स्वदेशी व स्वदेशी पूंजीवाद का भेद
जब एंग्लो लोगो द्वारा भारत की सभ्यता को उसक जड़ वेदों से छेड़-छाड कर के नष्ट करने का प्रयास किया तों परमात्मा की कृपा से हमारे राष्ट्र को महर्षि दयानंद जैसी देवात्मा मिल गई | ऐसी प्रकांड बुद्धि का स्वामित्व करने वाला राष्ट्र भक्त योगी ही आर्य समाज जैसा राष्ट्रवादी संघठन खड़ा करना | उसी प्रकार गोर्बोचोव की सरकार के साथ सोवियत संघ का विघटन और वैश्वीकरण के नाम पर विकासशील देशो को लूटने की जो प्रक्रिया प्रारंभ हुई उस से लड़ने के लिए परमात्मा की कृपा से हमें श्री राजीव दीक्षित जैसी पुण्यात्मा को प्रकट कर दिया | जिन्होंने भी उनको सुना है वो प्रभावित हुआ है पर जिसने केवल उन्हें सुना है और वर्तमान व्याप्त अन्तराष्ट्रीय षण्यंत्रो का ज्ञान है साथ प्राचीन वैदिक विकेन्द्रित व्यवस्था का ज्ञान है वो समझ सकता है के श्री दीक्षित किस से लड़ रहे थे | वे नीतिज्ञ थे बहुत सी बाते वे एकदम से स्पष्ट नहीं समझा सकते थे उन्होंने लोगो की समझ के अनुसार शिक्षित करने का लक्ष्य रख रखा होगा | वे जितना कर सके उन्होंने किया, और करते यदि आज होते | बहुत से लोगो को स्वदेशी और स्वदेशी पूंजीवाद का भेद स्पष्ट नहीं है | इस लेख में हम उन्हें स्वदेशी व स्वदेशी पूंजीवाद के बड़े भेद को स्पष्ट करेंगे | श्री दीक्षित जी ने अथक परिश्रम किया और अपनी मृत्यु से पूर्व तक वे स्वदेशी कंपनियो को उठाने के साथ-२ नीतिगत तरीके से उनका भी विकल्प लोगो को समझाने का प्रयास अवश्य प्रारंभ था | रामदेव जो पतंजलि योगपीठ चलाते है जो कार्य कर रहे वो वास्तविक में स्वदेशी पूंजीवादी ढाचा है | श्री दीक्षित जी कभी भी ह्रदय से इस व्यापारिक ढाचे का समर्थन नहीं करते थे पर उनकी भी कुछ विवशताये रही होगी | पूंजीवाद का सरल नियम है अमीर को और अमीर बनाना और गरीब को गरीब बनाना क्योंकि ये आपसे अपरिग्रह का उल्लघन करवाता है | अपरिग्रह अर्थात आप आवयश्कता से अधिक अनावश्यक खर्च कर के भोगवादी हों जाते है अब चाहे पूंजीवाद विदेशी हों या स्वदेशी | हम आगे एक सरल उदहारण देकर समझायेंगे किस प्रकार | निश्चित तौर पर वर्तमान मे स्वदेशी पूंजीवाद की आवयश्कता है क्योंकि राष्ट्रवादियो के लिए स्वदेशी का मार्ग स्वदेशी पूंजीवाद से हों कर ही जाता है | स्वदेशी पूंजीवाद यानी कंपनी निकाय(सिस्टम), कंपनी सिस्टम मे राष्ट्रवाद की जगह नहीं होती इसके विर्पित जो स्वदेशी व्यवस्था होती है राष्ट्रीयता उसी मे फलीभूत होती है | स्वदेशी व्यवस्था मे कोई किसी की संपत्ति नही होता | कंपनी निकाय मे लोगो की बौधिकता तक खरीदी जाती है | स्त्रियों को उत्पाद के जैसे परोसा जाता है | पूंजीवाद चाहे स्वदेशी हों विदेशी ये भोगवाद बढाता जब के स्वदेशी व्यवस्था मे अपरिग्रह का पालन होता है | प्रजा मुमुक्षु होती है और स्वाभाविक है के चरित्र और उच्च नैतिक आदर्श बने रहते है | धर्म पालन के परिणामतः प्रजा मे सुख होता है | स्वदेशी यानी आपके देश का यानी आपके निकटतम