता रखी जो अभी तक यथावत कायम है |
ऋषि दयानंद कहते है के “जो जिस देश की भाषा बोलता है उसे उसी का संस्कार होता है” | इस बात के बहुत गहरे अर्थ है | आप मात्र दस दिन के लिए अपनी भाषा ना बोले और आंग्ला बोले और फिर वापस आये अपनी भाषा और देखे अपने मस्तिष्क को संतुलन बनाने में कितना समय लगता है | हिंदी मस्तिष्क के दोनों हिस्सों को सक्रीय करती है | बाहरी लोग भला क्यों चाहेंगे आपका पूरा दिमाग चले ? अवचेतन तक भाषा के शब्दों के संस्कार जाते है हमारे यहाँ तों शब्द को ब्रह्म, शब्द को महादेव बताया गया है | संस्कृत के मंत्रो का जाप,सामवेद के मंत्रो से मस्तिष्क की कोशिकाओं में अद्भुत परिवर्तन देखा गया है | तों संस्कृत निष्ठ हिंदी बोलने में लज्जा कैसी ? उन पर हसिये जो हिंदी भाषी होते हुए भी आंग्ला बोल रहे है, वे अभी भी अपनी सोच में १९४७ के पहले के बर्तानिया समय में रह रहे है | जो हिंदी में पर्याप्त शब्द ना होने का बहाना करे उन्हें बताये के धातुपाठ के २००० सूत्रों से दुनिया के किसी भी वस्तु या अविष्कार का नाम रखा जा सकता है | और हिंदी संस्कृत पर आधारित है इसलिए ये कहना के इस भाषा में पर्याप्त शब्द नहीं हमारी अनविज्ञता हैं | हिंदी की तुलना में शब्द भंडार में तों आंग्ला कही टिकती ही नहीं है |
आंग्ला भाषा को म्लेच्छ भाषा इसलिए भी कहा गया के शीत प्रदेश होने के कारण वे लोग कई दिनों तक स्नान नहीं करते | जिस भाषा में रिश्तों को संबोधन करने के लिए कोई शब्द ही ना हों वो कैसे लोग होगे ? काका, मामा, फूफा, ताऊ ये भाषा हमारे समाज को तोड़ रही है | ब्रह्मचर्य, वात्सल्य, धर्म, धृत इत्यादि अनेको-२ शब्दों के अर्थ ही नहीं है उनके पास | ये भाषा हमारी संस्कृति को तोड़ रही है | फिर जिन लोगो ने हम पर इतने अत्याचार ढाए हों | जिन लोगो ने हमारे देश की सम्पति को लूटा हों जिन्होंने हमारे मूल धर्म में छेड़-छाड का साहस किया हों, हमारे क्रांतिकारियो की निर्दैयता से हत्या की हों भला हम उनके देश की भाषा बोले ? बड़ा लज्जा का विषय है | आंग्ला प्रयोग से वो हमारे विचार सरलता से जान जाते है | हमारी सोच कैसी है इस प्रकार वे कोई नया उत्पाद लाते है जो हमारी सोच के अनुकूल हों और देश को अलग तरह से लुटते है | आप जिलेट जो ब्लेड व अन्य उत्पाद बनाती है उसकी वेबसाईट पर जाए | हर देश के लिए उसने उसकी भाषा की सुविधा दे राखी है पर भारत के लिए उसने आंग्ला का विकल्प दिया है | उन्हें पता है यहाँ के लोग अभी भी दासता में जी रहे है उन्हें श्रम करने की आवयश्कता नहीं | अपितु यहाँ के लोग अपना अमूल्य समय आंग्ला भाषा में विविध विषय पढ़ने में नष्ट कर देते है | इसी प्रकार आप चीनी और जापानी वेबसाइटो पर जाइए सब कुछ उनका उनकी भाषा में होगा | कुछ लोग कहेगे के ऊपर का जो डब्ल्यू, डब्ल्यू,डब्ल्यू डॉट कॉम रोमन लिपि में होता है उसका क्या ? तों उसके लिए भारतीय प्रद्योगिकी संस्थान कानपुर कार्य कर रही है जल्द इसको भी देवनागिरी में कर लिया जाएगा | फिर आने वाले समय में संस्कृत के नियमों से ही संगडक सूत्र निर्देश (प्रोग्रामिंग) लिखे जाएँगे |
आंग्ला के प्रयोग के कारण से हमारी वैज्ञानिक उन्नति भी रुकी हुई है | क्यों के हम कोई भाषा बोले हम सोचते उसी भाषा में है जो हम अपने माता पिता से सीखते है | एक बार आंग्ला पढते है फिर उसको मस्तिष्क में अनुवाद करते है | धीमे-२ कुछ सरल शब्द बार-२ प्रयोग होने पर अवचेतन में चले जाते है फिर अब उन कार्यों के के लिए अपनी भाषा का प्रयोग करने से बचते है क्यों के वो मष्तिष्क को कठिन लगता है | देखिये कैसे आपके मस्तिष्क से खेला जा रहा है | जो लोग उत्पादन करते है वे हिंदी भाषी जो क्रय करते है वो हिंदी भाषी इसके उपरान्त भी अपने उत्पादों में सब आंग्ला में लिखते है यहाँ तक की स्वदेशी की बात करने वाले उत्पादक भी कहेंगे मज़बूरी तों आप शुरू नहीं करेंगे तों परिवर्तन कैसे आयेगा ? एम.बी.ए जैसी मानद बना दी जहा आंग्ला में आपको सब करना पढ़ रहा है हिंदी भाषी लोगो को हिंदी भाषी उत्पादकों श्रमिकों द्वारा उत्पादित किया हुआ सामान बेचने के लिए | क्यों के जो विदेशी निर्माता व्यवस्थापन में बैठे उनके निर्देशको को सुविधा चाहिए | जब गोरे आये तों उन्होंने इस देश की भाषा सीखी पर जैसे ही उनकी सत्ता हुई उन्होंने अपनी भाषा स्थापित कर दी और यहाँ की भाषा का नाश करने लगे |
