Monday, 20 June 2016

जाती व्यवस्था का सत्य

जाती-व्यवस्था
मुझे इसका शीर्षक ज्ञाति व्यवस्था का सत्य लिखना था परन्तु तब संभवतः आपका ध्यान उतना आकृष्ट ना होता | जाती जिस प्रचलन से बोली जाती वो संभव ज्ञाति का ही अपभ्रंश है क्यों के हम ज्ञान को ग्यान पढते है जो के अशुद्ध है ज्ञ का निर्माण ज और ञ से होता है | न्याय दर्शन के गौतम ऋषि के अनुसार तों “समानप्रसवात्मिका जातिः” जाती की परिभाषा है अर्थात समान प्रसव हों वो जाती कहलाती है अर्थात जाती व्यवस्था ईश्वर कृत है हम सब मनुष्य जाती के है इसी प्रकार घोडा, श्वान, गौ-वृषभ इत्यादि की जाती है | और ये कर्म अनुसार पूर्व निर्धारित होता है योग दर्शन के ऋषि कहते है “सती मूले तद्वीपाकोजात्यायुर्भोग” पुर्व कर्मानुसार जाती आयु और भोग मिलते है | लोग अपनी आयु और भोग तों वर्तमान व्यवस्था में धर्मानुसार जीवन जीकर निर्धारित कर सकते है परन्तु  जाती बदलना आपके बस में नहीं | मनुष्य है तों मनुष्य ही रहेंगे बन्दर नहीं बन सकते | ये तों रहा हमारे शाब्दिक भेद का शोधन अब बात करते है ज्ञाति व्यवस्था की जिसे जाती व्यवस्था कहा जाता है आगे हम जाती शब्द ही प्रयोग कर रहे है शब्द प्रचलन के कारण |
लोग कहते है के ये हमारे समाज की बड़ी कमजोरी रही है इसके कारण हमारी उन्नति नहीं हुई इत्यादि इत्यादि | परन्तु हमारी व्यवस्था को तों हमें समझने ही नहीं दिया गया | जिस राष्ट्र का व्यापार दुनिया का ६० प्रतिशत हों जिसमे घर-२ में सोने के ढेर लगे हों क्या उस देश में जाती व्यवस्था जैसी दुर्व्यवस्था होगी ? बात समझ से परे है मुझे अभी तक तों राजा राममोहन राय के मुद्दों में भी ये समस्या नहीं दिखी हा ऋषि दयानंद के समय में ये समस्या दिखी यानी के समस्या कही दोनों के बीच में खड़ी की गई है | ये सारी समस्या “इंडियन एजुकेशन एक्ट १८३५” से प्रारंभ हुई जहा हमारी संस्कृत आधारित गुरुकुल शिक्षण पद्धति को खत्म कर दिया गया | और आज सारा दोष ऊपर के वर्ग विशेषकर ब्राह्मणों पर मढ़ दिया जाता है | जब के ब्राह्मणों ने समाज को बाँधने का विशेष प्रयास किया | आर्य समाज जैसी संस्था का निर्माण ब्रह्मतेज धारी आदित्य ब्रह्मचारी ब्राह्मण देव दयानंद का ही निर्माण था | चितपावन ब्राह्मण वीर सावरकर ने रत्नागिरी में दलितोद्धार का विशेष प्रयास किया | आर्य समाज के पंडित सोमनाथ ने अछूतोद्धार के प्रयासों में तों अपनी माता का बलिदान दे दिया था | राष्ट्र मे क्रांति के निर्माण में ब्राह्मणों का विशेष योगदान रहा है पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद इत्यादि उसी के उदाहरण है और इन्होने अपने उपनामो का भी प्रयोग नहीं किया | हिंदी साहित्य में पंडित रामचंद्र शुक्ल, महावीर प्रसाद द्वेदी, आचार्य हजारी प्रसाद द्वेदी, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला इत्यादि साहित्यकारों का विशेष योगदान है जिनके कारण शुक्ल युग या द्वीदी युग कहा जाता है | आज हम शुद्ध हिंदी तों बोलते है अन्यथा अरबी फारसी युक्त हिंदी से हमारे संस्कार कितने दूषित हों गए होते | तों अब हमें समझना है एक समाज को २ वर्गों में कैसे विभक्त कर के वैमनस्य निर्माण किया गया और क्यों किया गया | और क्या किसी वर्ग विशेष से