Monday, 20 June 2016

जाती व्यवस्था का सत्य

जाती-व्यवस्था
मुझे इसका शीर्षक ज्ञाति व्यवस्था का सत्य लिखना था परन्तु तब संभवतः आपका ध्यान उतना आकृष्ट ना होता | जाती जिस प्रचलन से बोली जाती वो संभव ज्ञाति का ही अपभ्रंश है क्यों के हम ज्ञान को ग्यान पढते है जो के अशुद्ध है ज्ञ का निर्माण ज और ञ से होता है | न्याय दर्शन के गौतम ऋषि के अनुसार तों “समानप्रसवात्मिका जातिः” जाती की परिभाषा है अर्थात समान प्रसव हों वो जाती कहलाती है अर्थात जाती व्यवस्था ईश्वर कृत है हम सब मनुष्य जाती के है इसी प्रकार घोडा, श्वान, गौ-वृषभ इत्यादि की जाती है | और ये कर्म अनुसार पूर्व निर्धारित होता है योग दर्शन के ऋषि कहते है “सती मूले तद्वीपाकोजात्यायुर्भोग” पुर्व कर्मानुसार जाती आयु और भोग मिलते है | लोग अपनी आयु और भोग तों वर्तमान व्यवस्था में धर्मानुसार जीवन जीकर निर्धारित कर सकते है परन्तु  जाती बदलना आपके बस में नहीं | मनुष्य है तों मनुष्य ही रहेंगे बन्दर नहीं बन सकते | ये तों रहा हमारे शाब्दिक भेद का शोधन अब बात करते है ज्ञाति व्यवस्था की जिसे जाती व्यवस्था कहा जाता है आगे हम जाती शब्द ही प्रयोग कर रहे है शब्द प्रचलन के कारण |
लोग कहते है के ये हमारे समाज की बड़ी कमजोरी रही है इसके कारण हमारी उन्नति नहीं हुई इत्यादि इत्यादि | परन्तु हमारी व्यवस्था को तों हमें समझने ही नहीं दिया गया | जिस राष्ट्र का व्यापार दुनिया का ६० प्रतिशत हों जिसमे घर-२ में सोने के ढेर लगे हों क्या उस देश में जाती व्यवस्था जैसी दुर्व्यवस्था होगी ? बात समझ से परे है मुझे अभी तक तों राजा राममोहन राय के मुद्दों में भी ये समस्या नहीं दिखी हा ऋषि दयानंद के समय में ये समस्या दिखी यानी के समस्या कही दोनों के बीच में खड़ी की गई है | ये सारी समस्या “इंडियन एजुकेशन एक्ट १८३५” से प्रारंभ हुई जहा हमारी संस्कृत आधारित गुरुकुल शिक्षण पद्धति को खत्म कर दिया गया | और आज सारा दोष ऊपर के वर्ग विशेषकर ब्राह्मणों पर मढ़ दिया जाता है | जब के ब्राह्मणों ने समाज को बाँधने का विशेष प्रयास किया | आर्य समाज जैसी संस्था का निर्माण ब्रह्मतेज धारी आदित्य ब्रह्मचारी ब्राह्मण देव दयानंद का ही निर्माण था | चितपावन ब्राह्मण वीर सावरकर ने रत्नागिरी में दलितोद्धार का विशेष प्रयास किया | आर्य समाज के पंडित सोमनाथ ने अछूतोद्धार के प्रयासों में तों अपनी माता का बलिदान दे दिया था | राष्ट्र मे क्रांति के निर्माण में ब्राह्मणों का विशेष योगदान रहा है पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद इत्यादि उसी के उदाहरण है और इन्होने अपने उपनामो का भी प्रयोग नहीं किया | हिंदी साहित्य में पंडित रामचंद्र शुक्ल, महावीर प्रसाद द्वेदी, आचार्य हजारी प्रसाद द्वेदी, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला इत्यादि साहित्यकारों का विशेष योगदान है जिनके कारण शुक्ल युग या द्वीदी युग कहा जाता है | आज हम शुद्ध हिंदी तों बोलते है अन्यथा अरबी फारसी युक्त हिंदी से हमारे संस्कार कितने दूषित हों गए होते | तों अब हमें समझना है एक समाज को २ वर्गों में कैसे विभक्त कर के वैमनस्य निर्माण किया गया और क्यों किया गया | और क्या किसी वर्ग विशेष से कोई गलती हुई है ? और यदि हुई है तों कैसे हुई है ? वर्तमान में तों हम पुरानी फिल्मो में एक ही खलनायक देखते है जो ठाकुर होता था | एक शब्द सुनते है दलित चाहे वो दलित महिला २८ लाख की चप्पल पहने पर वो कही जायेगी दलित | अखबारों और फिल्म उद्योगों ने अंग्रेजो की नीतियों की पुष्टि की है | अंग्रेजो ने अपनी नीतियों के दुष्परिणाम का दोष समाज के ही उस वर्ग पर डाल दिया जिसके ज्ञान और विद्या के निशुल्क प्रचार के कारण समाज समृद्ध था और जो वर्ग दबाया गया उनके नेतृत्व को खरीद लिया | अरुण शौरी अपनी पुस्तक वर्सिपिंग फ़ाल्स गोडस मे आंबेडकर के बारे मे जो तथ्य प्रस्तुत किये है उस से समझ आता है के किस प्रकार दलितो को क्रांति से दुर रकने के लिए अंग्रेजो ने प्रयत्न किये | दलित संगठन बिना तथ्यों को देखने की इच्छा करे पुस्तक को प्रतिबंधित करने की मांग कर रहे है और जो वर्ग कुछ नहीं जानता इतिहास और राजनितिक इतिहास के बारे मे आज जय भीम के नारे लगवाए जा रहे है यानी राष्ट्र से द्रोह समाज से द्रोह धर्म से द्रोह करवाया जा रहा लोगो को अज्ञानता में रख कर | जो कहे के गरीबी के कारण दलित क्रांति में सवर्णों की तुलना में भाग नहीं ले सके तों कोई भी दलित कितना गरीब होगा पंडित रामप्रसाद बिस्मिल से ज्यादा गरीब नहीं होगा जो थोड़ी बहतु जमीन थी वो भी अंग्रेजो ने जप्त कर ली पर इन क्रांतिवीरो के परिवारों ने मिटना पसंद किया | आर्य समाज के मंच से ये बाते सुनना थोडा विस्मय कर्ता होगा पर आपको आर्य समाज से ही ये जानकारी मिल सकती है अन्यत्र नही | वो आर्य समाज जो वास्तव मे ब्राह्मण निर्मात्री सभा है जो निरंतर ये कहता है के किसी भी वर्ग का व्यक्ति ब्राह्मण बन सकता है और वेद मन्त्र पढ़ के कर्मकांड करवा सकता है यदि वो आर्ष साहित्य मे पारंगत होने मे तप करते हुए आत्मोन्नति करे | उस मंच जन्मगत जाती व्यवस्था की बात हों रही ? हा उसी मंच से आप समझ सकते है प्राचीन भारतीय व्यवस्था को | किस प्रकार पिता अपने पुत्र को अपनी विद्या देता था और विद्या आगे बढती थी | भारत का ज्ञान विज्ञान संस्कृति निस्वार्थ भाव से समाज की सेवा सब वंशानुगत व्यवस्था को आगे बढाने की पद्धति से टिका हुआ था | जिसे अंग्रेजो ने व्यवस्थित तरीके से तोडा |
ब्राह्मण का पुत्र ब्राह्मण होता था क्यों के उसे माता पिता से गुणसूत्र(क्रोमोसोम्स) मिलते है और बचपन से पृष्ठभूमि उन्हें वैसा ही समाज मिलता है | गुण, कर्म और स्वाभाव के अनुसार ही वो व्यवस्था होती थी उसमे भी यदि कोई दोष उत्पन्न होता था तों मनु महाराज के वेदानुकूल नियमों अनुसार वह व्यक्ति अपने गुण कर्म स्वाभाव अनुसार दूसरे वर्ण का घोषित हों जाता | और कोई ये ना समझे के कोई कम बुद्धि युक्त है क्यों के पूर्वज तों सभी के ब्राह्मण ही थे | जी हा ब्राह्मण ग्रंथो के अनुसार पहले सब ब्राह्मण ही थे धीमे-२ अन्य वर्ण निर्मित हुए जैसे अन्न का सेवन औषधियों और फल इत्यादि पर बढ़ा | इसलिए ऋषियों की संताने तों हम सब ही है जिनके पूर्वजो में अंत में वेद पाठ बंद हुआ या कुछ कुलों में अभी भी चल रहा उनसे अधिक आशा है वेद प्रचार के कार्यों में योगदान करने में | ये वंश परंपरा से ही हमें श्री राम जैसे राजा मिले महाराणा प्रताप जैसे वीर मिले | और इसी के साथ ये भी सिद्ध होता के हमारे समाज में गुण, कर्म स्वभाव ही सर्वप्रथम है अन्यथा चन्द्रवंश के श्री कृष्ण राजा ना बन पाते, वीर शिवा जी का राज्याभिषेक भट्ट ब्राहमण द्वारा ना हों पाता |
केवल एक जाती जो मुग़ल काम में उत्पन्न हुई वो है भंगी जाती की | इसका इतिहास हम आपको बताते है | मुस्लिम शासको में हजारों-२ स्त्रियों का हरम रखने की परंपरा बनी हुई | इसलिए लिए वे स्त्रियों को उठा के ले जाते थे आर्य समाज ने इन सब का ब्यौरा “औरतो की लूट” नामक पुस्तक में रखा है कहा से कितनी स्त्रिया उठा ले गए | इन स्त्रियों के मल मूत्र की समस्या हुई क्यों के जो भी किले लूटे वह कही भी शौचालय नहीं बना पाया | आज भी नहीं है लाल कोट (लाल किला) में भी आपको शौचालय नहीं मिलेगा | और यदि उन स्त्रियों को खुला छोड़ दिया तों ये अपने घर भाग जाएँगी इसलिए वो ब्राह्मण और क्षत्रिय जो युद्ध में भाग लेते थे और युद्ध बंदी बन जाते थे | उनके समक्ष ये शर्त रखी गई के यदि वे मुसलमान नहीं होना चाहते और मरना भी नहीं चाहते तों इन स्त्रियों का मल ढोए | जिन्होंने स्वीकार किया ये सोच के की अपनी ही बहने है वे मान भंग होने के कारण भंगी कहलाये | जब वे अपने कार्य से मुक्त हुए तों वापस अपने ग्राम आने पर खुद ग्राम से बाहर रहने लगे | कारण था उनका खुद शौच  इत्यादि नियमों का पालन करना और अपने नियमों पर दृढ़ता से पालन करना | रहस्य तब खुलता है जब भंगियो का और ब्राह्मण और क्षत्रियो का गोत्र एक मिलता है | उनकी कलाईयो की चौड़ाई उनके पूर्वजो का अनुमान कराती है | इसके अतिरिक्त जो भी कारण रहे वे आर्थिक कारण रहे कोई किसी का शोषण तब तक नहीं कर सकता जब तक की वो आर्थिक तौर पर दबा ना हों | क्या आज किसी करोड़पति दलित नेता को कोई वास्तव में दलित कह सकता है ? संपन्न को कोई नहीं दबा सकता, ना अपमान कर सकता है | वैदिक विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था को तोड़ने वाले गोरो ने हमारी आर्थिक समृधि को छिना है | हम कुछ एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहे आपके समक्ष जो आपको अनुमान देंगे के जाती(ज्ञाति) व्यवस्था तों तोड़कर पूंजीवाद को स्थापित किया गया | किसी को किसी से नौकरी मांगने नहीं जाना पड़ता था व्यक्ति अपना काम अपने जन्म से लेकर आता था | कुछ ज्ञातियो का उदाहरण इस प्रकार है
