Sunday, 19 June 2016

विदेशी निवेश से टूटेगी मुद्रा, बढ़ेगी महगाई, ये कैसा राष्ट्रवाद

श्री नरेन्द्र मोदी जी की सरकार के आते ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के समाचार निरंतर वृत पत्रों(समाचार पत्र) मे छपने लगे है | राष्ट्रवादी लोगो ने बड़ी आशाये के साथ श्री नरेंद्र मोदी जी को सत्ता मे लाने का श्रम किया है | पर उन्होंने इसलिए श्रम नहीं किया के विदेशी कंपनिया देश मे आये और घरेलु कंपनियों को तों नुक्सान पहुचायेंगी ही अपितु राष्ट्रीय मुद्रा को भी कमजोर करेंगी | ऐसी कोई विवशता नहीं हों सकती जो राष्ट्र हित से ऊपर हों | प्रथम तों हम वृत पत्रों की वो सुचनाये आपके समक्ष रखेंगे जिनमे ये सन्देश छपे थे |
२२ मई २०१४ के दैनिक हिंदुस्तान वृतपत्र पर छपा था के ई-कॉमर्स मे आ सकती है एफ.डी.आई | ३० मई २०१४ को दैनिक हिंदुस्तान वृतपत्र मे छपा था के रक्षा क्षेत्रो मे पूर्णतः विदेशी निवेश खुल सकता है | और राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के प्रवक्ता श्री राम माधव का भी वक्तव्य छपा था के संघ की आर्थिक सोच कट्टर नहीं है | मैं लखनऊ संस्करण के टुकड़े पाठकों के समक्ष प्रमाण स्वरुप प्रस्तुत कर रहा हू |
2मिडिया का तों समझ आता है उन्हें विदेशी कम्पनिया पैसा देती ही है लोगो की सोच बदले के लिए और वे सोची समझी रणनिति से गलियारा बना रही है विदेशी कंपनियों के लिए | पर राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ से कैसे आशा कर सकते है ऐसे गैर दायित्व पूर्ण वंक्ताव्यो की |  अब संघ प्रवक्ता ये बताये के आर्थिक सोच कट्टर नहीं है तों कौन सी सोच कट्टर है ? एक समय था जब संघ हिंदू राष्ट्र के निर्माण की बात कर्ता था अब तों कहा जाता के भारत हिंदू राष्ट्र है | कब बन गया ये तों वही लोग़ जाने | हमारी आपत्ति तों केवल इतनी है के आप स्वयं के संगठनात्मक ढाचे को राष्ट्रिय कहते है और देश मे लूट मचाने को आने वाली शुरुआती विदेशी पूंजी का समर्थन करते है | ये कैसी राष्ट्र वादिता है ? हमें केंद्र मे गौ रक्षा कानून,अयोध्या मे श्री राम मंदिर निर्माण, कश्मीर से धारा ३७० की निरस्तता, और सभी नागरिको के लिए एक कानून अर्थात समान नागरिक सहिंता चाहिए परन्तु बढते विदेशी निवेश के मूल्य पर नही | क्यों के आनातारिक समस्याए तों राष्ट्रवादी सुलझा ही लेंगे, नवीन क्षेत्रो मे बाह्य लूट बढ़ा कर समस्या के समाधान का कोई अर्थ नहीं है | फिर एफ डी आई कोई ऐसा विषय तों था नहीं जो कांग्रेस ना ला सके ?