कोई गलती हुई है ? और यदि हुई है तों कैसे हुई है ? वर्तमान में तों हम पुरानी फिल्मो में एक ही खलनायक देखते है जो ठाकुर होता था | एक शब्द सुनते है दलित चाहे वो दलित महिला २८ लाख की चप्पल पहने पर वो कही जायेगी दलित | अखबारों और फिल्म उद्योगों ने अंग्रेजो की नीतियों की पुष्टि की है | अंग्रेजो ने अपनी नीतियों के दुष्परिणाम का दोष समाज के ही उस वर्ग पर डाल दिया जिसके ज्ञान और विद्या के निशुल्क प्रचार के कारण समाज समृद्ध था और जो वर्ग दबाया गया उनके नेतृत्व को खरीद लिया | अरुण शौरी अपनी पुस्तक वर्सिपिंग फ़ाल्स गोडस मे आंबेडकर के बारे मे जो तथ्य प्रस्तुत किये है उस से समझ आता है के किस प्रकार दलितो को क्रांति से दुर रकने के लिए अंग्रेजो ने प्रयत्न किये | दलित संगठन बिना तथ्यों को देखने की इच्छा करे पुस्तक को प्रतिबंधित करने की मांग कर रहे है और जो वर्ग कुछ नहीं जानता इतिहास और राजनितिक इतिहास के बारे मे आज जय भीम के नारे लगवाए जा रहे है यानी राष्ट्र से द्रोह समाज से द्रोह धर्म से द्रोह करवाया जा रहा लोगो को अज्ञानता में रख कर | जो कहे के गरीबी के कारण दलित क्रांति में सवर्णों की तुलना में भाग नहीं ले सके तों कोई भी दलित कितना गरीब होगा पंडित रामप्रसाद बिस्मिल से ज्यादा गरीब नहीं होगा जो थोड़ी बहतु जमीन थी वो भी अंग्रेजो ने जप्त कर ली पर इन क्रांतिवीरो के परिवारों ने मिटना पसंद किया | आर्य समाज के मंच से ये बाते सुनना थोडा विस्मय कर्ता होगा पर आपको आर्य समाज से ही ये जानकारी मिल सकती है अन्यत्र नही | वो आर्य समाज जो वास्तव मे ब्राह्मण निर्मात्री सभा है जो निरंतर ये कहता है के किसी भी वर्ग का व्यक्ति ब्राह्मण बन सकता है और वेद मन्त्र पढ़ के कर्मकांड करवा सकता है यदि वो आर्ष साहित्य मे पारंगत होने मे तप करते हुए आत्मोन्नति करे | उस मंच जन्मगत जाती व्यवस्था की बात हों रही ? हा उसी मंच से आप समझ सकते है प्राचीन भारतीय व्यवस्था को | किस प्रकार पिता अपने पुत्र को अपनी विद्या देता था और विद्या आगे बढती थी | भारत का ज्ञान विज्ञान संस्कृति निस्वार्थ भाव से समाज की सेवा सब वंशानुगत व्यवस्था को आगे बढाने की पद्धति से टिका हुआ था | जिसे अंग्रेजो ने व्यवस्थित तरीके से तोडा |
ब्राह्मण का पुत्र ब्राह्मण होता था क्यों के उसे माता पिता से गुणसूत्र(क्रोमोसोम्स) मिलते है और बचपन से पृष्ठभूमि उन्हें वैसा ही समाज मिलता है | गुण, कर्म और स्वाभाव के अनुसार ही वो व्यवस्था होती थी उसमे भी यदि कोई दोष उत्पन्न होता था तों मनु महाराज के वेदानुकूल नियमों अनुसार वह व्यक्ति अपने गुण कर्म स्वाभाव अनुसार दूसरे वर्ण का घोषित हों जाता | और कोई ये ना समझे के कोई कम बुद्धि युक्त है क्यों के पूर्वज तों सभी के ब्राह्मण ही थे | जी हा ब्राह्मण ग्रंथो के अनुसार पहले सब ब्राह्मण ही थे धीमे-२ अन्य वर्ण निर्मित हुए जैसे अन्न का सेवन औषधियों और फल इत्यादि पर बढ़ा | इसलिए ऋषियों की संताने तों हम सब ही है जिनके पूर्वजो में अंत में वेद पाठ बंद हुआ या कुछ कुलों में अभी भी चल रहा उनसे अधिक आशा है वेद प्रचार के कार्यों में योगदान करने में | ये वंश परंपरा से ही हमें श्री राम जैसे राजा मिले महाराणा प्रताप जैसे वीर मिले | और इसी के साथ ये भी सिद्ध होता के हमारे समाज में गुण, कर्म स्वभाव ही सर्वप्रथम है अन्यथा चन्द्रवंश के श्री कृष्ण राजा ना बन पाते, वीर शिवा जी का राज्याभिषेक भट्ट ब्राहमण द्वारा ना हों पाता |