१.      चर्मकार या चमार : आज सबसे नीची दृष्टि से देखे जाने वाली ये जाती एक समय बड़ी समृद्ध होती थी | १९वि सदी के प्रारंभ में कानपुर के सम्हाल दास चमार प्रसिद्ध है धन ऐश्वर्य के लिए | जो जानवर मरता था उसकी खाल को उतारकर वैदिक पद्धति से शोधित किया जाता था | कबूतर के मल को डाल कर पैरों से मसलने की विधि थी | ना जल दूषित होता था जैसा के आज टेनरियो के जल से नदिया दूषित हों रही है जिसमे गंगा माता प्रमुख है | अंग्रेजो ने सामूहिक बूचड़ खाने यानी पशुवध शालाये खुलवा के चर्मकारो की रोजी रोटी बंद कर दी | एक तों जीव हत्या ऊपर से समाज के सबसे समृद्ध वर्ग को तोड़ दिया | आज ये कार्य मुसलमानों ने प्रमुखता से पकड लिया है और टेनरी उद्योग मे अरबो कमा रहे है | अखबार उनके, संचार माध्यम उनके, तों दबे वर्ग की आवाज लोगो तक पहुचाये कौन ?
२.      कुम्भकार या कुम्हार या प्रजापति : समृद्ध वर्गों में ये वर्ग भी रहा क्यों के सब बर्तन प्रयोग करते थे | जैसे ही फसल होती थी फसल के बदले बर्तन ले लिए जाते थे | मृदा वर्तन प्रयोग करने से कोई बीमार नहीं पड़ता था | शरीर पुष्ट रहता था और समाज के बड़े वर्ग की आर्थिक समृधि रहती थी | धातु के वर्तन उद्योगों को चला कर कुम्भकारो के काम को शनैः-शनैः बंद करवा दिया गया | आज कुम्हारों ने अधिकतर अपना कार्य छोड़ हि दिया है | प्रजापति यानि प्रजा की रक्षा करने वाला स्वास्थ की रक्षा तों कर्ता ही था इस प्रकार के भी वर्तनो को बनाने की विद्या रही है भारत में के विषयुक्त भोजन होने पर वर्तन चिटक जाते थे |
३.      सविता या कलपक या वृत्ति या नाऊ : ये शैल्य चिकित्सक होते थे | आज भी फोड़ा इत्यादि होता तों नाइ उस्तरे से काट देते | अंग्रेजो ने भारत से सर्जेरी सीखी और भारत में ही प्राचीन पद्धति से सर्जरी खत्म करा दी | आज यदि लोग स्वास्थ सेवाओ के महंगे होने का रोना रो रहे है वो ब्राह्मणों द्वारा संचालित शिक्षा व्यवस्था के बंद होने के कारण ही है | आज के नाऊ सविता नाम इसलिए पड़ा क्यों के परमात्मा का नाम है उत्पादक होने के कारण, इसी प्रकार नाऊ बच्चा होता था तों नाडा काटता था | आज ये वर्ग या तों अन्य नौकरी ढूंड रहा है या बाल काट के अपनी जीविकोपार्जन कर्ता है |
४.      लोहार या विश्वकर्मा : ये भी वेद में परमात्मा का नाम था इनकी कमर तोड़ी इन्डियन फोरेस्ट एक्ट १८६५ बना कर | भारत का इस्पात उद्योग जो कुटीर उद्योग था वो खत्म कर दिया एक तों इस से भारतीय स्वतंत्र रूप से हथियार नहीं बना सकते थे ऊपर विकेन्द्रित अर्थ व्यवस्था को तोडना आवश्यक था लोग स्वतंत्र थे उन्हें गुलाम बनाने के लिए आपको उनके अर्थ के मार्ग को नियंत्रित करना था वही किया गया | बड़े-२ उद्योगपति खड़े किये गए जो केंद्रित थे उन्हें नियंत्रण करना कर कानूनों से अधिक सरल था बजाये बड़े समाज को नियंत्रित करने के |
५.      जुलाहे : हाथ से कपडे बनाने वालो को पावर लूम खड़ा कर के खत्म कर दिया गया | कुछ विद्वानों ने तों ये भी कहा के अंग्रेजो ने जुलाहों के हाथ तक कटवाए ठीक वैसे ही जैसे गुरुकुलो को बंद करने के लिए ब्राह्मणों के हाथ कटवाए हत्या करवाई |
६.      रजका या वरिष्ठा या दिवाकर धोबी : मिट्टी से कपडे धोने की विद्या थी और कपडे उद्योग पर पकड़ से इनका व्यवसाय प्रभावित हुआ | आज ये प्रभावित वर्ग है |
७.      मोची : मोची चर्मकार का सीधा सम्बन्ध था जब चमार प्रभावित हुआ तों मोची भी प्रभावित हुआ आज मोची सड़क पर है |
८.      कहार या बाथम : ये डोली उठाने का कार्य करते थे श्रमिक कार्य के लिए अधिक धन दिया जाता था क्यों के उसे धन की अधिक आवयश्कता थी | आज अंग्रेजो का ब्रास बैंड चलता है | डोली की परंपरा पुनः चालु की जाए तों ये ब्रास बैंड जैसी गुलामी की निशानी बंद हों जाये |
९.      कश्यप या केवट : नाव चलाने का कार्य कर्ता था | क्यों के सभी वर्ग प्रभावित हों रहे थे अंग्रेजो की नीतियों से तों श्रमिक वर्ग पर भी प्रभावित हुआ | याद करिये श्री राम ने केवट को नदी पार कराइ मुद्रिका दी थी |
दक्षिण भारत की जातियों के साथ भी यही सब हुआ | इसके अतिरिक्त अंग्रेजो ने योद्धा ज्ञातियो को पिछड़ा वर्ग घोषित कर दिया जैसे यादव, जाट, गुर्जर इत्यादि क्यों के ये लड़ाकू कौम थी | कितना आश्चर्य है के श्री कृष्ण के वंशज आज गर्व से अपने को पिछड़ा कहते है और अन्य जातीय पिछड़ा कहलाने के लिए लड़ मर रही है | अंग्रेजो ने जाल में ऐसा फसाया के आज तक आपस में ही उलझे पड़े है | कुछ कौमों को तों जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया अंग्रेजो ने | ठगी प्रथा है इस जाती मे ऐसा प्रचार किया उस देश मे जो त्याग और तपस्या के सिधान्तो पर चलता रहा है लाखो वर्षों से और वो कह रहे थे ये बात जो इस देश मे लूटने आये थे | उस वक्त तों राष्ट्रभक्तो पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा पर झूठ को दोहराने से वो सत्य प्रतित होता है इसी प्रकार आज लोगो को लगता है हुआ होगा | पिंडारियो को लुटेरा साबित करने में अंग्रेजो को देर नहीं लगी | ऐसे ही १७६० के सन्यासी विद्रोह में संयासियो को लुटेरा साबित करते रहे | अब लिखे कौन कलम उनकी लिखने वाला उनके वेतन वाला | आरक्षण जो शुरू में १० वर्ष के लिए आज अनिश्चित काल के लिए टाल दिया गया | और हर कोई लड़ा जा रहा अपने लाभ के लिए क्या हों गया हम आर्य जाती के देव लोगो को | जो फिल्मे बना रहे वो कभी नहीं दिखाएँगे के ब्राह्मणों ने दलितोद्धार के लिए क्या-२ किया उन्हें पता है के जो उन्हें पैसा दे रहे वो इस समाज को संगठित नहीं देखना चाहते | वो तों ऐसी फिल्मे बनायेंगे जिस से समाज मे द्वेष और घृणा ही फैले |
हमारे पुरे आर्थिक ढाचे को तोड़ दिया जिसमे हमने कृषि की चर्चा की ही नहीं जो के समाज का सभी वर्ग कर्ता था और लाखो वर्षों के आर्थिक ढाचे के टूटने से जो गरीबी और शोषण उत्पन्न हुआ उसका दोष समाज पर ही डाल दिया वो भी तब जब ६०० वर्ष मुसलमानों का और २०० वर्ष अंग्रेजो के शासन मे समाज रहा और उसके बाद भी दलित वर्ग को लगता है के हा सही कह रहे | उनको दोष क्यों दिया जाए जब उनका नेतृत्व करने वाले समृद्ध लोग दलितो के नेता बने हुए है और वे कभी नहीं चाहेंगे दलित ऊपर उठे अन्यथा दलित रहेंगे नहीं तों दलित की राजनीति कैसे होगी | खुद के कार्य की जगह नौकरी करना अब उत्तम समझा जाने लगा है जब के हर चीज का स्वरुप बदला है कार्य सब वही हों रहे है | अब उन्हें समझाए कौन के उनके पूर्वजो की आर्थिक समृद्धि के साथ क्या किया गया है | फिर थोड़े ही समय मे अंग्रेजो ने अपने जैसे काले अंग्रेज भी खड़े कर लिए थे जो आज बहुत बढ़ गए है और उन्हें पता है के आर्थिक शोषण के तरीके क्या होते है | वेद आधारित ऋषि कृत आर्ष साहित्य पढ़ने पर सभी विद्वानों को समझ आएगा के सभी ऋषि मुनियों की संताने है | तब के गोरे अंग्रेज और आज के काले अंग्रेज नहीं चाहते लोग आर्थिक स्तर पर स्वतंत्र हों वे चाहते है लोग उनकी नौकरी करे | आज आरक्षण का विष भी नौकरी के विचार को ही पोषित कर रहा है | राष्ट्र समृद्ध उद्योग से होंगा स्वरोजगार से होगा,लघु उद्योगों से होगा | नौकरी से केवल कर्ज आधारित व्यवस्था ही चल पाती है | श्री राजीव दीक्षित के प्रयास सराहनीय रहे जिन्होंने शुरुआत की और धर्मपाल जी के कार्यों को शब्द दिए | ऐसे तपस्वी ब्राह्मण के प्रयासों से ही हमें प्रेरणा मिली समाज के ढाचो को समझने और खोजने की | विभिन्न विद्वानों, प्राचीन अर्थ व्यवस्था और स्वतंत्र चिंतन को समझने के बाद इस लेख को समाज के एकीकरण हेतु लिखा है | जो कुछ भी आपको बुद्धि अनुकूल लगे उसे स्वीकार करे अन्यत्र को नहीं | जो जो हम मे समता होवे उन कारणों से हम संगठित होवे | संगठन सूक्त ही राष्ट्र का निर्माण कर्ता है |
नमस्ते