श्री नरेंद्र मोदी जी को तों चाहिए के श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के कार्यकाल मे जो भूले हुई उन्हें सुधार जाए | अटल जी की सरकार ने सेवा क्षेत्रो का सार्वजनिकीकरण कर दिया था | यानी हॉस्पिटल, बीमा, टेलीकोम जैसे क्षेत्र | यही नहीं सेवा क्षेत्र जी डी पी का लगभग ५८ प्रतिशत बनाते है | तों सेवा कर की नवीन प्रक्रिया और चल दी | आज लगभग साधे १२ प्रतिशत का सेवा कर सभी देते है | यानी जब आप १० रूपए का मोबाइल रीचार्ज कराते है तों आपको ६ से ७ रूपए ही मिलते है उसमे १-२ रूपए के मध्य जो सेवा कर कटता है उसके लिए अटल जी की सरकार को धन्यवाद दे | यदि टेलीकोम सेक्टर का सार्वजनिकीकरण ना हुआ होता तों २जी घोटाला भी ना हुआ होता | महगाई और आसमान पर ना पहुची होती | यानी आपने वोट तों लिए श्री राम के नाम पर और काम किया विदेशी कंपनियों का | क्या इस बार भी यही होने वाला है ? बीमा क्षेत्र सबसे ज्यादा कमाई करने वाला क्षेत्र है, जो निजी कम्पनिया आई वो कितना योगदान दे रही राष्ट्र के विकास मे भारतीय जीवन बीमा निगम की तरह ? श्री नरेन्द्र मोदी जी को तों चाहिए के सेवा कर वापस ले ले और धीमे-२ विदेशी कंपनियों को बाहर करे | ना के विदेशी निवेश को बढ़ावा दे |
अब हम चर्चा करते है एफ डी आई फोरेन डाइरेक्ट इन्वेस्टमेंट यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर | कोई भी निवेशक किसी देश के उत्थान के लिए निवेश नहीं कर्ता अपितु देश के संसाधनों का अधिकाधिक दोहन कर के उसकी मुद्रा को अवमूल्यित (कमजोर) ही कर्ता है | क्यों के जितनी आपकी मुद्रा कमजोर होती जाएगी उसका लाभ उतना बढ़ता जाएगा |
ई-कॉमर्स मे विदेशी निवेश का अर्थ
ध्यान देने योग्य बात है के ५ अप्रैल २०१३ से एफ डी आई बी२बी के लिए अनुमति मिल चुकी है |[१] बी२सी की औपचारिकता संभवतः बी जे पी पूरी करना चाह रही क्यों के अब रोकने वाला तों कोई है नहीं | फ्लिपकार्ट चलाने वाले २ भारतीयों को अमेरिकी कंपनी एक्सेल पार्टनर ने शुरुआत मे लगभग १५० करोड का निवेश किया था |* उस पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के उल्लघं का आरोप भी लगा है |[२] प्रवर्तन निदेशालय यानी एनफोर्समेंट डिरेक्टोरेट ने कारण बताओ नोटिस जारी किया है |[३] भारती भी “फोरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट १९९९” के उल्लघन मे सम्मलित है | सांसदों को पैसा खिलाया जा सकता है क्यों के ई कॉम्मेर्स मे एफ डी आई आने के बाद इन उल्ल्घनो से स्वयं को च्युत करने का प्रयास कर सकती है कम्पनिया |
अब कोई ई-कॉमर्स की कंपनी यदि अमेरिकी सामान भी बेचती है तों भी उसमे मुनाफे का बहुत थोडा हिस्सा ही उस अमेरिकी कंपनी के खाते मे जाता है | पर बीच का लाभ फिर भी भारतीय कंपनी के पास रहता है | | देखिये ई-कॉमर्स ने छोटे दुकनदारो के व्यवसाय को प्रभावित तों किया है पर कई नई छोटी ई-कॉमर्स की वेबसाइट्स भी खुल गई | कोई भी व्यक्ति ऑनलाइन व्यापार कर सकता है | पर यदि ई-कॉमर्स मे विदेशी निवेश आता है तों माल भी अमेरिकी बिक रहा है उस से होने वाला लाभ भी अमेरिका को जा रहा या उस देश को जिसकी वेबसाईट से बिक रहा है | जब बड़ी विदेशी कम्पनिय ई-कॉमर्स मे उतर आयेंगी तों छोटी-२ कंपनिया और नुक्सान उठाएंगी | एक तों बड़ी भारतीय कंपनियों को हानि, की उतके लाभ का प्रतिशत गिरेगा | दूसरा, छोटी-२ वेबसाइट्स जो टी वी पर अपना विज्ञापन नहीं करा सकती या जिनके विज्ञापन के बजट उतने बड़े नहीं वे इन कंपनियों से मुकाबला नहीं कर सकती | तीसरा खुदरा व्यापारियों को और अधिक नुक्सान होगा | अभी हाल मे पढ़ने को मिला के म्यन्त्रा को फ्लिप्कार्ट ने १००० करोड