केवल एक जाती जो मुग़ल काम में उत्पन्न हुई वो है भंगी जाती की | इसका इतिहास हम आपको बताते है | मुस्लिम शासको में हजारों-२ स्त्रियों का हरम रखने की परंपरा बनी हुई | इसलिए लिए वे स्त्रियों को उठा के ले जाते थे आर्य समाज ने इन सब का ब्यौरा “औरतो की लूट” नामक पुस्तक में रखा है कहा से कितनी स्त्रिया उठा ले गए | इन स्त्रियों के मल मूत्र की समस्या हुई क्यों के जो भी किले लूटे वह कही भी शौचालय नहीं बना पाया | आज भी नहीं है लाल कोट (लाल किला) में भी आपको शौचालय नहीं मिलेगा | और यदि उन स्त्रियों को खुला छोड़ दिया तों ये अपने घर भाग जाएँगी इसलिए वो ब्राह्मण और क्षत्रिय जो युद्ध में भाग लेते थे और युद्ध बंदी बन जाते थे | उनके समक्ष ये शर्त रखी गई के यदि वे मुसलमान नहीं होना चाहते और मरना भी नहीं चाहते तों इन स्त्रियों का मल ढोए | जिन्होंने स्वीकार किया ये सोच के की अपनी ही बहने है वे मान भंग होने के कारण भंगी कहलाये | जब वे अपने कार्य से मुक्त हुए तों वापस अपने ग्राम आने पर खुद ग्राम से बाहर रहने लगे | कारण था उनका खुद शौच  इत्यादि नियमों का पालन करना और अपने नियमों पर दृढ़ता से पालन करना | रहस्य तब खुलता है जब भंगियो का और ब्राह्मण और क्षत्रियो का गोत्र एक मिलता है | उनकी कलाईयो की चौड़ाई उनके पूर्वजो का अनुमान कराती है | इसके अतिरिक्त जो भी कारण रहे वे आर्थिक कारण रहे कोई किसी का शोषण तब तक नहीं कर सकता जब तक की वो आर्थिक तौर पर दबा ना हों | क्या आज किसी करोड़पति दलित नेता को कोई वास्तव में दलित कह सकता है ? संपन्न को कोई नहीं दबा सकता, ना अपमान कर सकता है | वैदिक विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था को तोड़ने वाले गोरो ने हमारी आर्थिक समृधि को छिना है | हम कुछ एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहे आपके समक्ष जो आपको अनुमान देंगे के जाती(ज्ञाति) व्यवस्था तों तोड़कर पूंजीवाद को स्थापित किया गया | किसी को किसी से नौकरी मांगने नहीं जाना पड़ता था व्यक्ति अपना काम अपने जन्म से लेकर आता था | कुछ ज्ञातियो का उदाहरण इस प्रकार है
१.      चर्मकार या चमार : आज सबसे नीची दृष्टि से देखे जाने वाली ये जाती एक समय बड़ी समृद्ध होती थी | १९वि सदी के प्रारंभ में कानपुर के सम्हाल दास चमार प्रसिद्ध है धन ऐश्वर्य के लिए | जो जानवर मरता था उसकी खाल को उतारकर वैदिक पद्धति से शोधित किया जाता था | कबूतर के मल को डाल कर पैरों से मसलने की विधि थी | ना जल दूषित होता था जैसा के आज टेनरियो के जल से नदिया दूषित हों रही है जिसमे गंगा माता प्रमुख है | अंग्रेजो ने सामूहिक बूचड़ खाने यानी पशुवध शालाये खुलवा के चर्मकारो की रोजी रोटी बंद कर दी | एक तों जीव हत्या ऊपर से समाज के सबसे समृद्ध वर्ग को तोड़ दिया | आज ये कार्य मुसलमानों ने प्रमुखता से पकड लिया है और टेनरी उद्योग मे अरबो कमा रहे है | अखबार उनके, संचार माध्यम उनके, तों दबे वर्ग की आवाज लोगो तक पहुचाये कौन ?