स्थान का | अब समझिए के यदि आप विदेशी कंपनियों का बहिष्कार कर के स्वदेशी कंपनियों में निर्मित उत्पादों का प्रयोग करते है तों आप देश की मुद्रा का रक्षण कर के उसके अवमूल्यन से उसे बचाते है और देश को गरीब होने से भी | परन्तु अभी भी स्थान है आप इस से भी सरल कार्य कर सकते है | यदि आपने कोलगेट छोड़ के डाबर का बबूल प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया है तों ये अतिउत्तम है पर इस से भी उत्तम है के आप दतुन(नीम इत्यादि की) का प्रयोग करे | यदि नीम की दतून उपलब्ध नहीं तों उस से भी सरल उपाय है के आप घर में कड़वा तेल (शुद्ध बिना रिफाइन किया हुआ) उसमे सेंधा नमक और २ बूंद निम्बू की डाल ले दात अच्छे से साफ़ हों जायेंगे | इस विधि को नित्य ना करे मसूडो पर प्रभाव पड़ता है जब सफेदी लानी हों तब कर सकते है | कोयले से या रेत से दांत माजने की प्रक्रिया विशुद्ध स्वदेशी है और कोई हानि नहीं | यदि आपको उच्चरक्तचाप की समस्या नहीं है तों सेंध नामक, तेल, निम्बू की २ बूंद का प्रयोग कर सकते है | इसका लाभ ये होगा के आपको प्रातः की अपनी लार थूकने की भी आवयश्कता नहीं है आप उसे निगल सकते है लार भी रक्षित होगी बिना नुकसान के और सो कर उठने के बाद धीमे पड़े रक्तचाप को नमक गति देगा जिसकी प्रातः अधिकतर मनुष्यों को आवयश्कता होती है | कम्पनिया चाहती है के आप प्रयोग कम करे और बर्बाद अधिक करे | यही एक मात्र तरीका है विक्री को बढा कर अधिकाधिक धन कमाने का | एक समय था जब एक टूथपेस्ट बनानी वाली कंपनी की विक्री अत्यंत घट गई थी तों एक विशेषज्ञ से कंपनी ने सुझाव लिया विक्री को बढ़ाने का कहते है उन बंधू ने बहुत अधिक रकम ली* अपने सुझाव मात्र के लिए | उन्होंने सुझाव दिया के आप अपने टूथ पेस्ट का छिद्र बढ़ा दे | इस से लोग दबाएंगे उतनी ही शक्ति से जिसका उन्हें अभ्यास है और टूथ पेस्ट आवयश्कता से अधिक निकलेगा जिस से स्वाभाविक है के बर्बादी अधिक होगी पर टूथ पेस्ट जल्दी खत्म होगा | सुझाव पूर्णतः सफलता से कार्य किया, उस कंपनी की विक्री बढ़ गई | रामदेव का दन्तकांति का छिद्र भी उतना ही है जितना की कोलगेट का | विदेशियों की भोगवादी निति पर स्वदेशी का दावा करने वाले भी चल पड़े | यदि उन तक ये बात पहुचे तों वो अपनी कंपनी के टूथ पेस्ट का छिद्र छोटा कर के और कंपनियों के लिए आदर्श प्रस्तुत करें हम ऐसी आशा करते है | कुछ समय पूर्व रामदेव की कंपनी ने अपने उत्पादों की पैकिंग के लिए टेट्रा पैक जैसी विदेशी कंपनी से करार किया था | फिर कोलगेट हों या दन्तकान्ति बिना सोडियम लौरेल सल्फेट के झाग नही उठता, हानि कारक फ्लोराइड होता ही है किसी मे कम किसी मे ज्यादा | इस तरह की बड़ी कंपनियों के स्वदेशी का दावा कर के पूंजीवाद का ढाचा बढाने पर जनता का कर्तव्य हैं के वो स्वदेशी या उस से भी किसी छोटी कंपनी का उत्पाद ख़रीदे जो अपना विज्ञापन नहीं करा सकती | क्यों के बड़ी स्वदेशी कंपनियों मे अधिकतर कही ना कही विदेशी सहयोग