मे ले लिया तों ये भी संभव है के ई-कॉमर्स मे विदेशी निवेश के बाद बड़ी कंपनियों को विदेशी कम्पनिया सीधे खरीद ही ले | उन्हें बना बनाया निकाय यानी सिस्टम मिल जाएगा | और देश और तीव्र गति से लूटता जाएगा | ये कदापि मत समझियेगा के ये कम्पनिया अपने घर से पैसा लगाती है एक बार इन्हें अनुमति मिल गई निवेश की तों ये स्टोक एक्सचेंज मे पंजीकृत हों जाती है और तब हमारे ही पैसे से हमें लूटती है | यानी वे केवल व्यवस्थापक बने रहते है और मजदुर जो उनके किये काम करते है |
रक्षा क्षेत्र मे विदेशी निवेश का अर्थ
रक्षा क्षेत्रो मे एफ डी आई द्वतीय विश्व युद्ध मे नाजी दल से जुड़े उद्योगपति ऑस्कर स्किन्डलर को बहुत सारे ठेके मिले | गोले बनाने का भी ठेका मिला | नाजियो के यहुदयो पर बढते अत्याचार को देखते हुए  स्किन्डलर का मन बदल गया | उसने ऐसे गोले बनवाने शुरू किये जो फटते ही नहीं थे | वो ये चाहता था के हिटलर हार जाएऐसा माना जाता है | अब स्किन्डलर के राष्ट्रवाद मे कोई कमी थी या गोले ना फटे कही और से पैसा आ गया था ये तों ईश्वर जाने पर ऐसे उत्पाद से जर्मन सेना को हानि उठानी पड़ी | ये हानि रक्षा क्षेत्रो के निजीकरण होने से है | कंपनियों को पता है के वे अपना व्यवसाय कब बदले पर आपकी स्वतंत्रता दाव पर होगी | और यदि विदेशी निवेश की अनुमति दी जाएगी तों परिणाम कितने घातक हों सकते है विद्वजन अनुमान कर सकते है |
एक वो देश जिसकी कंपनी रक्षा उत्पाद बनाएगी उस देश से आपको बना कर ही रखनी होगी चाहे उसकी आर्थिक या सामरिक नीतिया कितनी ही गलत क्यों ना हों | दूसरा वो देश आपको कभी भी उच्च तकनीक नही देगा | सदैव आपको कचरा ही पकडायेगा | अमेरिकी बड़े को जब बड़े स्तर पर अपने एफ १६ लड़ाकू विमान बदलने थे तों उसने ठेका उठाया जो बोइंग और लोकहीड मार्टिन के बीच था | लोकहीड के बनाये विमान जिस की सरचना और वी टी ओ यानि वर्टिकल टेक ऑफ तकनीक के कारण उसके विमान एक्स ३५ (अब एफ ३५) ने बोइंग के एक्स ३२ को हरा दिया | जब एफ १६ अमेरिका से कई गुनी बेहतर तकनीक अमेरिकी वायु सेना के पास आगे तों पाकिस्तान को उन्होंने एफ १६ दे दिए | पाकिस्तान इसी मे फूला नहीं समा रहा था |
१३ मार्च २०१४ वाशिंटन पोस्ट मे निकला के चीनी विमानों मे एफ ३५ से मिलती जुलती तकनीक है |[३] उनका डाटा चुराया गया | अब निजी कम्पनिया कुछ भी बहाना लगा दे कोई क्या कर लेगा | वे पैसा कमाने के लिए बनाई गई है ना के देश भक्ति निभाने के लिए | फिर रक्षा तकनीक तों पूर्णतः स्वदेशी ही होनी चाहिए | पता चला एक ही कंपनी २ दुश्मन देशो को एक दूसरे का काट बेच कर पैसा कमा रही है | जैसे बैंकरों ने फ्रांस और इंग्लैंड की लड़ाई मे दोनों तरफ से धन कमाया था | मनमोहन सिंह एक बार डी आर डी ओ गए थे और वैज्ञानिको से कह आये थे के सब कुछ स्वयं ना करने का प्रयास करे | अब हम श्री नरेंद्र मोदी जी से आशा करते है के वो हमारे वैज्ञानिको का मनोबल बढ़ाये और कहे के सब कुछ करे जितना धन चाहिए वो देंगे क्यों के वो देश नहीं मिटने देंगे | विदेशी निवेश से तों देश मटिया मेट होगा |
ये सिर्फ बहाना मात्र  होगा के कांग्रेस ने १० वर्षों मे सब बर्बाद कर दिया | यदि ऐसा है तों सर्वप्रथम तों जिन लोगो ने देश की व्यवस्था को छति पहुचाई उन्हें जेल मे डाला जाये | दूसरा इस लूट मे हुई हानि का विकल्प विदेशी निवेश कैसे हों सकता है |  महारत्न, नवरत्न जैसी कम्पनिया चलने वाले सरकार रक्षा क्षेत्र की कंपनी खड़ी कर के बाजार से पैसा उठा सकती है जितना चाहे | यद्दपि ये शेयर बाजार अवैदिक व्यवस्था है, एक प्रकार से जुआ ही परन्तु विदेशी निवेश से तों उत्तम है के सरकार रक्षा क्षेत्र की