यदि संस्कृत को राष्ट्र भाषा बनाना है तों
यदि आप लोग चाहते है के राष्ट्र की संसद वेद मंत्रो से प्रदीप्तमान हों तों हिंदी को निर्विवाद रूप से सर्वमान्य भाषा के रूप में स्थापित करना होगा | हिंदी और संस्कृत दोनों की लिपिया एक ही है, देवनागिरी | का, के, की, सा, के लिए इत्यादि बहुत थोड़े भेद है जो अष्टाध्यायी विधि से संस्कृत सिखने पर समझ अजाएंगे | संस्कृत को स्थापित करने के लिए हमें हिंदी को स्थापित करना ही होगा | प्रांतीय भाषाओ का हमें आदर करना होगा | उनको भी सीखना होगा क्यों के यदि हम पडोसी का दुखदर्द समझने की भावना रखते है तों हमें अपने पडोसी राज्य की समस्या भी समझनी होगी ? जैसे शरीर के अंग होते है उसी प्रकार भारत का हर राज्य अंग है कही भी कोई समस्या होगी तों वो पुरे देश की समस्या होगी | देश के सर्वाधिक राज्यों में और सर्वाधिक आबादी हिंदी जानती है | जो नहीं जानते कारण सिर्फ इतना के पूर्व के नेताओ ने हिंदी विरोधी आंदोलन चलाया ताकी भविष्य में वे राज्य को राष्ट्र से अलग कर सके |
एक संशय होता लोगो को के मेरे विदेशी मित्र मेरा नाम नहीं समझ पाएंगे यदि हम अपना नाम देवनागिरी में लिखेंगे | तों इसका सरल स उत्तर है के किसी के लिए अपनी भाषा नहीं छोड़ी जाती | ये भी दास मानसिकता का दूसरा प्रकार है | क्या आपका विदेशी मित्र आपके लिए अपनी भाषा अपनी लिपि छोड़ रहा है ? फिर आप में इतना बड़ा बलिदान भाव कैसे ? क्या ये मकोले शिक्षा पद्धति का मोह नहीं ? के लोग आप को कम पढ़ा लिखा समझ सकते है योग्य व्यक्ति की योग्यता छिपती नहीं | आंग्ला में ही सब देश के कानूनों को एंग्लो कानूनों से छायाप्रति कर के देश के सत्य का नाश किया गया है |
तों आप क्या करे ?
१. शुद्ध हिंदी भाषा का सर्वाधिक प्रयोग सर्वाधिक स्थानों पर करे | उर्दु फ़ारसी के शब्दों से धीमे-२ अभ्यास कर के बाहर आइये | आंग्ला भाषा का प्रयोग केवल विवशतावश ही करिये |
२. दक्षिण भारत से लेकर किसी भी अन्य राज्य की एक भाषा को सीखने का प्रयास करिये | जब सीख जाये तों दूसरे को सिखाइये |
३. अंतरजाल पर, फेसबुक और ट्विटर इत्यादि पर हिंदी की देवनागिरी लिपि में अपना नाम करिये | इस से आपके नाम में उच्चारण दोष भी नहीं उत्पन्न होगा | और आप में अपनी भाषा के प्रति स्वाभिमान भी दिखेगा | हिंदी में टंकण करने के लिए आप इसकी सहायता ले सकते है
http://www.google.com/inputtools/windows/
४. हिंदी में खोजना सीखे | हिंदी में गूगल करे | और ये न समझे के गूगल ने आपकी सुविधा आपके लिए दे रखी है | उन्होंने ये विभिन्न सुविधाए अपने लाभ के लिए रखी है | उन्हें जनाना है के कही आपमें भाषा के स्वाभिमान के प्रति कोई आन्दोलन तों नहीं उठ रहा |
५. यदि आप पूंजीपति है तों हिंदी में अभियांत्रिकी महाविद्यालय खोले बहुत चलेगा | देश का बड़ा वर्ग हिंदी में उच्च शिक्षा लेना चाहता है और अधिकतर विद्यार्थी इसलिए फेल हों जाते है क्यों के उन्हें आंग्ला नहीं आती | सभी विकसित देश अपनी उच्च शिक्षा अपनी भाषा में ही करते है | आंग्ला तों केवल उन देशो में प्रचारित है जो बर्तानिया उपनिवेश रहा |
६. यदि आप शिक्षा क्षेत्र से है या शोध विद्यार्थी है तों अपना शोध प्रबंध हिंदी में लिखे | हिंदी में पुस्तके लिखे | ये विद्यार्थियों के अवचेतन में संस्कृत शब्दों के संस्कार डालेगी | हिंदी में ही सारे लेख लिखे |
७. कही भी आंग्ला प्रयोग ना करे ना अपने प्रिय जानो को करने दे | जो करते है उन्हें समझाए क्यों के विदेशी सोच अधिक दिनों तक किसी भी देश में रह नहीं सकती |
इस लेख को पढ़ कर चिंतन करे और बुद्धि अनुकूल आत्मनुकुल विषयों को स्वीकार करे | यदि लगे के हिंदी हमारा स्वाभिमान है तों हिंदी का सत्कार करे उसका अधिकाधिक प्रयोग कर के | यदि इस लेख को आप फेसबुक इत्यादि पर अपना नाम देवनागिरी लिपि में कर लेते है तों कृपया इसकी सुचना हमें टिप्पणी के रूप में नीचे दे | धन्यवाद
नमस्ते
Labels: समाज सुधार
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