होता ही है | अपने क्षेत्र मे कुटीर उद्योग चलने वाले अपने भाई और बेहेन के उत्पाद को मौका दे | आप सिर्फ सामान लेते समय दूकानदार से पूछ सकते है के कोई नया उत्पाद आया है क्या ? सड़क पर बसों मे चिल्ला-२ कर या समझा-२ कर बेचने वालो को मौका दे | संभव है कोई ठग भी ले पर आपको अधिकतर अच्छा उत्पाद मिलेगा | प्रमुखता से ग्रामीण क्षेत्रो कि बसों मे, चूरन बेचने वाले, मंजन चूर्ण बेचने वाले हींग कि गोलिया बेचने वाले बहुत अच्छा उत्पाद देते है अति न्यून मूल्य पर उन्हें अवसर दे ब्रांड को छोड़ कर | इसी प्रकार यदि आप स्वदेश निर्मित साबुन का न्यूनतम प्रयोग करते है और संभव हों तों घर में मुल्तानी मिट्टी का साबुन बनाते है तों ये स्वदेशी का विशुद्ध उदाहरण है | किलिंक प्लस कि जगह डाबर का वाटिका प्रयोग करे उत्तम है पर उस से उत्तम है रीठा कि गोली ले आये और जल मे गर्म कर के उस से बाल धोएं एकदम मुलायम केश होंगे | वर्तन राख से धोना स्वदेशी है और साबुन/सर्फ़ से धोना स्वदेशी पूंजीवाद | हाथ को राख या मिट्टी से धोने पर भी यही नियम लगता है पर मिट्टी पर सूर्यदेव कि अप्सरा अर्थात किरणे पड़ती हों | यदि आप मारुती-सुजुकी की गाडी पर चलते है तों अर्ध स्वदेशी पूंजीवाद को बढ़ावा देते है | टाटा, महिंद्रा की गाडियों पर चलना स्वदेशी पूंजीवाद हुआ स्वदेश निर्मित साइकिल, साइकिल, घोड़े, टाँगे या बैलगाडी इत्यादि पर चलना स्वदेशी हुआ | खादी जिस से सूत कातने वाले को अधिक लाभ नहीं और उसको बेचने वाले बड़े स्टोर मालिक को अधिक लाभ है तों ये स्वदेशी पूंजीवाद हुआ | स्वदेशी का एक अर्थ ये भी समझे कि प्रकृति के अनुकूल रहते हुए तकनिकी का न्यूनतम प्रयोग करते हुए धन का विकेन्द्रीकरण | जिस से आपके पड़ोस में लगे हुए कुटीर उद्योग को लाभ हों वो स्वदेशी का प्रत्यक्ष उदहारण है | जुलाहे के हाथ का बना कपडा जो उसी के द्वारा बेचा जाए या किसी फेरी वाले द्वारा साधारण लाभ लेकर बेचा जाए | या जो बेचे वो कोई बहुत बड़ी कंपनी ना हों क्यों के वो मूल्य को अधिक बढ़ा कर मुद्रा कि क्रय शक्ति को कम करती है | आवयश्कता से अधिक प्रयोग ना करना ये अपरिग्रह कहलाता है और ये यम के नियमों के अंतर्गत आता है | अपरिग्रह का पालन मोक्ष के मार्ग में स्थिरता दिलाने मे सहायक है | जैसा हम कह चुके पूंजीवादी व्यवस्था हमें भोगवादी बनाती है हम बर्बाद अधिक करते है ऐसी व्यवस्था में दोष हमारी अज्ञानता का है हमें पता ही नहीं के बर्बादी हमसे करवाई जा रही और हम किसी अन्य आवयश्कता मंद व्यक्ति के हिस्से की वस्तु का अनावश्यक प्रयोग कर रहे है | कुछ समय पूर्व एक विद्वान ने ये बिंदु उठाया था के अमेरिका में बड़े प्याज की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा कारण स्पष्ट था एक बार में लोग उतना बड़ा प्याज खा नहीं पाएंगे और फेकना पड़ेगा बर्बादी होगी तों बिचौलियों की विक्री बढ़ेगी | जो इलेक्ट्रानिक अभियांत्रिकी के क्षेत्र मे है वे जानते है के अब कम्पनीया