२.      कुम्भकार या कुम्हार या प्रजापति : समृद्ध वर्गों में ये वर्ग भी रहा क्यों के सब बर्तन प्रयोग करते थे | जैसे ही फसल होती थी फसल के बदले बर्तन ले लिए जाते थे | मृदा वर्तन प्रयोग करने से कोई बीमार नहीं पड़ता था | शरीर पुष्ट रहता था और समाज के बड़े वर्ग की आर्थिक समृधि रहती थी | धातु के वर्तन उद्योगों को चला कर कुम्भकारो के काम को शनैः-शनैः बंद करवा दिया गया | आज कुम्हारों ने अधिकतर अपना कार्य छोड़ हि दिया है | प्रजापति यानि प्रजा की रक्षा करने वाला स्वास्थ की रक्षा तों कर्ता ही था इस प्रकार के भी वर्तनो को बनाने की विद्या रही है भारत में के विषयुक्त भोजन होने पर वर्तन चिटक जाते थे |
३.      सविता या कलपक या वृत्ति या नाऊ : ये शैल्य चिकित्सक होते थे | आज भी फोड़ा इत्यादि होता तों नाइ उस्तरे से काट देते | अंग्रेजो ने भारत से सर्जेरी सीखी और भारत में ही प्राचीन पद्धति से सर्जरी खत्म करा दी | आज यदि लोग स्वास्थ सेवाओ के महंगे होने का रोना रो रहे है वो ब्राह्मणों द्वारा संचालित शिक्षा व्यवस्था के बंद होने के कारण ही है | आज के नाऊ सविता नाम इसलिए पड़ा क्यों के परमात्मा का नाम है उत्पादक होने के कारण, इसी प्रकार नाऊ बच्चा होता था तों नाडा काटता था | आज ये वर्ग या तों अन्य नौकरी ढूंड रहा है या बाल काट के अपनी जीविकोपार्जन कर्ता है |
४.      लोहार या विश्वकर्मा : ये भी वेद में परमात्मा का नाम था इनकी कमर तोड़ी इन्डियन फोरेस्ट एक्ट १८६५ बना कर | भारत का इस्पात उद्योग जो कुटीर उद्योग था वो खत्म कर दिया एक तों इस से भारतीय स्वतंत्र रूप से हथियार नहीं बना सकते थे ऊपर विकेन्द्रित अर्थ व्यवस्था को तोडना आवश्यक था लोग स्वतंत्र थे उन्हें गुलाम बनाने के लिए आपको उनके अर्थ के मार्ग को नियंत्रित करना था वही किया गया | बड़े-२ उद्योगपति खड़े किये गए जो केंद्रित थे उन्हें नियंत्रण करना कर कानूनों से अधिक सरल था बजाये बड़े समाज को नियंत्रित करने के |
५.      जुलाहे : हाथ से कपडे बनाने वालो को पावर लूम खड़ा कर के खत्म कर दिया गया | कुछ विद्वानों ने तों ये भी कहा के अंग्रेजो ने जुलाहों के हाथ तक कटवाए ठीक वैसे ही जैसे गुरुकुलो को बंद करने के लिए ब्राह्मणों के हाथ कटवाए हत्या करवाई |
६.      रजका या वरिष्ठा या दिवाकर धोबी : मिट्टी से कपडे धोने की विद्या थी और कपडे उद्योग पर पकड़ से इनका व्यवसाय प्रभावित हुआ | आज ये प्रभावित वर्ग है |
७.      मोची : मोची चर्मकार का सीधा सम्बन्ध था जब चमार प्रभावित हुआ तों मोची भी प्रभावित हुआ आज मोची सड़क पर है |
८.      कहार या बाथम : ये डोली उठाने का कार्य करते थे श्रमिक कार्य के लिए अधिक धन दिया जाता था क्यों के उसे धन की अधिक आवयश्कता थी | आज अंग्रेजो का ब्रास बैंड चलता है | डोली की परंपरा पुनः चालु की जाए तों ये ब्रास बैंड जैसी गुलामी की निशानी बंद हों जाये |
९.      कश्यप या केवट : नाव चलाने का कार्य कर्ता था | क्यों के सभी वर्ग प्रभावित हों रहे थे अंग्रेजो की नीतियों से तों श्रमिक वर्ग पर भी प्रभावित हुआ | याद करिये श्री राम ने केवट को नदी पार कराइ मुद्रिका दी थी |