Labels:

राष्ट्रीय एकता का सूत्र कान्यकुब्ज भाषा-हिंदी

अंतरजाल पर बढाए, आर्य भाषा का मान
अंतरजाल अर्थात इन्टरनेट, आर्य भाषा यानी हिंदी, यानी हिंदी भाषा एवं देवनागिरी लिपि का अधिकाधिक प्रयोग करे अंतर्जाल पर | तों क्या अन्य भाषाए आर्य भाषाए ना हुई, जैसी असमी, पंजाबी, उड़िया, गुजरती, मराठी, बंगाली, तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम इत्यादि बिलकुल हुई पर इन सब भाषाओ को आपस में हिंदी जोडती है किस प्रकार वो हम आगे समझायेंगे | और भी प्रमुख कारण तों पूरी दुनिया देख रही है के भारत के वासी कैसी सोच रखते है भारत खिचड़ी देश नहीं इसकी भी अपनी पहचान है इसकी भी अपनी भाषा है | यदि हम लोगो को अपने देश की भाषा का प्रयोग करना ना अच्छा लगेगा तों यहाँ की अन्य बातो संस्कृति का क्या मान करेंगे?
सबसे ज्यादा बहाना ये लगाया जाता है के देश में अन्य भाषाए भी है यदि हम हिंदी प्रयोग करते है तों देश के अन्य लोग साथ नहीं आएंगे | जब के ये विचार मौकोले के मानस पुत्रो द्वारा फैलाया गया है जिसमे अन्य भोले लोग भी बिना विचार किये सहमत हों लिए | भाषा देश को जोड़ती हैं | वैदिक संगठन सूक्त कहता है के हों सम विचार हमारे, चित्त मन सब एक हों | जब पुरे देश की भाषा एक हों जाएगी तों देश संगठित हों जाएगा | पर जो संगठन की ताकत जानते है वो कभी इस देश के लोगो को संगठित नहीं होने देने |जितने भी समृद्ध देश है उनकी भाषाए एक है पुरे देश में | ऐसा नहीं के भारत में ही हर २-कदम में भाषा बदल जाती है, हर देश में ऐसा ही होता है | पर उस देश का शासन-प्रशासन भाषाई एकता का महत्व जानता है | एक भाषा पुरे देश के होने का अर्थ है के देश के एक कोने का व्यक्ति देश के दूसरे कोने के व्यक्ति से अपना विचार रख सकता है किसी भी विषय पर | चाहे शासन प्रणाली की पद्धति हों  या कोई ऐसा समान कानून जो उन दोनों पर केन्द्र द्वारा लगाया जा सकता है | यदि भाषा ही अलग होगी तों वो संगठित नहीं हों सकते | संगठित नहीं हों सकते तों आंदोलित नहीं हों सकते |
इसके साथ ही उनका देश प्रेम भी प्रभावित होगा | केवल प्रजा की आवयश्कता नहीं भाषाई एकता राज व्यवस्था को भी एक करना होता है पुरे देश की भाषा को राष्ट्र की रक्षा के लिए | ताकि देश पर कोई संकट आने पर एक क्षण में वो बात प्रचारित की जा सके बिना विषय के बदले | भाषा के आधार पर राज्य की मांग करना या देश की मांग हों सकती है क्यों के लोग दावा का सकते है के हम आप में से नहीं है हमारी भाषा आपसे अलग है यांनी हमारे पूर्वज अलग है | चीन में भी भाषाए बदल जाती है थोड़ी-२ दुरी पर वहा के शासन ने सबको एक कर के मदेरियं चीनी को स्थापित किया | आप १९५० के पूर्व के मानचित्र देखे तों चीन एक छोटा सा देश दिखेगा | वह मंचुरिया राज्य नहीं, सिकियांग नहीं, त्रिविष्टप नहीं (यानि तिब्बत या स्वर्ग लोक) आज कितने बड़े क्षेत्र में चीन है हमारी भूमि पर भी कब्ज़ा कर्ता जा रहा है | अमेरिका को लीजिए भारत से लगभग तिगुना है क्षेत्रफल में पुरे देश में एक भाषा है  जब के स्पैनिश भी वहा रही हैं पर आंग्ला को उन्होंने स्थापित किया | कैनेडा में भी यही हाल है | रूस को लीजिए कितना बड़ा देश और भाषा एक |
हिंदी के बारे में एक भ्रान्ति फैला रखी है के ये तों मुसलमानों की भाषा है | कारण ये है के समाचार पत्र या वृतपत्र और चलचित्र यानी फिल्मो में जो संवाद होते है उन्हें उर्दु फ़ारसी के शब्दों का प्रयोग अधिक होता है | उसका कारण राजव्यवस्था की एंग्लो लोगो की फुट डालो राज करो निति का अनुकरण करना और चलचित्र उद्योग में संवाद लेखकों में मुस्लिम समुदाय का अधिक योगदान होना | पुरानी फिल्मो में कमाल अमरोही, कादर खान और नई फिल्मो में अब्बास टायर वाला जावेद अख्तर जैसे लेखक | ये अपनी संस्कृति के संस्कार लोगो के अवचेतन में पहुचाते है हिंदी में मिलावट कर के | विशुद्ध हिंदी पर किसी भी दक्षिण भारत के बंधू को कोई आपत्ति नहीं है | चीन ने अपने समाचार पत्रों में विदेशी शब्दों का प्रयोग निषेध कर रखा है उन्हें पता है राष्ट्र की सीमाओ को कैसे स्थिर रखना है और बढ़ाना है | यहाँ तों वृतपत्रों पर इस प्रकार का नियम बनाने का कोई सोच भी नहीं सकता | क्यों के हर कोई लगा है भारत को खिचड़ी देश सिद्ध करने में |
हिंदी जिसे कान्यकुब्ज भाषा भी कहा जाता है | तत्सम, तद्भव निष्ठ हिंदी सुन कर मन आनंदित हों जाता है |
पर भारत में बर्तानिया (ब्रिटिश) उपनिवेश रहने से फुट की नीतिया प्रबल रही और वर्तमान में बर्तानिया उपगणराज्य की स्तिथि में हिंदी की और दुर्दशा करी जा रही है | अब तों ग्राम-२ ए, बी, सी, डी पहुचाई जा रही है | महर्षि दयानंद की मूल भाषा गुजराती होते हुए उन्होंने संस्कृत निष्ठ हिंदी को स्थापित किया | उन्हें पता था राष्ट्र में क्रान्ति का संचार इसी भाषा के आधार पर हों पाएगा | बाद में हिंदी के लेखकों ने बहुत प्रसंशनीय योगदान दिया हिंदी के विकास के लिए | शनैः- शनैः हिंदी को योजनाबद्ध विधि से मिलावटी भाषा में बदलने का प्रयास किया गया | आज लोग जब ऋषि की क्रांतिकारी कृति सत्यार्थ प्रकाश पढते है तों कहते है बहुत कठिन हिंदी में है जब के वास्तव में लोगो का भाषाई स्तर निचे हों चूका है |
आंग्ला भाषा दास मानसिकता का प्रतिक हैं
प्रांतीय भाषाओ की आड़ लेकर म्लेच्छ भाषा आंग्ला (फारसी में अंग्रेजी) का प्रचार किया जाता है | इसमें सबसे ज्यादा लाभ तों विदेशी कंपनियों को है जिनमे अमेरिका और बर्तानिया राज्य की कम्पनिया प्रमुख है जिन्हें भारत में अपने नौकर नियुक्त करना है | इसके लिए उन्हें इस भाषा का सर्वाधिक प्रचार करना है | यद्दपि वे अपने धार्मिक साहित्य को क्षेत्रिय भाषाओ अनुवादित करते है पर उनकी बाइबल की प्रमुख भाषा आंग्ला ही है | इसलिए इस भाषा के प्रयोग से उन्हें संप्रदाय को भी लाभ मिलता है | दो भारतीय जो हिंदी प्रदेश में पैदा हुए, उनके माता-पिता पूर्वज हिंदी ही बोलते आये आपस में आंग्ला में बात करते मिलेंगे | कितना दुःख का विषय है, दोनों एक दूसरे के सिर्फ ये सिद्ध करना चाहते है के वो अधिक पढ़े लिखे है | यही मौकेले की निति थी आंग्ला को पढ़े लिखो की भाषा स्थापित करना जब के वो तों म्लेछो की भाषा थी और है | यदि आप उनसे कुछ कहेंगे तों वे कहेंगे के दक्षिण में हिंदी विरोध है ये बात उत्तर भारत का हिंदी भाषी कहेगा | तों उत्तर में कौन सा विरोध है ? और आप दक्षिण में हिंदी विरोध के कारण जान कर उन्हें समाप्त करने के लिए क्या कर रहे है ? क्या आप दक्षिण की कोई भाषा जानते है या उस भाषा को सिखने का प्रयास कर रहे है ? हिंदी अर्थात शुद्ध हिंदी का प्रयोग दक्षिण की भाषाओ का भी मान बढ़ाएगी क्यों के सभी भारतीय भाषाओ में ७०-९० प्रतिशत शब्द संस्कृत के है | दक्षिण की लिपि यदि देवनागिरी हों जाए तों दक्षिण की भाषाओ को सीखना उत्तर भारतीयों के अत्यंत सरल हों जाए और संस्कृत को भी | फिर आंग्ला का प्रयोग कर के आप दक्षिण की भाषा कैसे सशक्त कर रहे है इसके विपरीत हिंदी और भारतीय भाषाओ का अपमान अवश्य कर रहे है के ये भाषाए बोले जाने योग्य नहीं | जहा आवयश्कता हों वहा बोलिए ना आंग्ला, इसे विवशता कहा जाता है | पर उसके कारण भी यथा शीघ्र दुर् करने का प्रयास करिये |
इसी प्रकार विरोध करने वालो में महाराष्ट्र के एक नेता ने हिंदी विरोध का विषय उठा कर लोकप्रियता अर्जित की पर उनके खुद के बालक आंग्ला माध्यम अर्थान इंग्लिश मीडियम में पढते है | शास्त्रों में ऐसे ही लोगो को राक्षस कहा गया है जिसकी कथनी और करनी अलग हों | भारत के किसी प्रांत की भाषा आंग्ला नहीं है | उसके उपरान्त भी भारत एक राज्य नागा राज्य को नागालैंड कहा जाने लगा कारण ईसाईकरण | भारत के उच्चतम न्यायालय जिसे सुप्रीम कोर्ट कहा जाता उसकी भाषा आज तक आंग्ला है | हिंदी लोगो से मत लेकर जाते पर संसद में आंग्ला में विवाद-संवाद करते | देश इसीलिए भी भ्रष्टाचार की दल-दल में जाता जा रहा है | एंग्लो लोगो का हित तों इस बात में था के भारत के लोग ना जाने के वो क्या कर रहे हैं कैसे कानून बना रहे है किस भाषा में न्याय दे रहे है यद्दपि उनका न्याय देना एक हास्य का ही विषय है यदि भारत के लोग जाने तों केवल वो लोग जो उनके वेतन पर पले है इसीलिए उन्होंने राजव्यवस्था की नौकरीयो में आंग्ला की प्रधान अनिवार्यता रखी जो अभी तक यथावत कायम है |