पूरा का पूरा बोर्ड बदलने को कहती है बजाये छोटी सी चिप बदलने को | उन्हें परवाह नहीं के इलेक्ट्रोनिक कचरा बड़ी समस्या है | विदेशी पूंजीवाद से स्वदेशी पूंजीवाद श्रेष्ठ तों है और स्वदेशी पूंजीवाद से स्वदेशी श्रेष्ठ है | कुछ अन्य स्वदेशी व स्वदेशी पूंजीवाद के उदाहरण है के आप स्वदेशी कंपनियों कि शेविंग क्रीम गोदरेज या वी. जॉन की जगह दही या तेल लगाये | शक्कर के स्थान पर गुड खाए राब खाए या देशी खांड मिल जाए तों सर्वोत्तम | आयुर्वेद के नियमों का पालन करिये और बीमार मत पडिये क्यों के कहा तक देखेंगे चिकित्सक की लिखी दवा स्वदेशी कंपनी की है या विदेशी ? और इस से उत्तम विकल्प है के यदि आप बीमार पड़े तों कुशल वैद्य को दिखाए और आयुर्वेदिक दवा खाए हमारे देश की तुलना में और किसी अन्यत्र देश मे अधिक वनस्पति नहीं और कुछ दवाइयों को छोड़ कर ये भ्रान्ति फैला रखी गई है के आयुर्वेदिक दावा महंगी होती है यदि कुशल राष्ट्रभक्त अपरिग्रह का पालन करने वाला वैद्य हुआ तों अपना थोडा ही लाभ में संतुष्ट होकर सस्ते में ही दवा देगा | क्यों के सभी वनस्पति किसी ना किसी प्रकार औषधि ही है | आप कहेंगे होमियोपैथी दवा भी सस्ता विकल्प है | जेम्स रैंडी नाम के विचारक ने होमियोपैथी को प्लेसिबो चिकित्सा सिद्ध करने का प्रयास किया है | उन्होंने तों उत्पादकों को चुनौती दे रखी है | हमारे पास आयुर्वेद है तों हम क्यों कही अन्य जाये | मुझे जेम्स रैंडी जी का मत अधिक विचारणीय लगता है क्यों के होम्योपैथी पैथी के नाम पर जर्मन दवा कह कर हमारे देश में लूट मचाई जा रही है कितनी मुद्रा देश से बाहर जा रही है जब के शरीर केवल अपने विश्वास से ठीक हों रहा | प्लेसिबो चिकित्सा ये होती है के आपको लगे के आपने दवा खाई है आप स्वस्थ होंगे और मष्तिष्क अपने आप कार्य करने लगता है | यानी सारी क्षमताए हमारे शुभ संकल्पों मे समाहित है | स्वदेशी के लिए सबसे बड़ा कार्य तों आपका ईधन बचाना है क्यों के प्राकृतिक सम्पदा सीमित है और तेल गैस के लिए डॉलर चाहिए | तों यदि हमारे राष्ट्रभक्त भै राष्ट्रभक्त बहने छोटी-२ बातो का ख्याल रखती है और गैस-तेल को बचाने के लिए कुछ नहीं करते तों अन्य प्रयास निष्फल रहेंगे | पैदल चले, साइकिल पर चले, सार्वजनिक वाहनों पर चले और यदि अत्यावश्यक हों तों निजी वाहन पर चले | ग्रामो मे बायोगैस उत्पादन तों गौ शालाओं में बायो गैस से सी.एन.जी उत्पादन को बढ़ावा देना एक उत्कृष्ट विकल्प है | घरों में रसोई गैस का न्यून प्रयोग और सोलर कूकर का अधिकाधिक प्रयोग करे ईधन और धन दोनों की बचत होगी | इसी प्रकार अन्य सभी बिन्दुओ को अपने विवेक से निर्धारित करे | शमित्योम् विशेष : हम भारतीय कंपनियों के बिलकुल भी विरोधी नहीं अपितु प्रचारक ही है पर उस से भी पहले हम लोगो के और प्रकृति के हितैषी है | स्वदेशी पूंजीवाद हमारी प्राथमिकता मे स्वदेशी के बाद आता है |
Labels: अर्थव्यवस्था सुधार
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