कंपनी खड़ी कर ले | इस देश मे बहुत धन है लोगो का अपार समर्थन मिलेगा ऐसी किसी स्वदेशी कंपनी को | इस देश मे प्रतिभा की कोई कमी नहीं भारतीय रेलवे का तंत्र उदहारण है | ये सरल सुझाव देने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय के पास पूरा विभाग है मुझे ये लिखने की आवयश्कता नही होनी थी | हम कांग्रेसी सांसदों को तों लोग़ विदेशी कंपनियों के हाथो बिका हुआ समझ सकते थे पर यदि राष्ट्रवादी कहने वाले भी ऐसा कानून लाये तों क्या समझा जाये | रक्षा क्षेत्र मे यदि विदेशी निवेश आता है तों यही समझा जाएगा के कांग्रेस ने संभवतः इस बार इसी लिए उतना प्रचार नहीं किया के १० साल उसने अपना काम किया अब १० साल आपकी बारी | और बजाये घोटालों मे सम्मलित कांग्रेसियों को जेल मे डालने सब का साथ माँगा जा रहा है |
विदेशी निवेश अच्छी मुद्रा को बुरी मुद्रा मे परिवर्तित कर्ता है
अर्थशास्त्र मे ग्रेशम का नियम है बड़ा प्रसिद्ध है के “अच्छी मुद्रा बुरी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है” | विदेशी निवेश एक ऐसी लूट की रणनिति है जिस से आपके देश की मुद्रा अच्छी खासी अच्छे से बुरी हों जाती है क्यों के वे उन लोगो से दुर हों जाती है जो उस मुद्रा को मान्यता देते है | आपके देश की मुद्रा किसी भी प्रकार से देश से बाहर जाए किसी भी रूप मे जाए आपके देश की मुद्रा कमजोर होती है | क्यों के बाजार मे बह रही मुद्रा यदि बाजार से बाहर जाएगी तों बची हुई मुद्रा से बाकी बाजार चलेगा परिणाम होगा अवमूल्यन, क्रय शक्ति घटना और मुद्रास्फीति यानी महगाई बढ़ना |
वालमार्ट के आने पर संसद मे हुई बहस मे श्री अरुण जेटली अच्छा बोले के आपने ये क्षेत्र खोल दिया वो क्षेत्र खोल दिया | अब देखना है श्री जेटली स्वयं क्या खोलते है और क्या बंद करते है | सेवा क्षेत्रो को अटल जी की सरकार ने खोला तों समाचार पत्र, खुदरा विक्री और शिक्षा के क्षेत्र को सोनिया गांधी की सरकार ने | ऐसी कोई प्रतियोगिता तों चल नही रही के कांग्रेस कुछ क्षेत्रो मे विदेशी निवेश खोलेगी फिर भाजपा ऐसा करेगी और वैश्वीकरण के नाम पर ऐसा करते-२ एक दिन सीमाए खोलने की बात ना करने लगे | जैसे किसी मजबूत चादर को फाड़ना हों तों पहले उसमे छेद करना होगा सरकार भी हमारी अर्थव्यवस्था के साथ कुछ ऐसा ही कर रही है | पहले कुछ प्रतिशत बढ़ाती है जब पैर जम जाते तों प्रतिशत और बढ़ जाता है | हमारी अर्थव्यवस्था को सीधे खत्म किया जा रहा है और राष्ट्र के लोगो को रोजगार के नाम पर नौकर बना कर दासता की ओर लाया जा रहा है | ये प्रत्यक्ष राष्ट्रभाव का अभाव है अब ये विदेश से मिलेगा नहीं क्यों के राष्ट्र की अवधारणा ही वैदिक है और वेदो को मूलतः मानने वाले लोग़ अभी भी आर्यावर्त भूमि मे है |
श्री नरेंद्र मोदी जी आपसे हमें आशाये है | पर विदेशी निवेश का कोई वादा नहीं हुआ था ना ही भारत की जनता ये बर्दास्त करेगी | आपने कहा था आप देश नहीं मिटने देंगे, देश तों हम भी नहीं मिटने देंगे | आपकी यदि भाजपा सरकार विदेशी निवेश का प्रस्ताव किसी भी क्षेत्र मे लाती है तों हम उसका यथा शक्ति विरोध करेंगे | यदि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ले भी आती है तों लोग़ महगाई के रहस्य को अब बहुत जल्द समझ लेंगे | विदेशी निवेश का समर्थन करने वाले नेताओ का राष्ट्रवादी होने के दावे की हवा तों निकल ही जाएगी |
* एक वर्ष पूर्व तक १५० करोड रूपए विकिपीडिया पर दिखा रहे थे अब १ मिलियन यानी १० लाख डॉलर दिखा रहे है | निवेश २००९ का दिखाया जा रहा संभव है ई डी की कार्यवाही के कारण आकडे बदले हों |

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