ऋषि दयानंद कहते है के “जो जिस देश की भाषा बोलता है उसे उसी का संस्कार होता है” |  इस बात के बहुत गहरे अर्थ है | आप मात्र दस दिन के लिए अपनी भाषा ना बोले और आंग्ला बोले और फिर वापस आये अपनी भाषा और देखे अपने मस्तिष्क को संतुलन बनाने में कितना समय लगता है | हिंदी मस्तिष्क के दोनों हिस्सों को सक्रीय करती है | बाहरी लोग भला  क्यों चाहेंगे आपका पूरा दिमाग चले ? अवचेतन तक भाषा के शब्दों के संस्कार जाते है हमारे यहाँ तों शब्द को ब्रह्म, शब्द को महादेव बताया गया है | संस्कृत के मंत्रो का जाप,सामवेद के मंत्रो से मस्तिष्क की कोशिकाओं में अद्भुत परिवर्तन देखा गया है | तों संस्कृत निष्ठ हिंदी बोलने में लज्जा कैसी ? उन पर हसिये जो हिंदी भाषी होते हुए भी आंग्ला बोल रहे है, वे अभी भी अपनी सोच में १९४७ के पहले के बर्तानिया समय में रह रहे है | जो हिंदी में पर्याप्त शब्द ना होने का बहाना करे उन्हें बताये के धातुपाठ के २००० सूत्रों से दुनिया के किसी भी वस्तु या अविष्कार का नाम रखा जा सकता है | और हिंदी संस्कृत पर आधारित है इसलिए ये कहना के इस भाषा में पर्याप्त शब्द नहीं हमारी अनविज्ञता हैं | हिंदी की तुलना में शब्द भंडार में तों आंग्ला कही टिकती ही नहीं है |
आंग्ला भाषा को म्लेच्छ भाषा इसलिए भी कहा गया के शीत प्रदेश होने के कारण वे लोग कई दिनों तक स्नान नहीं करते | जिस भाषा में रिश्तों को संबोधन करने के लिए कोई शब्द ही ना हों वो कैसे लोग होगे ? काका, मामा, फूफा, ताऊ ये भाषा हमारे समाज को तोड़ रही है | ब्रह्मचर्य, वात्सल्य, धर्म, धृत इत्यादि अनेको-२ शब्दों के अर्थ ही नहीं है उनके पास | ये भाषा हमारी संस्कृति को तोड़ रही है | फिर जिन लोगो ने हम पर इतने अत्याचार ढाए हों | जिन लोगो ने हमारे देश की सम्पति को लूटा हों जिन्होंने हमारे मूल धर्म में छेड़-छाड का साहस किया हों, हमारे क्रांतिकारियो की निर्दैयता से हत्या की हों भला हम उनके देश की भाषा बोले ? बड़ा लज्जा का विषय है | आंग्ला प्रयोग से वो हमारे विचार सरलता से जान जाते है | हमारी सोच कैसी है इस प्रकार वे कोई नया उत्पाद लाते है जो हमारी सोच के अनुकूल हों और देश को अलग तरह से लुटते है | आप जिलेट जो ब्लेड व अन्य उत्पाद बनाती है उसकी वेबसाईट पर जाए | हर देश के लिए उसने उसकी भाषा की सुविधा दे राखी है पर भारत के लिए उसने आंग्ला का विकल्प दिया है | उन्हें पता है यहाँ के लोग अभी भी दासता में जी रहे है उन्हें श्रम करने की आवयश्कता नहीं | अपितु यहाँ के लोग अपना अमूल्य समय आंग्ला भाषा में विविध विषय पढ़ने में नष्ट कर देते है | इसी प्रकार आप चीनी और जापानी वेबसाइटो पर जाइए सब कुछ उनका उनकी भाषा में होगा | कुछ लोग कहेगे के ऊपर का जो डब्ल्यू, डब्ल्यू,डब्ल्यू डॉट कॉम रोमन लिपि में होता है उसका क्या ? तों उसके लिए भारतीय प्रद्योगिकी संस्थान कानपुर कार्य कर रही है जल्द इसको भी देवनागिरी में कर लिया जाएगा | फिर आने वाले समय में संस्कृत के नियमों से ही संगडक सूत्र निर्देश (प्रोग्रामिंग) लिखे जाएँगे |
आंग्ला के प्रयोग के कारण से हमारी वैज्ञानिक उन्नति भी रुकी हुई है | क्यों के हम कोई भाषा बोले हम सोचते उसी भाषा में है जो हम अपने माता पिता से सीखते है | एक बार आंग्ला पढते है फिर उसको मस्तिष्क में अनुवाद करते है | धीमे-२ कुछ सरल शब्द बार-२ प्रयोग होने पर अवचेतन में चले जाते है फिर अब उन कार्यों के के लिए अपनी भाषा का प्रयोग करने से बचते है क्यों के वो मष्तिष्क को कठिन लगता है | देखिये कैसे आपके मस्तिष्क से खेला जा रहा है | जो लोग उत्पादन करते है वे हिंदी भाषी जो क्रय करते है वो हिंदी भाषी इसके उपरान्त भी अपने उत्पादों में सब आंग्ला में लिखते है यहाँ तक की स्वदेशी की बात करने वाले उत्पादक भी कहेंगे मज़बूरी तों आप शुरू नहीं करेंगे तों परिवर्तन कैसे आयेगा ? एम.बी.ए जैसी मानद बना दी जहा आंग्ला में आपको सब करना पढ़ रहा है हिंदी भाषी लोगो को हिंदी भाषी उत्पादकों श्रमिकों द्वारा उत्पादित किया हुआ सामान बेचने के लिए | क्यों के जो विदेशी निर्माता व्यवस्थापन में बैठे उनके निर्देशको को सुविधा चाहिए | जब गोरे आये तों उन्होंने इस देश की भाषा सीखी पर जैसे ही उनकी सत्ता हुई उन्होंने अपनी भाषा स्थापित कर दी और यहाँ की भाषा का नाश करने लगे |
यदि संस्कृत को राष्ट्र भाषा बनाना है तों
यदि आप लोग चाहते है के राष्ट्र की संसद वेद मंत्रो से प्रदीप्तमान हों तों हिंदी को निर्विवाद रूप से सर्वमान्य भाषा के रूप में स्थापित करना होगा | हिंदी और संस्कृत दोनों की लिपिया एक ही है, देवनागिरी | का, के, की, सा, के लिए इत्यादि बहुत थोड़े भेद है जो अष्टाध्यायी विधि से संस्कृत सिखने पर समझ अजाएंगे | संस्कृत को स्थापित करने के लिए हमें हिंदी को स्थापित करना ही होगा | प्रांतीय भाषाओ का हमें आदर करना होगा | उनको भी सीखना होगा क्यों के यदि हम पडोसी का दुखदर्द समझने की भावना रखते है तों हमें अपने पडोसी राज्य की समस्या भी समझनी होगी ? जैसे शरीर के अंग होते है उसी प्रकार भारत का हर राज्य अंग है कही भी कोई समस्या होगी तों वो पुरे देश की समस्या होगी | देश के  सर्वाधिक राज्यों में और सर्वाधिक आबादी हिंदी जानती है | जो नहीं जानते कारण सिर्फ इतना के पूर्व के नेताओ ने हिंदी विरोधी आंदोलन चलाया ताकी भविष्य में वे राज्य को राष्ट्र से अलग कर सके |
एक संशय होता लोगो को के मेरे विदेशी मित्र मेरा नाम नहीं समझ पाएंगे यदि हम अपना नाम देवनागिरी में लिखेंगे | तों इसका सरल स उत्तर है के किसी के लिए अपनी भाषा नहीं छोड़ी जाती | ये भी दास मानसिकता का दूसरा प्रकार है | क्या आपका विदेशी मित्र आपके लिए अपनी भाषा अपनी लिपि छोड़ रहा है ? फिर आप में इतना बड़ा बलिदान भाव कैसे ? क्या ये मकोले शिक्षा पद्धति का मोह नहीं ? के लोग आप को कम पढ़ा लिखा समझ सकते है योग्य व्यक्ति की योग्यता छिपती नहीं | आंग्ला में ही सब देश के कानूनों को एंग्लो कानूनों से छायाप्रति कर के देश के सत्य का नाश किया गया है |
तों आप क्या करे ?
१.       शुद्ध हिंदी भाषा का सर्वाधिक प्रयोग सर्वाधिक स्थानों पर करे | उर्दु फ़ारसी के शब्दों से धीमे-२ अभ्यास कर के बाहर आइये | आंग्ला भाषा का प्रयोग केवल विवशतावश ही करिये |
२.       दक्षिण भारत से लेकर किसी भी अन्य राज्य की एक भाषा को सीखने का प्रयास करिये | जब सीख जाये तों दूसरे को सिखाइये |
३.       अंतरजाल पर, फेसबुक और ट्विटर इत्यादि पर हिंदी की देवनागिरी लिपि में अपना नाम करिये | इस से आपके नाम में उच्चारण दोष भी नहीं उत्पन्न होगा | और आप में अपनी भाषा के प्रति स्वाभिमान भी दिखेगा | हिंदी में टंकण करने के लिए आप इसकी सहायता ले सकते है
http://www.google.com/inputtools/windows/
४.       हिंदी में खोजना सीखे | हिंदी में गूगल करे | और ये न समझे के गूगल ने आपकी सुविधा आपके लिए दे रखी है | उन्होंने ये विभिन्न सुविधाए अपने लाभ के लिए रखी है | उन्हें जनाना है के कही आपमें भाषा के स्वाभिमान के प्रति कोई आन्दोलन तों नहीं उठ रहा |
५.       यदि आप पूंजीपति है तों हिंदी में अभियांत्रिकी महाविद्यालय खोले बहुत चलेगा | देश का बड़ा वर्ग हिंदी में उच्च शिक्षा लेना चाहता है और अधिकतर विद्यार्थी इसलिए फेल हों जाते है क्यों के उन्हें आंग्ला नहीं आती | सभी विकसित देश अपनी उच्च शिक्षा अपनी भाषा में ही करते है | आंग्ला तों केवल उन देशो में प्रचारित है जो बर्तानिया उपनिवेश रहा |
६.       यदि आप शिक्षा क्षेत्र से है या शोध विद्यार्थी है तों अपना शोध प्रबंध हिंदी में लिखे | हिंदी में पुस्तके लिखे | ये विद्यार्थियों के अवचेतन में संस्कृत शब्दों के संस्कार डालेगी | हिंदी में ही सारे लेख लिखे |
७.       कही भी आंग्ला प्रयोग ना करे ना अपने प्रिय जानो को करने  दे | जो करते है उन्हें समझाए क्यों के विदेशी सोच अधिक दिनों तक किसी भी देश में रह नहीं सकती |
इस लेख को पढ़ कर चिंतन करे और बुद्धि अनुकूल आत्मनुकुल विषयों को स्वीकार करे | यदि लगे के हिंदी हमारा स्वाभिमान है तों हिंदी का सत्कार करे उसका अधिकाधिक प्रयोग कर के | यदि इस लेख को आप फेसबुक इत्यादि पर अपना नाम देवनागिरी लिपि में कर लेते है तों कृपया इसकी सुचना हमें टिप्पणी के रूप में नीचे दे | धन्यवाद
नमस्ते