दक्षिण भारत की जातियों के साथ भी यही सब हुआ | इसके अतिरिक्त अंग्रेजो ने योद्धा ज्ञातियो को पिछड़ा वर्ग घोषित कर दिया जैसे यादव, जाट, गुर्जर इत्यादि क्यों के ये लड़ाकू कौम थी | कितना आश्चर्य है के श्री कृष्ण के वंशज आज गर्व से अपने को पिछड़ा कहते है और अन्य जातीय पिछड़ा कहलाने के लिए लड़ मर रही है | अंग्रेजो ने जाल में ऐसा फसाया के आज तक आपस में ही उलझे पड़े है | कुछ कौमों को तों जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया अंग्रेजो ने | ठगी प्रथा है इस जाती मे ऐसा प्रचार किया उस देश मे जो त्याग और तपस्या के सिधान्तो पर चलता रहा है लाखो वर्षों से और वो कह रहे थे ये बात जो इस देश मे लूटने आये थे | उस वक्त तों राष्ट्रभक्तो पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा पर झूठ को दोहराने से वो सत्य प्रतित होता है इसी प्रकार आज लोगो को लगता है हुआ होगा | पिंडारियो को लुटेरा साबित करने में अंग्रेजो को देर नहीं लगी | ऐसे ही १७६० के सन्यासी विद्रोह में संयासियो को लुटेरा साबित करते रहे | अब लिखे कौन कलम उनकी लिखने वाला उनके वेतन वाला | आरक्षण जो शुरू में १० वर्ष के लिए आज अनिश्चित काल के लिए टाल दिया गया | और हर कोई लड़ा जा रहा अपने लाभ के लिए क्या हों गया हम आर्य जाती के देव लोगो को | जो फिल्मे बना रहे वो कभी नहीं दिखाएँगे के ब्राह्मणों ने दलितोद्धार के लिए क्या-२ किया उन्हें पता है के जो उन्हें पैसा दे रहे वो इस समाज को संगठित नहीं देखना चाहते | वो तों ऐसी फिल्मे बनायेंगे जिस से समाज मे द्वेष और घृणा ही फैले |
हमारे पुरे आर्थिक ढाचे को तोड़ दिया जिसमे हमने कृषि की चर्चा की ही नहीं जो के समाज का सभी वर्ग कर्ता था और लाखो वर्षों के आर्थिक ढाचे के टूटने से जो गरीबी और शोषण उत्पन्न हुआ उसका दोष समाज पर ही डाल दिया वो भी तब जब ६०० वर्ष मुसलमानों का और २०० वर्ष अंग्रेजो के शासन मे समाज रहा और उसके बाद भी दलित वर्ग को लगता है के हा सही कह रहे | उनको दोष क्यों दिया जाए जब उनका नेतृत्व करने वाले समृद्ध लोग दलितो के नेता बने हुए है और वे कभी नहीं चाहेंगे दलित ऊपर उठे अन्यथा दलित रहेंगे नहीं तों दलित की राजनीति कैसे होगी | खुद के कार्य की जगह नौकरी करना अब उत्तम समझा जाने लगा है जब के हर चीज का स्वरुप बदला है कार्य सब वही हों रहे है | अब उन्हें समझाए कौन के उनके पूर्वजो की आर्थिक समृद्धि के साथ क्या किया गया है | फिर थोड़े ही समय मे अंग्रेजो ने अपने जैसे काले अंग्रेज भी खड़े कर लिए थे जो आज बहुत बढ़ गए है और उन्हें पता है के आर्थिक शोषण के तरीके क्या होते है | वेद आधारित ऋषि कृत आर्ष साहित्य पढ़ने पर सभी विद्वानों को समझ आएगा के सभी ऋषि मुनियों की संताने है | तब के गोरे अंग्रेज और आज के काले अंग्रेज नहीं चाहते लोग आर्थिक स्तर पर स्वतंत्र हों वे चाहते है लोग उनकी नौकरी करे | आज आरक्षण का विष भी नौकरी के विचार को ही पोषित कर रहा है | राष्ट्र समृद्ध उद्योग से होंगा स्वरोजगार से होगा,लघु उद्योगों से होगा | नौकरी से केवल कर्ज आधारित व्यवस्था ही चल पाती है | श्री राजीव दीक्षित के प्रयास सराहनीय रहे जिन्होंने शुरुआत की और धर्मपाल जी के कार्यों को शब्द दिए | ऐसे तपस्वी ब्राह्मण के प्रयासों से ही हमें प्रेरणा मिली समाज के ढाचो को समझने और खोजने की | विभिन्न विद्वानों, प्राचीन अर्थ व्यवस्था और स्वतंत्र चिंतन को समझने के बाद इस लेख को समाज के एकीकरण हेतु लिखा है | जो कुछ भी आपको बुद्धि अनुकूल लगे उसे स्वीकार करे अन्यत्र को नहीं | जो जो हम मे समता होवे उन कारणों से हम संगठित होवे | संगठन सूक्त ही राष्ट्र का निर्माण कर्ता है |
नमस्ते

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