Labels:

सुख का आधार वर्णाश्रम व्यवस्था (आर्थिक दृष्टिकोण)

आज आपको कितना भी लगे कि हम पुरानी व्यवस्था के बारे मे जानते है वो कम ही रहेगा | व्यवस्थाए आपस मे जुडी थी और सब कुछ जुड़ा था धर्म से और धर्म सुख का कारक है इसके अतिरिक्त और कोई मार्ग सुख कि प्राप्ति नही करा सकता | लोग वर्ण व्यवस्था के बिगड़े रूप को जाती व्यवस्था समझने लगे है जो ठीक नही | जाती व्यवस्था जो के ज्ञाति व्यवस्था कही जाती चाहिए वो भी उत्तम थी और वर्ण व्यवस्था का एक भाग मात्र थी जिस पर हम पूर्व मे लेख दे चुके है | वर्णाश्रम व्यवस्था का मूल ध्येय समाज मे सभी को ब्राह्मण बनने का अवसर देकर ब्रह्म कि प्राप्ति कराना था | आर्यो का पूरा वैदिक समाज इस व्यवस्था के महत्व को समझता था इसलिए जैसे-जैसे वर्णों कि उत्पत्ति होती गई वर्ण व्यवस्था कि रक्षा कि गई | जो इसे नहीं मानते थे वो असुर समाज कि रक्षा के लिए बाहर कर दिए जाते थे पर सत्यता तो ये है के दुनिया का कोई भी वर्ग ले-ले हम, चार वर्णों के अतिरिक्त कोई पाचव वर्ण नही मिलेगा किसी को भी नही | आर्यो मे भी ये वर्ण हुए और दस्यु मे भी ये वर्ण हुए |
वर्ण व्यवस्था आश्रम व्यवस्था के साथ चलती है केवल एक व्यवस्था से इस व्यवस्था का ध्येय नही पूर्ण हों सकता | वर्ण व्यवस्था तो असुर समाज% मे भी चल रही है पर आश्रम व्यवस्था खत्म हों गई है | पहले हम चार वर्णों को समझेंगे तत्पश्चात वर्णाश्रम व्यवस्था को समझेंगे | सृष्टि कि आदि मे केवल एक वर्ण था ब्राह्मण जो के अमैथूनी सृष्टि से उत्पन्न हुए थे | उत्तम शरीर युक्त उत्तम जीवात्माए | संख्या बढ़ी तो फलो के स्थान पर भोजन मे अन्न के सेवन का अनुपात बढा परिणामतः प्रमाद* बढा, अनुशासनहीन लोग होने लगे | ऋषियों ने मुक्तिमार्ग को सुरक्षित रखने के लिए राजा कि आवयश्कता समझी, कई ऋषियों से निवेदन किया गया पर एक के बाद एक ने मना कर दिया फिर महर्षि मनु के पास आये उन्होंने भी औरो कि तरह मना कर दिया | पर प्रजा पीछे पड गई जन कल्याण और अति निवेदन के कारण उन्होंने राजा बनाना स्वीकार किया | उन्होंने पुनः पूर्ण धर्म कि स्थापना कि | लोकतंत्र वो भी था अर्थात लोक मे व्यवस्था पर वो वेदानुकूल थी | दुष्टों ने देवता नही चुने देवताओ से भी उत्तम ऋषियों ने सर्वोत्तम ऋषियों का चयन किया था | महर्षि के पुत्र से सूर्य वंश और पुत्री से चन्द्र वंश चला | पहले शासक ब्राह्मण ऋषि हुए पर जब राजाओ कि आवयश्कता बढ़ गई तो फिर सामाजिक आवयश्कताओ को देखते हुए क्षत्रिय वर्ण का निर्माण किया गया | गुरुकुल मे भोजन और शिक्षा मे थोडा भेद कर के क्षत्रिय निर्माण किया जाने लगा | पर राजा भी अपने कर्तव्य पालन के बाद संन्यास लेते और ऋषित्व कि प्राप्ति का प्रयास करते | और जनसंख्या बढ़ी तो राज्यों का विस्तार हुआ चक्रवर्ती राज्य कि स्थापना हुई पूरी दुनिया का राजा आर्यवर्त का राजा होता था | महाराज युधिस्ठिर आखिरी चक्रवर्ती राजा हुए | अब तक कृषि सभी करते थे पर सामाजिक आवयकताओ के बढने से वैश्य वर्ण कि और अनुवाशिक गुणसूत्रो के सही क्रम मे आगे ना जाने से शुद्र वर्ण कि रचना हूई | वैश्य गौ पालन और कृषि करते थे और जो सिखाने से भी ना सिख पाए वे शुद्र कहलाये पर विद्वानों के संग मे रहने का उन्हें अवसर मिल सके ताकि पुनः वे किसी वर्ण का चयन कर सके | शुद्र के ब्राह्मण बनने का निकट इतिहास मे महाकवि कालिदास जी से उत्तम उदाहरण क्या होगा | यद्दपि उन्होंने आर्ष ग्रंथो के स्थान पर साहित्यिक कृतिया करी पर उनकी उत्तम साहित्यिक बुद्धि कि दक्षता सभी को स्वीकार है | कृषि करने का आदेश सभी मनुष्यों के लिए वेदों मे होने से सभी लोग कृषि करते थे | ब्राह्मण से लेकर राजा तक | भला हमारे खाने का अन्न कोई और क्यों उगाए और संभव है शुद्र वर्ण के निर्माण मे बाद अन्न कि आवयश्कता कि अधिकता होने से वैश्य वर्ण उसे पूरा कर्ता रहा | अन्य वर्णों ने अपने ध्येय नही छोड़े | ब्राह्मण यज्ञ करना-कराना#, वेदों का पढ़ना पढ़ाना, दान लेना और देना इन ६ कर्मो को कर्ता रहा | क्षत्रिय ब्राह्मण और गौ कि रक्षा करना एवं समाज के सभी वर्णों कि रक्षा करने का कर्तव्य कर्ता रहा | वैश्य कृषि और गौपालन इत्यादि मे लगा | शुद्र ब्राह्मण सेवा मे लगा ताकि समय के साथ विद्यावान हों सके |
मनुष्य सुख चाहता है सुख धर्म से आता है धर्म वेद का है अतः ये सभी वर्ण आश्रम व्यवस्था का पालन करते रहे | बाल्यकाल मे सभी के बच्चे ५ या ८ वर्ष मे गुरुकुल भेजे जाते और वे ब्रह्मचर्य पूर्वक २५ वर्ष या उस से अधिक विद्या एवं शिक्षा को गृहण करते | ब्रह्मचर्य के दो अर्थ है ब्रह्म को व्यापक मान कर उस मे विचरण अर्थात सदैव वेदानुकूल आचरण करना | इसी अर्थ को थोडा विस्तार से समझने के लिए दूसरा अर्थ किया गया शरीर के वीर्य को शरीर मे खपाना | ऐसा इसलिए किया जाता था क्यों के उत्तम संताने उत्पन्न हों सके और लोग भी दीर्घजीवी रहे | देखिये महाभारत मे पितामह भीष्म अपने ब्रह्मचर्य के बल पर १७२ वर्ष कि आयु मे युवा पांडवो समेत पूरी पांडव सेना पर भारी पड़े थे और प्राणों पर पूर्ण नियंत्रण पाये हुए थे | इसके साथ-२ उत्तम संतान शुक्र धातु कि उत्तमता से होती है | क्यों के बालक कि पहली कोशिका जाइगोट कि यदि स्वस्थ@ होगी तो वो पुरे जीवन बल और बुद्धियुक्त रहेगा | इसलिए ब्रह्मचर्य आश्रम के साथ शिक्षा और विद्या का गृहण किया जाता था | २५ वर्ष तक शिक्षा एवं विद्या गृहण कर के क्षात्र अपना वर्ण निर्धारित कर्ता था | आज के समय मे जब हम असुरिय शिक्षा तंत्र मे फसे हैं ब्रह्मचर्य के साथ अध्यन, पूर्व जन्मो के संस्कार के कारण करना भी चाहे तो तंत्र उसे नही करने देगा | सह-शिक्षा(कोएजुकेशन), सेक्स शिक्षा जैसे ढोंग ऊपर से टीवी, अंतरजाल (इन्टरनेट) इत्यादि मनुष्य दुखी तो होगा ही |
जो भी वर्ण ब्रह्मचारी गृहण कर्ता वो गृहस्थ मे रह कर उसका अभ्यास कर्ता रहता | दान कर्ता और संयम अर्थात धारणा, ध्यान एवं समाधि के अभ्यास के हेतु मे लगा रहता | अपनी ही पत्नी से उत्तम काल मे उत्तम संतान हेतु प्रजनन कर्ता | सबसे बड़ा और सबसे महान आश्रम होता था है गृहस्थ एकतो अपने वर्ण का पालन दूसरा राज व्यवस्था को एवं समाज को ब्राह्मणों को सारा दान गृहस्थ आश्रम से ही आता था क्यों के बाकी के तीनो आश्रम विद्या से जुड़े थे केवल ये आश्रम शिक्षा से जुड़ा हुआ था | पति पत्नी एकदूसरे के मोक्ष मे सहायक होते थे | आज के समय मे पति का पत्नी से प्रेम और पत्नी का पति से प्रेम मुक्ति के भाव से कम और आर्थिक कारणों से अधिक रहता हैं | दान के भाव तो लोगो मे वैसे भी न्यून हों गए क्यों के आंग्ल लोगो कि कर व्यवस्था मे लोग बुरी तरह फसे हुए है | समाज अब दान से नहीं अंग्रेजो के समय से जबरदस्ती लगाए हुए कर और उनके द्वारा बनाये गए निकाय मे बनी उत्कोच(रिश्वत) व्यवस्था से चलता है | और गृहस्थ मे ही पुरे जीवन दम्पति फसे रहते है वानप्रस्थ को जाते ही नही | हा कुछ एक जिन्हें ज्ञान नही वे सीधे संन्यास ले लेते है जो के वैदिक व्यवस्था के नियमों के प्रतिकूल है | संन्यास कहते है अलग होने को, प्रकृति से परमात्मा के लिए | बस भगवा पहन लेने से संन्यास नही होता उस से पहले एक बड़ा आश्रम है वानप्रस्थ | हा ब्रह्मचर्य आश्रम से सीधे सन्यास लेने वाले अनेक महापुरुषों के उदाहरण मिलेंगे पर आज के आडम्बर काल मे इसमें भी अपवाद मिल जायेंगे |
वानप्रस्थ अर्थात वन को प्रस्थान एवं संन्यास कि तैयारी करी जाती | यहाँ वर्ण किसी का कोई भी हों हर कोई ब्राह्मण बनने का अभ्यास कर्ता | सत्यार्थ प्रकाश मे कई लोग महर्षि दयानंद के मनुस्मृति के श्लोक पर प्रश्न करते है जिसमे मनु महाराज आदेश करते है के संन्यास केवल ब्राह्मण ले सकता है | भगवान मनु ने एकदम सही लिखा है केवल ब्राह्मण संन्यास ले सकता है | ब्राह्मण अर्थात जिसे ब्रह्म का ज्ञान हों गया है | वानप्रस्थ मे अन्य वर्ण वाले योगाभ्यास से ब्राह्मण वर्ण के लिए अभ्यास करते और मोक्ष के लिए प्रयास करते है | अब प्रश्न ये उठता है के वानप्रस्थ से संन्यास को कब जाए तो इसका उत्तर है जब आत्म साक्षात्कार कि स्तिथि मे पहुच जाए | इसीलिए भगवा धारण किया जाता है के अग्नि स्वरुप हों गया | यानी समाधि कि स्तिथि मे पहुचने लगा योगी, अग्निमय हों गया | क्रन्तिकारी जो रंग दे बसंती चोला गाते उसका यही अर्थ लिया जा सकता है के वे अपने त्याग के वस्त्र को अपने रक्त के रंग से रंगने को उद्दत है | वानप्रस्थ के महत्व को कम न समझे वानप्रस्थ मे शिक्षा का दान भी होता रहा | समाज आधीन शिक्षा व्यवस्था मे सबको शिक्षवान एवं विद्यावान बनाने का काम ब्राह्मण करते थे | परन्तु अन्य वर्णों के लोग अपनी शिक्षा का दान वानप्रस्थ मे करते | आज विश्व बैंक से ऋण लेकर प्राथमिक विद्यालय चलाये जा रहे, उच्च एवं तकनिकी शिक्षा का भी हाल कुछ ऐसा ही हैं | यही यदि गुरुकुल होते और आश्रम व्यवस्था होती तो बिना एक भी रुपया ऋण लिए सब पढते और आगे बढते | उदाहरण के लिए समझे के किसी रथ बनाने वाले बढई या हथियार बनाने वाले लोहार ने यदि वानप्रस्थ लिया और यदि योग विद्या के लिए वह किसी कुलपति$ ऋषि के आश्रम मे जाता है तो यदि वह उस ऋषि से योग विद्या के सूक्ष्म सूत्र मिले बदले मे वह अपनी विद्या का दान विद्यार्थियो को कर सकता है क्यों के वो आचार्यो ब्राह्मणों का समय लेता हैं | पूरी व्यवस्था दान पर चलती थी, अद्भुत उदाहरण त्याग और दानशीलता का वैदिक अर्थ एवं राज व्यवस्था मे दिखता था | अब लालच और स्वार्थ तंत्र है चारों ओर केन्द्र एवं राज्य सरकारे ऋण मे दबी है अब वे बैंकिंग विस्तार कर के हर व्यक्ति को ऋण मे डालना चाहती हैं | घाटे के बजट साल दर डाल से बनते आरहे है | राज्य सरकार के पास पैसा नही होता वेतन देने का प्राथमिक शिक्षकों को हर तीन मास मे वेतन आता है उनका | इसका परिणाम होगा क्या जब बैंक और विदेशी ऋण एक सीमा से पार हों जाएगा तब विदेशी निवेश प्राथमिक शिक्षा तक आजाएगा | अभी तो विचारक थोड़े ही सही उत्पन्न हों रहे है विद्यालयों मे तब दासों का निर्माण होगा और भी बड़े स्तर पर | यानी वर्ण-आश्रम व्यवस्था के नष्ट होने से राष्ट्र पर ही नही लोगो कि निजी स्वाधीनता पर भी संकट आता है और आया है | बस ये उतनी तीव्र गति से नही होता इसलिए लोग सजग नही रहते और इसे होने देते है |
संन्यास मे योगी प्रचार करता अपनी मुक्ति का प्रयास कर्ता दूसरों को भी मुक्ति के मार्ग के लिए उद्दत कर्ता | देखिये महर्षि दयानंद ने क्या किया महर्षि पत्तांजलि का योग का मार्ग मोक्ष के लिए वेदानुकूल बताया | गुरुकुल खुलवाए, व्याकरण के विद्वान खड़े किये, गौ रक्षा का बहुत बड़ा प्रयास किया | अपनी ऋतंभरा बुद्धि से हमें अपना साहित्य उपलब्ध कराया | सत्यार्थ प्रकाश मे स्पष्ट उद्घोष किया के दुनिया के जितने भी संप्रदाय एवं मत है उनमे जो जो भी अच्छी बात है सब पूर्व मे वेद मे कही जा चुकी अतः वेद से ली हुई है उसमे कुछ भी नया नहीं | सत्य मत वेद मत है डंके कि चोट पर स्थापित किया | सोचिये एक विशुद्ध सन्यासी क्या नही कर सकता है | इसी प्रकार यदि पुनः संन्यास कि व्यवस्था का पालन किया जाए तो हम आर्यो को चक्रवर्ती राज्य कि स्थापना करने मे अधिक वर्ष नही लगेंगे | सिर्फ भगवा पहन लेने से कोई सन्यासी नही हों जाता | देखिये स्वामी श्रद्धानंद जी ने गुरुकुल कांगडी कि स्थापना के १७ वर्ष बाद संन्यास लिया और जामा मस्जिद से वेद मन्त्र बोले | २० लाख से ऊपर मुस्लिमो कि शुद्धि कि और ९० सहस्त्र से ऊपर ईसाइयो कि शुद्धि कि | तो सन्यासी जब साधना नही कर्ता और लोक मे प्रचार कर्ता है या समाज का उद्धार कर्ता तो समाज को लाभ होता है ना के समाज के धन का दोहन होता है | ये हम पर है के हम इस वर्णाश्रम व्यवास्था को आगे बढाते रहे | आर्यो का शासन तो आएगा ही तब तक इसे आगे बढाना है |
वेद का ब्राह्मणों मुख्मासी वाले मन्त्र कि उत्तम व्याख्या ऋषि दयानंद ने कि है | उसके उपरान्त भी लोग सवाल उठाते के शुद्र को पैरों कि संज्ञा दे दि गई | पैर और पेट मिले होते है और क्या बिना पैरों के प्रयोग के भोजन पच सकता है ? यदि भोजन नही पचेगा शरीर मे तो मस्तिष्क को भी उर्जा नही मिलेगी और रोग उत्पन्न होंगे | रक्षक समाज को छाती और बाहू कि तुलना है पर सभी है एक शरीर के अंग | कल्पना करिये किसी के भी बिना जीवन असंभव | और वामपंथी इतिहासकार परिश्रमी शुद्रो को आर्यो के समाज से बाहर दिखाते रहे है | और जो हमने व्याख्या दि के सबको ब्राह्मण बनाना है तो प्राणों को समाधी अवस्था मे सहस्त्रसार मे लाना होता है मुक्ति हेतु इसी प्रकार सभी को ब्राह्मण बनने का प्रयास करना चाहिए वानप्रस्थ आश्रम मे |
इस लेख से अन्य तीन संशय स्पष्ट हों जाने चाहिए के क्यों कहा जाता है के सन्यासी से उसकी जाती नही पूछी जाती | क्यों के सन्यासी (वेदानुकूल जिसने सन्यास लिया) वर्णित ब्राह्मण ही होता है | दूसरा जो लोग सत्यार्थ प्रकाश मे दिए गए मनु स्मृति के प्रमाण पर प्रश्न करते के केवल ब्राह्मण सन्यास ले सकता है | वर्णाश्रम व्यवस्था का ध्येय ही सबको ब्राह्मण बनाना है | तीसरा के वेद मन्त्र समय के साथ आये ना के आदि सृष्टि इसका भी निस्तारण हों जाता है | वेद आदि सृष्टि मे ही आये उन मंत्रो कि समाज के अनुसार व्याख्या समय के साथ ब्राह्मण ऋषियों ने कि | आर्यो का समाज आदि सृष्टि से ही ब्राह्मणवादी समाज रहा है | कोई कितना ही बड़ा राजा क्यों ना हुआ हों समय आने पर संन्यास आश्रम मे आकार उसकी मर्यादा पालन सभी महान राजाओ ने किया | महाराज भृतहरि का ही उदाहरण लीजिए | हमें पुनः मुमुक्षु, ब्राह्मणवादी, वेद वादी समाज कि स्थापना करनी है | यही आर्य समाज का एवं सनातन धर्म के पालन का ध्येय है |
सर्वे भवन्तु ब्राह्मणः, सर्वे भवन्तु सुखिनः
ओ३म्
*अन्न से प्रमाद अर्थात कार्बोहाइड्रेट गेहू चावल का सेवन बढ़ा फलो कि तुलना मे |
#यज्ञ केवल हवन ही नही, कोई आविष्कार करना, विवाह करना, संतान उत्पन्न करना | जिस से समाज का कल्याण हों वो यज्ञ कहा जा सकता |
@शुक्राणु मे जो सूक्ष्म तत्व होते है वे सब कोशिका कि दीवार से लेकर आंतरिक संरचना मे प्रयोग होते है | अतः उन सूक्ष्म तत्वों का घनत्व अधिक रखा जाता है ब्रह्मचर्य से क्यों के मूल कोशिका स्वस्थ होनी चाहिए |
%समाज कोई भी हों बौधिक,शारीरिक,व्यवसायिक और श्रामिक(लेबर) वर्ग मे ही बटता है इसके अतिरिक्त और वर्ग नही बनते | होलीवुड मे वर्ण व्यवस्था के सिद्धांत के बिगड़े रूप पर ही फैक्शन व्यवस्था का नाम देते हुए “डाईवेर्जेंट” नाम का चलचित्र बनाया गया है |

Labels:

१५ अगस्त : उपगणराज्य दिवस कहिये ना के स्वतंत्रता दिवस

Video version available
https://www.youtube.com/watch?v=_QOQdmvFXR8

१५ अगस्त ही क्यों ?
६ अगस्त को हिरोशिमा पर पहला परमाणु बम गिराया गया | जापान के राजा ने सिहासन नहीं छोड़ा | ९ अगस्त को दूसरा नगर नागासाकी दूसरे परमाणु बम से पूर्णतः विध्वंस कर दिया गया | इस बार सन्देश और स्पष्ट था के यदि राजतंत्र हटा कर लोकतंत्र नहीं लाये जापान मे, तो कोई जनता ही नही रहेगी राजा के पास हम एक के बाद एक आपके नगर विध्वंस कर देंगे | जापान के राजा ने अपने सामर्थ्य अनुसार प्रजा कि रक्षा का कर्तव्य निभाया और १५ अगस्त को समर्पण कर दिया | १५ अगस्त को जापान के राजा द्वारा समर्पण के साथ ही द्वतीय विश्व युद्ध का अंत हुआ | असंख्य नागरिको को मारने वालो ने मानवाधिकार का गठन किया | आंग्ल लोगो के लिए भी ये दिन विशेष हों गया |
१९४६ का नेवी,एयरफोर्स एवं क्षेत्रिय पुलिस का विद्रोह
१८ फरबरी १९४६ को उस काल मे कही जाने वाली रोयल इंडियन नेवी के जवानो ने विद्रोह कर दिया | अनेको कारण थे पर सबसे बड़ा कारण ये था सेना के जवानो को कांग्रेस का स्वराज्य प्राप्ति का आडम्बर पता चल गया था | आजाद हिंद फ़ौज के सिपाहियों के विरुद्ध लाल किले मे अभीयोग तो चल ही रहा था वो भी असंतोष का कारण था और आजाद हिंद फ़ौज के सिपाही प्रेरणा श्रोत बन गए थे | एक दम स्पष्ट था के अब अगर कांग्रेस पर छोड़ दिया तो कभी भी स्वतंत्रता नही मिलेगी |मुंबई से प्रारंभ हुआ ये विद्रोह हड़ताल के रूप मे था | पर शीघ्र ही ये सभी जगह फ़ैल गया था | देश भर के २० किनारों पर ७८ जहाज और २०००० नाविक इसमें सम्मलित हुए | ब्रिटिश रोयल नेवी ने इनके विरुद्ध कार्यवाही कि | इसमें सरकारी तौर पर ७ जवान बलिदान हों गए | ये विद्रोह बढ़ गया और २० फरबरी को कानपुर से कराची तक रोयल इंडियन एयरफ़ोर्स के ६० हवाई अड्डों पर ५०००० कर्मचारी भी साथ जुड गए | क्षेत्रिय पुलिस भी सम्मलित हों गई | जनता तो जुडी थी ही जब जहाजों पर रसद का अभाव हुआ तो भिखारियो ने चंदा जमा कर के उनकी सहायता करी | पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने ही इस विद्रोह कि निंदा करी | अब समझिए के ये दोनों दल किसके हित चाहने वाले थे ? श्री मोहनदास गाँधी ने तो यहाँ तक कहा के यदि जवानो को समस्या थी तो वे अपना त्यागपत्र दे देते | ध्यान देने योग्य बात है के ये सब वीर सावरकर कि तैयारियो का परिणाम था जो शुरू से कहते आरहे थे के हथियार तो पकड़ो समय आने पर बन्दुक कि नोक किस तरफ मोडनी है समझ आजाएगा | इसी कारण आजाद हिंद फ़ौज खड़ी हों पाई, वीर सवारकर का ही सुझाव था श्री शुभाष चन्द्र वसु जी को के श्री रास बिहारी वसु जी जापान मे तैयार बैठे है | जिसका श्री शुभाष जी ने रेडियो पर अपने अंतिम भाषण मे आभार भी व्यक्त किया |
श्री वल्लभ पटेल और मोहम्मद अली जिना के नेतृत्व मे अधिकारियो से बात कर के हड़ताल खत्म कराइ गई | जो के बाद मे उन अधिकारियों ने अपने साथ छलावा ही कहा | अब नेहरु और गांधी तो साहस करते नहीं सेना के अधिकारियो से मिलने के लिए क्यों के लोग जान चुके थे इनके बारे मे | पर हुआ वही जो नेहरु और गांधी करते | कोर्ट मार्शल का दौर चला | आंग्ल लोगो के जाने के बाद भी किसी को वापस सेवा मे नहीं रखा गया | यानी जिनके कारण आंग्ल लोगो के हाथ पाँव फुले और जिन्होंने १८५७ कि क्रान्ति कि पुनार्विभिसिका कि संभवाना आंग्ल लोगो को समझा दी हमारी कथित स्वंतत्र भारत कि सरकार ने उन्ही वीरो को प्रताड़ित किया गया | ये सिद्ध करने के लिए पर्याप्त था के काले अंग्रेज गोरो के लिए अत्याधिक निष्ठावान रहेंगे इन्डियन डोमिनियन मे यानी भारतीय उपगणराज्य मे |
१८५७ कि क्रान्ति का भय
आंग्ल लोग ये तो शुरू से ही जानते थे के वे अधिक दिनों तक यहाँ नही रह सकते अतः उन्होंने इंडियन एजुकेशन एक्ट १८३५ मे बनाया था | पर इसके उपरान्त भी पीढ़ी दर पीढ़ी सहस्त्रो वर्षों से गुरुकुल शिक्षा के संस्कारो को कैसे खत्म करे उन्हें नही पता था | जब १८५७ कि क्रान्ति हुई आंग्ल लोगो का जडमूल से नाश कर दिया गया | उंगलियो पर गिने जाने लायक अंग्रेज बचे थे | भारतीय राजाओ ने चिठ्ठी लिख कर उन्हें सहायता और अभय रहने का आश्वासन दिया और गोरो को २ साल लग गए युद्ध खत्म करने मे, तात्या टोपे जैसा शूरवीर सेना नायक जिसने धुल चटा दी, अंग्रेज जनरल आते थे और मरते थे और हमारा सेनापति वही का वही रहता था | उन्हें भी धोखे से पकड़ा गया और फ़ासी पर टांग दिया गया | नाना साहब पेशवा कि लड़की वीर मैना को जीवित जला दिया गया स्त्रियों को जीवित जलाने मे तो अंग्रेजो को सैकडो वर्षों का अनुभव है | पर उस वीरंगना से वे कुछ भी ना जान पाए | नाना साहब पेशवा कभी पकडे नहीं गए | वीर कुवर सिंह ८५ वर्ष कि आयु मे अद्भुत सैन्य नेतृत्व कर्ता थे पर हाथ मे क्षेपणी(गोली) लगने के कारण उन्होंने खुद ही तलवार से अपना हाथ काट डाला | संभवतः उन्हें गैंग्रीन हुआ होगा जिसके कारण उनका देहांत हों गया | १८६० से आंग्ल लोगो ने व्यापक परिवर्तन किए उन्हें समझ आगया के उनको तरीके बदलने होंगे अन्यथा अगली बार के विद्रोह मे इंग्लैंड मे पीढ़ी बढाने को कोई ना बचेगा | उन्होंने इन्डियन पुलिस एक्ट बनाया, सिविल सर्विसेस एक्ट बनाया, इंडियन पीनल कोड बनाया, सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट बनाया इत्यादि अनेको अनेक कानून बनाये जो आज दिन भी वैसे के वैसे ही थे |
योगी का आगमन
परमात्मा कि कृपा सदैव से रही है जब हर स्तर पर हमारे समाज पर हमारे अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगाने वाला हमला हों रहा था तब ऐसा व्याकरण का महापंडित जो बाद मे सिद्ध योगी हुआ का प्रादुर्भाव हुआ जिसने ऋषि परंपरा को फिर से जीवित कर दिया | जैसे अगस्तस्य ऋषि के सामने रावण का भी साहस नहीं होता था ऐसे ही एक मुमुक्षु सन्यासी जो स्वामी और फिर महर्षि दयानंद कहलाया |  १९०० के बाद के लगभग सभी  क्रांतिकारीयो के मूल मे ऋषि दयानंद थे जिन्हें सब गर्व से स्वीकार करते थे | लगभग ८० प्रतिशत क्रन्तिकारी आर्य समाज से जुड़ा हुआ था | इस बात के अनेको प्रमाण मिलते है के महर्षि दयानंद ने सीधे १८५७ कि क्रान्ति मे सशस्त्र विद्रोह मे भाग लिया था | वास्तव मे ये सन्यासीयो द्वारा प्रायोजित विद्रोह ही था जिसकी तैयारी १८५४ से चल रही थी | परिणाम भी उसी अनुरूप मिले पर जैसा के ऋषि ने कहा ही है के भाइयो कि फूट | विरजानंद के आश्रम से निकलने के बाद स्वामी दयानंद ने ५ वर्षों मे लगभग ९ गुरुकुल खुलवाए पर वो अर्थाभाव मे चले नहीं | कारण था, अंग्रेजो को यही तो तोडना था गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था | उन्होंने और तप किया | शनैः-शनैः उनकी विद्वता और प्रसिद्धि सर्वत्र थी | महर्षि दयानंद कि लिखी “आर्याभिविनय” क्रांतिकारियों कि गीता कही जाने लगी |
१८७५ मे आर्य समाज कि स्थापना हुई | वाइसरॉय से महर्षि दयानंद कि चर्चा के बाद से ऋषि पर बराबर जासूसी कि जाने लगी क्यों के अंग्रेजो का कैसा भी प्रयास काम नही किया | और“सत्यार्थ प्रकाश” मे स्वराज्य कि बात इतने खुल कर लिखना | विदेशी शासन का स्थान-२ पर विरोध अंग्रेजो के लिए खतरे कि घंटी था | राज व्यवस्था को इतने सूक्ष्म स्तर पर समझने वाले ऋषि दयानंद ने वैदिक राज व्यवस्था का ना केवल वेद से प्रमाण दिया वेदों मे विमान विद्या,तार विद्या, परमाणु विज्ञान अपने ग्रन्थ“ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका” मे दिखा कर अंग्रेजो के झूठ वेद गडरियो के गीत इस बात कि धज्जिया उड़ा दी | उनके रहते आर्य बाहर से आये अधिक प्रचारित ना कर पाए क्यों के ऋषि ने राष्ट्रवादी संघठन “आर्य समाज” कि स्थापना कि | १८८३ मे जब आंग्ल लोगो ने उनकी हत्या कराई वे गौ रक्षा के लिए १ करोड लोगो के हस्ताक्षरी अभियान चला रहे थे | उनकी मृत्यु के बाद तो आंग्ल लोगो कि तो जैसे चांदी हों गई | उन्होंने अपने विचारों को स्थापित करने के लिए शैतानी संघठन फ्री मेसनरी से जुड़े व्यक्ति को १८९३ मे शिकागो पंहुचाया | सेक्युलारिस्म कि नीव डलवाने का प्रयास किया, वैदिक धर्म मे गौ मांस, राम कृष्ण कभी हुए नहीं इन बातो को सिद्ध करना चाहते थे भगवाधारी के मुख से कहला कर पर उस समय ये चल नहीं पाया | इधर आर्य समाज मे जो गुरुकुलो कि स्थापना का विचार चल रहा तथा उसका विरोध आंग्ला लोगो से सहानभूति रखने वालो ने किया और देखिये आंग्ला का विरोध करने वाले दयानंद के नाम के बाद एंग्लो और वेद का विरोध करने वालो को वैदिक से पहले एंग्लो इस प्रकार “दयानंद एंग्लो वैदिक” जो संछेप मे डी.ए.वी कहा गया कि स्थापना कि गई जो आज सरकार द्वारा अधिगृहित है सहायता के नाम पर |
कांग्रेस कि स्थापना
ह्यूम कि जिस रिपोर्ट मे सन्यासी विद्रोह का वर्णन आता है जिसके कारण वो कांग्रेस कि स्थापना कि संस्तुति कर रहा था उसके पीछे ऋषि दयानंद का ही हाथ था | निश्चित तौर पर अन्य साधू सन्यासी भी पूर्ण सहयोग दे रहे होंगे क्यों के सबसे अधिक जनबल महर्षि दयानंद के पास ही था |  और महर्षि दयानंद कि ऋतम्भरा बुद्धि केवल अध्यात्म तक सिमित ना थी | इंग्लैण्ड मे इण्डिया हाउस कि स्थापना करने वाले श्याम जी कृष्ण वर्मा ऋषि दयानंद कि उत्तराधिकारी सभा के सदस्य थे | इण्डिया हाउस क्रांतिकारियों का गड था वही से वीर सावरकर ने १८५७ कि स्वातंत्रता समर लिख कर और फ्रेंच मे अनुवादित कर के फैलाई थी | तो अंग्रेजो को ऐसा मंच चाहिए था जिसमे जनता का विश्वास हों सके और जिसके कारण जनता सशस्त्र विद्रोह ना करे | कांग्रेस का ध्येय गोरो के प्राण बचाना था और अंग्रेजो को उस समय तक डोमिनियन व्यवस्था का सिद्धांत भी समझ आने लगा था |
डोमिनियन का विचार अच्छे से १८८८ तक उनके विचार मे आगया था प्रमाण स्वरुप डफरिन के विचार वाला ये दस्तावेज देखे जो मैं बगल मे दे रहा हू, इंडियन आशा से अधिक गुलाम निकले कर प्रणाली का कभी विरोध ही नहीं किया चोरी के नए तारिक अवश्य निकाले | वापस विषय पर आते है, कांग्रेस ने वही किया, जब भी कोई छलावे मे आया देशभक्त नेता कांग्रेस से जुड कर वास्तविक स्वराज्य कि मांग कर्ता तो वर्षों के लिए जेल मे डाल दिया जाता | श्री तिलक, श्री अरबिंदो इसके उदारहण थे | प्रफुल चाकी और खुदीराम वसु के चीफ प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड को मारने के प्रयास को तिलक ने सही ठहराया | जिसके कारण उन्हें जेल मे ६ वर्ष १९०८ से १९१४ तक डाल दिया गया | जेल काट के निकले तो कांग्रेस मे दुबारा मुश्किल से जगह बना पाए क्यों के जो बैठे थे वो अंग्रेजो के चाटुकार थे | १९१५ तक गोखले के जीवित रहते उनका कांग्रेस मे वापस आना मुश्किल ही रहा | १ अगस्त १९२० को मरते ही मोहनदास गाँधी का भाग्य चमक गया और कांग्रेस कि कमान उनके हाथ मे आगई | असहयोग आन्दोलन चला और २ वर्षों मे अंग्रेज डोमिनियन देने कि सोचने लगे | पर वैसे ही ५ फरबरी चौरी चौरा कि घटना हुई | कांग्रेस इसी को रोकने के लिए तो बनी थी गांधी ने अपना कर्तव्य निभाया १ सप्ताह मे यानी १२ फरबरी को आंदोलन वापस ले लिया | फिर चितरंजनदास और मोतीलाल ने १९२३ मे स्वराज्य पार्टी बनाई तो क्रांतिवीर सचिंद्रनाथ सान्याल और अमर बलिदानी क्रांतिवीर पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जी ने १९२४ मे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन बनाई क्यों के कांग्रेस का ध्येय लोग समझ चुके थे | यहाँ तक के चौरी चौरा कांड के लिए २२८ लोगो पर आरोप लगे १७२ क्रांतिकारियो को फ़ासी कि सजा हुई | मदन मोहन मालवीय जी ने जो के अधिवक्ता के तौर पर सन्यास ले चुके थे उनका केस लड़ा और १५० के करीब लोगो को फ़ासी के फंदे से बचाया पर फिर भी गोरो ने हमारे १९ क्रांतिवीरो को फ़ासी पर टांग दिया और ६ लोगो को पुलिस ने अपने अत्याचारों से मार दिया था | अंगेज भारतीयों का खून चूस रहे थे और समय काट रहे थे | कांग्रेस के साथ अनविज्ञता मे शुरू मे देशभक्त जुड़ते और फिर इसे समझते ही या तो निकाल दिए जाते या खुद छोड़ देते | बहुत से देश भक्त लम्बे समय तक इस खेल को समझ ही ना पाए | वीर सावरकर ने तो जेल मे रह कर ही कांग्रेस कि कालिख लगने से स्वयं को बचा लिया और कांग्रेस मे सम्मलित होने के प्रस्ताव को ठुकरा कर हिंदू महासभा का चयन किया | लाला लाजपत राय और मदन मोहन मालवीय जी हिंदू महासभा ही विकल्प है ये समझ चुके थे और खुद शुभाष चन्द्र वसु जी को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से मोहन दास गांधी ने त्यागपत्र देने को बाध्य किया | १९४२ कि अगस्त क्रांति मे १३-१४ के बच्चे-बच्चिया मारे गए पुलिस थानों मे अहिंसा का पालन करते हुए तिरंगा लगाने मे | यदि यही सशस्त्र विद्रोह होता तो १९४२ मे काले अंग्रेज भी मारे जाते |
गणतंत्र और चुनाव
१९११-१२ से जो चुनाव प्रक्रिया आरम्भ हुई जिसका सबने विरोध किया | १९३७ के प्रांतीय चुनावो को कांग्रेस शुरुआती नखरे दिखाते हुए स्वीकार कर लेती है | अर्थात १९३५ के बने गवर्मेंट आफ इंडिया एक्ट पर सहमत हों गए और जिसे गांधी ने कभी वैश्या तंत्र कहा था आज कांग्रेसी उसी मे तैरने के लिए लालायित थे  | १९४७ का इन्डियन इंडिपेंडेंस एक्ट १९३५ के कानून के अंतर्गत है बस डोमिनियन के घोषणा के साथ [श्रोत: देखे बर्तानिया विधि पुस्तकालय] | बाद मे जो संविधान बना वो तो पूरी कि पूरी आंग्ल शासन पद्धति कि नकल रहा | नकल भी ऐसी है के कॉमा और फुल स्टॉप भी वैसे के वैसे ही है | स्वतंत्रता कि खुशी मना रहे वो भोले-भाले क्रांतिकारी जिन्हें कोई मूल्य नही चाहिए था | जिन्होंने जान दी शरीर पर ही नहीं आत्मा पर भी वार झेले | वो ब्राह्मण क्रन्तिकारी जो साफ़ सफाई का विशेष ख्याल रखते थे उन्हें विशेषकर गोरो ने मु मे मल मूत्र तक ठुसे और उन्होंने वो भी सरलता से झेल लिया पर टूटे नहीं | चमड़े के चाबुक और बर्फ कि सिल्लिया मजाक थी, क्रांतिकारियो के लिए उस से भी बड़ा मजाक बना रखा था फ़ासी का | किस मिट्टी से बने है इस देश एक बालक और बालिकाए ये अंग्रेज कभी समझ ना पाए | पर इसका मूल्य देना स्वतंत्रता संग्रामी पेंशन, क्या वे किसी मूल्य के लिए लड़े थे वे ? लाभ उन्होंने उठाया जिन्होंने कभी एक डंडा भी नही खाया और कांग्रेसी कार्यालय मे नारेबाजी कि | अंग्रेज चाहते थे हम चारित्रिक तौर पर गिरते चले जाए इसके लिए उन्होंने वर्षों से सोच रखा था गणतंत्र बनने पर वैसा ही हुआ | हम गिरते गए आज हमने भ्रष्टाचार के सर्वोच्च शिखर पर पहुच गए | हमने दासता कि पराकाष्ठा पार कर दी | आज ६७ वर्ष बाद भी हमारे प्रधान मंत्री संध्या के समय सूर्यास्त के बाद प्रधानमंत्री कि शपथ लेते है | क्यों के साढ़े ५ घंटे पहले इंग्लैंड मे संसद का समय हुआ कर्ता था | लोकतंत्र ने फूट मे फूट डाली दी | पहले फुटन कोढ़ थी, तो अब खाज हों गई |
२६ जनवरी का ढोंग
यदि सरदार पटेल ने उन क्रांतिकारियो को ना रोका होता और काश सशस्त्र विद्रोह हों जाता तो भारत मे आज डोमिनियन शासन ना होता | पर फिर शायद किसी कांग्रेसी को सत्ता सुख ना मिलता | और जो राज्य अंग्रेज नहीं जीत पाए थे वो भी आज श्री पटेल के प्रयासों से राज्यों का संघ मे बर्तानिया डोमिनियन मे सम्मलित है | संभवतः इसीलिए कुछ राजा मिलना नहीं चाहते थे राज्य संघ मे क्यों के वो जानते थे के भारत मे सत्ता किन काले अंग्रेजो के हाथ मे जा रही है | फिर भी सयुक्त होना अधिक उत्तम है जब सीमाए विधर्मी राज्यों से लगी हों | कांग्रेस खुद डोमिनियन कि मांग करती रही पर जब पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जी कि बनाई एच.आर.ए (बाद मे एस.एस.आर.ए) के पूर्ण स्वराज्य कि मांग के कारण जन समर्थन पाने लगी जब के उसके कार्यकर्ता सशस्त्र क्रांति कर ही स्वराज्य लेना चाहते थे और फासियो पर चढ़ रहे थे | कांग्रेस को भी पूर्ण स्वराज्य पर आना पड़ा २६ जनवरी १९३० को पूर्ण स्वराज्य कि मांग करी | १५ अगस्त का कारण हम लिख चुके तो कांग्रेस ने अपना सम्मान बचाने के लिए २६ जनवरी १९५० को गणतंत्र दिवस घोषित किया संविधान को लागू कर के जो के २ मास पूर्व नवम्बर १९४९ मे ही पूर्ण हों गया था | यानी डोमिनियन कि बात दबी रहे और कानून बना कर स्वतंत्रता कैसे मिल सकती है ये आप ना सोच सके क्यों के कानून बना कर स्वतंत्रता अगर मिलने लगी तो कानून बदल कर स्वतंत्रता हट सकती है मजाक है स्वतंत्रता का | ये गणपति का देश है हमे गणतंत्र नहीं चाहिए हमें तो गणपति तंत्र चाहिए | अर्थात वेद कि व्यवस्था चाहिए |
दासता कि पराकाष्ठा
डोमिनियन मे समस्या क्या है ? ये सबसे बड़ा प्रश्न होगा आप के मस्तिष्क मे | हमारी अर्थव्यवस्था आज तक नही पनप पाई | भारत मे पैदा होने वाले को किसी देश मे जाकर काम नही करना पड़ता था | पूरी दुनिया का सोना यहाँ आकार गिरता था | धर्म अध्यात्म समृधि हमारे पास आरम्भ से ही थी कारण २ थे पहला वेदों का ज्ञान दूसरा भौगोलिक सुविधाए | सभी कुछ उत्पादन कि क्षमता और दिव्य जल से युक्त नदिया, हिमालय और समुद्र. मैदानी भाग और रेगिस्तान | अंग्रेज तो शुरू से समझते थे पर खत्म करने के लिए जो उन्होंने किया वो आज जा कर सफल हुए है |
१.प्रथम तो देखे हमारा संविधान उनके तंत्र अनुरूप बना | २.हमारा राष्ट्रगान उनके राजा कि प्रशंसा वाला आज भी चल रहा है भारत भाग्य विधाता जोर्ज पंचम | ३.हमारा झंडा जो के रामायण से महाभारत तक और महाभारत से सन्यासी विद्रोह और अंत तक भगवा ही रहा | क्रन्तिकारी बसंतीचोला ही रंगने कि प्रार्थना करते रहे | उसे सांप्रदायिक आधार पर बनाया गया और बहाना बनाया गया के फलाना रंग इस बात का प्रतीक है | ४.आंग्ल जिसकी हमें कोई आवयश्कता नही थी उसे हटाने के स्थान पर और बढ़ा दिया गया | ५.पहले हमारा विज्ञान और राजाओ का इतिहास छुपाया गया अब तो हमारे क्रांतिकारियो का इतिहास भी नही ढूंढे मिलता है | ६.उच्चतम न्यायालय कि आज तक अधिकारिक भाषा आंग्ल है | ७.धोती कुर्ता सभी का छूट गया और हम सभी पैंट शर्ट मे आगये | ८.हमारी राजव्यवस्था मूर्खो वाली दी गई | एक समय था जब ऋषि राजा होते थे या राजा चुनते थे आज एक बलात्कारी और एक संत दोनों का मतदान का एक ही महत्व है | ९.विकेन्द्रित व्यवस्था के स्थान पर केंद्रित एवं कंपनी निकाय फ़ैल गया नौकरी करना जहा निकृष्ट माना जाता था आज लोगो के पास कोई विकल्प नही है १०.किसान अभी भी ऐसा एक मात्र उत्पादक है जो अपने उत्पादित पदार्थ का मूल्य निर्धारण का अधिकार नहीं रखता | ११.आंग्ल लोगो के बनाए सहस्त्रो* कानून वैसे के वैसे ही है | १२.किसान छोड़ कोई भी भोगवाद या तंत्र से जुड़ा कार्य करने वाला वेतन से सामान्य या सामान्य से ऊपर जीवन जी लेगा | इस कारण लोगो मे आत्मनिर्भरता के विचार का शिक्षा के माध्यम से लोप करा दिया गया | १३.हर क्षेत्र मे विदेशी निवेश खोलते चले गए और क्रम चालु है | १४.कॉमन वेल्थ मे अभी भी हम जुड़े हुए है | १५.आरक्षण का जो विष बीज अंग्रेज बो गए वो आज वृक्ष रूप मे हों गया है | १६.हमारी समृद्ध अर्थव्यवस्था का केन्द्र रहने वाली गौ कि हत्या के निषेध का आज भी केन्द्र मे कानून नही बन सका | अभी भी यहाँ से गौ मांस निर्यात होता है | १७.अभी भी इतिहास कि पुस्तके नहीं बदली अभी भी हम नह जानते बाप्पा रावल कौन थे, बंदा वैरागी ने क्या किया था | चाफेकर बंधू,जतिन बघा, रासबिहारी, गेंदालाल दीक्षित इत्यादि अनगिनत नाम है | मरने वालो ने आह नही कि और हमें समय नही उनके बारे मे पढ़ने तक का | १८.महर्षि दयानंद और आर्य समाज के कार्यों को बताने के बजाये आर्य समाजो का दमन नेहरु सरकार का पहला दायित्व रहा | आज आर्य समाजो पर अधिकतर कब्जे ही हों चुके है जो कभी क्रांतिकारियो का अड्डा होते थे | १९.अभी भी हम स्टैम्प ड्यूटी(जिसका ऋषि दयानंद ने विरोध किया था), कोर्ट फीस, मे फसे है | २०.आज भी नाम नहीं बदले गए भवनों के, जिलो के | अंग्रेजो के कब्रिस्तान स्मारक वैसे ही खड़े है | २१.कर प्रणाली सुधरने के बजाये बिगड़ती चली गई | २२.भारत दुनिया का एक मात्र ऐसा देश है जिसका आंग्ला मे नाम का भी अनुवाद होता है भारतवर्ष का इंडिया |
क्या क्या लिखे और कितना लिखे विचार करिये तो समझ आजाएगा के उन्होंने हमारी विवेकशीलता को खत्म करने वाली शिक्षा प्रणाली दे रखी है | हम धर्म अर्थात सुख के मार्ग से कोशो दुर है इस व्यवस्था मे |
एक ही विकल्प : वैदिक प्रजतंत्र व्यवस्था
इसका विकल्प यही है के देश मे दासता के स्तर को समझा जाए और क्रान्ति आये | वैदिक त्रयीसंसदीय व्यवस्था को पुनः लागू किया जाए | राजार्य सभा, विद्यार्य सभा, धर्मार्य सभा द्वारा राष्ट्र का नियंत्रण हों | समय-२ पर अश्वमेध कर के हम सीमाओं का विस्तार करे | परमात्मा का “कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” का आदेश हम पूरा करे | हमारे लोग पुनः योग के मार्ग का अनुसरण कर के मोक्ष कि सिद्धि मे लग जाए | किसान समृद्ध हों जाए | और फिर से पूरी दुनिया का सोना यहाँ आकार गिरने लगे | ये कोई बहुत बड़ी चीज नही है हम इसके अधिकारी है हम ऋषियों कि संतान है शासन के लिए ही पैदा हुए है | पर संघठन के बिना कोई शक्ति नहीं होती | पहला चरण तो लोगो को बताये के पूर्ण स्वराज्य कि लड़ाई अभी बाकी है | स्वयं के ज्ञान को बढाए और दूसरों को भी बताये जो खुद को पता चलता जाए | क्रांतिकारियों का बलिदान यू बेकार नहीं जाने दें सकते | हम अपने सामर्थ्य, ज्ञान और संघठन को योगबल से बढाए परमात्मा हमें स्वराज्य का मार्ग अपने आप दिखायेगा |
*३४७३५ अन्य श्रोत
लेख पश्चात : लिखने को इतना है के एक पुस्तक मे ही पूरा हों पाए परन्तु एक लेख मे अति संछेप मे इतना पर्याप्त लगा | कृपया पढ़े और दूसरों को पढाये और कहने को जो स्वतंत्रता दिवस कि छुट्टी मिलती है उसे जागरूकता और स्वराज्य प्राप्ति के प्रयासों के लिए प्रयोग करे | शमित्योम्
Collection courtesy : Not exactly known
दे दी हमे आजादी, बिना खडग बिना ढाल: Wʜᴏ ʀᴇᴀʟʟʏ ʙʀᴏᴜɢʜᴛ ᴜs ғʀᴇᴇᴅᴏᴍ?
——————————————————————————
“We shall be able to win freedom only through the principles the Congress has adopted for the past thirty years.”
— Mᴀʜᴀᴛᴍᴀ Gᴀɴᴅʜɪ commenting on Netaji Subhas Bose and Indian National Army (INA) in 1946
“The situation in respect of the Indian National Army is one which warrants disquiet. There has seldom been a matter which has attracted so much Indian public interest and, it is safe to say, sympathy…the threat to the security of the Indian Army is one which it would be unwise to ignore.”
— Sɪʀ Nᴏʀᴍᴀɴ Sᴍɪᴛʜ, Director, Intelligence Bureau on 20 November 1945 (Report declassified in 1970s)
“There are two alternative ways of meeting this common desire (a) that we should arrange to get out, (b) that we should wait to be driven out. In regard to (b), the loyalty of the Indian Army is open to question; the INA have become national heroes….”
— Aᴅᴠɪᴄᴇ ғʀᴏᴍ ᴀ ᴅᴇʟᴇɢᴀᴛɪᴏɴ ᴏғ Bʀɪᴛɪsʜ MPs to Prime Minister Clement Attlee in February 1946 (Declassified in 1970s)
“There was considerable sympathy for the INA within the Army. …It is true that fears of another 1857 had begun to haunt the British in 1946.”
— Lᴛ Gᴇɴᴇʀᴀʟ SK Sɪɴʜᴀ (former Governor of J&K and Assam) and one of the three Indian officers who were part of the Directorate of Military Operations in New Delhi in 1946. Sinha wrote this in 1976.
“I don’t know how Mr Attlee suddenly agreed to give India independence. …It seems to me from my own analysis that two things led the Labour party to take this decision: 1. The national army that was raised by Subash Chandra Bose. The British had been ruling the country in the firm belief that whatever may happen in the country or whatever the politicians do, they will never be able to change the loyalty of soldiers. That was one prop on which they were carrying on the administration. And that was completely dashed to pieces.”
— Bᴀʙᴀsᴀʜᴇʙ Bʜɪᴍʀᴀᴏ Aᴍʙᴇᴅᴋᴀʀ in an interview with the BBC in February 1955.
“Toward the end of our discussion, I asked Attlee what was the extent of Gandhi’s influence upon the British decision to quit India. Hearing this question, Attlee’s lips became twisted in a sarcastic smile as he slowly chewed out the word, ‘m-i-n-i-m-a-l!”
— PB Cʜᴀᴋʀᴀʙᴀʀᴛʏ, Chief Justice of Calcutta High Court and acting Governor of West Bengal, recalling his talks with the former British PM in October 1956. This became public knowledge nearly two decades later.
“दे दी हमे आजादी, बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तुने कर दिया कमाल”
— Aɴ ᴀʟʟ-ᴛɪᴍᴇ ғᴀᴠᴏᴜʀɪᴛᴇ Bᴏʟʟʏᴡᴏᴏᴅ sᴏɴɢ of circa 1954 extolling Gandhi for having singlehandedly delivered freedom to India solely through the non-violent means.
“It slowly dawned upon the Government of India that the backbone of the British rule, the Indian Army, might now no longer be trustworthy. The ghost of Subhas Bose, like Hamlet’s father, walked the battlements of the Red Fort (where the INA soldiers were being tried), and his suddenly amplified figure overawed the conference that was to lead to Independence.”
— Bʀɪᴛɪsʜ ʜɪsᴛᴏʀɪᴀɴ Mɪᴄʜᴀᴇʟ Eᴅᴡᴀʀᴅᴇs writing in his 1964 book The Last Years of British India.

Labels:

बैंक ऑफ इंग्लैण्ड को १९४७ से पूर्व का स्वर्ण भेजेगा भारतीय रिसर्व बैंक


रोबर्ट क्लाइव को भारत के एक नगर को लूट कर स्वर्ण से भरे नौ जहाज एंग्लोस्थान ले जाने के लिए थोड़ी तो श्रम करना पड़ा था | पर अब इस केन्द्रीय बैंकिंग प्रणाली जो एंग्लो लोग १९४२ मे जाते-२ स्थापित कर के गए उस सुविधा मे ब्रिटेन के उपगणराज्य इण्डिया को इन विदेशियों को लूटने मे थोडा भी श्रम नही करना पड़ता | रिसर्व बैंक के वर्तमान गवर्नर श्री रघुराम राजन वर्ड बैंक कि संस्था आई.एम.एफ मे तीन वर्ष अक्टूबर २००३ से दिसम्बर २००६ तक कार्य कर के आये है[श्रोत: विकिपीडिया] | इस से पूर्व विश्व बंधू गुप्ता पूर्व आयकर अधिकारी  के खुलासे के अनुसार इंग्लैण्ड कि ही एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी डे ला रु कैश प्रोसेसिंग सोल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड ५०० के नोट छपती रही लगभग ६ वर्ष [श्रोत: यूट्यूब] | जब देश कि नोट छापने वाली सरकारी संस्था ही जुडी हों नकली नोटों कि छपाई मे तो इस से बड़ा लोकतंत्र मे मची दासता और लूट का प्रमाण क्या चाहिए | हमारे शत्रुओ को, आई.एस.आई को क्यों ना मिलेंगे ५०० के ऐसे नोट जो उन्हें बम विस्फोट कर हमारे भारतीय नागरिक भाई-बहनों कि हत्या करने लिए पर्याप्त होंगे | दश वर्ष कांग्रेस शासन था अब तो राष्ट्रवाद का दावा करने वालो के हाथ मे सत्ता है | रेलवे मे रेल नीर के स्थान पर किनले, एकुआफीना सही पर ये तो रोक सकते है हमारे आदरणीय प्रधानमन्त्री जी |

स्वर्ण अदला-बदली का बहाना कर के अंदर क्या खिचड़ी पका रहे है ये जानना अति आवश्यक है | दूसरों से अधिक आशा करना उचित नहीं अतः जिस दिन मैंने ये समाचार पत्र पढ़ा उसी दिन सक्रीय हों गया क्यों के ये दासता कि पराकाष्ठा थी | मैंने इसपर घर मे चर्चा करी, के मैं सुचना के अधिकार के अंतर्गत रिसर्व बैंक से प्रश्न करूँगा | तो पिता जी के पत्रकारों से संपर्क को देखते हुए हमने उनके नाम से सुचना के अधिकार के अंतर्गत प्रश्न करने का निर्णय लिया | दिनांक ७ जुलाई को छपी सुचना पर हम दिनांक ९ जुलाई को कार्यवाही पूरी कर पाए | हमने १२ प्रश्न पूछे है जिसका पावती पत्र(एकनॉलेजमेंट) हमें प्राप्त हों चूका है | १ मास के ऊपर हों चूका है और अभी हम थोड़ी और प्रतीक्षा करेंगे तत्पश्चात अधिक विलंभ पर प्रथम अपील अधिकारी को लिखेंगे | आप लोग भी स्वतंत्र है इन प्रश्नों को रिसर्व बैंक से पूछने से | आप अपने नगर के बड़े डाकघर के सी.ए.पी.आई.ओ को सीधे ये पत्र दे सकते है | आपको रजिस्ट्री पर भी व्यय करने कि आवयश्कता नहीं | नगद १० रूपए भी दे सकते है, नगद धन का प्रावधान है | पर वे झंझट करेंगे, तो आप १० रूपए का पोस्टल ऑर्डर वही डाक घर से सम्बन्धी विभाग एक एकाउंट ऑफिसर के नाम ले सकते है | यह आपको ११ रूपए का मिलेगा | १ रूपये का ही नुक्सान होगा पर यदि आप अधिक समय दे सकते है तो नगद रूपए ही टिकाये | हमने पोस्टल ऑर्डर लिया क्यों के मेरे पास अन्य पत्र भी थे और सम्बंधित अधिकारी ने अच्छे से बात करी थी | इस पत्र कि २ प्रतिया ले जाइयेगा, १ प्रति पर वे मोहर लगा कर दे देंगे, ये पत्र आपके लिए महत्पूर्ण रहेगा | कुछ समय पश्चात आपको रिसर्व बैंक से भी पावती पत्र प्राप्त होगा के आपका पत्र सम्बंधित विभागों को भेज दिया है यदि फोतोकोपी का कोई व्यय होगा तो आपको सूचित किया जाएगा |
इस दिन के लिए हमारे क्रांतिवीरो ने बलिदान नहीं दिया के काले अंग्रेजो से गोरे अंग्रेज इतनी सरलता से कार्य करा सके | यदि इन प्रश्नों के उत्तर हमें ऐसे मिले जिस से हमें राष्ट्र को प्रत्यक्ष हानि दिखी तो हम अपने सामर्थ्य अनुसार इसका विरोध करेंगे | हम पत्र कि प्रति आपके समक्ष रखते है, आप लोग भी चाहे तो अपने-२ क्षेत्रो से आर.टी.आई डाले ताकि इन पर दबाव बना रहे |
सेवा मे : जन सूचना अधिकारी,
भारतीय रिसर्व बैंक,
माल रोड, कानपूर
प्रश्नकर्ता : आपका नाम एवं पता,


विषय : स्वर्ण के ब्रिटेन शोधन हेतु हस्तान्तरण मे एवं मुद्रा कि छपाई के सम्बन्ध मे सुचना के अधिकार के अंतर्गत प्रश्न
महोदय, मैं जनसुचना के अधिकार २००५ के अंतर्गत निम्न प्रश्नों का उत्तर चाहता हू |
१.      दिनांक ७ जुलाई २०१४ को हिंदुस्तान समाचार पत्र के कानपुर संस्करण के पृष्ठ ६ पर छपा था के रिसर्व बैंक स्वर्ण के शोधन के लिए, जिसमे १९४७ से पूर्व का भी स्वर्ण सम्मलित है उसे शोधन हेतु रिसर्व बैंक के सरंक्षक बैंक, बैंक ऑफ इंग्लैंड भेजा जाएगा | क्या ये जानकरी सत्य हैं ?
२.      यदि सत्य है तो अचानक किन कारणों से भारतीय रिसर्व बैंक को स्वर्ण शोधन कि आवयश्कता पड गई ?
३.      इस प्रस्ताव को किन पदाधिकारियों ने प्रस्तावित किया एवं किस दिनांक तक इस प्रस्ताव को कार्यान्वित किया जाएगा ?
४.      क्या ये शोधन प्रक्रिया भारत मे संभव नही है ? यदि नहीं तो क्यों नहीं ? इस पूरी प्रक्रिया मे कुल कितना व्यय होगा ?
५.      इस पूरी प्रक्रिया मे कितना समय लगेगा ?
६.      इस पूरी प्रक्रिया मे कितना स्वर्ण भण्डारण इंग्लैंड भेजा जाएगा ?
७.      क्या इस शोधन का सम्बन्ध किसी प्रकार से अन्तराष्ट्रीय कर्ज के लिए मानक से सम्बंधित है ? वर्तमान मे रिसर्व बैंक पर किन-२ राष्ट्रों, वर्ड बैंक एवं आई एम एफ का कितना कर्ज है ?
८.      बैंक ऑफ इंग्लैंड को शोधन के लिए स्वर्ण देने के एवज मे क्या बैंक ऑफ इंग्लैंड कि किसी प्रकार कि संपत्ति का प्रत्याभूत हमारे पास रखा है ?
९.      पूर्व आयकर अधिकारी विश्व बंधू गुप्ता के अनुसार २००५ से २०११ तक रिसर्व बैंक ने ५०० के नोट छापने का कार्य ब्रिटिश कंपनी डे ला रु कैश प्रोसेसिंग सोल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड को दिया था, क्या ये सत्य है ?
१०.  यदि सत्य है तो किन कारणों से रिसर्व बैंक ५०० के नोट ६ वर्ष छापने मे असमर्थ रहा ?
११.  नोट छापने के लिए लिए कंपनी डे ला रु कैश प्रोसेसिंग सोल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड का चयन किस आधार पर किया गया ? क्या किसी प्रकार कि निविदा आमंत्रित कि गई ? यदि कि गई तो इसकी सुचना किन-२ समाचार पत्रों मे किस दिनांक को छपी थी ?
१२.  किन-२ अन्य कंपनियों ने इस निविदा मे आवेदन प्रस्तुत किया था ?

Labels: